यदि कुंडली मे सूर्य बली होतो जातक
यदि कुंडली मे सूर्य बली होतो जातक सामान्य कद काठी वाला,प्रभावी,सात्विक,सम्मानित परंतु चिड़चिड़े स्वभाव का होता हैं।
यदि चन्द्र बली होतो जातक मीठा बोलने वाला,वात स्वभाव का रजोगुणी होता हैं।
मंगल बली होतो साहसी,लड़ाकू,अस्थिर मानसिकता वाला,लाल आँखों वाला तमोगुणी होता हैं।
बुध बली होतो जातक मनोहर रंग रूप वाला,बातुनी,बुद्दिमान,अच्छी याददाश्त वाला,पढ़ा लिखा व ज्योतिष से प्रेम करने वाला किन्तु तमोगुणी होता हैं।
गुरु बली होतो जातक धार्मिक विचारो वाला,सदाचारी,वेदपाठी,पढ़ा लिखा व अच्छे चरित्रवाला सदगुणी होता हैं।
शुक्र बली होतो जातक सांसारिक वस्तुओ व सांसारिक कलाओ की चाह रखने वाला,शौकीन मिजाज व रजोगुणी होता हैं।
शनि बली होने पर जातक पतला,आलसी,क्रूर,खराब दाँतो वाला,रूखा,जिद्दी,निष्ठुर,तमोगुणी होता हैं।
सूर्य व मंगल के प्रभाव मे होने पर जातक बात करते समय ऊपर की और देखता हैं।
शुक्र व बुध के प्रभाव मे जातक बात करते समय इधर उधर देखता हैं।
गुरु व चन्द्र के प्रभाव मे होने पर जातक साधारण दृस्टी से देखने वाला होता हैं।
शनि राहू केतू की प्रभाव मे होने पर जातक आधी आँखें खोलकर अपनी बाते करते हैं।
लग्नेश सिद्धान्त : किसी भी कुंडली की मजबूती के लिए लग्न स्वामी अथवा लग्नेश का मजबूत होना ज़रूरी होता हैं लग्नेश का 3, 6, 8, 12 भावो मे होना अशुभ माना जाता हैं क्यूंकी यह भाव हमेशा अशुभता प्रदान करते हैं लग्नेश भले ही पाप ग्रह हो उसका इन अशुभ भावो मे होना अशुभ ही होता हैं जबकि पाप ग्रहो का इन भावो मे होना शुभ माना जाता हैं लग्नेश का किसी भी प्रकार से 3, 6, 8, 12 भावो से अथवा उनके स्वामियों से संबंध अशुभ ही होता हैं।
केंद्र-त्रिकोण भाव सिद्धांत : त्रिकोण व केंद्र स्वामियों की युति राजयोग बनती हैं दसवा भाव मजबूत केंद्र व नवा भाव मजबूत त्रिकोण होता हैं यदि नवमेश व दसमेश मे किसी भी प्रकार का संबंध हो, परिवर्तन तो यह एक बड़ा राजयोग होता हैं और यदि यह युति नवम या दसम भाव मे होतो बहुत ही शुभ फल मिलता हैं। शुभ ग्रहो को समान्यत: त्रिकोण भाव का स्वामी होकर केन्द्रीय भावो मे होना चाहिए जबकि अशुभ ग्रहो को केंद्र का स्वामी होकर त्रिकोण मे होना चाहिए। 3 ,6, 8, 12 भावो के स्वामी कमजोर होने चाहिए और 2, 4, 5, 7, 9, 10, 11 भावो के स्वामी बली होने चाहिए। चन्द्र गुरु व शुक्र केंद्र स्वामी होकर शुभ फल नहीं देते। लग्न जो पूर्व का प्रतिनिधित्व करता हैं उसमे बुध व गुरु दिग्बली होते हैं चतुर्थ भाव (उत्तर) मे शुक्र व चन्द्र,सप्तम भाव (पश्चिम) मे शनि तथा दसम भाव (दक्षिण) मे सूर्य व मंगल बली होते हैं।
भाव सिद्धांत : ग्रहो को लग्न से व अपने नियत भावो से 6, 8, 12 भावो मे नहीं होना चाहिए। ऊंच और नीच के ग्रह जब संग हो तो ज्यादा शक्तिशाली होते हैं जैसे शुक्र व बुध मीन राशि मे होतो बुध का नीचभंग हो जाएगा जो बुध व शुक्र दोनों के भावो के लिए शुभता प्रदान करेगा इसी प्रकार नीच ग्रह जिस राशि मे हो उसका स्वामी यदि ऊंच राशि मे होतो यह नीच ग्रह भी ताकतवर हो शुभ फल प्रदान करेगा।
अन्य महत्वपूर्ण सिद्धांत :
ग्रहो को अपनी मजबूती हेतु सही भावो मे होना चाहिए। लग्नेश का 12वे भाव मे होना व द्वादशेश का 10वे भाव मे होना जातक का जीवन गरीबी,अशांति व उपद्रव से भरा बताता हैं।
जो जातक रात मे जन्म लेते हैं उनके लिए चंद्र,मंगल व शनि तथा जो दिन मे जन्म लेते हैं उनके लिए सूर्य,गुरु व शुक्र बली होते हैं जबकि बुध दोनों हेतु बली होता हैं।
स्वग्रही ग्रह शुभता देते हैं मुलत्रिकोण मे स्थित ग्रह भी ऊंच ग्रह की तरह ही शुभ फल देते हैं केंद्र मे स्थित ग्रह लग्नानुसार शुभाशुभ फल देते हैं 2, 5, 8, 11 मे ग्रह अपना कम प्रभाव तथा 3, 6, 9, 12 मे बहुत कम प्रभाव देते हैं।
अंतर्दशा नाथ जब दशानाथ से 2, 4, 5, 9, 10, 11 भाव मे होतो शुभफल,यदि 3, 6, 8, 12 भाव मे होतो अशुभफल तथा 1-7 होने पर साधारण फल और एक दूसरे से 6/8 होने पर बहुत बुरा फल देते हैं।
शनि सूर्य से 6, शुक्र चन्द्र से 5, बुध मंगल से 12, गुरु बुध से 4, मंगल गुरु से 6, सूर्य गुरु से 12 वे भावो मे हो तो शत्रुता रखते हैं। शुक्र से शनि 4 तथा गुरु 12 होतो शत्रुता रखते हैं जबकि गुरु शनि से 6 होने पर शत्रुता रखता हैं।
चन्द्र से 6, 7, 8, भावो मे शुभ ग्रह का होना भी राजयोग प्रदान करता हैं और यदि यह तीनों ग्रह लग्नेश के मित्र भी होतो जातक को ऊंच सफलता मिलती हैं।
लग्नेश का पंचम मे होना पंचमेश का नवम मे होना तथा नवमेश का लग्न मे होना एक बहुत ही बड़ा राजयोग देता हैं। यदि पाप प्रभाव ना होतो 3, 6, 8, 12 भावो के स्वामियो की युति भी राजयोग देती हैं।
गुरु शुक्र युति राजाओ से मान सम्मान,अच्छी शिक्षा व बुद्दि तथा समाज मे बड़ा रुतबा देती हैं।
लग्न मे चन्द्र,गुरु छठे भाव मे,शुक्र दसवे भाव मे हो,शनि ऊंच अथवा स्वग्रही होतो जातक निर्विवाद रूप से राजा होता हैं।
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