कालसर्प योग कब अधिक भारी होता है
कालसर्प योग कब अधिक भारी होता है
कालसर्प योग पूर्व जन्म के कर्मों के अनुसार अच्छा या बुरा होता है। यदि कुण्डली में राजयोग है तो जातक उन्नति अवश्य करेगा परन्तु जिस घर में कालसर्प योग बना है, उस भाव के सम्बन्ध में चिन्ता अवश्य देगा।
कालसर्प योग वाला व्यक्ति माँसाहारी, दुर्व्यसनी, दुराचारी तथा परधन को अपहृत करने वाला होवे अथवा चोरी, डाका करने वाला होवे तो वह कुछ समय ही सुखी रह सकता है एक दिन उसे बहुत पछताना पड़ता है।
मन कर्म वचन से दूसरों का बुरा चाहने वाला, दूसरों की दुःखी आत्माओं की दुराशीष के कारण दुःख अवश्य भोगेगा।
यदि ग्रहण के समय जन्म हो, तो ग्रहण शान्ति अवश्य करायें। सूर्य - राहु, बृहस्पति-राहु, शनि-सूर्य, शनि-चन्द्र, शनि-मङ्गल तथा सूर्य- चन्द्र मङ्गल का राहु, शनि, केतु से योग होतो भी व्यक्ति दुःखी रहेगा।
राहु-केतु का सूर्य, चन्द्र या बृहस्पति से षडाष्टक योग हो तो व्यक्ति दुःखी होगा। राहु-शनि षडाष्टक में भी अशुभफल की वृद्धि होगी ।
* अशुभ भावों में अशुभ युतियाँ भी परेशानी बढाती हैं। * कालसर्प योग हो तथा सर्पयोनि (रोहिणी, मृगशिरा नक्षत्र) में जन्म हो तो कालसर्प दोष बढ़ जाता है। उत्तराषाढ़ा नक्षत्र की योनि नकुल है अतः वर-वधू मेलापक में इसका त्याग करें। यदि कालसर्प दोष भी है तो वैवाहिक जीवन विशेष कष्ट कारक होगा।
* राहु-केतु वक्र गति से चलते हैं अतः सभी ग्रह केतु से राहु के बीच स्थित हो, तो गोचर ग्रह वशात् सभी ग्रह राहु के मुख में आते जायेंगे अत: यह
कालसर्प योग एवं शाप दोष शान्ति
यदि राहु-केतु के साथ स्थित ग्रहों के अंश कम होवे तथा राहु-केतु के
अंश ज्यादा हो। यदि अधिक अंश वाले ग्रह वक्री हो तो सर्प दोष में वृद्धि होगी। * यदि जन्मकुण्डली में चन्द्रमा के आगे-पीछे अथवा साथ में कोई ग्रह नहीं हो तो " केमद्रुम" (दरिद्री) योग होने से कालसर्प का प्रभाव बढ़ेगा। इसी प्रकार कुण्डली में "शकट योग" या दरिद्री योग हो तो भी कालसर्प
का विष बढकर व्यक्ति को समस्या व संघर्ष अधिक प्रदान करेगा।
अधिकतर ग्रह नीच राशि या शत्रुराशि में होवे। 1
अमावस्या का जन्म हो तथा चन्द्रमा कमजोर हो । कालसर्प योग हो तथा व्यक्ति का जन्म भरणी, आर्द्रा, आशेषा, मघा, जेष्ठा, मूल, विशाखा नक्षत्र में हुआ हो । अतः ग्रह शान्ति अवश्य करायें।
* जातक के जन्म के दिन ज्वालामुखी योग हो प्रतिपदा को मूल नक्षत्र, - पञ्चमी को भरणी, अष्टमी को कृत्तिका, नवमी को रोहिणी नक्षत्र में जन्म हो तथा कालसर्प योग हो तो व्यक्ति के जीवन में ग्रहों का दुष्प्रभाव अधिक होगा। ग्रह शान्ति व मृत्युञ्जय प्रयोग अथवा पार्थिव शिव पूजन करायें।
राहु में केतु का अन्तर या केतु में राहु का अन्तर चल रहा हो तो ग्रह बल देखकर ही फलादेश जानें, क्यों कि इस समय कालसर्प योग पूर्ण बनेगा। यदि इस समय शनि का प्रत्यन्तर आ जाये तो समय अधिक कष्ट कारक होगा ।
* यदि व्यक्ति अधिक लाभ कमा रहा है एवं दोनों हाथों से धन लुटा रहा है, मित्रों बन्धु, रिश्तेदारों की सहायता कर रहा है तो उसे सावधान होना चाहिये एक दिन वे सभी व्यक्ति उसके शत्रु होकर उसको नुकसान पहुँचा देंगे अतः अर्थ का आदान प्रदान समुचित मात्रा में करें। भविष्य का ध्यान रखते हुये कुछ धन अपने लिये सुरक्षित रखें।
* यदि कुण्डली में शाप योग भी स्थित होवे तो कालसर्प दोष में वृद्धि होगी।
* राहु का सूर्य चन्द्र से योग "ग्रहण योग" राहु मङ्गल युति "अङ्गारक "योग" राहु-बुध "जडत्व योग", राहु-बृहस्पति "चाण्डाल योग " राहु- शुक्र " अभोत्वक योग" राहु-शनि " नन्दी योग" बनाते हैं। ये योग यदि अशुभ स्थानों में बनते हैं तो विशेष हानिकारक हैं।
मङ्गल-राहु, राहु-सूर्य, राहु-चन्द्र, राहु-शनि का आठवें, १२ वें घर में योग अशुभ फल की वृद्धि करता 1
जातक अभिचार कर्म, टोना-टोटका व पैशाचिक प्रवृत्ति से प्रभवित रहता
है।
܀
* पञ्चम भाव (इह जन्म) नवम भाव (पूर्वजन्म) दूषित होवे ।
* व्यक्ति आलसी होवे, खान-पान व शरीर शुद्धि का ध्यान नहीं रखें।
* निवास स्थान में वास्तु दोष होवे, स्वच्छता का ध्यान नहीं रखें।
܀ पूर्वजों का अपमान करें, उनके निमित्त श्राद्ध या पैतृक कर्म नहीं करें।
* अधिक रात्रि तक जगे, प्रातः जल्दी नहीं उठे तो वह जातक अपने आत्मबल को कमजोर कर लेता है। वर्तमान जीवन शैली में व्यक्ति अधिक रात्रि तक कार्य करते हैं और प्रातः देर से उठते हैं जिससे एक दिन "ओवर कोन्फीडेन्स" एवं अधिक धन कमाने की चाह में परिवार से दूर हो जाते हैं तथा कमाया हुआ धन एक दिन अचानक नष्ट हो जाता है। क्योंकि कि सात्विक समय की कमाई धन लक्ष्मी ही स्थिर रहती है।
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