कुंडली में पर्वत योग

कुंडली में पर्वत योग

*_पर्वत योग कैसे बनता है?_*
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार पर्वत योग तब बनता है जब -
* लग्न और चंद्रमा बलवान हों तथा शुभ ग्रहों से प्रभावित हों।
* दशम भाव (कर्म), नवम भाव (भाग्य) और लाभ भाव (11वाँ) शुभ स्थिति में हों।
* केंद्र (1, 4, 7, 10) और त्रिकोण (1, 5, 9) के स्वामी आपस में मित्रता रखते हुए बलवान स्थिति में हों।
* सप्तम और दशम भाव के स्वामी उच्च या स्वगृही होकर शुभ ग्रहों से दृष्ट हों।
_इन स्थितियों में जातक की कुंडली में पर्वत योग का निर्माण होता है।_

*_पर्वत योग को कैसे पहचानें?_*
कुंडली में पर्वत योग का पता लगाने के लिए इन बिंदुओं पर ध्यान दें - 
* लग्नेश और चंद्रमा शुभ ग्रहों के प्रभाव में हों।
* नवमेश और दशमेश के बीच शुभ संबंध (युति या दृष्टि) हो।
* केंद्र और त्रिकोण भावों में शुभ ग्रहों की स्थिति हो और पापग्रहों का प्रभाव कम हो।

*_पर्वत योग का फल और प्रभाव_*

जिन जातकों की कुंडली में पर्वत योग होता है, उन्हें जीवन में विशेष उपलब्धियाँ प्राप्त होती हैं -
* समाज में मान-सम्मान और प्रतिष्ठा मिलती है।
* नेतृत्व क्षमता और उच्च पद प्राप्त होते हैं।
* आर्थिक दृष्टि से समृद्धि और स्थायी धन की प्राप्ति होती है।
* व्यक्ति धर्मनिष्ठ, न्यायप्रिय और समाज में आदरणीय बनता है।
* अच्छे कर्मों से उसकी कीर्ति दूर तक फैलती है।

_ग्रंथ संदर्भ: बृहत् पाराशर होरा शास्त्र में कहा गया है_
*"जातक पर्वतयोगे स्थितः राजा तुल्यो भवति, धर्मशीलः, धनवान् च।"*
अर्थात, पर्वत योग वाला जातक राजा के समान प्रभावशाली, धार्मिक और धनवान होता है।

*पर्वत योग कब काम करता है?*
* जब योग से संबंधित ग्रहों की दशा-अंतर्दशा सक्रिय होती है।
* जब ग्रह उच्च, स्वगृही या मित्र राशि में हों।
* जब गोचर (transit) में गुरु, शनि या अन्य शुभ ग्रह इन भावों को सक्रिय करते हैं।
* पर्वत योग कब निष्क्रिय हो जाता है?
* यदि योगकारक ग्रह नीच राशि, अष्टम या द्वादश भाव में हों।
* यदि लग्न या चंद्रमा कमजोर हों और पापग्रहों से पीड़ित हों।
* यदि योग बनाने वाले ग्रहों की दशा जीवन में न आए तो योग निष्क्रिय  रह जाता है।

*नक्षत्र का प्रभाव*

* यदि योग के मुख्य ग्रह शुभ नक्षत्रों (जैसे पुष्य, अनुराधा, उत्तराषाढ़ा, उत्तराभाद्रपद, रोहिणी, हस्त, स्वाती) में हों तो फल प्रबल मिलता है।
* यदि ये ग्रह अशुभ नक्षत्रों (जैसे अश्लेषा, मूल, ज्येष्ठा, भरणी) में हों और उन पर शुभ दृष्टि न हो, तो फल कमज़ोर पड़ जाता है।

*डिग्री का प्रभाव*

* ग्रह मध्य डिग्री (10°–20°) में हों तो योग का प्रभाव स्थायी और मजबूत होता है।
* प्रारंभिक (0°–3°) या अंतिम डिग्री (27°–29°) पर योग का फल देर से या कमजोर रूप में मिलता है।
* वक्री ग्रह योग को विलंबित कर सकते हैं, यानी फल मिलने में समय लगता है।

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