सनातन संस्कृति

*हमारे धार्मिक ग्रंथ और हमारी सनातन हिन्दू परंपरा के अनुसार पुत्र (बेटा) को कुलदीपक अथवा वंश को आगे बढ़ाने वाला माना जाता है.....*
*अर्थात.... उसे गोत्र का  वाहक माना जाता है.*

*क्या आप जानते हैं कि.... आखिर क्यों होता है कि सिर्फ पुत्र को ही वंश का वाहक माना जाता है ????*

*असल में इसका कारण.... पुरुष प्रधान समाज अथवा* *पितृसत्तात्मक व्यवस्था नहीं ....*
*बल्कि, हमारे जन्म लेने की प्रक्रिया है.*

*अगर हम जन्म लेने की प्रक्रिया को सूक्ष्म रूप से देखेंगे तो हम पाते हैं कि......*

*एक स्त्री में गुणसूत्र (Chromosomes) XX होते है.... और, पुरुष में XY होते है.* 

*इसका मतलब यह हुआ कि.... अगर पुत्र हुआ (जिसमें XY गुणसूत्र है)... तो, उस पुत्र में Y गुणसूत्र पिता से ही आएगा क्योंकि माता में तो Y गुणसूत्र होता ही नही है*

*और.... यदि पुत्री हुई तो (xx गुणसूत्र) तो यह गुणसूत्र पुत्री में माता व् पिता दोनों से आते है.*

*XX गुणसूत्र अर्थात पुत्री*

*अब इस XX गुणसूत्र के जोड़े में एक X गुणसूत्र पिता से तथा दूसरा X गुणसूत्र माता से आता है.*

*तथा, इन दोनों गुणसूत्रों का संयोग एक गांठ सी रचना बना लेता है... जिसे, Crossover कहा जाता है.*

*जबकि... पुत्र में XY गुणसूत्र होता है.*

*अर्थात.... जैसा कि मैंने पहले ही बताया कि.... पुत्र में Y गुणसूत्र केवल पिता से ही आना संभव है क्योंकि माता में Y गुणसूत्र होता ही नहीं है.*

*और.... दोनों गुणसूत्र अ-समान होने के कारण.... इन दोनों गुणसूत्र का पूर्ण Crossover नहीं... बल्कि, केवल 5 % तक ही Crossover होता है.*

*और, 95 % Y गुणसूत्र ज्यों का त्यों (intact) ही बना रहता है.*

*तो, इस लिहाज से महत्त्वपूर्ण Y गुणसूत्र हुआ.... क्योंकि, Y गुणसूत्र के विषय में हम निश्चिंत है कि.... यह पुत्र में केवल पिता से ही आया है.*

*बस..... इसी Y गुणसूत्र का पता लगाना ही गौत्र प्रणाली का एकमात्र उदेश्य है जो हजारों/लाखों वर्षों पूर्व हमारे ऋषियों ने जान लिया था.*

*इस तरह ये बिल्कुल स्पष्ट है कि.... हमारी वैदिक गोत्र प्रणाली, गुणसूत्र पर आधारित है अथवा Y गुणसूत्र को ट्रेस करने का एक माध्यम है.*

*उदाहरण के लिए .... यदि किसी व्यक्ति का गोत्र शांडिल्य है तो उस व्यक्ति में विद्यमान Y गुणसूत्र शांडिल्य ऋषि से आया है....  या कहें कि शांडिल्य ऋषि उस Y गुणसूत्र के मूल हैं.*

*अब चूँकि....  Y गुणसूत्र स्त्रियों में नहीं होता है इसीलिए विवाह के पश्चात स्त्रियों को उसके पति के गोत्र से जोड़ दिया जाता है.*

*वैदिक/ हिन्दू संस्कृति में एक ही गोत्र में विवाह वर्जित होने का मुख्य कारण यह है कि एक ही गोत्र से होने के कारण वह पुरुष व् स्त्री भाई-बहन कहलाए क्योंकि उनका पूर्वज (ओरिजिन) एक ही है..... क्योंकि, एक ही गोत्र होने के कारण...*
*दोनों के गुणसूत्रों में समानता होगी.*

*आज की आनुवंशिक विज्ञान के अनुसार भी.....  यदि सामान गुणसूत्रों वाले दो व्यक्तियों में विवाह हो तो उनके संतान... आनुवंशिक विकारों का साथ उत्पन्न होगी क्योंकि.... ऐसे दंपत्तियों की संतान में एक सी विचारधारा, पसंद, व्यवहार आदि में कोई नयापन नहीं होता एवं ऐसे बच्चों में रचनात्मकता का अभाव होता है.*

*विज्ञान द्वारा भी इस संबंध में यही बात कही गई है कि सगौत्र शादी करने पर अधिकांश ऐसे दंपत्ति की संतानों में अनुवांशिक दोष अर्थात् मानसिक* *विकलांगता, अपंगता, गंभीर रोग आदि जन्मजात ही पाए जाते हैं.*
*शास्त्रों के अनुसार इन्हीं कारणों से सगौत्र विवाह पर प्रतिबंध लगाया था.*
*यही कारण था कि शारीरिक बिषमता के कारण अंग्रेज राज परिवार में आपसी विवाह बन्द हुए।*
*जैसा कि हम जानते हैं कि.... पुत्री में 50% गुणसूत्र माता का और 50% पिता से आता है.*

*फिर, यदि पुत्री की भी पुत्री हुई तो....  वह डीएनए 50% का 50% रह जायेगा...*
*और फिर....  यदि उसके भी पुत्री हुई तो उस 25% का 50% डीएनए रह जायेगा.*

*इस तरह से सातवीं पीढ़ी में पुत्री जन्म में यह % घटकर 1% रह जायेगा.*

*अर्थात.... एक पति-पत्नी का ही डीएनए सातवीं पीढ़ी तक पुनः पुनः जन्म लेता रहता है....और, यही है "सात जन्मों के साथ का रहस्य"*.

*लेकिन.....  यदि संतान पुत्र है तो .... पुत्र का गुणसूत्र पिता के गुणसूत्रों का 95% गुणों को अनुवांशिकी में ग्रहण करता है और माता का 5% (जो कि किन्हीं परिस्थितियों में एक % से कम भी हो सकता है) डीएनए ग्रहण करता है...*
*और, यही क्रम अनवरत चलता रहता है.*

*जिस कारण पति और पत्नी के गुणों युक्त डीएनए बारम्बार जन्म लेते रहते हैं.... अर्थात, यह जन्म जन्मांतर का साथ हो जाता है.*

*इन सब में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि.... माता पिता यदि कन्यादान करते हैं तो इसका यह अर्थ कदापि नहीं है कि वे कन्या को कोई वस्तु समकक्ष समझते हैं...*

*बल्कि, इस दान का विधान इस निमित किया गया है कि दूसरे कुल की कुलवधू बनने के लिये और उस कुल की कुल धात्री बनने के लिये, उसे गोत्र मुक्त होना चाहिए.*

*पुत्रियां..... आजीवन डीएनए मुक्त हो नहीं सकती क्योंकि उसके भौतिक शरीर में वे डीएनए रहेंगे ही, इसलिये मायका अर्थात माता का रिश्ता बना रहता है.*

*शायद यही कारण है कि..... विवाह के पश्चात लड़कियों के पिता को घर को ""मायका"" ही कहा जाता है.... "'पिताका"" नहीं.*

*क्योंकि..... उसने अपने जन्म वाले गोत्र अर्थात पिता के गोत्र का त्याग कर दिया है....!*

*और चूंकि.....  कन्या विवाह के बाद कुल वंश के लिये रज का दान कर मातृत्व को प्राप्त करती है... इसीलिए,  हर विवाहित स्त्री माता समान पूजनीय हो जाती है.*

*आश्चर्य की बात है कि.... हमारी ये परंपराएं हजारों-लाखों साल से चल रही है जिसका सीधा सा मतलब है कि हजारों लाखों साल पहले.... जब पश्चिमी देशों के लोग नंग-धड़ंग जंगलों में रह रहा करते थे और जानवरों का शिकार कर खाया करते थे....*

*उस समय भी हमारे पूर्वज ऋषि मुनि.... इंसानी शरीर में गुणसूत्र के विभक्तिकरण को समझ गए थे.... और, हमें गोत्र प्रणाली में बांध लिया था.*

*इस बातों से एक बार फिर ये स्थापित होता है कि....*
*हमारा सनातन हिन्दू धर्म पूर्णतः वैज्ञानिक है....*

*बस, हमें ही इस बात का भान नहीं है.*

*असल में..... अंग्रेजों ने जो हमलोगों के मन में जो कुंठा बोई है..... उससे बाहर आकर हमें अपने पुरातन विज्ञान को फिर से समझकर उसे अपनी नई पीढियों को बताने और समझाने की जरूरत है.*

 : *मैं पुत्र और पुत्री अथवा स्त्री और पुरुष में कोई विभेद नहीं करता और मैं उनके बराबर के अधिकार का पुरजोर समर्थन करता हूँ.*
*इसलिए सभी सनातन धर्मियो को अपने कुल , गोत्र, कुलदेवी, कुलदेवता का पता होना ही चाहिए*
*पर अफ़सोस इस बात का है कि मॉर्डन ज़माने के कुछ ज्यादा पढ़े लिखे अज्ञानी हिन्दू लोगो को इनका पता ही नही होता है उन्होंने अपने बुजुर्गों से इसे जानने का प्रयत्न भी नहीं किया*
*लेख का उद्देश्य सिर्फ और सिर्फ.... गोत्र परंपरा एवं सात जन्मों के रहस्य को समझाना मात्र है* 
*आपका परिवार वंशानुगत रोगों से मुक्त रहे यही मंगलकामना*💐🙏

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