वास्तु
*क्या दक्षिण दिशा अशुभ होती है ??*
👉 आप यह बात दिमाग से बिलकुल निकाल दें कि दक्षिण दिशा ख़राब होता है !!
🏚️ अलग-अलग व्यापार के लिए अलग-अलग दिशा *लाभदायक* होता है !!
🏚️क्या आप जनते हैं कि *दक्षिण दिशा* में राईस मिल,दाल-मिल आटो- मोबाइल्स, सर्विसिंग सेंटर ,गेस एजेंसी ,पेट्रोल पम्प ,मिटटी तेल ,टीवी ,फ्रिज, इलेक्ट्रिक, केमिकल्स,ज्वेलरी,किराने की दुकान ,ब्यूटी -पार्लर आदि अनेक व्यापार लाभदायक स्थिति में चलते हुए मैने देखे हैं !!
🏚️कोई दिशा खराब नही होती ,जेसा आपका व्यापार है वेसे ही दिशा का चयन करके *अधिकतम लाभ* उठाया जा सकता है !!
🏚️ दक्षिण दिशा में द्वार के बाहर *पकवा मिरर* लगाया जाता है !! पर पकवा मिरर के ऊपर हनुमान जी की फोटो मत लगाइए !!
🏚️ दक्षिण दीवाल पर द्वार के ऊपर *हनुमान जी टाइल्स* लगाएं !!
🏚️ भगवान की बनाई कोई भी *दिशा अशुभ* नही होती !!
🏚️अगर दक्षिण और पश्चिम दिशा अशुभ हो गई तब तो संसार की *आधी जमीन* अशुभ हो जाएगी !! बहुत से व्यापार दक्षिण में शुभ दायक देखे गये हैं !!
🏚️भवन के अंदर जो *गलत बनावट* होती है वो दोषपूर्ण हो सकता है !! और वास्तु के दोष उत्तर ,पूर्व ,पश्चिम और दक्षिण आदि सभी दिशाओं में हो सकता है !!
🏚️हमने अपने *विद्यार्थियों* से सर्वे कराया है जिसमें अधिकतर दक्षिण मुखी दुकानें भी सफल देखी गयी हैं !!
🏚️ दक्षिण दिशा में *भूमि ,भवन ,वाहन* से सम्बन्धित व्यापार सफल देखे गये हैं !!
🏚️ दक्षिण दिशा का स्वामी *यम* अर्थात मृत्यु का देवता होता है जिसकी वजह से लोगों में ज्यादा भ्रान्ति है !!
🏚️ *पञ्च मुखी हनुमान* जी कि मूर्ति को दक्षिण दिशा में द्वार के बाहर लगाने का विधान है ,आप जरुर लगायें ।
🏚️ *पाक्वा मिरर* हर प्रकार कि नकारात्मक उर्जा को घर में प्रवेश करने से रोकती है इसलिए दक्षिण दिशा के द्वार के बाहर जरुर लगायें !!
🏚️ अगर घर के अंदर कोई वास्तु सम्बन्धी कोई भी दोष नही है तो केवल दक्षिण द्वार से कुछ भी *अशुभ* नही होता !!
*मुख्यद्वार पर शुभ-लाभ क्यों लिखते हैं?*
👉किसी भी पूजन कार्य का शुभारंभ बिना स्वस्तिक के नहीं किया जा सकता। हमारे यहां मुख्यद्वार पर स्वस्तिक के आसपास शुभ-लाभ लिखने की परंपरा है क्योंकि शास्त्रों के अनुसार श्री गणेश प्रथम पूजनीय हैं और शुभ व लाभ यानी शुभ व क्षेम को उनके पुत्र माना गया है। कहते हैं जहां शुभ होता है वहां हर काम में फायदा यानी लाभ अपने आप होने लगता है या जहां हर कार्य में लाभ होता है वहां सबकुछ अपने आप शुभ होने लगता है।
👉इसीलिए वास्तुशास्त्र के अनुसार ऐसी मान्यता है कि घर के मुख्य द्वार पर स्वस्तिक बनाकर शुभ-लाभ लिखने से घर में हमेशा सुख-समृद्धि बनी रहती है। ऐसे घर में हमेशा गणेशजी की कृपा रहती है और धन-धान्य की कमी नहीं होती।
👉स्वस्तिक के साथ ही शुभ-लाभ का चिन्ह भी धनात्मक ऊर्जा का प्रतीक है, इसे बनाने से हमारे आसपास से नकारात्मक ऊर्जा दूर हो जाती है। इसलिए स्वस्तिक के चिन्ह के साथ ही हर-त्यौहार पर घर के मुख्यद्वार पर सिन्दूर से शुभ-लाभ लिखा जाता है। जिससे घर पर किसी की बुरी नजर नहीं लगती और घर में सकारात्मक वातावरण बना रहता है। इसी वजह से मुख्यद्वार पर स्वस्तिक बनाने व शुभ-लाभ लिखने की परंपरा
*वास्तु शास्त्र से करे समाधान*
🌹वास्तु शास्त्र के अनुसार लड़ाई झगड़े से सम्बन्धित चित्र घर पर नही लगाना चाहिए
🌹क्या आप घर में होने वाले रोज रोज के *लड़ाई -झगडे* से परेशान हो गये हैं ?
🌹क्या घर के सदस्यों को हर छोटी सी छोटी बात पर *गुस्सा* आता है ?
🌹वास्तु शास्त्र के अनुसार घर में *तनाव और गुस्से* के निम्न कारण होते हैं आप अपना कारण स्वयम ढूंढ़ लें --
🌹घर में *लड़ाई झगड़े* से सम्बन्धित चित्र घर के किसी भी कमरे में लगे होने से घर मे हमेशा लोगों के बीच मनमुटाव ,विवाद और झगड़े आम बात है ।
🌹अग्नि कोण में *बोर या कुवां* होने से भी घरों में तनाव ,ब्लड प्रेशर और एक्सीडेंट की सम्भवना को बढ़ा देता है ।
🌹अग्नि कोण में पानी की *अन्डर ग्राउंड टेंक* या *ओवर हेड टेंक* होने से घर के सदस्य हमेशा झगड़ने को तैयार बैठे रहते हैं । गृहस्वामिनी के नाक में हमेशा गुस्सा भरा रहता है , इस दोष से अवसाद होने की संभावना बढ़ जाती है ।
🌹अग्नि कोण में *शयन कक्ष* होने से पति पत्नी के बीच बात बात में लड़ाई होता है और यह शयन कक्ष अंत मे *तलाक* का भी कारक बन जाता है ।
🌹अग्नि कोण में *सेप्टिक टेंक* होने से घर मे हमेशा तनाव बना रहता है ,घर का कोई ना कोई सदस्य मुँह फुला कर बैठा रहता है ।
🌹इशान कोण में *सेप्टिक टेंक* होने से घर में कलह का वातावरण रहता है । रोजाना तनाव और विवाद से भी बड़ा कलह होता है । इसलिए इशान कोण में *सेप्टिक टेंक* होने से उसका तुरन्त निदान करना चाहिए ।
🌹इशान कोण में *शौचालय* होने से घर में कलह का वातावरण रहता है ।
🌹इशान कोण में *किचन* होने से भी घर में कलह ,विवाद और झगड़े का वातावरण रहता
🌹अग्नि कोण में मार्ग प्रहार होने से भी विवाद और अवरोध होते है क्योंकि आग्नेय कोण में मार्ग प्रहार से अग्नि तत्व बढ़ता है ।
🌹अग्नि कोण का हिस्सा बढ़ा हुवा हो और इशान कोण या नेऋत्य कोण कटा होने से घर में कलह क vatavaran
*वास्तु शास्त्र के अनुसार अपने व्यापार को नई ऊंचाई प्रदान करें*
👉 वास्तु शास्त्र की सलाह देते समय उसे दो हिस्सों में करना चाहिए !!
👉 सूक्ष्म और स्थूल वास्तु
👉 आइए समझते हैं ये सूक्ष्म और स्थूल वास्तु क्या है ??
और इसका प्रयोग अलग अलग जातक के लिए कैसे करना चाहिए !!
🕉️ वास्तु शास्त्र के अनुसार दो प्रकार का वास्तु होता है एक वास्तु जिसे हम स्थूल वास्तु कहते हैं और दूसरा वास्तु जिसे हम सूक्ष्म वास्तु कहते हैं !!
🕉️ स्थूल वास्तु में वास्तु शास्त्र के अनुसार कौन सी चीज कहाँ होनी चाहिए ये सब आता है जैसे किचन अग्नि कोण में ,पूजा इशान कोण में होना चाहिए !!
🕉️ सूक्ष्म वास्तु में जातक के व्यापार और कुंडली के आधार पर वास्तु का सूक्ष्म प्रयोग किया जाता है !!
🕉️ यहाँ पर हम आपको वास्तु के सूक्ष्म प्रयोग की जानकारी देंगे !!
🕉️ अगर किसी जातक का व्यापार राईस मिल है तो राईस मिल का तत्व अग्नि हुवा क्योंकि चांवल का उपयोग किचन में होता है और किचन का सम्बन्ध अग्नि कोण से है !!
🕉️ ऐसे जातक को अपना किचन अग्नि कोण में ही रखना चाहिए !!
🕉️ ऐसे जातक को अपना मीटर,जनरेटर या अग्नि से चलने वाली सामग्री अग्नि कोण में ही रखना चाहिए !!
🕉️ ऐसे जातक को अपना फेक्टरी की चिमनी हर हाल में अग्नि कोण में ही रखना चाहिए !!
🕉️ ऐसे जातक को घर और फेक्टरी के अग्नि कोण को जल तत्व के दोष से बचा के रखना चाहिए ,अर्थात अग्नि कोण में पानी की टंकी ,बोर,कुवाँ,सेप्टिक टेंक किसी भी हाल में नही रखना चाहिए !!
🕉️ अगर आपका राईस मिल नही चल पा रहा है तो आफिस एवं ड्राइंग रूम के अग्नि कोण में जलते हुए दिए एवं लाल रंग का बल्ब जलाकर रखना चाहिए !!
🕉️ घर के अग्नि कोण में रोज दिया जलाने से अग्नि कोण का तत्व विकसित होता है !!
*ईशान कोण का शयन कक्ष किसके लिए ज्यादा लाभदायक होता है ??*
👉 एक *छात्र* के लिए ईशान का कमरा अत्यंत लाभदायक माना गया है !!
👉 जो लोग *शिक्षा के क्षेत्र* में हैं उनके के लिए इशान कोण का शयन कक्ष भी लाभदायक होता है !!
👉 *ज्ञान ,भक्ति, वैराग्य* के लिए इशान का कमरा लाभदायक होता है !!
👉 इशान कोण का शयन कक्ष
*प्रिंसिपल , कोचिंग इंस्टिट्यूट* चलाने वालो के लिए शुभ है !!
👉 अगर *व्यापारी* इस कमरे में सो जाये तो उसकी ज्योतिष, वास्तु पढ़ने की रूचि हो जाती है !!
👉 वानप्रस्थ के बाद और पूजा , ध्यान में रूचि रखने वालो को इशान में सोने से लाभ ही मिलेगा !!
👉 *ज्योतिष और पूजा पाठ* और प्रवचन करने वालों को भी ईशान का शयनकक्ष अत्यंत फलदायी होता है !!
👉 *साधु और सन्तो* को भी
ईशान का शयनकक्ष अत्यंत फलदायी होता है !!
👉 एक छात्र के लिए
N/E CORNER अर्थात ईशान का कमरा अत्यंत लाभदायक माना गया है !!
: *वास्तु दोष निराकरण के लिए तुलसी का प्रयोग
🪴वास्तु शास्त्र में अनेक ऐसे नियम हैं जिसका पालन फ्लेट या सरकारी निवास में नही हो पता !!
🎋पुराने निर्माण कार्यों में भी कुछ निर्माण कार्य ऐसे होते हैं जिनकों सुधार पाना करीब करीब असम्भव सा हो जाता है ।
🎋वास्तु दोष से युक्त निर्माण कार्य नकारात्मक उर्जा का वाहक होता है इसलिए ऐसे निर्मित भवन में निवास करने वाले लोग नकारात्मक उर्जा से प्रभावित हो जाते हैं ।
🌴वास्तु दोष से युक्त इन भवनों के दोष निराकरण के लिए पेड़ पौधे और गमले अत्यंत लाभदायक सिद्ध हो रहे हैं ।
🌳पेड़ पौधे सकारात्मक उर्जा के सबसे बड़े स्त्रोत हैं ,पेड़ पौधों से हमेशा सकारात्मक उर्जा निकलती रहती है और आसपास के नकारात्मक उर्जा को अवशोषित करते रहते हैं !!
🪴आजकल तुलसी के पौधे को वास्तु दोष निवारक के रूप में सबसे ज्यादा उपयोग में लाया जा रहा
है ,तुलसी के बिना दैनिक पूजा या धार्मिक कार्य सम्पन्न नही हो पाता
🌳तुलसी के पौधे का वैज्ञानिक , औषधीय और धार्मिक महत्व होता है !!
🌴तुलसी के पौधे में २७ खनिज होते हैं और यह आयुर्वेद की ३०० से अधिक दवाइयों के निर्माण कार्य में उपयोग में लायी जाती है !!
🎋इशान ,उत्तर या पूर्व दिशा में कोई भी दोष जिसे आप नही हटा पा रहे हैं उस दोष के पास तुलसी के गमले रख दे इससे उस दोष की तीव्रता कम हो जाती है !!
🪴तुलसी के गमले रख देने मात्र से पुरे दोष का निराकरण नही हो जाता लेकिन दोष की तीव्रता को कम जरुर कर देती है इससे निवास करने वालों को राहत महसूस होती है
प्रश्न :- नैऋत्य कोण को कैसे विकसित करें ???
वास्तु शास्त्र और उसके दिशाओं का महत्व :-
➡ वास्तु शास्त्र में अलग अलग दिशाओं के अलग अलग *तत्व* होते हैं
➡ इन तत्वों के आधार पर ही वास्तु शास्त्र के नकारात्मक और सकारात्मक *ऊर्जाओं* का विश्लेषण किया जाता है ।
➡ जिन जातक का भवन या भूखण्ड पश्चिम या दक्षिण मुखी रहता है उनकी एक *शिकायत* हमेशा रहती है ।
➡ हमेशा इस बात के लिए लोग परेशान रहते हैं कि उनके भवन या भूखण्ड का *नैऋत्य* कोण खुला हुवा है ।
➡ वास्तु शास्त्र के अनुसार नैऋत्य कोण हमेशा *भारी* और ऊंचा होना चाहिए !!
➡ नैऋत्य कोण का तत्व *पृथ्वी तत्व* होता है ।
➡ निर्माण कार्य में यदि नेऋत्य कोण [south-west] खुला हुवा है तो इस कोण में ऊँचा गुब्बारा लगाने का विधान है ।
➡ गुब्बारे ऊंचे आकाश में स्थापित हो जाते हैं इसे लगाने में कोई बहुत ज्यादा खर्च नही आता ।
➡ गुब्बारे स्वयं पृथ्वी तत्व का प्रतिनिधित्व करता
*टी जंक्शन का निराकरण
👉 बड़े शहरों ,मेट्रोस, कामर्सियल बिल्डिंग में मऐसे भवनों में रहना पड़ता है जहाँ वास्तु शास्त्र के अनुसार कोई सुधार नही कर पाता !!
👉 वहाँ पर वास्तु शास्त्र के कुछ उपचार का सहारा लेना पड़ता है ।
👉 किसी दुकान,कमर्शियल बिल्डिंग या घर के ठीक सामने कोंई टी जंक्शन आ रहा हो तो वो वास्तु के अनुसार दोष देता है ,इसे वास्तु शास्त्र में मार्ग प्रहार कहते हैं !!
👉 बार-बार हम घर .दुकान या आफिस नही बदल सकते ,या इस टी जंक्शन को हटा नही सकते !!
👉 ऐसे में इस वास्तु दोष निराकरण के लिए भवन के अंदर तोफ लगायें और उसका मुंह टी जंक्शन की ओर रखें ।
👉 कई बार हमारे भवन के अगल-बगल में हमसे बड़ी भवन बन जाती है जो ब्रम्हांड की सारी सकारात्मक उर्जा को रोक देती है इससे हमारे व्यापार का विकास रुक जाता है या हमारा व्यवसाय ढलान पर आ जाता है ,
👉 ऐसे में इस तोफ को दोनों भवन क़ी ओर मुंह करके लगाने से दोष का निराकरण होता है ।
👉 व्यापार में हमारे प्रतियोगी जो हमारे आस पास ही रहते है वो हमारा नुकसान चाहते हैं, वो चाहते है कि हम व्यापार कि इस प्रतियोगिता से बाहर चले जाएँ ,
*वास्तु शास्त्र से करें समस्याओं का समाधान
👉 घर के अलग अलग कमरों में हर दिशा में *द्वार* होना चाहिए !!
🧘♂️ अगर आप घर मे *ईशान कोण* में बच्चों के लिए पढ़ने का कमरा निकलना चाहते हैं तो उसका द्वार पूर्व या उत्तर में निकालने का जिद करते हैं तो यह कैसे सम्भव है ??
🧘♂️ ईशान कोण में अगर *पूजा घर* बनाया है तो उसका दरवाजा पश्चिम या दक्षिण से ही सम्भव हो पायेगा !!
🏠 अगर किसी भवन में पूर्व और पश्चिम से लगकर कमरे बनाये गए हैं तो कुछ कमरों के *द्वार* पूर्व से और कुछ कमरों के द्वार पश्चिम से ही सम्भव हो पायेगा !!
🧘♂️ कुछ लोग जिद करते हैं कि सभी कमरों के *द्वार* ईशान कोण से हो तो ये क्या सम्भव है !!
🧘♂️ कुछ लोग ईशान से द्वार निकालने के चक्कर मे कमरों का द्वार *बालकनी* से निकालते है !!
🧘♂️ अगर घर सभी कमरों का द्वार केवल इशान कोण में ही बनायेंगे तब ऐसे घर में रहने वाला व्यक्ति *साधू प्रवृति* का हो जायेगा !!
🧘♂️ क्योंकि ईशान के द्वार से *आध्यात्मिक ऊर्जा* का प्रवेश होता है !!
🧘♂️ इशान में द्वार होने से केवल *जल तत्व* ही विकसित होगा !!
🧘♂️ *नैऋत्य कोण* में मुख्य शयनकक्ष बनाया जाता है !! नैऋत्य कोण में सोने वाला व्यक्ति केवल अपने बारे में सोचता है लेकिन नैऋत्य कोण के शयनकक्ष में स्थित ईशान का द्वार उसे परोपकारी बनाता है !!
🧘♂️ नैऋत्य कोण के शयनकक्ष में ईशान के *द्वार* और नैऋत्य कोण की ऊर्जा का संतुलन स्थापित हो जाता है !!
🧘♂️ इसलिए नैऋत्य कोण में सोने वाला व्यक्ति घर के सभी सदस्यों के *सुख दुःख* का साथी बन जाता है !!
🏀 वास्तु शास्त्र *संतुलन* की बात करता है ,संतुलन सभी तत्वों का होना चाहिए !!
🧘♂️ व्यक्ति के जीवन में तभी *संतुलन* आएगा जब सभी तत्वों में संतुलन रहेगा !!
🧘♂️ व्यक्ति को व्यापार/नौकरी भी करना है साथ ही साथ उसे *परोपकारी* भी होना चाहिए लेकिन दोनों में असंतुलन होने से जीवन में असफलता ही हाथ लगती है !!
🧘♂️ व्यक्ति का *भौतिक और आध्यात्मिक* जीवन दोनों सन्तुलन में होना चाहिए !!
🧘♂️ कुछ लोग अपना व्यापार व्यवसाय की अवहेलना करके केवल *सामाजिक* या आध्यात्मिक काम ही करते हैं इससे भी उनके जीवन मे असन्तुलन हो जाता है !!
👉 कुछ लोग केवल भौतिक जीवन जीते है और आध्यात्मिक और सामाजिक पक्ष की अवहेलना करते हैं !! ऐसे लोगो के जीवन मे भी *असन्तुलन हो* जाता है
🧘♂️ अगर *पक्षी* के एक पंख को काट दिया जाय तो क्या पक्षी उड़ पायेगा ??
🧘♂️ बगैर पंख के पक्षी की *मौत* निश्चित है ,इसलिए सन्तुलन बनाये रखिये !!
👉 पांचों तत्वों को संतुलित करके पक्षी के समान अपने क्षेत्र में *ऊंचाईयों तक उड़ें !!*
*पूजा करते समय जातक का मुंह पूर्व दिशा में होना चाहिए
👉 जब भी आप अपने परिसर या भवन में पंडित जी के साथ कोई पूजा करते हैं तो आपको पूर्वाभिमुख होकर बैठाया जाता है !!
👉 पंडित जी का मुंह उत्तर में और जजमान का मुंह पूर्व में होता है !!
पूर्व दिशा से ज्ञान और अध्यात्म की प्राप्ति और उत्तर से धन प्राप्ति !!
🧘♂️हिन्दू धर्म में हर व्यक्ति अपने आराध्य देवी देवताओं की पूजा उपासना करते ही हैं !!
🧘♂️ सामान्यत: उपासक पूर्व दिशा में ही मुख करके पूजा करता हैं, जो कि श्रेष्ठ मानी जाती है ।
🧘♂️ इसमें देव प्रतिमाओं का मुख पश्चिम दिशा की ओर होता है !!
🧘♂️ इस प्रकार की गई उपासना हमारे भीतर ज्ञान, क्षमता, सामर्थ्य और योग्यता प्रकट करती है, जिससे हम अपने लक्ष्य की तलाश करके उसे आसानी से हासिल कर लेते हैं ।
🧘♂️ पूर्व दिशा से सकारात्मक *प्राण उर्जा* निकलकर हमारे भवन में प्रवेश करती है !!
🧘♂️ इसलिए अधिकतर समय कोई भी कार्य करते समय जातक का मुंह पूर्व दिशा की ओर होनी चाहिए !!
🧘♂️उत्तर दिशा सकारात्मक *चुम्बकीय उर्जा* का प्रवाह हमारे भवन की और करता है !!
🧘♂️इसलिए अधिकतर समय कोई भी *व्यापारिक कार्य* करते समय जातक का मुंह उत्तर दिशा की ओर होनी चाहिए !!
🧘♂️ उत्तर-पूर्व अर्थात इशान कोण से पूर्व और उत्तर दिशा की सकारात्मक उर्जा को घर के अंदर प्रवेश कराती है !!
🧘♂️ इसीलिए इशान कोण का महत्व वास्तु शास्त्र में माना गया है !!
🧘♂️ईशान कोण में वास्तु देव का सिर होता है । किसी मनुष्य के शरीर में किसी भी अंग की अपेक्षा सिर का महत्व सभी लोग जानते हैं !!
🧘♂️इसलिए पूजा करने के लिए इशान कोण को चुना गया है ,पूजा करते समय जातक का मुंह पूर्व दिशा में होना चाहिए !!
🧘♂️ उत्तर-पूर्व के कोण को ईशान कोण माना गया है, ईशान कोण देवताओं का स्थान माना जाता है !!
🧘♂️वास्तु शास्त्र के अनुसार ईशान कोण में स्वयं भगवान शिव का भी वास होता है ।
🧘♂️देव गुरु बृहस्पति और केतु की दिशा भी ईशान कोण ही मानी जाती है ।
🧘♂️ देव गुरु बृहस्पति और केतु को आध्यत्म के कारक ग्रह माना जाता है !!
🧘♂️ यही कारण है कि यह कोण पूजा-पाठ या अध्यात्म के लिए सबसे उत्तम माना जाता हैं ।
*वैज्ञानिक पहलू
👉 इसके वैज्ञानिक पहलू पर विचार करें तो हम पाएंगे कि सूर्य की किरणें सर्वप्रथम इसी दिशा में प्रकट होती हैं।
👉 वैज्ञानिकों ने यह प्रमाणित किया है कि सूर्य की किरणों में हमारे शरीर के लिए आवश्यक अनेक पदार्थ निहित होते हैं।
👉 सूर्य की किरणों से हमें विटामिन डी प्राप्त होता है। विटामिन डी हमारे शरीर की अनेक व्याधियों पर नियंत्रण रखता है।
👉 प्रातःकालीन सूर्य का महत्व मानव की मेधा के विकास के साथ विदित होने लगा है।
🧘♂️इस दिशा में मंदिर होने से जब हम प्रातः काल का कुछ समय देव पूजन में व्यतीत करते हैं तो अनायास हम प्रकृति की अनमोल निधि सूर्य किरणों का भी लाभ ले लेते हैं।
🧘♂️इसके अतिरिक्त उगता हुआ सूरज मनोवैज्ञानिक रूप से हमें निरंतर आगे बढ़ने की प्रेरणा देता
*शास्त्र क्या कहते हैं ??*
🧘♂️ ईशाने देवतागारं तथा शांतिगृहंभवते (मत्स्य पुराण अध्याय 256/33)
🧘♂️ अर्थात् ईशान दिशा में देवताओं का स्थान तथा शांति गृह होना चाहिए।
*🙏 प्रतिदिन मंदिर जाने से क्या होता है🙏*
मंदिर जाने के वैज्ञानिक कारण:* कई लोग किसी व्रत या त्योहार पर मंदिर जाते हैं, कई लोग माह में एक बार मंदिर चले जाते हैं, बहुत से लोग साप्ताह में एक बार तो मंदिर जाते ही है परंतु बहुत कम लोग ही हैं जो प्रतिदिन मंदिर जा पाते हैं। ऐसे भी कई लोग हैं जो सालों से मंदिर नहीं गए हैं।
*1. सकारात्मक विचार :- प्रतिदिन मंदिर जाने से हमारे मन और मस्तिष्क में सकारात्मक विचार और भाव का विकास होगा। जीवन में नकारात्मकता समाप्त होगी तो फिर भविष्य भी सकारात्मक ही होगा।
*2. बढ़ता है आत्मबल :- मंदिर जाकर मन में विश्वास और आत्मबल का संचार होता है जिसके कारण मन में किसी भी प्रकार का दुख या शोक नहीं रहता है। व्यक्ति सभी परिस्थिति में समभाव से रहता है। समभाव अर्थात न तो भावना में बहता है और न ही कठोर होता है। हर परिस्थिति उसके लिए सामान्य होती है।
*3. रोग नहीं होगा :- मंदिर में जाकर आप मंदिर के नियमों का पालन करते हैं। जैसे आचमन, परिक्रमा, ध्यान, पूजा, आरती, व्रत, उपवास और पाठ आदि के साथ ही सोच-समझकर आहार-विहार करते हैं तो आपको किसी भी प्रकार का रोग या बीमारी नहीं होगी।
*4. तनाव या चिंता से मुक्ति :-बहुत से लोगों को अनावश्यक भय और चिंता सताती रहती है जिसके कारण वे तनाव में रहने लगते हैं। तनाव में रहने की आदत भी हो जाती है जिसके चलते व्यक्ति कई तरह के रोग से भी घिर सकता है, लेकिन मंदिर जाने वाले के दिल और दिमाग में ये सब नहीं रहता है।
*5. गृहकलह :- प्रतिदिन मंदिर जाने वाले में मन और मस्तिष्क में कलह या क्रोध नहीं होता है। घर के दूसरे सदस्य यदि उससे झगड़ा करते हैं या घर में गृहकल हो रही है तो वह उसे समझदारी से हेंडल कर माहौल को खुशनुमा बना देता है।
*6. पैदल भ्रमण :- प्रात:काल पैदल ही मंदिर जाने से विहार भी होता है और हमें प्राणवायु भी अच्छे से प्राप्त होती है। प्रतिदिन सूर्य की धूप के स्पर्श से सेहत में सुधार होता है। इसी के साथ मंदिर भूमि को सकारात्मक उर्जा का क्षेत्र माना जाता है। यह ऊर्जा भक्तों में पैर के जरिए ही प्रवेश कर सकती है। इसलिए हम मंदिर के अंदर नंगे पांव जाते हैं।
*7. मन को मिलती शांति :- मंदिर में कपूर और अगरबत्ती की सुगंध और कई तरह के सुगंधित फूल अर्पित किए जाते हैं जिनकी सुगंध से मन प्रफुल्लित होकर अवसाद से मुक्ति हो जाता है। फूलों के विभिन्न रंग से अंतरमन को शांति मिलती है। यूं कि मंदिर का वातावरण मन को शांति कर देता है। सुगंध से एक ओर जहां मन और मस्तिष्क से नकारात्मक विचार हटा जाते हैं वहीं हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है। यह हमें जैविक संक्रमण से भी बचाती है। मंदिर के सुगंधित रहने से बैक्टीरिया नष्ट हो जाते हैं और किसी भी प्रकार का वायरल इंफेक्शन नहीं होता है क्योंकि मंदिर में कर्पूर और धुआं होता रहता है।
*8. घंटी की ध्वनि और आरती :- मंदिर में घंटी की टंकार करीब 7 सेकंड तक गूंजती है जो मन मस्तिष्क से विषाद हटाकर शांति प्रदान करती है। ऐसा भी कहते हैं कि छोटी घंटी से हमारा पित्त दोष सन्तुलित होता है। साथ ही ध्वनि से भी बैक्टीरिया नष्ट हो जाते हैं। जब हम मंदिर में आरती या कीर्तन के दौरान ताली बजाते हैं तो यह एक्यूप्रेशर का काम करती है। इससे हमारे रक्त संचार सुचारू रूप से संचालित होता है और शरीर की मांस पेशियां भी मजबूत होती है। आरती के बाद नमस्कार और दंडवत प्रणाम करने से हमारे मन में विनम्रता और श्रद्धा का भाव जागृत होता है। अहंकार और घमंड का नाशा होता है।
*9. जप और जयघोष :- आरती या चालीसा को जपने पढ़ने से हमारा वाणी दोष भी दूर होता है। ओम् के उच्चारण से हमारा चित एकाग्र होता है। आरती के बाद देव देवताओं, भारत माता आदि के जयघोष से आत्म विश्वास के साथ ही देशभक्ति जागृत होती है। इसी के साथ हर मंदिर में गो रक्षा और गौ हत्या बंद होने करने का संकल्प भी लिया जाता है। आरती के बाद शंख बजाया जाता जो श्रद्धालुओं के लिए बहुत सुखदायी और स्वास्थ्य वर्धक है। शंख बजाने वाले के फेंफड़े मजबूत होते हैं।
*10. ज्योति :- आरती लेने से हमारी हथेली की कोशिकाओं को दिव्य उष्मा मिलती है और हमारे भीतर पल रहे सभी विषाणु और जीवाणु समाप्त हो जाते हैं। आखों पर हथेलियां रखने से गर्माहट आंखों के पीछे की सूक्ष्म रक्त वाहिकाओं को खोल देती है और उन में ज्यादा रक्त प्रवाहित होने लगता है जिससे हमारी आंखों कि ज्योति बढ़ती है।
*11. चरणामृत :- दर्शन, पूजा और आरती के बाद हमें तुलसी मिला चरणामृत, पंचामृत और प्रसाद मिलता है। यह चरणामृत और पंचामृत हमारी सेहत के लिए बहुत ही फायदेमंद होता है। आयुर्वेद के मुताबिक यह चरणामृत हमारे शरीर के तीनों दोषों को संतुलित रखता है। चरणामृत के साथ दी गई तुलसी हम बिना चबाए निगल लेते हैं जिससे हमारे सभी रोग ठीक हो जाते हैं।
*12. परिक्रमा :- मंदिर में भगवान की परिक्रमा से जहां सेहत के लाभ मिलते हैं वहीं यह धरती के गुरुत्वकार्षण की शक्ति से जुड़कर हमारे शरीर का तनाव निकल जाता है। इसी के साथ ही में गुंबद और उसके कलश से प्रवाहित हो रही ऊर्जा हमारे शरीर को प्रभावित कर सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करती है।
*13. मनोकामना का दोहराना :- मंदिर में जाकर जब हम अपनी मनोकामना को बार बार दोहराते हैं तो हमें मंदिर की सकारात्मक ऊर्जा का साथ मिलता है और इससे प्रकृति सक्रिय होकर हमारी मनोकामना पूर्ण करने लग जाती है।
*14. वृक्ष :- हर मंदिर में पीपल, बरगद, नीम, केला और तुलसी आदि के वृक्ष रहते हैं। इन वर्षों में हम जल अर्पण करते हैं या उन्हें हम नमस्कार करते हैं। इन वृक्षों में भरपूर ऑक्सिजन के साथ ही दिव्यता होती है, जो हमारे मन और मस्तिष्क को स्वस्थ करते हैं। इससे हमारे मन में शांति आती है।
*15. दान :- मंदिर में दिए गए दान के अनेक लाभ होते हैं। दान से हममें कृपणता नहीं रहती है और हम चीजों के प्रति आसक्ति नहीं पालते हैं। इसी के साथ ही हमारे सामाजिक दायित्वों का भी निर्वाह होता है। मंदिर जाने से हमारी सामाजिक प्रतिष्ठा बढ़ने के साथ ही जान पहचान भी बढती है। मंदिर जाने से हमें पंचांग और तिज त्योहारों की जानकारी भी मिलती है। मंदिर जाने से धर्मिक ज्ञान भी बढ़ता है क्योंकि वहां पर गीता, वेद, उपनिषद आदि के बारे में जानकारी भी मिलती रहती है।
*16. हाथ जोड़ना :- मंदिर में व्यक्ति हाथ जोड़कर खड़ा रहता है। हाथ जोड़ने से जहां हमारे फेंफड़ों और हृदय को लाभ मिलता है वहीं इससे प्रतिरोधक क्षमता का विकास भी होता है। कहते हैं कि हथेलियों और अंगुलियों के उन बिंदुओं पर दबाव पड़ा है जो शरीर के कई अन्य अंगों से जुड़े हैं। इससे उन अंगों में ऊर्जा का संचार होता है।
*17. तिलक :- प्रतिदिन मंदिर जाकर व्यक्ति अपने मस्तक पर या दोदों भौहों के बीच चंदन या केसर का तिलक लगाता है। इस तिलक लगाने जहां शांति का अनुभव होता है वहीं इससे एकाग्रता बढ़ती है। दरअसल जहां तिलक लगाया जाता है उसके ठीक पीछे आत्मा का निवास होता है। आज्ञाचक्र और सहस्रार चक्र के बीच के बिंदू पर आत्मा निवास करती है जोकि नीले रंग की है। आत्ता अर्थात हम खुद। चंदन लगाने के आध्यात्मिक लाभ भी हैं।
*18. प्रार्थना :- प्रार्थना में शक्ति होती है। प्रार्थना करने वाला व्यक्ति मंदिर के ईथर माध्यम से जुड़कर अपनी बात ईश्वर या देव शक्ति तक पहुंचा सकता है। देवता सुनने और देखने वाले हैं। प्रतिदिन की जा रही प्रार्थना का देवताओं पर असर होने लगता है। मानसिक या वाचिक प्रार्थना की ध्वनि आकाश में चली जाती है। प्रार्थना के साथ यदि आपका मन सच्चा और निर्दोष है तो जल्द ही सुनवाई होगी और यदि आप धर्म के मार्ग पर नहीं हैं तो प्रकृति ही आपकी प्रार्थना सुनेगी देवता नहीं। प्रार्थना का दूसरा पहलू यह कि प्रार्थना करने से मन में विश्वास और सकारात्मक भाव जाग्रत होते हैं, जो जीवन के विकास और सफलता के अत्यंत जरूरी हैं।
*19. पूजा :- पूजा एक रासायनिक क्रिया है। इससे मंदिर के भीतर वातावरण की पीएच वैल्यू (तरल पदार्थ नापने की इकाई) कम हो जाती है जिससे व्यक्ति की पीएच वैल्यू पर असर पड़ता है। यह आयनिक क्रिया है, जो शारीरिक रसायन को बदल देती है। यह क्रिया बीमारियों को ठीक करने में सहायक होती है। दवाइयों से भी यही क्रिया कराई जाती है, जो मंदिर जाने से होती है।
*20. आचमन :- मंदिर में प्रवेश से पूर्व शरीर और इंद्रियों को जल से शुद्ध करने के बाद आचमन करना जरूरी है। इस शुद्ध करने की प्रक्रिया को ही आचमन कहते हैं। आचमन करने से पहले अंगुलियां मिलाकर एकाग्रचित्त यानी एकसाथ करके पवित्र जल से बिना शब्द किए 3 बार आचमन करने से महान फल मिलता है। आचमन हमेशा 3 बार करना चाहिए। आचमन से मन और शरीर शुद्ध होता है।
*21. मंदिर का शिखर :- मंदिर में शिखर होते हैं। शिखर की भीतरी सतह से टकराकर ऊर्जा तरंगें व ध्वनि तरंगें व्यक्ति के ऊपर पड़ती हैं। ये परावर्तित किरण तरंगें मानव शरीर आवृत्ति बनाए रखने में सहायक होती हैं। व्यक्ति का शरीर इस तरह से धीरे-धीरे मंदिर के भीतरी वातावरण से सामंजस्य स्थापित कर लेता है। इस तरह मनुष्य असीम सुख का अनुभव करता है। पुराने मंदिर सभी धरती के धनात्मक (पॉजीटिव) ऊर्जा के केंद्र हैं।
🚩 जय जय श्री राम 🚩
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