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केतु के गुण अवगुण

केतु के गुण अवगुण - *ज्योतिष शास्त्र के अनुसार केतु एक छाया ग्रह है जो स्वभाव से पाप ग्रह भी है। केतु के बुरे प्रभाव से व्यक्ति को जीवन में कई बड़े संकटों का सामना करना पड़ता है। हालांकि यही केतु जब शुभ होता है तो व्यक्ति को ऊंचाईयों पर भी ले जाता है। केतु यदि अनुकूल हो जाए तो व्यक्ति आध्यात्म के क्षेत्र में ख्याति प्राप्त करता है। आमतौर पर माना जाता है कि हमारी जन्मकुंडली हमारे पिछले जन्म के कर्मों तथा इस जन्म के भाग्य को बताती है। फिर भी ज्योतिषीय विश्लेषण कर हम अशुभ ग्रहों से होने वाले प्रभाव तथा उनके कारणों को जानकर उनका सहज ही निवारण कर सकते हैं।* *राहू एवं केतु छाया ग्रह माने गए है जिनका स्वयं का कोई अस्तित्व नहीं होता है। इन्हें इनके कार्य करने की वास्तविक शक्ति कुंडली में अन्य ग्रहों के सम्मिलित प्रभाव से मिलती है। ज्योतिष में माना जाता है कि किसी जानवर को परेशान करने पर, किसी धार्मिक स्थल को तोड़ने अथवा किसी रिश्तेदार को सताने, उनका हक छीनने की सजा देना ही केतु का कार्य है। झूठी गवाही व किसी से धोखा करना भी केतु के बुरे प्रभाव को आमंत्रित करता है।* *जब भी व्यक्ति पर केतु का अश...

केतु + शनि युति

🌑 केतु + शनि युति 1. मनोवैज्ञानिक असर व्यक्ति के भीतर गहरी उदासी और निराशा का भाव रह सकता है। अक्सर लोग खुद को पीड़ित मानते हैं और अपने दर्द से बाहर नहीं निकल पाते। कई बार यह संयोजन व्यक्ति को आध्यात्मिक या रहस्यमय मार्ग की ओर ले जाता है। 2. कर्म और भाग्य यह युति बताती है कि व्यक्ति को पिछले जन्मों का कर्मफल इस जन्म में भुगतना पड़ता है। शनि = कर्म का हिसाब केतु = अज्ञात प्रारब्ध (जो कर्म हमने भूल चुके हैं लेकिन जिनका फल आना तय है)। इस कारण व्यक्ति को लगता है कि ज़िन्दगी में सब कुछ पहले से तय है। 3. व्यवहार और स्वभाव नई चीज़ें अपनाने में कठिनाई। पुराने विचारों और परंपराओं से चिपके रहना। कई बार अति-अनुशासन या फिर कर्तव्य की उपेक्षा – दोनों तरह के चरम व्यवहार देखने को मिलते हैं। 4. शुभ प्रभाव यदि शनि बलवान है तो यह युति व्यक्ति को सटीकता, अनुशासन, समयपालन और गहन अध्ययन की क्षमता देती है। व्यक्ति दार्शनिक या आध्यात्मिक रूप से गहरा हो सकता है। जीवन को “जैसा है, वैसा स्वीकार करना” सीख लेता है। 5. अशुभ प्रभाव करियर और जिम्मेदारियों में बाधाएँ। स्वास्थ्य समस्याएँ या मानसिक दबाव। कई बार “सर्प ...

अष्टम भाव से संबंधित फल सूत्र

अष्टम भाव से संबंधित फल सूत्र ++++++++++++++++++ अष्टम यानी आयु भाव, इस नाते यदि अष्टमेश केंद्र भाव में हो तो आयु लंबी होती है। यदि लग्नेश और अष्टमेश अशुभ प्रभाव में अष्टम भाव में हो तो आयु छोटी होती है। यदि दशमेश या शनि अशुभ प्रभाव में हो या अष्टम भाव में हो तो आयु लंबी होती है। यदि छठे भाव का स्वामी ग्रह 12 में, अष्टम का स्वामी ग्रह अष्टम भाव में , बाहरवें भाव का स्वामी ग्रह 12वे भाव में ही हो तो भी आयु लंबी होती है। यदि 6 और 12 भाव का स्वामी लग्न भाव में, 1, 5 और 8 भाव के स्वामी ग्रह अपनी या उच्च राशि के हो तो भी आयु लंबी होती है। यदि 1, 8, 10 भाव के स्वामी ग्रह केंद्र, त्रिकोण या लाभ भाव में हो तो भी आयु लंबी होती है। यदि लग्नेश अशुभ प्रभाव में कमज़ोर हो और अष्टमेश केंद्र में हो तो आयु छोटी होती है। यदि अष्टम भाव में मंगल शनि या मंगल राहू युति हो तो वाहन दुर्घटना का योग बनता है। यदि अष्टम भाव को शुभ ग्रह देखते हो तो जातक को ससुराल से लाभ होता है, शादी के बाद आर्थिक स्थिति बेहतर होती है। यदि अष्टम भाव को अशुभ ग्रह देखते हो तो ससुराल से समस्या आती है, जातक को अनचाहे स्थान परिवर्तन की ...

श्रीसूक्त पाठ विधि🔶🔹🔶🔹🔶🔹🔶

श्रीसूक्त पाठ विधि 🔶🔹🔶🔹🔶🔹🔶 धन की कामना के लिए श्री सूक्त का पाठ अत्यन्त लाभकारी रहता है। (श्रीसूक्त के इस प्रयोग को हृदय अथवा आज्ञा चक्र में करने से सर्वोत्तम लाभ होगा, अन्यथा सामान्य पूजा प्रकरण से ही संपन्न करें .) प्राणायाम आचमन आदि कर आसन पूजन करें :- ॐ अस्य श्री आसन पूजन महामन्त्रस्य कूर्मो देवता मेरूपृष्ठ ऋषि पृथ्वी सुतलं छंद: आसन पूजने विनियोग: । विनियोग हेतु जल भूमि पर गिरा दें । पृथ्वी पर रोली से त्रिकोण का निर्माण कर इस मन्त्र से पंचोपचार पूजन करें – ॐ पृथ्वी त्वया धृता लोका देवी त्वं विष्णुनां धृता त्वां च धारय मां देवी पवित्रां कुरू च आसनं ।ॐ आधारशक्तये नम: । ॐ कूर्मासनायै नम: । ॐ पद्‌मासनायै नम: । ॐ सिद्धासनाय नम: । ॐ साध्य सिद्धसिद्धासनाय नम: । तदुपरांत गुरू गणपति गौरी पित्र व स्थान देवता आदि का स्मरण व पंचोपचार पूजन कर श्री चक्र के सम्मुख पुरुष सूक्त का एक बार पाठ करें । निम्न मन्त्रों से करन्यास करें :- 🔶🔹🔶🔹🔶🔹🔶🔹🔶🔹🔶 1 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं ऐं क ए ई ल ह्रीं अंगुष्ठाभ्याम नमः । 2 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं ह स क ह ल ह्रीं तर्जनीभ्यां स्वाहा । 3 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं सौ...

कुंडली में पर्वत योग

कुंडली में पर्वत योग *_पर्वत योग कैसे बनता है?_* ज्योतिष शास्त्र के अनुसार पर्वत योग तब बनता है जब - * लग्न और चंद्रमा बलवान हों तथा शुभ ग्रहों से प्रभावित हों। * दशम भाव (कर्म), नवम भाव (भाग्य) और लाभ भाव (11वाँ) शुभ स्थिति में हों। * केंद्र (1, 4, 7, 10) और त्रिकोण (1, 5, 9) के स्वामी आपस में मित्रता रखते हुए बलवान स्थिति में हों। * सप्तम और दशम भाव के स्वामी उच्च या स्वगृही होकर शुभ ग्रहों से दृष्ट हों। _इन स्थितियों में जातक की कुंडली में पर्वत योग का निर्माण होता है।_ *_पर्वत योग को कैसे पहचानें?_* कुंडली में पर्वत योग का पता लगाने के लिए इन बिंदुओं पर ध्यान दें -  * लग्नेश और चंद्रमा शुभ ग्रहों के प्रभाव में हों। * नवमेश और दशमेश के बीच शुभ संबंध (युति या दृष्टि) हो। * केंद्र और त्रिकोण भावों में शुभ ग्रहों की स्थिति हो और पापग्रहों का प्रभाव कम हो। *_पर्वत योग का फल और प्रभाव_* जिन जातकों की कुंडली में पर्वत योग होता है, उन्हें जीवन में विशेष उपलब्धियाँ प्राप्त होती हैं - * समाज में मान-सम्मान और प्रतिष्ठा मिलती है। * नेतृत्व क्षमता और उच्च पद प्राप्त होते हैं। * आर्थिक दृष्...

कुल देवी

*किसे कहते है आभामंडल ,औरा, प्रभामंडल, प्राणशक्ति या विद्युत शक्ति*        〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰 औरा का लेटीन भाषा मे अर्थ बनता है "सदैव बहने वाली हवा"। औरा इसी अर्थ के मुताबिक यह सदैव गतिशील भी होती है। विभिन्न देशो मे इसे विभिन्न नामो से जाना जाता है, लेकिन सबसे ज्यादा प्रचलित नाम औरा, प्रभामंडल, या ऊर्जामंडल है। प्राणियों का शरीर दो प्रकार का होता है  1. स्थूल शरीर  2. शूक्ष्म शरीर स्थूल शरीर जन्म के बाद जो शरीर सामने दिखाई देता है, वह स्थूल शरीर होता है, इसी स्थूल शरीर का नाम दिया जाता है, इसी के द्वारा संसारी कार्य किये जाते है, इसी शरीर को संसारी दुखों से गुजरना पडता है और जो भी दुख होते हैं | भौतिक शरीर के अतिरिक्त प्रकाषमय और ऊर्जावान एक शरीर और होता है जिसे सूक्ष्म शरीर अथवा आभामण्डल { औरा }कहते हैं।   हमारे शरीर के चारों तरफ जो ऊर्जा का क्षेत्र है वही सूक्ष्म शरीर है। सूक्ष्म शरीर ने हमारे स्थूल शरीर को घेर रहा है। इसे जीवनी शक्ति या प्राण शक्ति भी कहते हैं इसका कार्य सारे शरीर में एवं सूक्ष्म नाडियों में वायु प्रवाह को नियंत्रित कर...

योग कुण्डली में

*ज्योतिष में विभिन्न प्रकार के योग* पंच महापुरूष योग - पंच महापुरूष योगों का ज्योतिष में बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। ये योग हैं रूचक,भद्र,हंस,मालव्य,शश। जो क्रमशः मंगल,बुध,गुरू,शुक्र व शनि ग्रहों के कारण बनते हैं। १. मंगल ग्रह के कारण रूचक योग - यदि मंगल अपनी स्वराशि या उच्च राशि में होकर केंद्र में स्थित हो तो "रूचक" नामक योग बनता है। इस योग में जन्म लेने वाला व्यक्ति साहसी होता है। वह अपने गुणों के कारण धन, पद व प्रतिष्ठा प्राप्त करता है एवं जग प्रसिध्द होता है। २. बुध ग्रह के कारण "भद्र"  योग - यदि बुध अपनी स्वराशि या उच्च राशि में होकर केंद्र में स्थित हो तो "भद्र" नामक योग बनता है। इस योग में जन्म लेने वाला व्यक्ति कुशाग्र बुध्दि वाला होता है। वह श्रेष्ठ वक्ता, वैभवशाली व उच्चपदाधिकारी होता है। ३. गुरू ग्रह के कारण "हंस" योग - यदि गुरू अपनी स्वराशि या उच्च राशि में होकर केंद्र में स्थित हो तो "हंस" नामक योग बनता है। इस योग में जन्म लेने वाला व्यक्ति बुध्दिमान व आध्यात्मिक होता है एवं विद्वानों द्वारा प्रशंसनीय होता है। ४. शुक्र ग्रह ...