शिव
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🔥🪔🔯 शरभराज मूलमंत्र 🌹🚩⚛️💥🎯
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शिवजी के अनेको दिव्यावतारों में से अत्यन्त उग्र, क्रोधयुक्त तथा विचित्रावतार भगवान् ‘शरभराज' हैं ।
इनकी विचित्र देह में पशु और पक्षि के विराट अंगों का अनूठा मिश्रण है।
अद्भुत एवं विशाल पंखों के कारण इन्हें 'पक्षिराज' भी कहा जाता है।
भगवान् शरभेश्वर समस्त देवताओं और प्राणियों को ऊर्जा प्रदान करने वाले स्रोत हैं।
इनकी उपासना से प्राप्त फल का शब्दों में वर्णन नहीं किया जा सकता है। संक्षेप में कहा जाये तो इनका उपासक प्रत्येक क्षेत्र में असाधारण सफलता प्राप्त कर परम सौभाग्य को अति शीघ्र सिद्ध कर सकता है।
इस महासाधना को सम्पन्न करने के पश्चात् मनुष्य को किसी और विद्या या मंत्र को सिद्ध करने की आवश्यकता नहीं रहती है।
तंत्रक्षेत्र और समाज में उपासक को आश्चर्यजनक लाभ होते हैं।
शैवग्रन्थों में शिवजी की महिमा बताते हुए लिखा है- कि
हिरण्यकशिपु का वध करने के पश्चात् जब भगवान् नृसिंह का क्रोध शान्त न हुआ और वे समस्त सष्टि का संहार करने हेत आतुर हो गये तो समस्त देवताओं द्वारा प्रार्थना करने पर भगवान् नृसिंह के स्वरूप को शान्त करने हेतु स्वयं शिवजी विराट पक्षी के रूप में अवतरित हुए।
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आपका आधा शरीर मृग का और आधा शरीर मनुष्य का है एवं मुख उल्लू पक्षी का है जिसमें तीन नेत्रों में अग्नि-सूर्य-चन्द्र का वास है। अष्टपादयुक्त, जिसमें शिव की अष्टमूर्तियां विराजित हैं। अपने हाथों में दिव्यास्त्रों को धारण किये हुए हैं, वज्र के समान कठोर नख हैं एवं अत्यन्त उग्र व चंचल जीभ है। इनके एक पंख पर काली और दूसरे पंख पर दुर्गा विराजमान हैं।
हृदय और उदर में प्रलयकाल की अग्नि व्याप्त है। कटिप्रदेश के नीचे का भाग हिरण की तरह एवं पूंछ सिंह के समान लम्बी और दोनों विशाल जंघाओं पर व्याधि एवं मृत्यु बैठे हैं। उड़ने की गति वायु के समान प्रचण्ड है।
ऐसे महाविराट पक्षिराज ने नृसिंह को अपने पंजों से उठाकर आकाश में उड़ते हुए इतना भीषण चक्कर लगाया कि सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में कम्पन होने लगा।
तत्पश्चात् भगवान् नृसिंह ने अपने क्रोध का त्याग करते हुए दीनमुख होकर परमेश्वर शिव को स्तुति से प्रसन्न किया और अपने स्वरूप का विसर्जन किया तो शिवजी ने उनकी चर्म को प्रिय मानकर उसे बाघाम्बर रूप में धारण किया और उनके मुण्ड को अपनी मुण्डमाला में धारण किया, ऐसी प्राचीन शास्त्र - ग्रन्थों में कथा है
🪔 लाभ 🪔
शरभराज जी की साधना सर्वबाधाओं से मुक्त कर मनुष्य को अभय प्रदान करती है।
जब प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से शत्रु दुःख पहुंचाने लगें, अभिचारिक क्रिया का किसी भी विद्या से निवारण न हो पा रहा हो, दुर्भाग्य मनुष्य के जीवन में डेरा डालकर बैठ गया हो, अकालमृत्यु अथवा किसी गम्भीर रोग से मनुष्य ग्रस्त हों, तो इन सभी व्याधियों के विनाश हेतु मनुष्य को शरभेश्वर की विधिमय उपासना करनी चाहिये।
स्वयं देवता भी शरभराज जी के सच्चे साधक का अनिष्ट नहीं कर सकते।
यह तंत्र क्षेत्र की वह सर्वोच्च साधना है जो साधक को पूर्ण सक्षम बनाती है और एक किले की तरह अपने भक्त को सब प्रकार सुरक्षित रखती है।
इनके प्रयोग नृसिंह से भी अधिक घातक हैं, क्योंकि उग्रता, भीषणता एवं तीक्ष्णता के रूप में ही इनका प्रादुर्भाव हुआ था इसलिये आत्मरक्षा कवच एवं गुरु का संरक्षण प्राप्त कर ही इनकी साधना में प्रवेश करना चाहिये
🎯 इनके प्रयोगों का अधिकारी उच्च कोटि साधक ही हो सकता है।
भगवान् शिव, मृत्युंजय या भगवती दुर्गा के कम से कम 5-7 लाख जप करने के पश्चात् ही इनकी साधना में प्रवेश करना चाहिये।
बगला, काली, छिन्नमस्ता के मंत्र जब पूर्ण फल प्रदान न करें, तो साथ में इनके मंत्रों का प्रयोग करना चाहिये।
पक्षियों के लिये जल - भोजन आदि की व्यवस्था तथा पिंजरे में कैद पक्षियों को मुक्त कराने से विशेष लाभ की प्राप्ति होती है।
शरभराज का चित्र या यंत्र उपलब्ध न हो तो शिवजी के समक्ष यह साधना सम्पन्न की जा सकती है।
एकान्त गृह में स्थित पूजास्थान, शिवमन्दिर, भैरवमन्दिर, श्मशान एवं बिल्ववृक्ष के मूल में इनकी साधना सम्पन्न कर सकते हैं।
प्रारम्भ में अष्टभैरव, एकादशरुद्र और उनकी शक्तियों की पूजार्चन कर उनसे साधना में निर्विघ्नतापूर्वक सफलता का आशीर्वाद ग्रहण करना चाहिये । इस प्रकार सम्पन्न साधना से अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है।
इनकी महिमा के बारें में लिखा है-
पक्षिराज का प्रयोग किसी पर किया जाये तो स्वर्ग - पाताल - भूतल पर त्रिदेव भी उसकी रक्षा नहीं कर सकते।
सरसों के तेल से बीजमंत्र, मूलमंत्र, रुद्रसूक्त या पक्षिराजस्तोत्र के द्वारा शिवलिंग का अभिषेक किया जाये तो असाध्य रोग व कृत्या दोष समाप्त होते हैं।
सरसों के तेल से अभिषेक के पश्चात् शान्ति हेतु पुनः दुग्ध, दही या सुगन्धित द्रव्यों आदि से अभिषेक करना चाहिये ।
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।।शरभराजमूलमंत्र ।।
भगवान् शिव का यह महामंत्र भोगमोक्ष प्रदान करने वाला है। जिसके जप से मनुष्य सभी पापों से मुक्त होकर परमसौभाग्य को प्राप्त करता है। यह दिव्य मंत्र राज्यभय, चोरभय, मृत्युभय का विनाशक व सर्वजयप्रदाता है। विधिमय मंत्रसाधना से सर्वापदाओं से मुक्त होकर साधक शिवधाम को प्राप्त करता है।
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🔔विनियोगः 🔔
अस्य श्रीशरभेश्वरमंत्रस्य कालाग्नि रुद्रः ऋषिः, जगती छन्दः, भगवान् शरभेश्वरोदेवता, खंकार बीजम्, स्वाहा शक्तिः अभीष्ट प्रयोग सिद्धयर्थे जपे विनियोगः ।
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🙏करन्यास🙏
ॐ खें खां खं फट् अंगुष्ठाभ्यां नमः ।
प्राणग्रहसि-प्राणग्रहसि हुं फट् तर्जनीभ्यां नमः
सर्वशत्रुसंहारणाय मध्यमाभ्यां नमः |
शरभशालुवाय अनामिकाभ्यां नमः ।
पक्षिराजाय कनिष्ठिकाभ्यां नमः|
हुं फट् स्वाहा करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः |
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❤️हृदयादिन्यासः❤️
ॐ खें खां खं फट् अंगुष्ठाभ्यां नमः हृदयाय नमः ।
प्राणग्रहसि-प्राणग्रहसि हुं फट् शिरसे स्वाहा ।
सर्वशत्रुसंहारणाय शिखायै वषट् |
शरभशालुवाय कवचाय हुम् ।
पक्षिराजाय नेत्रत्रयाय वौषट् ।
हुं फट् स्वाहा अस्त्राय फट् ।
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💝 ध्यानम्: 💝
चंद्रादित्याग्निदृष्टिः कुलिशवरनखश्चंचुरत्युग्रजिह्वः काली दुर्गा च पक्षौ हृदय जठरगौ भैरवो वाडवाग्निः |
ऊरुस्थौ व्याधिमृत्यु शरभवरखगश्चंडवातातिवेगः संहर्ता सर्वशत्रून्विजयतु शरभः सालुवः पक्षिराजः ।।
विमलनभमहोद्ययत्कृत्तिवासो वसानम् द्रुहिण सुरमुनीन्द्रैः स्तूयमानं गिरीशम् ।
स्फटिकमणि जपात्रक पुस्तकोद्यत्कराब्जम् शरभमहमुपासे सालुवेशं खगेशम् ।।
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आपका आधा शरीर मृग का और आधा शरीर मनुष्य का है एवं मुख उल्लू पक्षी का है जिसमें तीन नेत्रों में अग्नि-सूर्य-चन्द्र का वास है। अष्टपादयुक्त, जिसमें शिव की अष्टमूर्तियां विराजित हैं।
अपने हाथों में दिव्यास्त्रों को धारण किये हुए हैं, वज्र के समान कठोर नख हैं एवं अत्यन्त उग्र व चंचल जीभ है। इनके एक पंख पर काली और दूसरे पंख पर दुर्गा विराजमान हैं।
हृदय और उदर में प्रलयकाल की अग्नि व्याप्त है। कटिप्रदेश के नीचे का भाग हिरण की तरह एवं पूंछ सिंह के समान लम्बी और दोनों विशाल जंघाओं पर व्याधि एवं मृत्यु बैठे हैं। उड़ने की गति वायु के समान प्रचण्ड है।
ऐसे महाविराट पक्षिराज ने नृसिंह को अपने पंजों से उठाकर आकाश में उड़ते हुए इतना भीषण चक्कर लगाया कि सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में कम्पन होने लगा।
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♦️ Sharabha Mantra। ♦️
om khem khaam kham phat praan grhasee praan- grahasee hum phat sarva shatrusanhaaranay sharabha shaaluvaay paksheeraajay hum phat svaaha.
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⚛️ शरभराज मूल मंत्र ⚛️
'ॐ खें खां खं फट् प्राण ग्रहसि प्राण- ग्रहसि हुं फट् सर्वशत्रुसंहारणाय शरभशालुवाय पक्षिराजाय हुं फट् स्वाहा।'
यह महामंत्र 42 अक्षरों का है।
प्रत्येक मंत्रवर्ण पर एक हजार जप करने से 42 हजार मंत्र का जप होता है।
दशांश हवन, हवन का दशांश तर्पण, तर्पण का दशांश मार्जन एवं मार्जन का दशांश ब्राह्मण भोजन कराना चाहिये।
अधिक लाभ हेतु विधिवत् एक लाख जप करें।
इस प्रकार किये गये मंत्र जप से शत्रुओं का समूल नाश होता है एवं सर्वबाधाओं से मुक्ति मिलती है।
🔯 मूल मंत्र के साथ यथासम्भव गायत्री का जप अवश्य करना चाहिये।
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🌹🌹 शरभराज गायत्री मंत्र:
'ॐ पक्षिराजाय विद्महे शरभेश्वराय धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्।'
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🦁 श्री शरभमालामन्त्रः 🦁
ॐ श्रीगणेशाय नमः ।
ॐ नमः पक्षिराजाय निशितकुलिशवरनखाय अनेककोटिब्रह्म ।
कपाल मालालङ्कृताय सकल कुलमहानागभूषणाय सर्वभूत निवारणाय
सकल रिपुरम्भाटवीमोटन महानिलाय शरभसालुवाय
ह्रां ह्रीं ह्रूं प्रवेशय प्रवेशय
आवेशयावेशय भाषय भाषय
मोहय मोहय ह्रौं स्तम्भय स्तम्भय
कम्पय कम्पय घातय घातय
बन्धय बन्धय भूतग्रहं बन्धय बन्धय
रोगग्रहं बधय
बन्धय उन्मत्तग्रहं बन्धय बन्धय
वेतालग्रहं बन्धक बन्धय
आवेशग्रहं बन्धय बन्धय
अनावेशग्रहं बन्धय बन्धय
कां हां बोटय (बोटय)
रोगग्रहं बन्धय बन्धय
चातुर्थिकग्रहं बन्धय बन्धय
भीमग्रहं बन्धय बन्धय
अपस्मारग्रहं बन्धय बन्धय
उन्मत्ताहग्रहं बन्धय बन्धय
ब्रह्मराक्षसग्रहं बन्धय बन्धय
भूचरग्रहं बन्धय बन्धय
खेचरग्रहं बन्धय बन्धय
वेतालग्रहं बन्धय बन्धय
कूष्माण्डग्रहं बन्धय बन्धय ।
स्त्रीज्ञं बन्धय बन्धय
पापग्रहं बन्धय बन्धय विक्रमग्रहंबन्धय बन्धय
व्युत्क्रमग्रहं बन्धय बन्धय
अनावेशग्रहं बन्धय बन्धय
कां हां त्रोटय त्रोदय
प्रैं त्रैं हैं मारय मारय शीघ्रं
मारय मारय
मुञ्च मुञ्च दह दह पच पच नाशय नाशय
(भञ्ज भञ्ज शासय शासय)
सर्वदुष्टान् नाशय हुं फट् स्वाहा ॥
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