चारों चरणों पर नवग्रह प्रभाव सूर्यअश्विनी (१)
चारों चरणों पर नवग्रह प्रभाव सूर्य
अश्विनी (१)
सूर्य पर मंगल की दृष्टि हो तो जातक क्रूर स्वभाव का होता है। उसके नेत्र बड़े एवं रक्तिम होते हैं। सूर्य
पर बुध की दृष्टि हो तो जातक शांति से जीवन व्यतीत करता है। उसका व्यक्तित्व भी प्रशंसनीय रहता है।
बृहस्पति की दृष्टि हो तो वह सत्तासुख भोगता है। शुक्र की दृष्टि हो तो वह अति भोगविलास में मग्न रहता है। यदि शनि की दृष्टि हो तो दरिद्र रहता है।
प्रथम चरण में सूर्य स्थित हो तो जातक की आयु दीर्घ रहती है। वह मधुरभाषी, संतति द्वारा विशेष सुख एवं आनंद प्राप्त करनेवाला होता है। उसे पित्तवातादि रोगों का कष्ट रहता है।
द्वितीय चरण में सूर्य स्थित हो तो जातक की स्थिति श्रेष्ठ नहीं होती। अपनी आयु के आठवें वर्ष तक उसे कई कष्टों से जूझना पड़ता है। अश्विनी नक्षत्र में सूर्य अच्छा फल प्रदान करता है किंतु यदि द्वितीय चरण में हो तो उसका अच्छा प्रभाव जातक पर दिखाई नहीं देता। ऐसे जातक को भूत-प्रेत बाधा का कष्ट रहता है। किसी के द्वारा प्रदत्त शाप के कारण भी कष्ट सहने पड़ते हैं। यह स्थिति उसे उच्च स्थान से नीचे लाने में समर्थ रहती है। सुसंपन्न व्यक्ति के जीवन में आकस्मिक उतार आना शुरू होता है। भिक्षा मांगने तक की स्थिति आ जाती है। अपने गृह और देश का भी त्याग करना पड़ता है। सूर्य के साथ चंद्र भी हो तो दरिद्रता में जीवन व्यतीत करना पड़ता है। मंगल की दृष्टि होने पर श्रेष्ठ परिणाम दिखाई देते हैं।
तृतीय चरण में स्थित होने पर जातक धनवान एवं संपन्न रहता है किंतु उसकी आयु दीर्घ नहीं होती। स्वास्थ्य भी ठीक नहीं रहता। कई बार हिंसक एवं नीच आचरण उससे होता है।
चतुर्थ चरण में होने पर व्यक्ति सम्मानित, चतुर, धनवान एवं अपने समाज का अगुवा होता है। राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त करता है। धार्मिक वृत्ति उसमें निहित रहती है। हृदय निर्मल रहता है। अपने उत्तरदायित्वों को वह समय पर और श्रेष्ठ प्रकार से निभाता है। प्रवास अधिक करना होता है। जीवन के उत्तरार्ध में भाग्योदय होता है। सूर्य अश्विनी नक्षत्र के दस या ग्यारह अंशों में होने पर यह अधिक फल देता है।
चंद्र
चंद्र पर सूर्य की दृष्टि हो तो जातक दयालु, किंतु कठोर स्वभावी होता है। मंगल की दृष्टि होने पर वह समाज के किसी विशिष्ट विभाग के अधीन रहता है। बुध की दृष्टि होने पर धन, यश एवं सभी प्रकार के भौतिक सुख उसे प्राप्त होते हैं। बृहस्पति की दृष्टि होने पर जातक स्वयं विद्वान और दूसरों को ज्ञान देनेवाला होता है। दृष्टि होने पर स्वयं धनी होकर उच्च श्रेणी की महिलाओं के संपर्क में रहता है। शनि की दृष्टि होने पर स्वास्थ्य | शुक्र कीदुर्बल रहता है। निर्धनों व सगे-संबंधियों के साथ उसका बुरा व्यवहार रहता है। संतति के विषय में भी वह अभागा रहता है।
प्रथम चरण में चंद्र स्थित हो तो जातक का व्यक्तित्व दूसरों को चकाचौंध करनेवाला होता है। वह उच्चाधिकार प्राप्त होता है और ऊंचे लोगों का परामर्शदाता बनता है। शासकीय क्षेत्र में उच्च पद पर कार्यरत रहता है। जन्मकुण्डली का लग्न भी इसी नक्षत्र का हो एवं उस पर बृहस्पति की दृष्टि हो तो उस व्यक्ति की आयु ८२ वर्ष से अधिक रहती है। रक्त विकार एवं व्रणों से वह पीड़ित रहता है। कुशल कर्मचारी होते वह अपने सहकर्मियों एवं अधीनस्थ कर्मचारियों द्वारा सराहा नहीं जाता। बृहस्पति की दृष्टि होने पर समाज में उच्च पद प्राप्त करता है और सैकड़ों लोग उसके अधीन कार्य करते हैं। हुए भी
द्वितीय चरण में हो तो जातक लंबा, चतुर, चतुर, मदिरापान एवं तीखे चरपरे व्यंजनों का प्रेमी रहता है। स्त्रियों से कष्ट भुगतने पड़ते हैं और कुछ समय निर्धनता में व्यतीत करना पड़ता है। कुछ उपाय करने पर परिस्थिति में सुधार आता है। ऐसा जातक कृतघ्नी किंतु महत्त्वाकांक्षी होता है। मंगल या राहु का चंद्र से विरोध का योग बनता हो तो ३०वें वर्ष के आसपास पत्नी का असमय वियोग होता है। चंद्र पर शुक्र की दृष्टि हो तो भाग्यवान होता है, अपने पुत्रों के साथ जीवन व्यतीत करता है। शनि की दृष्टि होने पर ईष्यालु, अप्रसन्न एवं संघर्षमय स्थिति में रहता है।
तृतीय चरण में हो तो जातक विज्ञान की शिक्षा पाता है। धार्मिक उपदेशक या पंडित भी बन सकता है। वह स्वयं कार्यमग्न रहता है एवं अपने संपर्क में आनेवालों का भला करता है। वह अच्छा मित्र सिद्ध होता है। मंगल की दृष्टि होने पर व्रण, दंत एवं कर्ण रोग से पीड़ित रहता है। चतुर्थ चरण में होने पर जातक उच्च शिक्षित एवं ज्ञानी होता है। इस चंद्र के साथ सूर्य का न होना अच्छा माना जाता है। विज्ञान एवं तकनीकी शिक्षा की अनेक शाखाओं में वह दक्ष रहता है। अपने पुरुषार्थ
एवं परिश्रम से उच्च शिक्षा प्राप्त करता है। कार्य क्षेत्र में अधिक तत्पर एवं सक्रिय रहता है। यदि चंद्र अश्विनी
नक्षत्र के अंतिम अंश में हो तो जातक वैद्य, अभियंता बनता है अथवा राजदरबार में उच्च पद पर कार्यरत
रहता है।
'मंगल पर सूर्य की दृष्टि हो तो जातक माता-पिता का आदर करनेवाला, विनम्र एवं विद्वान होता है। चंद्र पर मंगल की दृष्टि हो तो परस्त्री आसक्त रहता है। दूसरों के साथ क्रूर व्यवहार करनेवाला, समाज में अनुचित कार्य करनेवाला, आडंबरी होता है। बुध की दृष्टि हो तो स्वप्रशंसित एवं चरित्रहीन स्त्रियों के मध्य रहनेवाला होता है। बृहस्पति की दृष्टि होने पर जातक कुटुम्ब का मुखिया होता है। धन-संपत्ति एवं अधिकार युक्त होता है। शुक्र की दृष्टि हो तो उसे अच्छा भोजन एवं अन्य भौतिक सुख प्राप्त नहीं होते। अन्य स्त्रियों के पीछे लगने से वह समाज एवं कुटुम्ब से बहिष्कृत होता है। वह अच्छा सामाजिक कार्यकर्ता बन सकता है। मंगल पर शनि की दृष्टि होने पर उसे माता-पिता के स्नेह से वंचित रहना पड़ता है और वह कुटुम्ब से निष्कासित किया जाता है।
प्रथम चरण में मंगल होने पर जातक ठिगना होता है। अपने व्यापार में उसे आशातीत यश प्राप्त होता है और वह ऊंचे पद पर कार्यरत रहता है। समाज में उसे आदर एवं प्रतिष्ठा प्राप्त होती है। स्वास्थ्य की दृष्टि से, ऐसा जातक भाग्यवान होता है। लोग उसे पितातुल्य स्नेह एवं आदर देते हैं। विज्ञान एवं गणित में वह ऊंची' उपाधियां प्राप्त करता है। सेना या सामूहिक कार्यों में भी श्रेष्ठ प्रगति करता है।
द्वितीय चरण में मंगल होने पर जातक दीन-हीन अवस्था में निर्वाह करता है। उसके संतति नहीं होती और कुटुम्ब भी छोटा ही रहता है। संतति या कम-से-अल्प एक पुत्र के लिए वह लालायित रहता है। प्राय: ऐसे जातक को एक या दो कन्याओं का सुख प्राप्त होता है। प्रतिशोध लेने की भावना उसमें निहित रहती हैं किंतु अग्नि एवं जल से वह घबराता है। उसे अकस्मात दुर्घटना या ताप ज्वर हो सकता है। उसके मुखमंडल या ललाट पर विशेष प्रकार का चिह्न पाया जाता है।
तृतीय चरण में मंगल हो तो ऐसे जातक के लिए गृह छोड़कर अन्यत्र व्यापार करना लाभकारी होता है। ऐसे मंगल पर सूर्य की दृष्टि होने पर जातक स्वस्थ एवं धन-संपत्ति से युक्त सुखी वैवाहिक जीवन व्यतीत करता है। सूर्य अपनी नीच राशि से मंगल को देखता है किंतु नीचत्व के कारण ग्रहों का उच्च प्रभाव प्राप्त होता है। मंगल पर बृहस्पति या अन्य शुभग्रहों की दृष्टि होने पर जातक की मां का बचपन में ही स्वर्गवास हो जाता है। वह भोग-विलास जैसे रोगों में धन का अत्यधिक दुरुपयोग करता है।
चतुर्थ चरण में मंगल हो तो जातक श्रेष्ठ सुख प्राप्त करता है। वह स्वयं कर्त्तव्यनिष्ठ एवं विनम्र रहता है। रक्तदोष या जलोदर जैसी बीमारियों का कष्ट रहता है। नक्षत्र के १२ या १३ अंशों में जन्म हुआ हो तो जातक अभियंता बनता है। उसके कन्या संतति अधिक रहती है। बृहस्पति की दृष्टि होने पर अधिक पैतृक संपत्ति मिलती है।
बुध
बुध पर सूर्य की दृष्टि होने पर जातक अपने मित्रों और सगे-संबंधियों में प्रसिद्ध, सत्यवादी होता है और शासन से लाभ उठाता है। बुध पर चंद्र की दृष्टि हो तो जातक को संगीत एवं काव्य कला में रुचि रहती है और ललित कलाओं के
माध्यम से वह धनार्जन करता है। जातक के पास अलग-अलग तरह के वाहन, वस्त्राभूषण एवं भवनादि होते
हैं। श्रेष्ठ एवं धनी महिलाओं से उसे लगाव होता है।
बुध पर मंगल की दृष्टि हो तो शासन एवं सत्ता में उसका प्रभाव रहता है। बृहस्पति की दृष्टि होने पर श्रेष्ठ कुटुम्ब का सदस्य एवं धनवान तथा संतति से युक्त रहता है। शुक्र की दृष्टि होने पर वह व्यवहारकुशल एवं लोकप्रिय बनता है। शनि की दृष्टि होने पर सामाजिक कार्य उत्तम ढंग से संपन्न करता है। शक्तिशाली होने से वह कठोर रहता है एवं वाद-विवाद में भी अग्रणी रहता है।
प्रथम चरण में बुध हो तो जातक नास्तिक रहता है। अपने जीवन में उसे निम्न श्रेणी का सामाजिक जीवन व्यतीत करना पड़ता है। मदिरापान एवं परस्त्रीगमन करता है। कपटी होने से सर्वत्र तिरस्कृत रहता है। सबके साथ असहयोग से करता है। चंद्र की दृष्टि होने पर चरित्रहीन रहता है। बृहस्पति की दृष्टि हो तो उसका सकारात्मक प्रभाव दिखाई देता है। ऐसा जातक उच्च शिक्षा प्राप्त रहता है एवं उसकी आय भी नियमित एवं श्रेष्ठ रहती है। उसका मस्तिष्क दार्शनिक रहता है। परामनोविज्ञान का कुछ अनुभव उसे रहता है। इसी कारण वह समाज में सम्मानित होता है।
द्वितीय चरण में बुध हो तो जातक को अपनी संतति से सुख मिलता है। ज्ञान की अनेक विधाओं का अध्ययन करने का उसे अवसर मिलता है। ३५ से ४० वर्ष की आयु के बाद वह विश्वविख्यात हो जाता है। बुध के साथ सूर्य भी अश्विनी नक्षत्र के द्वितीय चरण में हो तो जातक चिकित्सा क्षेत्र की उच्च उपाधियों से विभूषित एवं प्रसिद्ध वैद्य या शल्य-चिकित्सक बनता है। उदारता एवं पवित्रता के गुण विशेष रूप से पाए जाते हैं।
तृतीय चरण में हो तो ऐसे जातक पर ईशकृपा रहती है। कई अनुकरणीय कार्य उसके द्वारा संपन्न होते है। अपने कर्तव्य एवं उत्तरदायित्वों को वह समय पर निभाता है। उसके पुत्र अधिक होते हैं, स्वास्थ्य अच्छा नहीं रहता। आयु लगभग ६० वर्ष की होती है।
चतुर्थ चरण में बुध हो तो अच्छा फल प्राप्त नहीं होता। ऐसा जातक नीच आचरणवाला होता है। हर कार्य में उसे असफलता प्राप्त होती है। वह दुर्बल रहता है। व्यापार में हानि उठानी पड़ती है। बृहस्पति की दृष्टि होने पर जातक साधारण श्रेणी का ग्रंथकार, लिपिक या धन का लेनदेन करके सूद का संग्रह करता है।
बृहस्पति
बृहस्पति पर सूर्य की दृष्टि हो तो जातक अवैध काम करने से कतराता है। ऐसा जातक धर्मभीरु एवं जनसामान्य की सेवा करनेवाला होता है। बृहस्पति पर चंद्र की दृष्टि होने से यश एवं ख्याति के कारण वह सर्वत्र जाना जाता है। मंगल की दृष्टि हो तो कठोर व्यवहार करनेवाला एवं राजनैतिक व्यक्तियों से धन एंटनेवाला होता है। दूसरों का अभिमान चूर करता है। बुध की दृष्टि हो तो श्रेष्ठ व्यवहार की न्यूनता रहती है। ऐसा जातक बाद-विवाद करनेवाला, दुराग्रही एवं विघ्न संतोषी रहता है। शुक्र की दृष्टि होने पर सुगंधित प्रसाधन एवं महिला उपयोगी वस्तुओं का व्यापार करनेवाला एवं युवाओं से परिहास करनेवाला होता है। शांति की दृष्टि हो तो सुख से वंचित, कुटुम्ब से अलिप्त, कठोरकर्मी एवं दरिद्री रहता है।
प्रथम चरण में बृहस्पति होने पर जातक उच्च शिक्षित एवं धार्मिक रहता है। शास्त्रों के अध्ययन के साथ दार्शनिक एवं आध्यात्मिक ज्ञान भी उसे प्राप्त होता है। उसकी वाणी में चुंबकीय आकर्षण होता है। बड़ी से बड़ी सभा को भी वह अपने वाक्चातुर्य से स्तंभित कर देता है। आयु के पैंतीसवें वर्ष के बाद उसे प्रसिद्धि एवं धनसंपदा प्राप्त होती है। द्वितीय चरण में बृहस्पति हो तो जातक मित्रों एवं प्रशंसकों के सहयोग से व अपार संपत्ति का स्वामी
बन बैठता है। सामान्य पद पर रहते हुए वह ग्रंथकार बनता है। ऐसा जातक अन्यों से प्रेम तथा मान-सम्मान प्राप्त करने में दक्ष रहता है। आर्थिक दृष्टि से दुर्बल रहता है। नित्य ऋण के बोझ से दबा रहता है। तृतीय चरण में बृहस्पति हो तो जातक बौद्धिक एवं भौतिक संपत्ति में सामंजस्य बैठाने में दक्ष रहता है। वह पढ़ा-लिखा एवं ख्याति प्राप्त करनेवाला होता है।
चतुर्थ चरण में बृहस्पति स्थित होने पर जातक भाग्यवान एवं सुखी जीवन जीनेवाला होता है। अपने प्रयत्न एवं पुरुषार्थं से वह धनार्जन करता है। उसके अधीन कई लोग काम करते हैं। वह एक अच्छा अधिकारी, अपनी संतान का संरक्षक एवं उत्तरदायित्वों को पूर्णतः निभानेवाला, मधुर स्वभावी रहता है। तात्कालिक व्यापार में अच्छा धनार्जन करता है।
शुक्र
शुक्र पर सूर्य की दृष्टि हो तो जातक को शासन द्वारा कई लाभ प्राप्त होते हैं। उसकी पत्नी उसके लिए एक प्रश्नचिह्न ही रहती है। चंद्र की दृष्टि हो तो उच्च राजनैतिक पद मिलता है। किंतु निम्न श्रेणी की युवती से संबंध होने से वह दुश्चरित्र हो जाता है। मंगल की दृष्टि होने पर वह दरिद्र एवं कुटुम्ब से कुछ भी प्राप्त न करनेवाला होता है। उसका वैवाहिक जीवन कलहपूर्ण रहता है। बुध की दृष्टि हो तो जातक बोलते समय लड़खड़ाता है। वह झूठ बोलने का आदी होता है। आयु दीर्घ होती है। ऐतिहासिक विषयों में रुचि रखता है। जीवन के उत्तरार्ध में लेखन कार्य से ख्याति अर्जित करता है।
प्रथम चरण में शुक्र हो तो जातक का शरीर हृष्ट-पुष्ट रहता है। स्वभाव मिलनसार रहता है। दूसरे चरण में शुक्र हो तो जातक कुटुम्ब से स्नेह करनेवाला, मित्रों का हितैषी, अनेक साधनों से परिपूर्ण रहता है। यह सब उसे जीवन के उत्तरार्ध में प्राप्त होता है। वह ग्रंथकार, चित्रकार तथा कलाप्रेमी बनता है। उसकी शिक्षा की तरफ ठीक से ध्यान दिया जाए तो वह भविष्य में उच्च श्रेणी का अभियंता या मध्यस्थ वन
सकता है। तृतीय चरण में शुक्र हो तो जातक चतुर एवं विद्वान रहता है। वह बड़े उत्साह से लोगों की आवभगत करता है, विशिष्ट प्रकार का चिकित्सक, राजनीतिज्ञ या शिल्पी बनता है। शरीर में कोई दोष रहता है। अन्य शुभ ग्रहों का योग होने पर वह सर्वप्रिय, दान-धर्म करनेवाला होता है।
"चतुर्थ चरण में शुक्र हो तो जातक की मुद्रा आकर्षक, बोलने में चतुर एवं प्रभावी वक्ता रहता है। उच्च श्रेणी का अभिनेता, संगीतकार, वाद्ययंत्रों का प्रेमी रहता है। उसकी लेखन शक्ति भी प्रभावी होती है। इस शुक्र के साथ सूर्य हो तो वैवाहिक जीवन कष्टदायक एवं कलहपूर्ण रहता है। ऐसे जातक का विवाह शीघ्र संपन्न होता है या उसका विवाह नाटकीय परिस्थिति में होता है।
शनि
शनि पर सूर्य की दृष्टि हो तो जातक पशुधन के माध्यम से अपनी आजीविका चलाता है। दूध या चर्म व्यापार या कृषि से जुड़ा होता है। प्राय: अपने जीवनकाल में श्रेष्ठ काम करता है। किंतु सूर्य के अशुभ प्रभाव के कारण पिता का सुख अल्प प्राप्त होता है। चंद्र की दृष्टि हो तो जातक अपने जीवन में दुश्चरित्र व्यक्तियों का अनुसरण करता है। वह स्वभाव से क्रूर, आचरणहीन एवं दरिद्र जीवनयापन करनेवाला होता है। मंगल की दृष्टि होने पर वाचाल, कपटी एवं किसी की सहायता न करनेवाला होता है। शनि पर बुध की दृष्टि हो तो जातक अवैध कामों से धन बटोरता है। बृहस्पति की दृष्टि हो तो उच्च शासकीय पद प्राप्त करता है। वह अपार संपत्ति, सुशील पत्नी एवं उत्तम संतति से युक्त जीवन व्यतीत करता है। शुक्र की दृष्टि हो तो परदेशप्रवास करता है। व्यक्तित्व में आकर्षण न होने पर भी लोगों पर उसकी छाप रहती है। वह स्त्रियों को प्रिय एवं भोग-विलास में अपने धन का अपव्यय करनेवाला होता है।
प्रथम चरण में शनि हो तो जातक का बचपन दरिद्रता में व्यतीत होता है। कालांतर से वह प्रसन्न, मंद गति से काम करनेवाला तथा मंदबुद्धि का बनता है।
द्वितीय चरण में शनि जातक श्यामवर्णी रहता है। उसके केश ऊर्ध्वगामी एवं जुड़े रहते हैं । कपाल बड़ा एवं शरीर कृश रहता है। ऐसा जातक धनार्जन में चतुर किंतु व्यवहार ज्ञान में शून्य एवं बुद्धिहीन रहता है। व्यर्थ ही आर्थिक चिंता में डूबा रहता है। वह हिंसाचारी एवं क्रुद्ध आचरणवाला होता है। जीवन के मध्य तक उसका असामाजिक कार्यों से संबंध रहता है।
तृतीय चरण में शनि हो तो जातक व्यापार में दक्ष रहता है। घुमक्कड़, सबसे स्नेहपूर्ण संबंध रखनेवाला, व्यापार में अपने अधीन काम करनेवालों का ध्यान रखनेवाला एवं उनका हितैषी होता है। उसके द्वारा संपन्न लोककल्याणकारी कार्यों के कारण लोग उसे स्मरण रखते हैं। परंतु जातक अति महत्त्वाकांक्षी एवं क्रोधी रहता है।
चतुर्थ चरण में शनि होने पर जातक सुख से परिपूर्ण जीवन व्यतीत करता है। धार्मिक विचारों से ओतप्रोत होते हुए भी दुष्कर्मों में घिरता है। सूर्य की दृष्टि शनि पर हो तो वह कृषि से अर्थोपार्जन करता है। जातक शूरवीर, धैर्यवान, शक्तिमान एवं स्पष्टवक्ता रहता है। उसे गुल्मरोग, अपचन एवं वायुविकार रहते हैं।
सूर्य को दृष्टि राहु पर हो तो जातक कार्यदक्ष एवं अपने उत्तरदायित्वों को निभानेवाला होता है। कठिनाइयों में उसे सहायता करनेवाला साथी मिल जाता है।
स्त्री जातक की जन्मकुण्डली में ऐसा शनि हो और उस पर सूर्य की दृष्टि हो तो उसका विवाह नहीं हो पाता। विवाह हो भी जाए तो विच्छेद होता है। चंद्र की दृष्टि ऐसे शनि पर होने से वह स्त्री कुरूप एवं दुर्गंधयुक्त शरीर को होती है।
राहु
प्रथम चरण में राहु स्थित हो तो जातक बुद्धिमान, शरीर से हृष्ट-पुष्ट और पितृभक्त होता है। अपने अभिभावकों से समय-समय पर यथोचित सहयोग पाता है। उसके मुख पर एक विशेष काले तिल का चिह्न पाया जाता है। राहु पर पापग्रह की दृष्टि होने पर ऐसे जातक के जीवन में अनेक बार दुर्घटनाएं घटती हैं। फिर भी वह जीवित रहता है।
द्वितीय चरण में राहु होने पर जातक धार्मिक रीति-रिवाजों को माननेवाला होता है। परदेशगमन में भ्रमण करता है। दूसरों से दान लेकर या याचना करके अपना जीवन चलाता है। उसके विचार और कार्य स्थिर नहीं रहते। अंतिम अवस्था में वह मानसिक रोगों से ग्रस्त रहता है।
तृतीय चरण में राहु हो तो जातक की स्थिति श्रेष्ठ नहीं रहती। वह दरिद्र होता है। उसे श्रेष्ठ या बुरे किसी भी काम में रुचि नहीं होती और भावुक एवं दार्शनिक विचारों का रहता है। वह साधु या संन्यासी बन जाता है। वैवाहिक जीवन कटुतापूर्ण रहता है। परायी संपत्ति हथियाता है। बृहस्पति की दृष्टि हो तो जातक के पास बड़ी मात्रा में गुप्त धन होता है। वह दुराचारी, सूदखोर एवं तस्करी करनेवाला, परंतु हंसमुख रहता है।
वह जलविज्ञानी या यंत्रों का ज्ञाता रहता है। चतुर्थ चरण में उपरोक्तानुसार मिश्रित फल प्राप्त होते हैं।
प्रथम चरण में केतु हो तो ऐसा जातक उच्च शिक्षित रहता है। उसकी यशकीर्ति दूसरों के लिए अनुकरणीय होती है। वह लोकप्रिय एवं कर्मठ तो होता ही है किंतु साथ ही अपने ज्ञान क्षेत्र में विशेषज्ञ, निर्माण कार्य में संलग्न रहकर आजीविका प्राप्त करनेवाला, यांत्रिक अभियंता या अर्धतकनीकी व्यापार करनेवाला रहता है।
द्वितीय चरण में केतु हो तो जातक दरिद्र जीवनयापक किंतु जनसंपर्क में निपुण एवं सार्वजनिक कार्यों से लाभान्वित रहता है।
तृतीय चरण का केतु जातक को सदैव निम्न श्रेणी के लोगों में रखता है। वह संततिहीन रहता है। समाज में उसका आदर किया जाता है। समय-समय पर वह दूसरों की सहायता करता है। चतुर्थ चरण में केतु होने पर जातक को अपने जन्म स्थान से दूर रहकर जीवन व्यतीत करना पड़ता है।
दूसरों के हिस्से का भोजन खाता है। जीवन ३०-३५ वर्ष का रहता है।
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