राशियों में परिभ्रमण करते समय ग्रह अपनी मित्र व शत्रु तथा उच्च व नीच राशियों में प्रवेश करते हैं। इसके साथ ही कई बार जन्म कुंडली में विभिन्न भावों (घर) से संचरित होते हुए अन्य ग्रहों से युति संबंध बनाते हैं।

ग्रहों की उक्त स्थिति में गतिशीलता जीवन को अच्छे व बुरे दोनों रूप में प्रभावित करती है। राशि में सूर्य के साथ अन्य ग्रह आने पर वे अस्तगत (अस्त होना) हो जाते हैं, इस कारण उस ग्रह का प्रभाव समाप्त हो जाता है। सूर्य के समीप चंद्र 2 डिग्री, मंगल 17, बुध 13, गुरु 11, शुक्र 9 व शनि 15 डिग्री का होने पर अस्त हो प्रभावहीन हो जाते हैं।

इसमें भी खास यह है कि जन्मकुंडली के माने गए अच्छे भाव यानी पंचम, सप्तम, नवम, दशम व एकादश भावों में अस्तगत ग्रह अपना मूल प्रभाव नहीं देता है। इसलिए जन्मकुंडली में ज्योतिष विचार करते समय ग्रहों की उपरोक्त स्थितियों का गंभीरता से विचार कर ही फलादेश करना चाहिए। साथ ही नवमांश, दशमांश व अन्य कुंडलियों में स्थित ग्रहों का भी अवलोकन किया जाना चाहिए।


ज्योतिषीय आकलन में जन्मकुंडली में स्थित ग्रहों की उच्च व नीच राशियों का भी बड़ा महत्व है। हर ग्रह अलग-अलग डिग्री पर उच्च व नीच राशि का फल देता है।

सूर्य अपनी 10 डिग्री तक मेष राशि में उच्च का व तुला राशि में नीच का माना गया है। इसी प्रकार चंद्रमा 3 डिग्री तक वृषभ राशि में उच्च व वृश्चिक में नीच, मंगल 28 डिग्री तक मकर राशि में उच्च व कर्क राशि में नीच, बुध 15 डिग्री तक कन्या राशि में उच्च व मीन राशि में नीच, गुरु 5 डिग्री तक कर्क में उच्च व मकर में नीच, शुक्र 27 डिग्री तक मीन में उच्च व कन्या में नीच तथा शनि 20 डिग्री तक तुला में उच्च व मेष में नीच राशि का माना गया है।

इनकी बलवान व निर्बल स्थिति का विवेचन राशि में उच्च या नीच की स्थिति अनुसार किया जाता है।


ग्रहों की बालादि अवस्थाए :-
  विषम राशियों के लिए               सम राशियों के लिए
0 डिग्री से 6 डिग्री  बाल अवस्था         0 डिग्री से 6 डिग्री  मृत
 6 डिग्री से 12 डिग्री कुमार                    6 डिग्री से 12 डिग्री वृद्ध
12 डिग्री से 18 डिग्री युवा                     12 डिग्री से 18 डिग्री युवा 
18 डिग्री से 24 डिग्री वृद्ध              18 डिग्री से 24 डिग्री कुमार     
24 डिग्री से 30 डिग्री मृत              24 डिग्री से 30 डिग्री बाल

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