शनि

शनि का नाम सुनकर ही जातक
भयभीत/चिंताग्रस्त हो जाते हैं, जबकि
ऐसा सोचना हमेशा सत्य नहीं होता.
शनि देव को भगवान शिव ने
न्यायाधीश का पद दिया है और उसका दायित्व शनिदेव
पूर्ण निष्ठा से व बिना किसी दुराग्रह के संपादित करते हैं.
साढ़ेसाती व ढैय्या के समय जरूर कष्ट प्रदान करते हैं परंतु पूर्ण
समय तक नहीं, उसमें भी प्रभाव मित्र राशि में है या शत्रु
राशि में तथा उन पर किसी शुभ ग्रह का प्रभाव है या अशुभ
ग्रह का, तदनुसार शुभ-अशुभ फल प्राप्त होते हैं. 

शनि से बनने वाले विभिन्न योगों का क्रमानुसार वर्णन इस प्रकार हैः
1. शशयोग: अगर शनि देव केंद्र स्थानों में स्वराशि का
होकर बैठे हां (मकर, कुंभ) तो यह योग बनता है. इस योग में
जन्म लेने वाला जातक नौकरों से अच्छी तरह काम लेता है,
किसी संस्थान समूह या कस्बे का प्रमुख और राजा होता है
एवं वह सब गुणों से युक्त सर्वसंपन्न होता है. 

2. राजयोग:
अगर वृष लग्न में चंद्रमा हो, दशम में शनि हो, चतुर्थ में सूर्य
तथा सप्तमेश गुरु हो तो यह योग बनता है. ऐसा जातक
सेनापति/पुलिस कप्तान या विभाग का प्रमुख होता है.

 
3. दीर्घ आयु योग: लग्नेश, अष्टमेश, दशमेश व शनि केंद्र त्रिकोण
या लाभ भाव में (11वां भाव) हो तो दीर्घ आयु योग
होता है. 

4. रवि योग: अगर सूर्य दशम भाव में हो और दशमेश
तीसरे भाव में शनि के साथ बैठा है तो यह योग बनता है. इस
योग में जन्म लेने वाला जातक उच्च विचारों वाला और
सामान्य आहार लेने वाला होता है. जातक सरकार से
लाभान्वित, विज्ञान से ओतप्रोत, कमल के समान आंखों व
भरी हुई छाती वाला होता है.

 
 5. पशुधन लाभ योग: यदि
चतुर्थ में शनि के साथ सूर्य तथा चंद्रमा नवम भाव में हो,
एकादश स्थान में मंगल हो तो गाय भैंस आदि पशु धन का
लाभ होता है. 

 
6. अपकीर्ति योग: अगर दशम में सूर्य व श्न
हो व अशुभ ग्रह युक्त या दृष्ट हो तो इस योग का निर्माण
होता है. इस प्रकार के जातक की ख्याति नहीं होती वरन्
वह कुख्यात होता है.

 7. बंधन योग: अगर लग्नेश और षष्टेश
केंद्र में बैठे हों और शनि या राहु से युति हो तो बंधन योग
बनता है. इसमें जातक को कारावास काटना पड़ता है. 

 
8.धन योग: लग्न से पंचम भाव में शनि अपनी स्वराशि में हो
और बुध व मंगल ग्यारहवें भाव में हों तो यह योग निर्मित
होता है. इस योग में जन्म लेने वाला जातक महाधनी होता
है. अगर लग्न में पांचवे घर में शुक्र की राशि हो तथा शुक्र
पांचवे या ग्यारहवें भाव में हो तो धन योग बनता है. ऐसा
जातक अथाह संपत्ति का मालिक होता है. 

 
9. जड़बुद्धि
योग: अगर पंचमेश अशुभ ग्रह से दृष्ट हो या युति करता हो,
शनि पंचम में हो तथा लग्नेश को शनि देखता हो तो इस
योग का निर्माण होता है. इस योग में जन्म लेने वाले
जातक की बुद्धि जड़ होती है. 

10. कुष्ठ योग: यदि मंगल या
बुध की राशि लग्न में हो अर्थात मेष, वृश्चिक, मिथुन, कन्या
लग्न में हो एवं लग्नेश चंद्रमा के साथ हो, इनके साथ राहु एवं
शनि भी हो तो कुष्ठ रोग होता है. षष्ठ स्थान में चंद्र,
शनि हो तो 55वें वर्ष में कुष्ठ की संभावना रहती है.

 
 11.वात रोग योग: यदि लग्न में एवं षष्ठ भाव में शनि हो तो 59
वर्ष में वात रोग होता है. जब बृहस्पति लग्न में हो व शनि
सातवें में हो तो यह योग बनता है. 

 
12. दुर्भाग्य योग: (क)
यदि नवम में शनि व चंद्रमा हो, लग्नेश नीच राशि में गया हो
तो मनुष्य भीख मांग कर गुजारा करता है. (ख) यदि पंचम
भाव में तथा पंचमेश या भाग्येश अष्टम में नीच राशिगत हो
तो मनुष्य भाग्यहीन होता है. 

13. पापकर्म से धनार्जन
योग: यदि द्वादश भाव में शनि-राहु के साथ मंगल हो तथा
शुभ ग्रह की दृष्टि नहीं हो तो पाप कार्यों से धन लाभ
होता है.

14. अंगहीन योग: दशम में चंद्रमा हो सप्तम में मंगल
हो सूर्य से दूसरे भाव में शनि हो तो यही योग बनता है. इस
योग में जातक अंगहीन हो जाता है. 

 
15. सदैव रोगी योग:
यदि षष्ठभाव तथा षष्ठेश दोनों ही पापयुक्त हां और शनि
राहु साथ हों तो सदैव रोगी होता है. 

16. मतिभ्रम योग:
शनि लग्न में हो मंगल नवम पंचम या सप्तम में हो, चंद्रमा शनि
के साथ बारहवं भाव में हों एवं चंद्रमा कमजोर हो तो यह
योग बनता है. 

17. बहुपुत्र योग: अगर नवांश में राहु पंचम भाव
में हो व शनि से संयुक्त हो तो इस योग का निर्माण होता
है. इस योग में जन्म लेने वाले जातक के बहुत से पुत्र होते हैं. 

18.
युद्धमरण योग: यदि मंगल छठे या आठवें भाव का स्वामी
होकर छठे, आठवें या बारहवें भाव में शनि या राहु से युति करे
तो जातक की युद्ध में मृत्यु होती है. 

19. नरक योग: यदि
12वें भाव में शनि, मंगल, सूर्य, राहु हो तथा व्ययेश अस्त हो
तो मनुष्य नरक में जाता है और पुनर्जन्म लेकर कष्ट भोगता है.

20. सर्प योग: यदि तीन पापग्रह शनि, मंगल, सूर्य कर्क,
तुला, मकर राशि में हो या लगातार तीन केंद्रों में हो तो
सर्पयोग होता है. यह एक अशुभ योग है.

21. दत्तक पुत्र योग:
शनि-मंगल यदि पांचवें भाव में हों तथा सप्तमेश 11वें भाव में
हो, पंचमेश शुभ हो तो यह योग बनता है. 
नवम भाव में चर
राशि में शनि से दृष्ट हो, द्वादशेश बलवान हो, तो जातक
गोद जायेगा. 
यदि पांचवें भाव में ग्रह हो तथा पंचमेश व्यय
स्थान में हो, लग्नेश व चंद्र बली हो तो जातक को गोद
लिया पुत्र होगा.

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