जन्म कुंडली मे सबसे ज्यादा जिक्र और फिक्र 8वे भाव और 12वे भाव
👉जन्म कुंडली मे सबसे ज्यादा जिक्र और फिक्र 8वे भाव और 12वे भाव की होती है क्यूंकि ये सबसे बड़ा रोल अदा करते है, अब 8वा भाव जन्म, आयु, मृत्यु का है इसको पताल लोक भी बोलते है मतलब की गर्भ मे छुपा हुआ जातक की आयु, कस्ट, और मृत्यु का आकलन जिसके सिर्फ अनुमान लग भी जाते है और नहीं भी,जातक के साथ कौन सी घटना कब घटनी है इस भाव के स्वामी की स्थति और नछत्र की स्थति की गड़ना से है, इसका सीधा सम्बन्ध देखे तो 12वे भाव से है जो वेय स्थान है इन दोनों भाव पति व राशि स्वामी ज़ब एक दूसरे से षडाष्टक होंगे तो स्वास्थ्य हानि, कर्म हानि, धन हानि यानी की वेय होगा अब यदि राहु 12 मे है जोकि अधिक परेशान यही पर करता है तोह राहु क्या है आपके मन मे पल रही इच्छाये है की ऐसा करूंगा ओ होगा इतना वहां से निकलूंगा तब दूसरे को दूंगा मतलब की इच्छा की सीमा नहीं है राहु की और ये स्थान खर्च का है वेय जिसे बोलते है तोह यहाँ सिर्फ इच्छाओ का वेय होगा हासिल कुछ नी मतलब मन मे आया प्रयास किया हाथ मे कुछ नी जो भी दुसरो से धन लिया किसी को देने लिए उसको मन मे आयी नयी इच्छा के लिए खर्च कर दी समस्या वही की वही खड़ी है मतलब जिसको देने के लिए निकाला तब नहीं इच्छा हुयी की कल दूंगा फिर एक समस्या खड़ी हुयी खर्च हो गये, तोह ऐसे सबसे एहम ये दो भाव है जिनकी गड़ना सबसे मुख्य बन जाती है, 8वा भाव छुपा हुआ भावफल है जो अचानक से हानि और लाभ देता है बसर्ते किस ग्रह की वहा स्थति क्या है और उसके नछत्र की स्थति क्या है।
क्यों 12वा और 8वा भाव जिन्दगी क़ो प्रभावित करता हैं और इन्ही भावों मे बैठे ग्रहों की हलचल ज्यादा हैं लोगो क़ो पता हैं की 12वा भाव वेय का तो है पर आखिर किस चीज का वेय किस बात का खर्च या वेय कराता है ये जातक का कुछ लोग इश्को पेंसे, धन के खर्च का घर मानते आये हैं पर सच मे क्या रोल हैं इसका जिन्दगी मे मान लो 12वे घर शुक्र, केतु, शनि ज्यादा नुक्सान नहीं देते यदि मित्रराशिगत और मित्रभावगत हुए तोह जैसे शुक्र अपनी और शनी की राशि मे समान रहते हैं मीन मे यहाँ उच्च के पर तब ज़ब ये अंशबल मे ठीक हों कमजोर न हों नी तो क्या उच्च क्या नींच। शनि की मंध गति यहाँ वेय क़ो धीमा करती हैं पर ये मंध गति पेंसे के खर्च के लिए ठीक हैं पर अहंकार, ईगो, बुरी आदतों का वेय के लिए ठीक नहीं। जिस भाव का स्वामी ग्रह 12वे भाव मे आएगा या बैठ जायेगा उस ग्रह और उस भाव से समन्धित कारकत्वा यहाँ बैठ के उनसे समन्धित चीज़ो का वेय करायएंगे। जैसे मान लो मेष लग्न हैं और मंगल 12वे घर चला गया और यहाँ उष्का सम्बन्ध राहु से शनि से केतु से बुध से बना तो शरीर मे काफी बदलाव दें देता हैं यानि लग्न के स्वामी का 12वे घर जाना शरीर की ऊर्जा, ताकत का वेय बिना किसी ठोस कारण के होता हैं मतलब की जो काम किया उसका कोई अर्थ नी था। कभी देखा होगा कोई आदमी बिना किसी पूरी जानकारी के भागदौड़ करता हैं ज़ब उसे असल बात पता चलती हैं तोह कहता हैं की बिना बात की दौड़भाग हुयी। मतलब बिना किसी ठोस वजह के शरीर की ऊर्जा का नाश। वही सिर्फ मंगल राहु से यह युति करे तो उष्को टेंशन अधिक होने लगती हैं किसी न किसी बात की दिल बैठा के ऒ दिमाग और शरीर की ऊर्जा का वेय करता हैं जिससे उसका शरीर धीरे धीरे ऊर्जा विहीन होने लगता हैं कईओ क़ो देखा होगा कुछ दिन पहले हट्टे कठे थे बाद मे शरीर का आकर ही अलग होता हैं। मंगल शरीर मे लिवर, पेट संबंदी रोग देता हैं जो अंदर ही अंदर पनपता हैं। मंगल यदि 2रे या 11वे भाव का स्वामी हों और 12मे बैठ जाय या वर्षफल या गोचर मे 12वे मे आ जाये तो धन हानी, लाभ हानी और आपसी क्लेश पैदा करता हैं, लाभ के लिए किसी से कर्ज़ा लेगा या घर से उठाएगा ये 2और 11 के मिक्स हाल हैं। हर भाव का आख़री वेय भाव हैं। अब 8वा भाव गुप्त भाव हैं जिसकी न तो कोई जानकारी हैं न गड़ना इसका अनुमान लगाना बडा मसक्कत का काम हैं क्योंकि इसके अच्छे बुरे फल अचानक आते हैं जिसका पूर्वनुमान नी होता हैं, जैसे अचानक से दिल का दौरा पड़ना या तो मृत्यु या सर्जरी या कोमा ईश्मे (ग्रह मेन्सन नहीं कर रा हूं अभी ) या धन लाभ जिससे सारे भौतिक दुखो का निपटारा हों सके मतलब लोगो का कर्ज़ा, गिरवी ज़मीन क़ो छूटाना, और भी पेंडिंग पड़ी चीज़ो का निपटारा होना जिसकी उम्मीद ही न कभी की हों ऐसे काम होना।
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