अट्ठारह पुराण

💐💐 अट्ठारह पुराण 💐आज हम सभी अट्ठारह पुराणों के कुछ पहलुओं को संक्षिप्त में समझने की कोशिश करेंगे,  पुराण शब्द का अर्थ ही है प्राचीन कथा, पुराण विश्व साहित्य के सबसे प्राचीन ग्रँथ हैं, उन में लिखित ज्ञान और नैतिकता की बातें आज भी प्रासंगिक, अमूल्य तथा मानव सभ्यता की आधारशिला हैं, वेदों की भाषा तथा शैली कठिन है, पुराण उसी ज्ञान के सहज तथा रोचक संस्करण हैं। 

उन में जटिल तथ्यों को कथाओं के माध्यम से समझाया गया है, पुराणों का विषय नैतिकता, विचार, भूगोल, खगोल, राजनीति, संस्कृति, सामाजिक परम्परायें, विज्ञान तथा अन्य बहुत से विषय हैं, विशेष तथ्य यह है कि पुराणों में देवी-देवताओं, राजाओं, और ऋषि-मुनियों के साथ साथ जन साधारण की कथाओं का भी उल्लेख किया गया हैं,  जिस से पौराणिक काल के सभी पहलूओं का चित्रण मिलता है।

महृर्षि वेदव्यासजी ने अट्ठारह पुराणों का संस्कृत भाषा में संकलन किया है, ब्रह्मदेव,श्री हरि विष्णु भगवान् तथा भगवान् महेश्वर उन पुराणों के मुख्य देव हैं, त्रिमूर्ति के प्रत्येक भगवान स्वरूप को छः पुराण समर्पित किये गये हैं,  इन अट्ठारह पुराणों के अतिरिक्त सोलह उप-पुराण भी हैं, किन्तु विषय को सीमित रखने के लिये केवल मुख्य पुराणों का संक्षिप्त परिचय ही दे रहा हूंँ।

ब्रह्म पुराण सब से प्राचीन है, इस पुराण में दो सौ छियालीस अध्याय  तथा चौदह हजार श्र्लोक हैं, इस ग्रंथ में ब्रह्माजी की महानता के अतिरिक्त सृष्टि की उत्पत्ति, गंगा अवतरण तथा रामायण और कृष्णावतार की कथायें भी संकलित हैं, इस ग्रंथ से सृष्टि की उत्पत्ति से लेकर सिन्धु घाटी सभ्यता तक की कुछ ना कुछ जानकारी प्राप्त की जा सकती है।

दूसरा हैं पद्म पुराण, जिसमें हैं पचपन हजार श्र्लोक और यह ग्रन्थ पाँच खण्डों में विभाजित किया गया है, जिनके नाम सृष्टिखण्ड, स्वर्गखण्ड, उत्तरखण्ड, भूमिखण्ड तथा पातालखण्ड हैं, इस ग्रंथ में पृथ्वी आकाश, तथा नक्षत्रों की उत्पति के बारे में विस्तार से उल्लेख किया गया है, चार प्रकार से जीवों की उत्पत्ति होती है जिन्हें उदिभज, स्वेदज, अणडज तथा जरायुज की श्रेणी में रखा गया है, यह वर्गीकरण पूर्णतया वैज्ञानिक आधार पर है। 

भारत के सभी पर्वतों तथा नदियों के बारे में भी विस्तार से वर्णन है, इस पुराण में शकुन्तला दुष्यन्त से ले कर भगवान राम तक के कई पूर्वजों का इतिहास है, शकुन्तला दुष्यन्त के पुत्र भरत के नाम से हमारे देश का नाम जम्बूदीप से भरतखण्ड और उस के बाद भारत पडा था, यह पद्म पुराण हम सभी भाई-बहनों को पढ़ना चाहियें, क्योंकि इस पुराण में हमारे भूगौलिक और आध्यात्मिक वातावरण का विस्तृत वर्णन मिलता है।

तिसरा पुराण हैं विष्णु पुराण, जिसमें छः अँश तथा तेइस हजार श्र्लोक हैं, इस ग्रंथ में भगवान् श्री विष्णुजी, बालक ध्रुवजी, तथा कृष्णावतार की कथायें संकलित हैं, इस के अतिरिक्त सम्राट पृथुजी की कथा भी शामिल है, जिसके कारण हमारी धरती का नाम पृथ्वी पडा था, इस पुराण में सू्र्यवँशीयों तथा चन्द्रवँशीयों राजाओं का सम्पूर्ण इतिहास है। 

उत्तरं यत्समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्।
वर्षं तद भारतं नाम भारती यत्र सन्ततिः।।

भारत की राष्ट्रीय पहचान सदियों पुरानी है, जिसका प्रमाण विष्णु पुराण के इस श्लोक में मिलता है, साधारण शब्दों में इस का अर्थ होता है कि वह भूगौलिक क्षेत्र जो उत्तर में हिमालय तथा दक्षिण में सागर से जो घिरा हुआ है, यही भारत देश है तथा उस में निवास करने वाले हम सभी जन भारत देश की ही संतान हैं, भारत देश और भारत वासियों की इस से स्पष्ट पहचान और क्या हो सकती है? विष्णु पुराण वास्तव में ऐक ऐतिहासिक ग्रंथ है।

चौथा पुराण हैं शिव पुराण जिसे आदर से शिव महापुराण भी कहते हैं, इस महापुराण में चौबीस हजार श्र्लोक हैं, तथा यह सात संहिताओं में विभाजित है, इस ग्रंथ में भगवान् शिवजी की महानता तथा उन से सम्बन्धित घटनाओं को दर्शाया गया है, इस ग्रंथ को वायु पुराण भी कहते हैं, इसमें कैलास पर्वत, शिवलिंग तथा रुद्राक्ष का वर्णन और महत्व विस्तार से दर्शाया गया है।

सप्ताह के सातों दिनों के नामों की रचना, प्रजापतियों का वर्णन तथा काम पर विजय पाने के सम्बन्ध में विस्तार से वर्णन किया गया है, सप्ताह के दिनों के नाम हमारे सौर मण्डल के ग्रहों पर आधारित हैं, और आज भी लगभग समस्त विश्व में प्रयोग किये जाते हैं, भगवान् शिवजी के भक्तों को श्रद्धा और भक्ति से शिवमहापुराण का नियमित पाठ करना चाहिये, भगवान् शंकरजी बहुत दयालु और भोले है, जो भी इस शीव पुराण को भाव से पढ़ता है उसका कल्याण निश्चित हैं। 

पाँचवा है भागवत पुराण, जिसमें अट्ठारह हजार श्र्लोक हैं, तथा बारह  स्कंध हैं, इस ग्रंथ में अध्यात्मिक विषयों पर वार्तालाप है, भागवत् पुराण में भक्ति, ज्ञान तथा वैराग्य की महानता को दर्शाया गया है, भगवान्  विष्णुजी और भगवान् गोविन्द के अवतार की कथाओं को विसतार से दर्शाया गया हैं,  इसके अतिरिक्त महाभारत काल से पूर्व के कई राजाओं, ऋषि मुनियों तथा असुरों की कथायें भी संकलित हैं। 

इस ग्रंथ में महाभारत युद्ध के पश्चात श्रीकृष्ण का देहत्याग, दूारिका नगरी के जलमग्न होने और यादव वँशियों के नाश तक का विवर्ण भी दिया गया है।

नारद पुराण छठा पुराण हैं जो पच्चीस हजार श्र्लोकों से अलंकृत है, तथा इस के भी भी दो भाग हैं, दोनों भागो में सभी अट्ठारह पुराणों का सार दिया गया है, प्रथम भाग में मन्त्र तथा मृत्यु पश्चात के क्रम और विधान हैं, गंगा अवतरण की कथा भी विस्तार पूर्वक बतायी गयी है, दूसरे भाग में संगीत के सातों स्वरों, सप्तक के मन्द्र, मध्य तथा तार स्थानों, मूर्छनाओं, शुद्ध एवम् कूट तानो और स्वरमण्डल का ज्ञान लिखित है। 

संगीत पद्धति का यह ज्ञान आज भी भारतीय संगीत का आधार है, जो पाश्चात्य संगीत की चकाचौंध से चकित हो जाते हैं, उनके लिये उल्लेखनीय तथ्य यह है कि नारद पुराण के कई शताब्दी पश्चात तक भी पाश्चात्य संगीत में केवल पाँच स्वर होते थे, तथा संगीत की थ्योरी का विकास शून्य के बराबर था, मूर्छनाओं के आधार पर ही पाश्चात्य संगीत के स्केल बने हैं, सभी संगीत के प्रेमी, जो संगीत को ही अपना केरियर समझ लिया हो, या संगीत और अध्यात्म को साथ में देखने वाले ब्रह्म पुरूष को नारद पुराण को जरूर पढ़ना चाहियें।

साँतवा है मार्कण्डेय पुराण, जो अन्य पुराणों की अपेक्षा सबसे छोटा पुराण है, मार्कण्डेय पुराण में नौ हजार श्र्लोक हैं तथा एक सो सडतीस अध्याय हैं, इस ग्रंथ में सामाजिक न्याय और योग के विषय में ऋषिमार्कण्डेयजी तथा ऋषि जैमिनिजी के मध्य वार्तालाप है; इस के अतिरिक्त भगवती दुर्गाजी तथा भगवान् श्रीक़ृष्ण से जुड़ी हुयी कथायें भी संकलित हैं, सभी ब्रह्म समाज को यह पुराण पढ़नी चाहिये, कम से कम मार्कण्डेयजी ऋषि के वंशज इस पुराण को थोड़ा-थोड़ा करके पढ़ने की कोशिश करनी चाहिये, मार्कण्डेय पुराण के अध्ययन से आध्यात्मिक अक्षय सुख की प्राप्ति होती है।

आठवाँ है अग्नि पुराण, अग्नि पुराण में तीन सौ तैयासी अध्याय तथा पन्द्रह हजार श्र्लोक हैं, इस पुराण को भारतीय संस्कृति का ज्ञानकोष या आज की भाषा में विकीपीडिया कह सकते है, इस ग्रंथ में भगवान् मत्स्यावतार का अवतार लेकर पधारें थे, उसका वर्णन है,  रामायण तथा महाभारत काल की संक्षिप्त कथायें भी संकलित हैं, इसके अतिरिक्त कई विषयों पर वार्तालाप है जिन में धनुर्वेद, गान्धर्व वेद तथा आयुर्वेद मुख्य हैं, धनुर्वेद, गान्धर्व वेद तथा आयुर्वेद को उप-वेद भी कहा जाता है।

नवमा है भविष्य पुराण, भविष्य पुराण में एक सौ उनतीस अध्याय तथा अट्ठाईस श्र्लोक हैं, इस ग्रंथ में सूर्य देवता का महत्व, वर्ष के बारह महीनों का निर्माण, भारत के सामाजिक, धार्मिक तथा शैक्षिक विधानों और भी कई विषयों पर वार्तालाप है, इस पुराण में साँपों की पहचान, विष तथा विषदंश सम्बन्धी महत्वपूर्ण जानकारी भी दी गयी है, इस भविष्य पुराण की कई कथायें बाईबल की कथाओं से भी मेल खाती हैं, भविष्य पुराण में पुराने राजवँशों के अतिरिक्त भविष्य में आने वाले  नन्द वँश, मौर्य वँशों का भी वर्णन है।

इस के अतिरिक्त विक्रम बेताल तथा बेताल पच्चीसी की कथाओं का विवरण भी है, भगवान् श्रीसत्य नारायण की कथा भी इसी पुराण से ली गयी है, यह भविष्य पुराण भारतीय इतिहास का महत्वशाली स्त्रोत्र है, जिस पर शोध कार्य करना चाहिये, और इसके उपदेश हर आज के क्षात्र-क्षात्राओं को पढ़ाना चाहिये, और प्रथम क्लास से ही, शिक्षा से जुड़े समस्त अध्यापक एवम् अध्यापिका को इस भविष्य पुराण नामक पुराण को अवश्य पढ़ना चाहियें, ताकि आपकी समझ बढे, और समाज में अध्यात्म जागृति लायें।

दसवाँ है ब्रह्मावैवर्ता पुराण, जो अट्ठारह हजार  श्र्लोकों से अलंकृत है,  तथा दो सौ अट्ठारह अध्याय हैं, इस ग्रंथ में ब्रह्माजी, गणेशजी, तुल्सी भाता, सावित्री माता, लक्ष्मी माता, सरस्वती माता तथा भगवान् श्रीकृष्ण की महानता को दर्शाया गया है, तथा उन से जुड़ी हुयी कथायें संकलित हैं, इस पुराण में आयुर्वेद सम्बन्धी ज्ञान भी संकलित है, जो आयुर्वेद और भारतीय परम्परा में निरोगी काया के विषय पर गंभीर है, उसे यह ब्रह्मावैवर्ता पुराण आपका पथ प्रदर्शक बनेगा।

अगला ग्यारहवा है लिंग पुराण, इस पावन लिंग पुराण में ग्यारह हजार  श्र्लोक और एक सौ तरसठ अध्याय हैं, सृष्टि की उत्पत्ति तथा खगौलिक काल में युग, कल्प की तालिका का वर्णन है, भगवान् सूर्यदेव के सूर्य  के वंशजों में राजा अम्बरीषजी हुयें, रामजी इन्हीं राजा अम्बरीषजी के कूल में मानव अवतार हुआ था, राजा अम्बरीषजी की कथा भी इसी पुराण में लिखित है, इस ग्रंथ में अघोर मंत्रों तथा अघोर विद्या के सम्बन्ध में भी उल्लेख किया गया है।

बाहरवां पुराण हैं वराह पुराण, वराह पुराण में दो सौ सत्रह स्कन्ध तथा दस हजार श्र्लोक हैं, इस ग्रंथ में भगवान् श्री हरि के वराह अवतार की कथा, तथा इसके अतिरिक्त भागवत् गीता महात्म्य का भी विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है, इस पुराण में सृष्टि के विकास, स्वर्ग, पाताल तथा अन्य लोकों का वर्णन भी दिया गया है, श्राद्ध पद्धति, सूर्य के उत्तरायण तथा दक्षिणायन विचरने, अमावस और पूर्णमासी के कारणों का वर्णन है। 

महत्व की बात यह है कि जो भूगौलिक और खगौलिक तथ्य इस पुराण में संकलित हैं वही तथ्य पाश्चात्य जगत के वैज्ञिानिकों को पंद्रहवी शताब्दी के बाद ही पता चले थे, सभी सनातन धर्म को मानने वाले भाई-बहनों को यह वराह पुराण को अवश्य पढ़ना चाहियें, जो भक्त अपने जीवन में जीते जी स्वर्ग की कल्पना करता है, उसके लिये वराह पुराण अतुल्य है, इसमें स्वर्ग-नरक का भगवान् श्री वेदव्यासजी ने बखूबी वर्णन किया है। 

तेहरवां पुराण हैं सकन्द पुराण, सकन्द पुराण सब से विशाल पुराण है, तथा इस पुराण में अक्यासी हजार  श्र्लोक और छः खण्ड हैं, सकन्द पुराण में प्राचीन भारत का भूगौलिक वर्णन है, जिस में सत्ताईस  नक्षत्रों, अट्ठारह नदियों, अरुणाचल प्रदेश का सौंदर्य, भारत में स्थित भगवान् भोलेनाथ के बारह ज्योतिर्लिंगों, तथा गंगा अवतरण के आख्यान शामिल हैं, इसी पुराण में स्याहाद्री पर्वत श्रंखला तथा कन्या कुमारी मन्दिर का उल्लेख भी किया गया है, इसी पुराण में सोमदेव, तारा तथा उन के पुत्र बुद्ध ग्रह की उत्पत्ति की अलंकारमयी कथा भी है।

चौदहवां पुराण है वामन पुराण, वामन पुराण में निन्यानवें अध्याय तथा दस हजार श्र्लोक हैं, एवम् दो खण्ड हैं, इस पुराण का केवल प्रथम खण्ड ही उप्लब्द्ध है,  इस पुराण में भगवान् के वामन अवतार की कथा विस्तार से कही गयी हैं, जो भरूचकच्छ (गुजरात) में हुआ था, इस के अतिरिक्त इस ग्रंथ में भी सृष्टि, जम्बूदूीप तथा अन्य सात दूीपों की उत्पत्ति, पृथ्वी की भूगौलिक स्थिति, महत्वशाली पर्वतों, नदियों तथा भारत के खण्डों का जिक्र है।

पन्द्रहवां पुराण है कुर्मा पुराण, कुर्मा पुराण में अट्ठारह हजार श्र्लोक तथा चार खण्ड हैं, इस पुराण में चारों वेदों का सार संक्षिप्त रूप में दिया गया है, कुर्मा पुराण में कुर्मा अवतार से सम्बन्धित सागर मंथन की कथा  विस्तार पूर्वक लिखी गयी है, इस में ब्रह्माजी, शिवजी, विष्णुजी, पृथ्वी माता, गंगा मैया की उत्पत्ति, चारों युगों के बारे में सटीक जानकारी, मानव जीवन के चार आश्रम धर्मों, तथा चन्द्रवँशी राजाओं के बारे में भी विस्तार से वर्णन है।

सोलहवां पुराण है मतस्य पुराण, मतस्य पुराण में दो सौ नब्बे अध्याय तथा चौदह हजार  श्र्लोक हैं, इस ग्रंथ में मतस्य अवतार की कथा का विस्तरित उल्लेख किया गया है, सृष्टि की उत्पत्ति और हमारे सौर मण्डल के सभी ग्रहों, चारों युगों तथा चन्द्रवँशी राजाओं का इतिहास वर्णित है, कच, देवयानी, शर्मिष्ठा तथा राजा ययाति की रोचक कथा भी इसी मतस्य पुराण में है, सामाजिक विषयों के जानकारी के इच्छुक भाई-बहनों को मतस्य पुराण को जरूर पढ़ना चाहियें।

सत्रहवां पुराण है गरुड़ पुराण,  गरुड़ पुराण में दो सौ उनअस्सी  अध्याय तथा अट्ठारह हजार श्र्लोक हैं; इस ग्रंथ में मृत्यु पश्चात की घटनाओं, प्रेत लोक, यम लोक, नरक तथा चौरासी लाख योनियों के नरक स्वरुपी जीवन के बारे में विस्तार से बताया गया है, इस पुराण में कई सूर्यवँशी तथा चन्द्रवँशी राजाओं का वर्णन भी है, साधारण लोग इस ग्रंथ को पढ़ने से हिचकिचाते हैं, क्योंकि? इस ग्रंथ को किसी सम्वन्धी या परिचित की मृत्यु होने के पश्चात ही पढ़वाया जाता है। 

वास्तव में इस पुराण में मृत्यु पश्चात पुनर्जन्म होने पर गर्भ में स्थित भ्रूण की वैज्ञानिक अवस्था सांकेतिक रूप से बखान की गयी है, जिसे वैतरणी नदी की संज्ञा दी गयी है, उस समय तक भ्रूण के विकास के बारे में कोई भी वैज्ञानिक जानकारी नहीं थी, तब हमारे इसी गरूड पुराण ने विज्ञान और वैज्ञानिकों को दिशा दी, इस पुराण को पढ़ कर कोई भी मानव नरक में जाने से बच सकता है।

अट्ठारहवां और अंतिम पुराण हैं ब्रह्माण्ड पुराण, ब्रह्माण्ड पुराण में बारह हजार श्र्लोक तथा पू्र्व, मध्य और उत्तर तीन भाग हैं, मान्यता है कि अध्यात्म रामायण पहले ब्रह्माण्ड पुराण का ही एक अंश थी जो अभी एक प्रथक ग्रंथ है, इस पुराण में ब्रह्माण्ड में स्थित ग्रहों के बारे में विस्तार से वर्णन किया गया है, कई सूर्यवँशी तथा चन्द्रवँशी राजाओं का इतिहास भी संकलित है, सृष्टि की उत्पत्ति के समय से ले कर अभी तक सात मनोवन्तर (काल) बीत चुके हैं जिन का विस्तरित वर्णन इस ग्रंथ में किया गया है। 

भगवान् श्री परशुरामजी की कथा भी इस पुराण में दी गयी है, इस ग्रँथ को विश्व का प्रथम खगोल शास्त्र कह सकते है, भारत के ऋषि इस पुराण के ज्ञान को पूरे ब्रह्माण्ड तक ले कर गये थे, जिसके प्रमाण हमें मिलते रहे है, हिन्दू पौराणिक इतिहास की तरह अन्य देशों में भी महामानवों, दैत्यों, देवों, राजाओं तथा साधारण नागरिकों की कथायें प्रचिलित हैं, कईयों के नाम उच्चारण तथा भाषाओं की विभिन्नता के कारण बिगड़ भी चुके हैं जैसे कि हरिकुल ईश से हरकुलिस, कश्यप सागर से केस्पियन सी, तथा शम्भूसिहं से शिन बू सिन आदि बन गये। 

तक्षक के नाम से तक्षशिला और तक्षकखण्ड से ताशकन्द बन गये, यह विवरण अवश्य ही किसी ना किसी ऐतिहासिक घटना कई ओर संकेत करते हैं, प्राचीन काल में इतिहास, आख्यान, संहिता तथा पुराण को ऐक ही अर्थ में प्रयोग किया जाता था, इतिहास लिखने का कोई रिवाज नहीं था,  राजाओ नें कल्पना शक्तियों से भी अपनी वंशावलियों को सूर्य और चन्द्र वंशों से जोडा है, इस कारण पौराणिक कथायें इतिहास, साहित्य तथा दंत कथाओं का मिश्रण हैं।

रामायण, महाभारत तथा पुराण हमारे प्राचीन इतिहास के बहुमूल्य स्त्रोत्र हैं, जिनको केवल साहित्य समझ कर अछूता छोड़ दिया गया है, इतिहास की विक्षप्त श्रंखलाओं को पुनः जोड़ने के लिये हमें पुराणों तथा महाकाव्यों पर शोध करना होगा, पढ़े-लिखे आज की युवा पीढ़ी को यह आव्हान है, जो छुट गया उसे जाने दो, जो अध्यात्म विरासत बची है, उसे समझने की कोशिश करों, पुराणों में अंकीत उपदेशों को अपने जीवन में आत्मसात करें।

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