महाराणा प्रताप
#MaharanaPratapJayanti #नमन💐🙏
महाराणा हमारे भगवान🙏🚩🚩⚔️⚔️
प्रातः स्मरणीय🚩🇮🇳🇮🇳⚔️⚔️
✍️शौर्य,पराक्रम,त्याग,बलिदान,वीरता,स्वाभिमान जैसे महान हृदय को
गौरवान्वित करने वाले शब्दों को जोड़ने के बाद एक नाम बनता है
वो नाम है महाराणा प्रताप।
जिन्हे इतिहासकारों ने अपने अपने उल्लेखों में महाराणा प्रताप जी के नाम के आगे वैसे शब्दो को जोड़ कर उनके नाम को सुशोभित किये है।
(जैसे किसी मनुष्य के गले मे हीरे-मोतियों की हार लटकती हो)
आज तक पूरे इतिहास के काल-खंड में किसी भी शूरवीर के नाम के आगे इतने सारे (हीरे मोतियों ) जैसे सुशोभित शब्द का इस्तेमाल नही हुआ।
उस प्रत्येक शब्दों को ब्याख्या करना आज के इतिहासकारो के बस में नही।
हिंदुजा सूरज,क्षत्रिय कुलभूषण, महाप्रतापी,महापराक्रमी, महाराष्ट्रभक्त,
महायशश्वी,महास्वाभिमानी,महायोद्धा,महाशूरवीर,महासंघर्षकारी, मेवाड़ नरेश इत्यादि जैसे महान शब्दो को उनके नाम के आगे जोड़ा गया है।
तो आइए आज उसी महाराणा प्रताप जी की जयंती के उपलक्ष्य में उनके गौरव गाथा को गुणगान करते है।
पिता का नाम-महाराणा उदय सिंह
माता का नाम-महारानी जयवंताबाई
नाम-महाराणा प्रताप(बचपन मे कीका)
घराना-सिसोदिया राजपूत
जन्म ईस्वी-9 मई 1540
जन्म स्थान-कुंभलगढ़ दुर्ग(राजसमंद)मेवाड़
राज्याभिषेक-28 फरवरी 1572
मंत्री-भामाशाह
शाशनकाल-(1572-1597)
प्रमुख युद्ध- महाराणा प्रताप जी ने संपूर्ण जीवन में बहुत सारे युद्ध किये तथा सभी युद्ध मे वो विजय प्राप्त करके केसरिया ध्वज लहराए।
लेकिन सभी युद्ध मे प्रमुख हल्दीघाटी के युद्ध को माना जाता है।
इतिहासकारो ने उस युद्ध को महाभारत की युद्ध की तर्ज पर ब्याख्या किया है।वो युद्ध महाप्रलयकारी युद्ध हुआ था।
युद्ध के एक तरफ मुगलिया शासक अलाउद्दीन मोहम्मद अकबर था।
वो अकबर जो पूरे विश्व मे इस्लाम की स्थापना करना चाहता था बड़े बड़े शूरवीर योद्धाओं को अपने लाखो सेनाओ के द्वारा तथा युद्ध के लिए इस्तेमाल में बारूद, गोलो अथाह भंडार से वो पराजित कर चुका था।
इसी उद्देश्य से उसने मेवाड़ पे भी अपना अधिकार कायम करना चाहता था।
लेकिन युद्ध के दूसरे तरफ मेवाड़ के राजा महाराणा प्रताप जी थे।
जिनके पास न तो उतनी सेना थी और न ही युद्ध मे इस्तेमाल किये जाने के लिए बारूद,गोला महाराणा प्रताप जी को अपने युद्ध की रणनीति,कूटनीति,अपने सेनाओ के अदम्य शाहस और वीरता पे पूरा भरोसा था। जिसके दम पे उन्होंने सैकड़ो युद्ध जीते थे।
7.5 फिट के महाराणा के सामने अकबर ने अपने सेनाओ से कितने बार आक्रमण करवाया लेकिन हरबार उसके सेनाओ के खून से मेवाड़ रक्तरंजित ही हुआ।जिससे अकबर के शाहस को पूरी तरह झकझोर कर के रख दिया।
प्रताप के घोड़े का नाम चेतक था। प्रताप की तरह ही उनके घोड़े में भी इतनी शक्ति थी कि वो जब दौड़ता था तो मानो जैसे बिजली दौड़ रही।वो अपने घोड़े को भाई समान प्यार करते थे
जब महाराणा युद्ब में जाते थे तो जब भी अपने चेतक पे सवार होते तो चेतक अपने दोनों पैर को ऊपर हवा में उठाकर ये संकेत देता था कि वो मरते मरते तक भी महाराणा का साथ नही छोड़ेगा।
महाराणा युद्ध मे जाने से पहले अपने कुल देवता के मंदिर में जाकर प्रणाम करते थे तथा अपने शस्त्रो को वही पे धारण करते थे।
अकबर ने कभी भी उससे पहले महाराणा के सामने खुद युद्ध नही किया
था। एक बार अकबर ने अपने सबसे बड़े योद्धा को जिसका नाम बहलोल खान था उसको महाराणा से युद्ध करने के लिए भेजा। महाराणा जी ने उस बहलोल खान को अपने तलवार के एक झटके से उसके शरीर के साथ साथ उसके घोड़े को भी दो भागों में काट दिया था। महाराणा के तलवार की वजन 80 किलो था। जब वो पूरे कवच, तलवार, की वजन 285 किलो हुआ करता था। जब बहलोल खान की खबर अकबर सुना तो उसके होश उड़ गए क्यों कि बहलोल खान के साथ उसने बहुत से युद्ध जीता था। अकबर सपने में भी महाराणा का नाम लिया करता था। अकबर किसी तरह मेवाड़ के कुछ लोगो को अपनी तरफ आकर्षित कर लिया जिससे उसने महाराणा के कई राज जान गया। फिर उसने मेवाड़ पे आक्रमण किया और अपने अधीन कर लिया। लेकिन महाराणा ने उसी वक़्त मेवाड़ को छोड़कर जंगलो में रहना पसंद किया और वहाँ आदिवासियों, भीलो और गढ़वा लोहारो की मदद से एक सेना फिर से तैयार किया । उनके सेनाओ में मात्र एक मुस्लिम सरदार हकिम खाँ सूरी थे। अकबर ने महाराणा से संधि करने के लिए 4 बार अपने सेनाओ को भेजा था संधि पत्र में अकबर लिखा था कि आप सिर्फ मेरी स्वाधीनता स्वीकार कर ले। और मेवाड़ के साथ साथ आधा भारत मैं आपको देने के लिए तैयार हूं। अकबर ने संधि पत्र में लिखा कि अगर आप मेरे साथ होकर युद्ध लड़ेंगे तो पूरे विश्व को जीत सकते है।महाराणा उस वक़्त जंगलो में घास की रोटी और जमीन पर सोना ठीक समझकर उसके संधि को लात मारकर भगा दिया संघर्ष किया लेकिन स्वाधिनता स्वीकार नही किये।और दिन रात सिर्फ सेना तैयार करने लग गए। सेनाओ के लिए गढ़वा लोहारो ने तलवारे, तीर धनुष, कवच, बनाया करता था। और महाराणा एक ही संकल्प लिए मुगलो से मेवाड़ मुक्ति।
जब 1579 से 1585 तक पूर्व उत्तर प्रदेश, बंगाल, बिहार और गुजरात के मुग़ल अधिकृत प्रदेशों में विद्रोह होने लगे थे और महाराणा भी एक के बाद एक गढ़ जीतते जा रहे थे अतः परिणामस्वरूप अकबर उस विद्रोह को दबाने में उल्झा रहा और मेवाड़ पर से मुगलो का दबाव कम हो गया। इस बात का लाभ उठाकर महाराणा ने 1585ई. में मेवाड़ मुक्ति प्रयत्नों को और भी तेज कर लिया। महाराणा की सेना ने मुगल चौकियों पर आक्रमण शुरू कर दिए और तुरंत ही उदयपूर समेत 36 महत्वपूर्ण स्थान पर फिर से महाराणा का अधिकार स्थापित हो गया। महाराणा प्रताप ने जिस समय सिंहासन ग्रहण किया , उस समय जितने मेवाड़ की भूमि पर उनका अधिकार था , पूर्ण रूप से उतने ही भूमि भाग पर अब उनकी सत्ता फिर से स्थापित हो गई थी। बारह वर्ष के संघर्ष के बाद भी अकबर उसमें कोई परिवर्तन न कर सका। और इस तरह महाराणा प्रताप समय की लंबी अवधि के संघर्ष के बाद मेवाड़ को मुक्त करने में सफल रहे और ये समय मेवाड़ के लिए एक स्वर्ण युग साबित हुआ। मेवाड़ पर लगा हुआ अकबर ग्रहण का अंत 1585 ई. में हुआ। उसके बाद महाराणा प्रताप उनके राज्य की सुख-सुविधा में जुट गए। महाराणा ने कभी भी अकबर को अकबर नही कहा उन्होंने हमेशा तुर्क बोलते थे।
तो आइए जानते है मेवाड़ नरेश के युद्धों के बारे में-और उसके परिणाम
1555 ई. :- 15 वर्ष की उम्र में जैताणा के युद्ध में करण सिंह को मारकर वागड़ की फ़ौज को परास्त किया
1556 ई. :- छप्पन के इलाके को जीता
गोडवाड़ पर विजय प्राप्त की
1557 ई. :- बिजोलिया की राजकुमारी अजबदे बाई सा से विवाह
1563 ई. :- भोमठ पर विजय
अक्टूबर, 1567 ई. :- कुंभलगढ़ पर हुसैन कुली खां के आक्रमण को विफल किया
1572 ई. :- मेवाड़ के महाराणा बने व सिरोही पर कल्ला देवड़ा के ज़रिए अधिकार किया, कुछ समय बाद सिरोही राव सुरताण से मित्रता कर ली।
1572 ई. :- महाराणा द्वारा मंदसौर के मुगल थानों पर हमले व विजय
1573 ई. :- गुजरात से आगरा जाती हुई मुगल फौज पर हमला किया व खजाना लूट लिया
1572 ई. से 1573 ई. के बीच अकबर द्वारा भेजे गए 4 सन्धि प्रस्तावों को खारिज किया :-
1) जलाल खां
2) राजा मानसिंह
3) राजा भगवानदास
4) राजा टोडरमल
1576 ई. :- हल्दीघाटी का विश्व प्रसिद्ध युद्ध हुआ, जो कि अनिर्णित रहा।
23 जून, 1576 ई. :- राजा मानसिंह द्वारा गोगुन्दा पर हमला। यहां तैनात मात्र 20 मेवाड़ी बहादुर काम आए।
अगस्त, 1576 ई. :- महाराणा प्रताप द्वारा अजमेर, गोडवाड़, उदयपुर की मुगल छावनियों पर आक्रमण
सितम्बर, 1576 ई. :- महाराणा प्रताप ने गोगुन्दा पर आक्रमण किया व कईं मुगलों को मारकर गोगुन्दा पर अधिकार किया
अक्टूबर, 1576 ई. :- मुगल बादशाह अकबर का 80,000 जंगी सवारों समेत मेवाड़ पर हमला
अकबर एक वर्ष तक मेवाड़ व उसके आसपास ही रहा व महाराणा प्रताप पर कईं हमले किए, पर हर बार नाकामयाबी मिली
अकबर द्वारा कुतुबुद्दीन, राजा भगवानदास, राजा मानसिंह को गोगुन्दा पर हमला करने भेजना। छोटे-बड़े कई हमलों के बाद अंततः गोगुन्दा पर महाराणा की दोबारा विजय।
महाराणा प्रताप के खौफ से हज यात्रियों के जुलूस की हिफाजत में अकबर द्वारा 2 फौजें भेजी गईं
महाराणा प्रताप ने दूदा हाडा को बूंदी जीतने में फ़ौजी मदद की
1577 ई. :- महाराणा प्रताप द्वारा दिबल दुर्ग पर अधिकार
23 फरवरी, 1577 ई. :- महाराणा प्रताप व राय नारायणदास राठौड़ ने मिलकर लड़ा ईडर का युद्ध
1577 ई. :- ईडर के दूसरे युद्ध में मुगलों की रसद व खजाना लूट लिया
मई-सितम्बर, 1577 ई. :- महाराणा प्रताप ने गोगुन्दा, उदयपुर में तैनात मुगल थाने उखाड़ फेंके
अक्टूबर, 1577 ई. :- महाराणा प्रताप ने मेवाड़ के सबसे बड़े मुगल थाने मोही पर आक्रमण किया। थानेदार मुजाहिद बेग कत्ल हुआ व मोही पर महाराणा का अधिकार हुआ।
अक्टूबर, 1577 ई. :- अकबर ने शाहबाज खां को फौज समेत मेवाड़ भेजा
नवम्बर, 1577 ई. :- महाराणा प्रताप द्वारा केलवाड़ा मुगल थाने पर आक्रमण, 4 मुगल हाथी लूटे गए
1578 ई. :- कुम्भलगढ़ का युद्ध :- शाहबाज खां ने कुम्भलगढ़ पर अधिकार किया
महाराणा प्रताप ने कुम्भलगढ़ की पराजय के प्रतिशोध स्वरुप जालौर व सिरोंज के सभी मुगल थाने जलाकर खाक किये
1578 ई. :- वागड़ की फौजों से हुए युद्ध में महाराणा प्रताप द्वारा भेजे गए रावत भाण सारंगदेवोत की विजय
15 दिसम्बर, 1578 ई. :- शाहबाज खां का दूसरा असफल मेवाड़ अभियान
1578 ई. :- भामाशाह को फौज देकर मालवा पर हमला करने भेजना
15 नवम्बर, 1579 ई. :- शाहबाज खां का तीसरा असफल मेवाड़ अभियान
1580 ई. :- अब्दुर्रहीम खान-ए-खाना का असफल मेवाड़ अभियान, महाराणा प्रताप ने कुँवर अमरसिंह द्वारा बंदी बनाई गई रहीम की बेगमों को मुक्त कर क्षात्र धर्म का पालन किया
1580 ई. :- मालवा में भामाशाह के भाई ताराचंद के ज़ख़्मी होने पर महाराणा प्रताप द्वारा मालवा से ताराचंद को सुरक्षित चावण्ड लाना व रास्ते में आने वाली मुगल चौकियों को तहस-नहस करना, साथ ही मंदसौर के सबसे बड़े मुगल थाने पर आक्रमण व विजय
अक्टूबर, 1582 ई. :- दिवेर का युद्ध :- महाराणा प्रताप द्वारा मुग़ल सेनापति सुल्तान खां की पराजय। कुँवर अमरसिंह द्वारा सुल्तान खां का वध।
1583 ई. :- महाराणा ने हमीरपाल झील पर तैनात मुगल छावनी हटाई
1583 ई. :- कुम्भलगढ़ का दूसरा युद्ध :- महाराणा प्रताप ने मुगल सेनापति को मारकर दुर्ग पर अधिकार किया।
1583 ई. :- महाराणा प्रताप द्वारा मांडल के थाने पर आक्रमण व विजय। मुगलों की तरफ से इस थाने के मुख्तार राव खंगार कछवाहा व नाथा कछवाहा मारे गए। राव खंगार की छतरी विद्यमान है, जिसपे इस लड़ाई में मरने वालों के नाम खुदे हैं।
1583 ई. :- बांसवाड़ा में मानसिंह चौहान से युद्ध
1584 ई. :- उदयपुर के राजमहलों में तैनात मुगलों पर महाराणा प्रताप का आक्रमण व विजय। अकबर द्वारा 1576 ई. में उदयपुर का नाम 'मुहम्मदाबाद' रखने पर महाराणा द्वारा फिर से नाम बदलकर उदयपुर रखना।
1584 ई. :- अकबर ने जगन्नाथ कछवाहा को फौज समेत मेवाड़ भेजा, पर जगन्नाथ कछवाहा भी 2 वर्ष तक मेवाड़ में रहकर असफल होकर लौट गया
1584 ई. :- अब्दुर्रहीम खान-ए-खाना का दोबारा असफल मेवाड़ अभियान
1585 ई. :- लूणा चावण्डिया को पराजित कर चावण्ड पर अधिकार व चावण्ड को राजधानी बनाना
1586 ई. :- मेवाड़ में लूटमार करने वाले नवाब अली खां का दमन
1586 ई. :- अकबर द्वारा 1568 ई. में चित्तौड़गढ़ का नाम 'अकबराबाद' रखने के कारण महाराणा प्रताप द्वारा चित्तौड़ के एक शाही थाने पर हमला व विजय, गढ़ नहीं जीतने के बावजूद महाराणा ने नाम बदलकर पुनः चित्तौड़गढ़ रखा, क्योंकि मेवाड़ की जनता ने भी अकबराबाद नाम स्वीकार नहीं किया।
1585 - 87 ई. :- महाराणा प्रताप व कुँवर अमरसिंह द्वारा मोही, मदारिया समेत कुल 36 मुगल थानों पर आक्रमण व विजय
1588 ई. :- महाराणा प्रताप की जहांजपुर विजय
1589 ई. महाराणा प्रताप द्वारा सूरत के शाही थानों पर आक्रमण व हाथी पर सवार सूरत के मुगल सूबेदार को भाले से कत्ल करना
1591 ई. :- राजनगर के युद्ध में महाराणा की फौज द्वारा दलेल खां की पराजय
1591 ई. :- दिलावर खां से कनेचण का युद्ध
* 29 जनवरी, 1597 ई. :- वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप का देहान्त
आप पढ़ते-पढ़ते थक गए होंगे। महाराणा प्रताप ने कितना कुछ सहा, क्या कुछ झेला.... इसकी कल्पना हम और आप जैसे साधारण लोगों के बस की बात नहीं।ऐसे थे हमारे महाराणा प्रताप जी उनके श्री चरणों मे मेरा बारम्बार शत शत प्रणाम🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🚩🚩🚩🚩🚩
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