तीन शिक्षाएँ

*💐"तीन शिक्षाएँ"*💐
एक गाँव में एक निर्धन व्यक्ति रहता था। बचपन में उसे पढ़ने-लिखने का अवसर नहीं मिला। उसके दूसरे साथी पढ़-लिख गए। जब वह जवान हुआ तो उसे अपने साथियों को देखकर बहुत दुख हुआ। वह सोचने लगा कि यदि वह पढ़ा होता तो आज दूसरे लोगों की भाँति विचारवान होता। एक दिन वह व्यक्ति गाँव के शिक्षक के पास गया । शिक्षक को दंडवत्‌ प्रणाम करके बोला, “गुरुजी, मैं बचपन में पढ़-लिख नहीं सका, अतः मूर्ख रह गया हूँ। अब आप ही मुझे ज्ञान दीजिए ।”

गुरुजी बोले, “ज्ञान हमेशा सुपात्र को ही दिया जाता है। मैं तुम्हारी परीक्षा लूँगा। तुम एक साल तक मेरे घर में रहो और खेती का काम करो ।”

निर्धन व्यक्ति ने गुरुजी की बात मान ली। वह साल-भर तक गुरुजी की सेवा में लगा रहा । गुरुजी उससे बहुत प्रसन्‍न हुए। साल बीत जाने पर उन्होंने उसे अपने पास बुलाया और कहा, “शिष्य, मैं तुमसे बहुत प्रसन्‍न हूँ। मैं तुम्हें तीन शिक्षाएँ देता हूँ--"

निर्धन व्यक्ति ने कहा, “गुरुजी, आप कृपा करके अवश्य ही वे शिक्षाएँ दीजिए।”

गुरुजी ने उस आदमी को शिक्षाएँ देते हुए कहा, “शिष्य, पहली शिक्षा यह है कि घी बहुत सारवान वस्तु है। दूसरी शिक्षा यह है कि राजा को रात में नहीं सोना चाहिए और तीसरी शिक्षा यह है कि स्त्री जब उच्छृंखल हो जाए तो उसे दंड देना चाहिए।”

गुरुजी ये तीनों शिक्षाएं देकर मौन हो गए। निर्धन व्यक्ति उन शिक्षाओं को याद करके गुरुजी के चरण छूकर अपने घर लौट आया। उसने विचार किया कि वह दूसरे लोगों को ये शिक्षाएँ देगा और धन कमाएगा। ऐसा सोचकर वह देशाटन को निकल पड़ा। वह जहाँ भी जाता, लोगों को अपनी शिक्षाएँ खरीदने को कहता। किंतु किसी ने भी उसकी शिक्षाएं नहीं खरीदीं । लोग उसकी बातें सुनते और उसकी हँसी उड़ाते हुए चले जाते ।

अपने इस हाल पर निर्धन व्यक्ति बहुत दुखी हुआ। वह सोचने लगा कि इस प्रकार तो वह भूखों ही मर जाएगा, अतः उसे राजा के पास जाना चाहिए। वह राज-दरबार में चला गया। उसने राजा से कहा कि उसके पास बहुत कीमती तीन शिक्षाएँ हैं। राजा ने उससे शिक्षाएँ बताने के लिए कहा। निर्धन व्यक्ति ने अपनी तीनों शिक्षाएं राजा को बता दीं। राजा बोला, “मैं तुम्हारी इन शिक्षाओं की परीक्षा करके देखूंगा। यदि ये सच हुईं तो तुम्हें बहुत इनाम दूँगा। तुम तब तक दरबार में ही रहो ।”

राजा निर्धन व्यक्ति की शिक्षाओं की परीक्षा करने लगा। पहली शिक्षा तो कुछ दिनों में ही सच हो गई । राजा शुद्ध घी खाकर और व्यायाम करके जल्दी ही स्वस्थ हो गया। अब दूसरी शिक्षा की बारी थी। राजा ने रात में सोना बंद कर दिया। वह वेश बदलकर राजधानी की गलियों में घूमने लगा। एक रात उसे एक स्त्री के रोने की आवाज सुनाई दी। वह उस स्त्री के पास गया और पूछा, “तुम कौन हो और किस दुख के कारण रो रही हो ?”

स्त्री ने उत्तर दिया, “मैं इस नगर की देवी हूँ। कल आधी रात के समय इस राज्य का राजा मर जाएगा । मेरे दुख का यही कारण है।”

राजा ने नगर-देवी के समक्ष हाथ जोड़ते हुए कहा, “देवी, मैं ही इस राज्य का राजा हूँ, आप मुझे बताइए कि मेरे प्राण किस प्रकार बच सकते हैं ?”

देवी बोली, “राजन्‌! काल एक नाग के रूप में तुम्हें डसने आएगा। तुम अपने महल के दक्षिणी द्वार पर दो तालाब खुदवा लो। उनमें से एक तालाब में दूध भरवा दो और दूसरे में गन्ने का रस। उसके बाद रात होते ही उन तालाबों के पास बैठकर भगवान का भजन करने लगो ।”

इतना कहकर देवी अंतर्ध्यान हो गई। राजा महल में लौट आया। उसने सुबह होते ही तालाब खुदवा लिए और उनमें दूध तथा गन्ने का रस भरवा दिया। शाम होते ही वह तालाबों के किनारे बैठ कर भजन करने लगा।

आधी रात के समय काल-देवता नाग का रूप लेकर राजा को डसने आया। उसे  पहले दूध का तालाब दिखाई दिया। उसने प्रसन्‍न होकर दूध पिया। उसके बाद उसे गन्ने के रस वाला तालाब दिखाई दिया। उसने मन भर कर गन्ने का रस भी पिया। इसके बाद काल-देवता वहीं सो गया। जब उसकी आंखें खुलीं तो सुबह होने वाली थी। वह राजा पर बहुत प्रसन हो गया। उसने राजा से कहा, “मैं रात को तुम्हें डसने आया था किंतु अब तुम्हारी मृत्यु नहीं होगी । मैं तुम पर बहुत प्रसन्‍न हूँ। तुम मुझसे मनचाहा वर माँगो !”

राजा ने काल-देवता को प्रणाम करके कहा, “हे देव, मुझे आप पशु-पक्षियों और कीट-पतंगों की बोली समझने का वरदान दीजिए ।”

काल-देवता ने कहा, “ऐसा ही होगा, किंतु एक शर्त है--यदि तुम किसी से इस रहस्य को कहोगे तो तुम्हारी मृत्यु हो जाएगी।” इसके बाद काल-देवता चला गया।

राजा ने निर्धन व्यक्ति की दूसरी शिक्षा की भी परीक्षा कर ली थी। अब तीसरी शिक्षा की बारी थी।

एक दिन राजा और रानी खाना खा रहे थे। अचानक राजा की थाली से चावल का एक दाना नीचे गिर गया। कुछ देर बाद एक चींटी और एक मक्खी आ गए तथा दाना लेने के लिए झगड़ने लगे। चींटी बोली, “हे मक्खी, तुम तो पंखवाली हो। उड़कर किसी दूसरी जगह भी जा सकती हो । यह दाना मुझे खाने दो ।”

मक्खी ने कहा, “मैं नहीं जाऊंगी। यह दाना मेरे हिस्से में आया है। मैं इसे अवश्य लूँगी। तुम कहीं और चली जाओ ।”

चींटी और मक्खी के वार्तालाप को सुनकर राजा को बहुत जोर से हँसी आ गई। उसने चावल के उस दाने के पास ही एक दूसरा दाना गिरा दिया। चींटी और मक्खी एक-एक दाना लेकर चली गई। राजा हँसते हुए भोजन करने लगा।

रानी ने राजा से कहा, “हे राजा, आप चींटी और मक्खी को देखकर इतनी जोर से क्यों हँसे ? फिर आपने थाली से चावल का दूसरा दाना क्यों गिराया ? क्या आप उनकी बोली समझते हैं ? मुझे यह रहस्य बताइए ।”

यदि राजा, रानी को रहस्य बताता तो उसकी मृत्यु हो जाती। अतः वह कुछ नहीं बोला। उसे चुप देखकर रानी नाराज हो गई । उसने राजा से रहस्य बताने के लिए फिर कहा । तब राजा बोला, “रानी, सारी बातें बताने योग्य नहीं होतीं। मैं तुम्हें यह रहस्य नहीं बता सकता ।”

रानी इस उत्तर से संतुष्ट नहीं हुईं। उसका क्रोध और भी बढ़ गया। वह बिना कुछ कहे नदी में डूबने के लिए चल दी। राजा अपनी रानी को बहुत प्रेम करता था। वह भी उसके पीछे-पीछे चल दिया। जब दोनों नदी के किनारे पहुँचे तो दूसरे किनारे पर एक लोमड़ अपनी पत्नी लोमड़ी को मार रहा था और कहता जा रहा था, “क्या तुम समझती हो कि तुम जो भी कहोगी, मैं वही करूँगा ? क्‍या तुमने मुझे इस देश का राजा समझा है जो अपनी रानी के मोह में अंधा होकर उसके पीछे-पीछे चला आ रहा है। यदि उसका यही हाल रहा तो एक दिन वह अवश्य ही मर जाएगा।”

यह सुनकर राजा की आंखें खुल गईं। वह रानी को नदी तट पर ही छोड़कर राजमहल लौट आया। जब रानी ने देखा कि राजा भी उस पर गुस्सा हो गया है और वह उसे नहीं मनाएगा तो वह भी लौट आई।

राजा ने उस निर्धन व्यक्ति को दरबार में बुलाया और कहा, “तुम्हारी तीनों शिक्षाएं सही हैं। अब मैं तुम्हें इनाम दूंगा ।”

राजा ने निर्धन व्यक्ति को बहुत-सा धन दिया। वह निर्धन व्यक्ति धनी होकर अपने गाँव लौट आया।
 

*सदैव प्रसन्न रहिये!!*
*जो प्राप्त है-पर्याप्त है!!*
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