श्रावण शनिवार व्रत🔴
🔴श्रावण शनिवार व्रत🔴
सावन के सोमवार का व्रत रखने के विषय मे सभी जानते हैं। सावन के मंगलवार को "मंगलागौरी व्रत" भी संभवतः आपने सुना हो।
पर क्या आप जानते हैं "स्कंदपुराण" के अनुसार सावन के शनिवार को भगवान नरसिम्हा स्वामी, हनुमान जी और शनि देव के लिए विशेष पूजन किया जाता है।
"श्रावणे मासि देवानां त्रयानां पूजनं शनौ। नृसिंहस्य शनैश्चव्य अञ्जनीनन्दनस्य च।।"
श्रावण मास में शनिवार के दिन नृसिंह भगवान, शनिदेव तथा अंजनीपुत्र हनुमान इन तीनों देवताओं का पूजन करना चाहिए। श्री नारसिंह भगवान का लक्ष्मी माता सहित पूजन करना चाहिए, इस दिन लाल नीले पुष्पों से उनका पूजन कर गुड़ सौंठ का भोग लगाएं। इसके प्रभाव से व्यक्ति सभी भोग और ऐश्वर्य को प्राप्त कर लेता है, और शत्रुओं से पीड़ा का भय भी समाप्त होता है।
◆आंजनेय हनुमान को पीपल/मंदार/तुलसी के पत्तों सुन्दर माला, अपराजिता, जपा, गुलाब, नीले मंदार के फूल से सुसज्जित कर, विधि पूर्वक उनका पूजन किया जाए। श्री राम रक्षा स्तोत्र, हनुमान चालीसा, हनुमद् द्वादशनाम इत्यादि का पाठ करें।
स्कंदपुराण के अनुसार कहा गया है कि-
“शनिवारे श्रावणे च अभिषेकं समाचरेत, रुद्रमंत्रेण तैलेन हनुमत्प्रीणनाय च। तैलमिश्रितसिन्दूरलेपमं तस्य समर्पयेत”
श्रावण के शनिवार को रुद्रमंत्र के द्वारा तेल से हनुमान जी का अभिषेक करना चाहिए। तेल में मिश्रित सिन्दूर का लेप(चोला) उन्हें समर्पित करना चाहिए।
श्रावणे मंदवारे तु एवमाराध्य वायुजं। वज्रतुल्यशरीरः स्यादरोगो बलवान्नरः।।
वेगवान्कार्यकरणे बुद्धिवैभवभूषितः। शत्रु: संक्षयमाप्नोति मित्रवृद्धि: प्रजायते।।
वीर्यवान्कीर्तिमांश्चैव प्रसादादंञ्जनीजने।”
इस प्रकार श्रावण में शनिवार के दिन वायुपुत्र हनुमानजी की आराधना करके मनुष्य वज्रतुल्य शरीर वाला, निरोग और बलवान हो जाता है। अंजनीपुत्र की कृपा से वह कार्य करने में वेगवान, तथा बुद्धि वैभव से युक्त हो जाता है, उसके शत्रु नष्ट हो जाते हैं, मित्रों की वृद्धि होती है और वह शक्तिवान तथा कीर्तिमान हो जाता है।
◆शिवपुराण के अनुसार-
अपमृत्युहरे मंदे रुद्राद्रींश्च यजेद्बुधः ॥
तिलहोमेन दानेन तिलान्नेन च भोजयेत् ॥
शनैश्चर अल्पमृत्यु का निवारण करने वाले है, इस दिन बुद्धिमान पुरुष रुद्र आदि की पूजा करे। तिल के होम से, दान से देवताओं को संतुष्ट करके ब्राह्मणों को तिलमिश्रित अन्न भोजन कराएं।
तेल, लोहा, काला तिल, काला उडद, काला कंबल, दान करना चाहिए। शनिदेव की प्रसन्नता के लिए शारीरिक रूप से अक्षमव्यक्ति की सेवा/सहायता करें, तिल के तेल से शनि का अभिषेक कराना चाहिए। उनके पूजन मे तिल तथा उड़द का प्रयोग करें।
उसके बाद शनि का ध्यान करें:
शनैश्चरः कृष्णवर्णो मन्दः काश्यपगोत्रजः।
सौराष्ट्रदेशसम्भूतः सूर्यपुत्रो वरप्रदः। दण्डाकृतिर्मण्डले स्यादिन्द्रनीलसमद्युतिः।
बाणबाणासनधरः शूलधृग्गृध्रवाहनः। यमाधिदैवतश्चैव ब्रह्मप्रत्यधिदैवतः।
कस्तूर्यगुरुगन्ध: स्यात्तथा गुग्गुलुधूपकः। कृसरान्नप्रियश्चैव विधिरस्य प्रकीर्तितः।
शनिश्चर कृष्ण वर्ण वाले हैं, मन्द गति वाले हैं, कश्यप गोत्र वाले हैं, सौराष्ट्र देश में उत्पन्न हुए हैं, सूर्य के पुत्र हैं, वर प्रदान करने वाले हैं, दण्ड के समान आकार वाले मंडल में स्थित हैं, इंद्रनीलमणितुल्य कांतिवाले हैं, हाथों में धनुष बाण त्रिशूल धारण किए हुए हैं, गीध पर अरुण हैं, यम इनके अधिदेवता हैं, ब्रह्मा इन के प्रत्यधिदेवता हैं, ये कस्तूरी–अगुरु का गंध तथा गूगल की धूप ग्रहण करते हैं, इन्हें खिचड़ी प्रिय है, इस प्रकार ध्यान की विधि कहीं गई है । पूजा के लिए लौहमयी सुंदर प्रतिमा लेकर, पूजा में कृष्ण वस्तु (काली वस्तु) का दान करना चाहिये।ब्राह्मण को काले रंग के दो वस्त्र देने चाहिए और काले बछड़े सहित काली गौ प्रदान करनी चाहिए।
शनि स्तुति -
यः पुनर्नष्टराज्याय नीलाय परितोषितः। ददौ निजं महाराज्यं स मे सौरिः प्रसीदतु।।
शनिं नीलाञ्जनप्रख्यं मन्दचेष्टाप्रसारिणम्। छायामार्तण्डसम्भूतं तन्नमामि शनैश्चरं।।
नमस्ते कोणसंस्थाय पिङ्गलाय नमोऽस्तु ते। प्रसादं कुरु देवेश दीनस्य प्रणतस्य च।।
आराधना से संतुष्ट होकर जिन्होंने नष्ट राज्य वाले नील को उनका महान राज्य पुनः प्रदान कर दिया, वे शनिदेव मुझ पर प्रसन्न हों। नील अंजन के समान वर्ण वाले, मंदगति से चलने वाले और छाया देवी तथा सूर्य से उत्पन्न होने वाले उस शनिश्चर को मैं नमस्कार करता हूँ। मंडल के कोण में स्थित आपको नमस्कार करता है,
पिंगल नाम वाले आप शनि को नमस्कार है। हे देवेश ! मुझ दीन तथा शरणागत पर कृपा कीजिए।। इस प्रकार स्तुति के द्वारा प्रार्थना करके बार-बार प्रणाम करना चाहिये।
इस प्रकार श्रावण शनिवार को भगवान नारसिंह, हनुमान जी व शनिदेव का पूजन व व्रत कर सकते हैं।
जयतु सनातन🚩
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