गांव की उस हवेली में आज story
गांव की उस हवेली में आज सारा गांव इकट्ठा था। घर की मालकिन जानकी देवी आज सुबह ही इस दुनिया से कुच कर गई थी। पर रीति रिवाज के मुताबिक इस शरीर का अंतिम संस्कार तो करना ही था, तो उसी का इंतजार हो रहा था। पूरा गांव तो इकट्ठा था, पर घर के सदस्य पता नहीं कौन से मुद्दे को लेकर बैठे हुए थे?भरा पूरा परिवार था जानकी जी का।
दो बेटे बहुए प्रदीप और मधु,केशव और राधा, एक बेटी दामाद मोहिनी और बृजेश ,पोते पोती, नाती नातिन। अभी घंटे भर पहले तक तो मुद्दा यह था कि बेटी दामाद आ रहे हैं, इसलिए उनका इंतजार कर रहे हैं। पर अब तो उनको आए हुए एक घंटा भी हो गया। अब क्या है? गांव वालों के बीच में यही बातचीत का मुद्दा था। अब अंतिम संस्कार में समय क्यों लग रहा है और परिवार के सभी सदस्य अंदर अम्मा के कमरे में बैठे क्या कर रहे हैं?
जब गाँव के कुछ गणमान्य लोगों से रहा नहीं गया तो वे जानकी जी के देवर हरिप्रसाद जी के पास आए और पूछा,
" बाऊजी अंतिम संस्कार में और कितना समय लगेगा? अब तो पूरा परिवार भी आ चुका है"
हरिप्रसाद जी को भी समझ में नहीं आया कि क्या जवाब दें। आखिर उन्हें खुद भी नहीं पता था कि अंदर हो क्या रहा है। उन्होंने कहा,
" आप लोग ठहरे, मैं जाकर प्रदीप से पूछता हूं?"
कहते हुए हरिप्रसाद जी अपनी लाठी टेकते हुए अंदर गए। देखा तो पोते पोती तो बाहर बरामदे में बैठे हुए थे जबकि दोनों बेटे बहूए और बेटी दामाद नदारद थे। बड़े पोते से पूछा,
" अरे तेरा बापू कहां है?"
तो उसने अम्मा के कमरे की तरफ इशारा करते हुए कहा,
" बाबा, वो सब लोग अंदर है"
हरिप्रसाद जी लाठी को टेकते हुए कमरे की तरफ गए तो देखा कि कमरे का दरवाजा अंदर से बंद था और कुछ आवाजें आ रही थी। उन्होंने दरवाजे की कुंडी को खड़काया तो अंदर से आवाज आई,
" कौन है?"
" अरे बेटा तुम लोग अंदर क्या कर रहे हो? गांव के लोग बाहर इंतजार कर रहे हैं। आखिर क्रिया कर्म में कितना वक्त लगेगा?"
" बस काका जी अभी आते हैं"
" अरे! पर हुआ क्या? वो तो बता। क्या पता किसी बात का निर्णय निकले"
कुछ देर के लिए मौन पसर गया। फिर अचानक कमरे का दरवाजा खुला। दरवाजा अम्मा के बड़े बेटे प्रदीप ने ही खोला था। प्रदीप को देखते ही हरिप्रसाद जी ने कहा,
" बेटा जो भी बात है बाद में सुलझा लेना। पहले अंतिम संस्कार कर दो। यूँ मुर्दा घर में रखना अच्छा नहीं होता"
" ठीक है काका जी। चलिए, पहले इसी काम को निबटाते हैं "
प्रदीप ने बेशर्मी से कहा।
हरिप्रसाद जी प्रदीप का इतना कहते ही अपनी लाठी टेकते हुए घर के बाहर आ गए। पर हरिप्रसाद जी बुजुर्ग थे, इसलिए समझ चुके थे कि आखिर मुद्दा क्या है? पर चुप रहे।
आखिरकार एक घंटे बाद जाकर जानकी जी का क्रिया कर्म किया गया। क्रिया कर्म के दौरान लोगों ने इस बात को नोटिस किया कि बेटे बहू और बेटी दामाद की आंखों में आंसू तक नहीं थे बल्कि एक दूसरे को देख कर गुस्सा कर रहे थे। कुछ तो हुआ था उस कमरे में?
पर क्या? सब कयास ही लगाए जा रहे थे।
खैर, दाह संस्कार के बाद सब लोग अपने अपने घर को रवाना हो गए। अभी क्रिया कर्म को किए हुए कुछ घंटे ही बीते थे कि हवेली में से जोर-जोर से चिल्लाने की आवाजें आने लगी। फिर से गांव के लोग इकट्ठा होने लगे। घर में बेटे बहुएं, बेटी दामाद आपस में लड़ रहे थे। अंदर वो लोग लड़ने में मगन थे, बाहर गांव के लोग थू थू कर रहे थे।
" अरे मां को गए अभी कुछ घंटे भी नहीं हुए कि देखो कैसे लड़ रहे हैं ये लोग"
" अरे पिंड छूटा इन लोगों का तो अम्मा से"
जितने मुंह थे उतनी ही बातें हो रही थी। कुछ लोगों ने झगड़ा शांत कराने की कोशिश भी की, पर सब बेकार। आखिरकार हरिप्रसाद जी को ही आना पड़ा।
" क्यों लड़ रहे हो तुम लोग। शर्म नहीं आती भाभी को गए अभी कुछ घंटे ही हुए हैं और तुम लोग इस तरह से लड़ रहे हो"
" काका जी इन लोगों ने धोखा दिया है हमें" मोहिनी फूँकारती हुई बोली।
" तू भी तो आती जाती रहती थी इस घर में। और अबकी बार तो तू बार-बार आ रही थी। क्या पता तू ने ही चोरी की हो" अबकी बार अम्मा का छोटा बेटा केशव बोला।
" अरे तुम्हारी औरतें ही रहती थी अम्मा के पास तो सेवा चाकरी के नाम पर। क्या पता इन्हीं लोगों ने हथिया लिया हो? भला कोई भाई अपनी बहन को देकर खुश हुआ है"
" चुप कर। बहुत ज्यादा बोल रही है तू। बड़ों का मान सम्मान नहीं है क्या तुझे? जो हम पर चोरी का इल्जाम लगा रही है" अब की बार प्रदीप ने कहा।
उन लोगों को इस तरह लड़ते हुए देखकर हरिप्रसाद जी बोले,
" क्या ढूंढ रहे हो तुम? जो ढूंढ रहे थे वह तो इस घर में कभी था ही नहीं। तुम्हारे पिता के मरने से पहले ही वह घर से जा चुका था"
काका जी के मुंह से यह बात सुनकर सब लोग हैरानी से उनकी तरफ देखने लगे।
" अरे सुबह से तुमने अम्मा का कमरा पूरा उथल-पुथल कर दिया। नहीं मिले ना तुम्हारी अम्मा के सोने के जड़ाऊ कंगन?"
हरिप्रसाद जी के मुंह से अम्मा के सोने के जड़ाऊ कंगन का नाम सुनते ही सबका मुंह खुला की खुला रह गया। आखिर काका जी को कैसे पता कि अम्मा के जड़ाऊ कंगन घर में नहीं है।
" आज के समय में लाखों रुपए की कीमत है ना उनका कंगनों की। अब जो है ही नहीं, उसे क्यों ढूंढ रहे हो तुम लोग"
कहते से ही काका जी जोर जोर से हंसने लगे। उन्हें इतनी जोर से हंसते देखकर सब लोग हैरान रह गए। प्रदीप ने कहा,
"काका जी, आपको कैसे पता कि हम वो कंगन...? कोई ऐसी बात है जो आप जानते हैं। सच-सच बताइए"
" अरे तुम जैसी निकम्मी औलाद हो तो माता-पिता को थोड़ा झूठ तो बोलना ही पड़ता है। तुम लोग कमाते धमाते तो नहीं थे। बस हर बार लूटा है तुमने अपने माता-पिता को। पहले तो निकम्मो की तरह घर पर बैठकर खाते रहते थे और बाद में अचानक व्यापार करने का चस्का चढ़ा तुम लोगों को। याद है जब तुम दोनों भाई और ये दामाद मिलकर व्यापार करना चाहते थे। तब तुम्हारे बाऊजी को ये हवेली गिरवी रखनी पड़ी थी तुम लोगों के व्यापार के लिए।
पर क्या हुआ? कितनी आसानी से मुकर गए थे तुम लोग कर्जा चुकाने के लिए। भाई साहब को कितना सदमा लगा था। आखिर मरणासन्न पर ही आ गए थे। पर मरने से पहले जिसके पास ये हवेली गिरवी रखी थी उसी के पास वो सोने के जड़ाऊ कंगन भी रखें। यह कहकर कि जब तक जानकी भाभी जिंदा रहेगी, तब तक वो इसी हवेली में रहेगी। उसके बाद यह हवेली हमेशा के लिए उसकी।
और दूसरी बात जानकी भाभी को किसी को भी बताने से इसलिए मना किया कि कम से कम जड़ाऊ कंगन के चक्कर में ही सही तुम लोग उनकी थोड़ी सेवा तो कर दोगे। अपने माता-पिता को पैसों की टकसाल समझते थे ना तुम लोग। पूरी जिंदगी माता पिता यही उम्मीद करते चले गए कि काश एक दिन ऐसा भी आएगा जब बच्चों को हमारी कद्र होगी। पर अफसोस, ऐसा कुछ नहीं हुआ"
" बाऊजी ने इतना बड़ा धोखा किया हमारे साथ" तीनो भाई बहन एक साथ बोले।
" धोखेबाजो के साथ धोखा करना गलत नहीं होता। उन कंगन के चक्कर में ही तो तुम अपनी मां की सेवा कर गए। और तुम्हारे बाबा तो मरने से पहले अपनी पत्नी का स्वाभिमान जिंदा रख कर गए थे। वरना वो बेचारी कब की सड़क पर आ जाती। अब कुछ दिनों में ही हवेली खाली करो। ताकि इसका असली मालिक आ कर उस पर अपना मालिकाना हक जमा सके"
किसी से भी कुछ कहते नहीं बना। आखिर मां बाप के साथ धोखा किया था तो उसका फल मिल रहा था। कुछ दिनों बाद हवेली खाली कर हमेशा के लिए गांव छोड़कर कहीं और जाकर बस गए।
दोस्तों, माता-पिता आपसे प्यार करते हैं इसलिए वो आपके लिए सब कुछ करते हैं। पर उन्हें पैसों की टकसाल समझकर उनका इस्तेमाल करना गलत है।
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