वृश्चिक_राशि_चन्द्रमा_नीच_होने_पर_होगा_बलवान_और_शुभ_यदि_सूर्य_से_दूर_हो
#वृश्चिक_राशि_चन्द्रमा_नीच_होने_पर_होगा_बलवान_और_शुभ_यदि_सूर्य_से_दूर_हो ग्रहो का अपनी नीच राशि मे होना अच्छा नही होता है, कारण क्योंकि कोई भी ग्रह अपनी नीच में होने पर बिल्कुल ही कमजोर होता है,लेकिन एक मात्र चन्द्रमा ऐसा ग्रह है जो अपनी नीच राशि वृश्चिक में भी होने पर शुभ और बलवान शाली फल दे सकता है, चन्द्रमा के शुभ अशुभ फल या चन्द्रमा का बल राशियों से ज्यादा नही जांचा जाता है।चन्द्रमा का बल और शुभता सूर्य की स्थिति से देखा जाती है।चन्द्रमा नीच राशि वृश्चिक का ही क्यों न हो यदि चन्द्रमा सूर्य से काफी दूर बेठा है कम से कम 180अंश की दूरी पर है मतलब जिस भाव मे सूर्य बेठा है उस भाव से चन्द्रमा लगभग 4भाव आगे होने पर या सूर्य से 4भाव से भी दूर होने पर बलवान और शुभ होता है अब चन्द्रमा वृश्चिक राशि का ही क्यों न हो? क्योंकि चन्द्रमा सूर्य के जितना नजदीक जन्मकुंडली में होगा उतना कमजोर और अशुभ होता जाता है चाहे यह उच्च राशि का हो या अपनी स्वयम की राशि कर्क में ही सूर्य के नजदीक होने पर भी कमजोर होगा, क्योंकि चन्द्रमा का बल और शुभता राशियों पर नही सूर्य की स्थिति पर निर्भर करती है।तब ही अमावस्या के दिन चन्द्र सूर्य के साथ होता है जिस कारण आकाश में अंधकार रहता है चन्द्रमा के निर्बल होने से और पूर्णिमा या पूर्णिमा के आस-पास सूर्य से दूर होने पर आकाश में रात के समय चन्द्र का प्रकाश दिखाई देता है। कई जातको की कुंडली में चंद्रमा नीचराषि वृश्चिक का होता है ऐसी स्थिति वहा यह देखना चाहिए सूर्य से चन्द्र दूर कितना है यदि काफी दूर चन्द्रमा सूर्य से बेठा है तब नीच का होने पर भी बलवान होगा और शुभ फल देगा, ऐसी स्थिति में अपनी उच्च,स्वराशि या मित्र राशियों में होगा तब ज्यादा बलवान मतलब अतिरिक्त बलवान हो जाएगा।चन्द्रमा नीच होने पर भी राजयोग या कोई भी शुभ योग बनाकर शुभ फल देगा, लेकिन उच्च, स्वराशि, या मित्र राशियों में बैठकर कोई शुभ योग बनाने पर भी वह शुभ योग या राजयोग कमजोर होगा।अब कुछ उदाहरणों से संमझे। #उदाहरण1:- तुला लग्न में दशमेश चन्द्रमा दशम भाव का स्वामी बनकर दूसरे भाव मे जाकर नीच होगा यहाँ माना सूर्य अब दसवे भाव मे ही कर्क राशि का है और चन्द्रमा दूसरे घर मे है ऐसी स्थिति में सूर्य चन्द्र एक दूसरे काफी दूर है, सूर्य से चंद्रमा लगभग 120अंश दूर है मतलब सूर्य से चन्द्रमा 5भाव दूर है अब यह चन्द्रमा यहाँ पूर्ण शुभ फल ही देगा क्योंकि चन्द्रमा सूर्य से काफी दूर होने पर काफी बलवान है, लेकिन यहाँ शनि मंगल राहु केतु की दृष्टियों या युति से चन्द्र पीड़ित नही होना चाहिए।। #नीच_चन्द्रमा से बनने वाले राजयोग और शुभ योग भी उतने ही प्रभावशाली होंगे यदि चन्द्रमा सूर्य से दूर है।इसके विपरीत चन्द्रमा अमावस्या या अमावस्या के बिल्कुल आस-पास का है मतलब सूर्य के नजदीक होकर कोई शुभ योग बनाये साथ ही नीच राशि का भी हो तब ऐसा चन्द्र सबसे ज्यादा दिक्कते देता है।#जैसे;- #उदाहरण2:- चन्द्रमा वृश्चिक राशि मे गुरु के साथ गजकेसरी योग बनाकर शुभ योग बना रहा है और चन्द्रमा से सूर्य लगभग 5भाव दूर है(जिस भाव मे चन्द्र बेठा है वहा से सूर्य 5भाव दूर है या ज्यादा ही दूर है)तब यह गजकेसरी योग जिसमे चन्द्र नीच राशि का है तब भी पूरी तरह बलवान स्थिति में फलित होगा क्योंकि चन्द्र यहाँ सूर्य से दूर होने पर नीच होने और भी बलवान और शुभ है।। #उदाहरण3:- अब माना चन्द्र गुरु की युति वृश्चिक राशि मे है और सूर्य भी वृश्चिक राशि का है या वृश्चिक से पहली राशि तुला में में बेठा हो या वृश्चिक के बाद कि राशि धनु में सूर्य बेठा हो तब चन्द्र यहाँ नीच का भी है और सूर्य के पास भी है अब यह चन्द्र पूरी तरह निर्बल और अशुभ है, यहाँ पूरी तरह चन्द्र अशुभ फल देगा चाहे कितना भी शुभ योग क्यों न बने चन्द्र द्वारा।इस तरह से चन्द्रमा यदि नीच होकर भी सूर्य से काफी दूर है तब भी शुभ फल देगा, जो भी योग शुभ योग बनाएगा उसके शुभ फल देगा लेकिन यदि सूर्य के नजदीक है तब कमजोर और अशुभ होगा, साथ यदि नीच का होकर सूर्य के नजदीक हुआ तब पूरी तरह अशुभ और निर्बल होगा।ऐसी स्थिति में चन्द्रमा की महादशा या अंतरदशा जब भी आएगी अशुभ फल देगी और पूर्णिमा का हुआ मतलब सूर्य से दूर होकर नीच का हुआ और पीड़ित नही हुआ तब ऐसी स्थिति में यह बलवान होगा और अपने शुभ फल देगा, किस स्तर तक शुभ फल देगा यह सब कुंडली मे चन्द्र भाव स्थिति, किस भाव का स्वामी होकर क्या योग बना रहा है इस स्थिति पर निर्भर करेगा।
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