जेठ दुपहरी की चिलचिलाती धूप मे....

जेठ दुपहरी की चिलचिलाती धूप मे....

मैंने घर आकर जैसे ही फ्रिज खोला, इसमें से उठती भभक ने मेरे दिमाग को भभका दिया....
"इसे भी अभी खराब होना था...मै तिलमिलाया....
पानी की बोतल, जूस पैकेट सब उबल रहे थे....
मेरा गुस्सा सातवे आसमान पर चढ़ गया....
प्यास बुझाने के लिए किचन में से नोरमल पानी का गिलास उठा, होठों से सटाया...
"छी..... कोई कैसे पी सकता है ऐसा गर्म पानी... 
मुंह में भरा पानी बाहर पलट मैंने, गिलास पानी समेत सिंक में फेंका और दनदनाते हुए मैं लाले की दुकान के लिए निकल पड़ा ....
"अंकल.... एक चिल्ड पानी की बोतल और एक चिल्ड कोल्ड्रिंक.. ... मैंने सौ का नोट दुकानदार की ओर बढ़ाया।
"ठंडी नहीं है.... दरअसल इस एरिया में कल से बिजली बंद है.. नोरमल चलेगी क्या.... 
आगबबूला सा मैंने नोट वापस जेब में डाला और आगे बढ़ गया....
पसीने से लथपथ शायद मुझे आज ठंडे तरल पदार्थ की जिद सी मची हुई थी। दूसरे एरिया में जाने के लिए एक खुले मैदान से होकर जाना पड़ता था। चारों ओर से आती गर्म हवाएं मुझे भट्टी में झोंक देने जैसी प्रतीत हो रही थी। 
नन्हे-नन्हे हाथों में कई खाली केन उठाए एक मासूम बच्ची को अपने नजदीक से निकलते देख, मेरे पूरे शरीर में झुरझुरी सी दौड़ गई ।
"इतनी जानलेवा गर्मी में कहाँ जा रही हो.... 
मैंने तुनककर पूछा ।
"पानी भरने .... सड़क के उस पार...
" जवाब देते हुए वह सहज थी।
"घर में कोई बड़ा नहीं है !" 
"मां है.. बीमार है....
"तो तुम स्कूल नहीं जाती..."मैं अपने कदम उसके नन्हे कदमों से मिलाकर चलने लगा।
"जाती हूँ ....
"रोज लाती हो पानी.... 
"पानी तो रोज ही चाहिए होता है ना...
" मुझे बेवजह सिंक में उलटाया पानी याद आया।
"गुस्सा नहीं आता...." गर्म हवाएं अब सामान्य हो रही थीं।
" किस पर .....
"किस्मत पर..... इतनी सड़ी गर्मी में घर से पानी के लिए इतनी दूर जो जाना पड़ता है....
"आधा दिन स्कूल में निकल जाता है.. फिर घर के काम में माँ का हाथ बटांती हूँ.. पानी भर कर लाना होता है.. पढ़ना होता है.. छोटे भाई की देखभाल करनी होती है.. फिर वक्त ही नहीं मिलता....
"किसके लिए .....
"गुस्से के लिए..... उसकी खिलखिलाती हंसी ने मेरे गुस्से को फुर्र कर दिया और चिलचिलाती गर्म हवाएं, ठंडे झोंके बन, मुझे सहलाने लगे थे....
दोस्तों आपके दोस्त दीप की पोस्ट करके बस यही बताने की कोशिश है इंसान जो है उसमें संतोष से जीना सीख ले तो जीवन सचमुच आसान और सुखमय बन जाता है हमारे पास जो ईश्वर ने दिया है कुछ को वो भी नसीब नहीं होता ....मेरे पिताजी कहते है ....
हमेशा अपने से कमतर वाले व्यक्ति को देखो उसके संतोष को देखो फिर अपनी उससे तुलना करो ईश्वर ने तुम्हें कितना कुछ दिया है वही अपने से अधिकतम वाले व्यक्तियों को देखोगे तो उससे तुममें ईर्ष्या होगी जीवन से ...फिर कभी सुखद और संतोषजनक जीवन नही जी पाओगे....

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