गुरु
बृहस्पति (गुरु): हमारे सौर मंडल के सबसे बड़े ग्रह के रूप में, बृहस्पति ज्ञान, ज्ञान, आध्यात्मिकता और भाग्य का प्रतीक है। यह विकास, विस्तार और उच्च शिक्षा का प्रतिनिधित्व करता है।गुरु और राहु दोनों ज्योतिष में विशेष महत्व वाले ग्रह हैं। गुरु मनुष्य की प्रकृति में रूपों पाया जाता है जो ज्ञान, धर्म, शिक्षा और वैदिक संस्कृति का प्रतिनिधित्व करता है। गुरु ज्ञान और आध्यात्मिकता का मूल स्तम्भ है। वह धर्मी गुणों, ईमानदारी और न्याय का प्रतिनिधित्व करता है।
2. राहु (चांडाल): राहु, सांसारिक इच्छाओं, भौतिकवाद, जुनून, भ्रम और गलत कार्यो के अनुभवों से जुड़ा है। यह अज्ञात, अपूर्ण और अपरंपरागत पथ का प्रतीक है।दूसरी ओर, राहु एक छाया ग्रह है जो ज्योतिष में भी महत्वपूर्ण है। राहु छल,धोखा अनुचित कार्यो का प्रतिनिधित्व करता है। इसका मन और बुद्धि से उत्पन्न विचारों, भावनाओं और दृष्टिकोण पर प्रभाव पड़ता है। राहु मानसिक शक्ति, शारीरिक शक्ति और अद्भुतता का प्रतिनिधित्व करता है,क्योंकि राहु का स्वरुप सर (हेड) के रूप में किया जाता है।
गुरु चांडाल योग कैसे बनता है।
3. संयोजन या विरोध: गुरु चांडाल योग तब बनता है जब बृहस्पति और राहु या तो युति में होते हैं (एक ही राशि में होते हैं) या विपक्ष में होते हैं (180 डिग्री अलग होते हैं)।
आसान भाषा में कहे तो दोनों का एक साथ किसी भी राशि में बैठना या साथ होना “गुरु चांडाल योग ” का निर्माण करते है।
गुरु चांडाल योग के प्रभाव।
गुरु चांडाल योग का प्रभाव व्यक्ति के जीवन में कई तरीकों से दिखाई दे सकता है। यह प्रभाव नकारात्मक या सकारात्मक हो सकता है और व्यक्ति के जीवन में अचानक आई सफलता या असफलता,या परेशानी, चलते काम का रुक जाना, आनंद या दुःख का कारण बन सकता है। इसके प्रभाव से व्यक्ति की जीवन शैली, विचारधारा, कार्यक्षमता, और संबंधों में परिवर्तन हो सकता है।
इस साल 22 अप्रैल 2023 को बृहस्पति के मेष राशि में प्रवेश के साथ गुरु चांडाल योग का निर्माण हो चुका है क्योंकि राहु पहले से मेष राशि में मौजूद थे। ऐसे में, इस अशुभ योग का अंत 30 अक्टूबर 2023 को उस समय होगा जब राहु मेष राशि को छोड़कर दूसरी राशि में गोचर कर जाएंगे।
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