सर्प दोष

कालसर्प उपाय

यह एक बहुत ही कष्टदायक योग है। इस योग की यह विशेषता होती है कि यह व्यक्ति को मध्यम स्थिति में नहीं रखता है। यह व्यक्ति को अत्यधिक ऊँचाई प्रदान करता है अथवा एक निम्न स्तर का कर देता है। मेरा अनुभव में यह व्यक्ति को संघर्ष तो देता ही है, इसके प्रभाव से संतानहीनता, विवाह में बाधा अथवा संघर्षमय जीवन भी देता है। पं. नेहरू की पत्रिका में भी यह योग था। इस योग का पूर्ण निवारण तो शान्ति से ही होता है लेकिन फिर भी यदि इसके उपाय किये जायें तो इसके विष में कमी आती है, व्यक्ति बहुत उन्नति करता है। यह योग इस प्रकार से बनता है कि जब जन्मपत्रिका में राहू व केतू के मध्य सारे सात ग्रह आ जायें तो पूर्ण योग होता है और यदि एक-दो ग्रह राहू-केतू की पकड़ से बाहर हों तो कालसर्प योग की छाया कहा जाता है। यहां पर नैं आपको कुछ सामान्य उपाय बता रहा हूँ जिनके करने से इस योग के विषय में कुछ कमी अवश्य आती है। मेरी आपको यही सलाह है कि आप इस योग की शान्ति अवश्य करवा लें:-

(1) 108 नारियल पर चंदन से तिलक पूजन कर "ॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं सः राहवे नमः" का 108 बार जाप कर पीड़ित व्यक्ति के ऊपर से उसार कर बुधवार को नदी या बहते जल में प्रवाहित करना चाहिये ।

(2) प्रथम बुधवार से नीले कपड़े में काली उड़द बांध कर वट वृक्ष की 108 परिक्रमा आरम्भ करें। परिक्रमा के बाद उस उड़द दाल किसी को दान कर देनी चाहिये। ऐसा लगातार 72 बुधवार करना चाहिये ।

(3) अभिमंत्रित कालसर्प योग यंत्र पर राहू की होरा में चंदन का इत्र लगाना

चाहिये ।

(4) नागपंचमी को सबेरे से अपने धन से नाग-नागिन के जोड़े को पूजन के बाद -.. मुक्त करवा देना चाहिये ।

(5) प्रथम बुधवार से आरम्भ कर लगातार आठ बुधवार को क्रमशः स्वर्ण, चांदी, तांबा, पीतल, कांसा, लोहा, रांगे व सप्तधातु के नाग-नागिन के जोड़े को पूजन के बाद दूध के दोने में रख कर बहते जल में प्रवाहित करना चाहिये।

(6) ग्रहणकाल में निम्न मंत्र के जाप से पूजन कर सप्तधातु के नाग-नागिन बनवा कर जल में प्रवाहित करना चाहिये। मंत्र- "ॐ नमोस्तु सर्पेभ्यो ये के च पृथ्वीमनु। ये अंतरिक्षे ये दिवितेभ्यः सर्पेभ्यो नमः" ।

फूल (7) ग्रहणकाल में किसी ऐसे शिव मन्दिर की पिण्डी पर पंचमुखी नाग की तांबे की मूर्ति लगवानी चाहिये जिस पर पहले से नागदेव न हों तथा पीले से पूजन कर शिवलिंग का अभिषेक करना चाहिये। इसमें यह अवश्य ध्यान रखना चाहिये कि आपको यह पूजन करते कोई देखे नहीं।

(8) प्रत्येक शिवरात्रि, श्रावण मास तथा ग्रहण काल में शिव अभिषेक अवश्य करना चाहिये ।

(9) मोर अथवा गरूड़ का चित्र बना कर उस पर विषहरण मंत्र लिख कर उस मंत्र के दस हजार जाप कर दशांश हवन के साथ ब्राह्मणों को खीर का भोजन करवाना चाहिये ।

(10) नियमित रूप से श्री हनुमान जी उपासना के साथ शनिवार को सुन्दरकाण्ड का पाठ के साथ एक माला “ॐ हं हनुमंते रूद्रात्मकाय हुं फट्" का जाप करने से भी लाभ प्राप्त होता है।

(11) एक वर्ष आटे अथवा उड़द के नाग बना कर उसके पूजन के बाद नदी में प्रवाहित करने के एक वर्ष बाद नागबलि करवायें।

(12) मार्ग में यदि कभी मरा हुआ सर्प मिल जाये तो उसका विधि-विधान से शुद्ध घी से अन्तिम संस्कार करना चाहिये। तीन दिन तक सूतक पालें और सर्पबलि करवायें।

(13) नाग मन्दिर का निर्माण करवायें।

(14) कार्तिक अथवा चैत्र मास में सर्पबलि करवानी चाहिये।

(15) नागपंचमी को सर्पाकार की सब्जी अपने वजन के बराबर लेकर गाय को खिलायें।

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