धार्मिक कहानी

उत्तानपाद की दो पत्नियां थी सुरुचि और सुनीति। सुरुचि का पुत्र था उत्तम और सुनीति का ध्रुव। 

एक दिन उत्तम अपने पिता की गोद में खेल रहा था और उसे देखकर ध्रुव ने भी अपने पिता की गोद में बैठना चाहा। सौतेली माता सुरुचि ने ध्रुव को झटककर नीचे उतार दिया और उत्तानपाद ने उसे नहीं रोका। 

ध्रुव दुखी होकर अपनी माता सुनीति के पास गया। उसकी माता ने ध्रुव को समझाते हुए कहा कि नारायण ही उसे उसके लिए उचित आसन प्रदान कर सकते हैं। 

बालक ध्रुव को माता की बात घर कर गयी और वो श्रीहरि की तपस्या में लीन हो गया। 

अपने दृढ निश्चय और भक्ति से ध्रुव ने संसार में वो स्थान प्राप्त किया जो किसी को नहीं मिलता और हम आज भी उसे सप्तर्षियों के साथ उत्तर आकाश में टिमटिमाते हुए देख सकते हैं।

Uttanpad had two wives Suruchi and Suniti. Suruchi’s son was Uttam and Suniti’s Dhruv.

Once day Uttam was playing on the lap of his father, when Dhruv also attempted to climb his father’s lap his step-mother Suruchi pull him away. Dhruv was very sad, since his father also did not protest. 

Dhruv went to his mother and she told him that only Narayan can offer him a place appropriate for him. 

The boy took his mother’s words to heart and went away to perform great penance to please Shri Hari.

With his perseverance and devotion, he found an eternal place for himself, which is not available to anyone and still can be seen in the north sky showing way to lot travellers. 

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