सत्संग स्टोरी

⁠⁠⁠ " सत्संग से लाभ ही लाभ है । "
व्यापार में तो लाभ और हानि दोनों होते हैं , पर सत्संग में लाभ ही लाभ होता है , नुकसान होता ही नहीं । 
जैसे माँ की गोद में पड़ा हुआ बालक अपने आप बड़ा होता है , बड़ा होने के लिए उसको उद्योग नहीं करना पड़ता । ऐसे ही सत्संग में लगे रहने से मनुष्य का अपने आप विकास होता है ।
सत्संग से विवेक जाग्रत होता है । गुरसिख जितने अंश में सतगुरु की बातो को महत्व देता है , उतने ही अंश में उसके काम - क्रोध आदि विकार नष्ट हो जाते हैं ।
सत्संग का असली भाव है संतों का संग। संतों का संग करने से इंसान के जीवन में गुण आने शुरू हो जाते है। संतों का संग करने से इंसान में इंसानियत, प्यार, निर्माता व सहनशीलता आती है। 
ऐसे ही एक घटना है जो हमें सिखाता हैं 
नदी किनारे एक लम्बा पेड़ था,आंधी में वो नदी के ऊपर गिर गया जिससे दोनों सिरे दोनों किनारों को छूने लगे,लोगो ने उससे पुल का काम लेना शुरु कर दिया,
एक दिन दो आदमी दोनों ओर से एक साथ पुल पार करने के लिये चढ़ा,बीच में इतना जगह नही था कि दोनो पार हो सके,दोनों एक दुसरे को पिछे हटने के लिये कहने लगे पर कोई पीछे नही हटा,
दोनों ने लड़ाई की और दोनों पानी में गिरकर बह गए | एक दिन फिर ऐसी ही स्थिति बनी ,पर आज एक आदमी समझदार था ,उसने कहा कि मै बैठ जाता हु,तुम मेरे ऊपर से निकल जाओ,इस प्रकार एक के समझदारी से दोनों की जान बच गई ,एक झुकने को राजी हुआ तो दोनों की जान बच गई |
श्री कृष्ण ने कभी नही चाहा कि महाभारत हो,उन्होने समझाने का भी प्रयास किया,कौरवों से सिर्फ पॉच गॉव देने के लिये कहा पर वो पॉडवों को ये कह दिये कि पॉच गॉव क्या एक सुई के नोक के बराबर भी जमीन नही देगे,वो किसी प्रकार से समझौता को राजी नही हुये,फिर आप ने देखा है कितना विनाशकारी परिणाम हुआ,कितने लोग मारे गये | सन्त जन हमेशा कहा करते है कि अभिमान ना करो ये विनाश का कारण बनता है,हमेशा नम्रता अपनाने कि शिक्षा दी जाती है, रिषियों-मुनियों को भी जब मान हुआ,अहंकार हुआ तो उनका भी पतन हो गया | इसलिये सन्त जन सदा ही बुराई से दुर रहने,अच्छाई का संग करने,विवेक से काम लेने को कहते है l
पर आज का इन्सान इनमें रुची नही लेना चाहता है,वो हमेशा निम्न दर्जे के कामों में रुची लेता है,आज स्थिति ये है कि कही घुमने फिरने अथवा पिक्चर देखने जाने कि बात करों तो सभी एक दम से तैयार नजर आते है, पर जब बात सत्संग जाने की हो तो नाना प्रकार के बहाने बनाते नजर आते है |
आज का इंसान अपना संग ठीक नही कर रहा,संग ही इन्सान को सही दिशा देता है जैसे जमीन की धूल जब हवा का संग करती है तो आसमानों तक जाती है वही धूल जब पानी का संग कर लेती है तो कीचड़ बन जाती है | 
कहा भी गया है कि बिन सत्संग विवेक ना होई,संतों के संग से ही जीवन जीने का ढंग प्राप्त होता है पर आज के इन्सॉन की उत्सुकता इसमें नही है वो दुनियाबी चीजों और बातों में ज्यादा उत्सुक है ,ll
जरुरत है ऐसे लोगों का संग किया जाये तो भक्त प्रवृति,संत प्रवृति,सज्जन प्रवृति के है,इनके गुण और चाल इंसान का रुतवा बढा देता है,जहा इनका संग जीने के लिये सुन्दर दिशा निर्देश देगा वही आत्मा का कल्याण का मार्ग भी प्राप्त होगा,क्योंकि ये मानव जीवन बड़े ही भाग्य से प्राप्त हुआ है, ये छोटा सा पड़ाव मिला है इसमें भी अगर रास्ता नही बदला गया तो फिर से चौरासी के चक्कर में जाने के लिये तैयार रहना होगा |
ll धन निरंकार जी ll

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