कहानी

प्रभु से संबंध बनाकर तो देखिए..........

एक बार की बात है । एक बच्चा था उसका कोई भी नहीं था । वह बहुत दुखी था । एक दिन वह एक संत के पास आश्रम में गया ।

 संत जी से कहने लगा- बाबा आप सबका ख्याल रखते है , लेकिन मेरा इस दुनिया में कोई भी नहीं है , 
क्या मैं आपके आश्रम में रह सकता हुं?

बालक की बात सुनकर संत बोले बेटा तेरा नाम क्या है ?

उस बालक ने कहा मेरा कोई नाम नहीं है। तब संत जी ने उसका नाम रामदास रखा और आश्रम के सारे काम करने लगा । 

उन संत की आयु 80  साल की हो गई थी । एक दिन उन्हें तीर्थ यात्रा पर जाना पड़ा और अपने शिष्यों को बुलाकर कहते है,” मुझे तीर्थ यात्रा पर जाना है मेरे साथ कौन-कौन चलेगा और आश्रम में कौन रुकेगा ?”

संत की बात सुनकर सारे शिष्य बोले की हम आपके साथ चलेंगे.!

 क्योंकि उनको पता था की यहां आश्रम में रुकेंगे तो सारा काम करना पड़ेगा।

इसलिये सभी बोले की हम तो आपके साथ तीर्थ यात्रा पर चलेंगे।
अब संत सोचने लगे की किसे साथ लेकर जाये और किसे आश्रम में छोड़ कर जाये। 

क्योकि अगर सभी साथ चल दिए तो आश्रम में काम कौन करेगा , आश्रम पर किसी का रुकना भी जरुरी था ।

बालक रामदास संत के पास आया और बोला बाबा अगर आपको ठीक लगे तो मैं यहीं आश्रम पर रुक जाता हूं ।

संत ने कहा ठीक है पर तुझे काम करना पड़ेगा। और संत जी कहते है की बेटा चाहे आश्रम  की सफाई में कोई कमी रह जाये पर भगवान की सेवा में कोई कमी नहीं रहनी चाहिए ! 

रामदास ने संत से कहा की बाबा मुझे तो भगवान जी की सेवा करनी नहीं आती! 

आप बता दीजिये कि भगवान जी की सेवा कैसे करनी है ? 

फिर मैं कर दूंगा।
आश्रम में एक मंदिर था , वहां उस मंदिर मे राम दरबार की सुन्दर झाँकी थी। जिसमे श्री राम जी,सीता जी, लक्ष्मण जी और हनुमान जी विराजमान थे। 

उसके बाद संत ने सब बता दिया की सेवा कैसे करनी है ।

रामदास ने गुरु जी से कहा की बाबा मेरा इनसे रिश्ता क्या होगा ये भी बता दो, क्योँकि अगर रिश्ता पता चल जाये तो सेवा करने में आनंद आयेगा।

संत कहते है की बेटा तू कहता था की तेरा कोई नहीं है तू अनाथ है तो देख, आज से यह राम जी और सीता जी तेरे माता-पिता है ।

 रामदास ने साथ में खड़े लक्ष्मण जी को देखकर कहा अच्छा बाबा और ये जो पास में खड़े है वह कौन है ? 
संत ने कहा ये तेरे चाचा जी हैं और हनुमान जी के लिये कहा की ये तेरे बड़े भैय्या है।

रामदास सब समझ गया और फिर उनकी सेवा करने लगा। संत शिष्योँ के साथ यात्रा पर चले गये।

आज सेवा का पहला दिन था रामदास ने सुबह उठकर स्नान किया और भीक्षा माँगकर लाया और फिर भोजन तैयार किया फिर भगवान को भोग लगाने के लिये मंदिर आया। 

रामदास ने श्री राम सीता लक्ष्मण और हनुमान जी आगे एक-एक थाली रख दी और बोला अब पहले आप खाओ फिर मैं भी खाऊँगा। 

रामदास को लगा की सच मे भगवान बैठकर खायेंगे. पर बहुत देर हो गई रोटी तो वैसी की वैसी थी।

 तब बालक रामदास ने सोचा नया नया रिश्ता बना है तो शरमा रहे होंगे। रामदास ने पर्दा लगा दिया बाद मे खोलकर देखा तब भी खाना वैसे का वैसा पड़ा था।

अब तो रामदास रोने लगा की मुझसे सेवा मे कोई गलती हो गई इसलिये खाना नही खा रहे हैं
और यह नहीँ खायेंगे तो मैँ भी नही खाऊँगा और मैं भूख से मर जाऊँगा..!

 इसलिए अब मैं मर जाँऊगा क्योकि गुरूजी पूछेंगे तो उन्हें क्या जवाब दूंगा मैं ?

रामदास मरने के लिए  पहाड़ की ओर जाता है
 तब भगवान राम जी हनुमान जी को कहते हैं ।

हनुमान जाओ उस बालक को लेकर आओ और बालक से कहो की हम खाना खाने के लिये तैयार हैं। हनुमान जी जाते हैं और रामदास कूदने ही वाला होता है कि हनुमान जी पीछे से पकड़ लेते हैं और बोलते है क्या कर रहे हो? 

रामदास कहता है आप कौन?

 हनुमान जी कहते है मै तेरा भैय्या हूँ इतनी जल्दी भूल गये?
रामदास कहता है अब आए हो, इतनी देर से वहां बोल रहा था की खाना खा लो तब आये नहीं अब क्यों आ गए?

तब हनुमान जी बोले पिता श्री का आदेश है, अब हम सब साथ बैठकर खाना खाएंगे। 

फिर राम जी,सीता जी, लक्ष्मण जी ,हनुमान जी साक्षात बैठकर भोजन करते हैं। 

इसी तरह रामदास रोज उनकी सेवा करता और भोजन करता।
 सेवा करते करते 15 दिन हो गये,
एक दिन रामदास ने सोचा की कोई भी माँ बाप हो वो घर में काम तो करते ही हैं। 

पर मेरे माँ बाप तो कोई काम नहीँ करते सारे दिन खाते रहते हैं।

मैं ऐसा नहीं चलने दूंगा। रामदास मंदिर जाता है
 और कहता है, पिता जी कुछ बात करनी है

 आपसे।राम जी कहते हैं बोल बेटा क्या बात है ?

 रामदास कहता है अब से मैं अकेले काम नहीं करुंगा आप सबको भी काम करना पड़ेगा, 

आप तो बस सारा दिन खाते रहते हो और मैँ काम करता रहता हूँ अब से ऐसा नहीँ होगा। राम जी कहते हैं तो फिरबताओ बेटा हमें क्या काम करना है?

 रामदास ने कहा माता जी अब से रसोई आप संभालिये  और चाचा लक्ष्मणजी) आप सब्जी तोड़कर लाओँगे. और भैय्या जी (हनुमान जी) आप लकड़ियाँ लायेँगे और पिता जी(रामजी) आप कथा बाँचने की सेवा लीजिए

 सबने कहा ठीक है। अब सभी साथ मिलकर काम करते हुऐ एक परिवार की तरह सब साथ रहने लगे

कुछ दिन बाद वो संत तीर्थ यात्रा से लौटे तो सीधा मंदिर में गए और देखा की मंदिर से प्रतिमाऐं गायब हैं।

 संत ने सोचा कहीं रामदास ने प्रतिमा बेच तो नहीं दी? 

संत ने रामदास को बुलाया और पूछा भगवान कहाँ गए ?

रामदास भी अकड़कर बोला की मुझे क्या पता रसोई में कही काम कर रहे होंगे।
 संत बोले ये क्या बोल रहा? 

रामदास ने कहा बाबा मैं सच बोल रहा हूँ जबसे आप गये हो ये चारों काम में लगे हुऐ हैं।

वो संत भागकर रसोई मेँ गये और सिर्फ एक झलक देखी की सीता माता जी भोजन बना रही हैं।राम जी कथा बाँच रहे हैं

 तभी अचानक वह चारों गायब हो गये। और मंदिर में विराजमान हो गये।

संत रामदास के पास गये और बोले आज तुमने मुझे मेरे ठाकुर का दर्शन कराया तु धन्य है
 और संत ने रो रो कर रामदास के पैर पकड़ लिये…!

कहने का अर्थ यही है कि ठाकुर जी तो आज भी तैयार हैं दर्शन देने के लिये पर कोई रामदास जैसा भक्त भी तो होना चाहिए ।

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