ईलायची

#ईलायची

हरी-ईलायची न तो टहनियों पर लगती हैं नाही जमीन के अंदर बल्कि इसकी जड़ से एक नया तना निकलर जमीन पर फैल जाता हैं जिस पर इलाइची लगती हैं.... ईलाइची को संस्कृत में सूक्ष्मैला, एला, उपकुन्चिका, तुत्त्था, कोरंगी, द्राविड़ी आदि नामों से जाना जाता है....इसकी खेती केरल,कर्नाटक व तमिलनाडु में मुख्य रूप से की जाती हैं वही जंगलों में भी इसके पौधे पनप जाते हैं.... ईलायची का पौधा 2से3 वर्ष में उत्पादन देने लगता हैं जो लगभग 10 से 12 वर्षो तक चलता है,,, वही केरल के माइलाडुंपारा में स्थित "भारतीय इलाइची अनुसंधान केंद्र" इलाइची की पारम्परिक खेती को बढ़ावा दे रहा है ....।
ईलायची रसोई घर का एक अभिन्न सदस्य है,,, हर भारतीय इसके गुणों से परिचित हैं,,, अलग अलग रोगों में इसका उपयोग आज भी गृहणियां स्वयं कर लेती हैं..... इसकी तासीर ठंडी होती हैं... यह भूख को बढ़ाती हैं तथा पाचन तंत्र की कई आम बीमारियों के लिए घरेलू उपचार की तरह प्रभावी है....
इलाइची का सेवन गैस को दूर करता है...यह वात को दूर करता है...

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