वास्तु
वास्तु, मंगल और दक्षिण दिशा
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वास्तु अनुसार दक्षिण दिशा मंगल से प्रभावित होती है, यह दिशा घर के पुरूष सदस्यों, घर के रिश्तेदारों, शत्रुता, कर्ज़ और बीमारी को प्रभावित करती है।
यदि इस दिशा में रसोई घर हो तो घर में झगड़े, कलह का माहौल बनता है, परिवार में अशांति होती है, सदस्यों को पेट की खराबी के रोग परेशान करते हैं।
अगर इस दिशा में महिलाओं के शिंगार का सामान रखा हो तो इस से घर की आर्थिक स्थिति पर खराब प्रभाव आता है, खर्च आमदनी से ज़्यादा बने रहते हैं।
यदि इस दिशा में बच्चों का कमरा हो तो बच्चे क्रोधी, ज़िद्दी और चिड़चिड़ापन स्वभाव के बन जाते हैं, पढ़ाई से दूर भागते हैं।
यदि इस दिशा में भण्डार घर हो, राशन इकट्ठा करके रखा हो तो इस से सदस्यों में आपसी मतभेद बढ़ते हैं, सदस्यों को एक दूसरे पर विश्वास और भरोसा नहीं रहता, जिस से घर का तनाव बढ़ता है।
यदि इस दिशा में फालतू सामान, कबाड़ रखा हो तो बहन भाइयों के आपसी संबंध खराब होते हैं, उधारी, कर्ज़ की समस्या उस घर में बनती है, मित्रों, पड़ोसियों से कष्ट होता है।
यदि इस दिशा में पूजा स्थान होगा तो इस से घर के पुरूष सदस्यों को हृदय के रोग, श्वास और खून से जुड़े रोग परेशान करते हैं।
यदि घर का रसोई स्थान खुला हुआ हो, हाल के साथ attached हो इस से मुख्य सदस्य को कामकाज में समस्या आती है, घर में वाहन सुख की कमी होती है, मुख्य सदस्य के मित्र कम होते हैं, पुरुष सदस्यों को नशे की आदत हो सकती है।
यदि घर के मुख्य द्वार से खड़े होकर गैस चूल्हा दिखाई देता हो, मतलब मुख्य द्वार और रसोई का द्वार आपने सामने हो तो यह भी शुभ नहीं होता।
वास्तु अनुसार घर की दक्षिण दिशा में घर के मुख्य दम्पति ( पति पत्नी ) का कमरा होना शुभकारी होता है।
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