रावणकृत शिव तांडव स्त्रोत

जय श्रीराम ।।

           रावणकृत शिव तांडव स्त्रोत
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शिव तांडव स्तोत्र को रावण तांडव स्तोत्र के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि इस स्तोत्र का रचना रावण द्वारा की गई है। इस स्तोत्र में रावण ने 17 श्लोंको से भगवान शिव की स्तुति गाई है। जब एक बार अहंकारवश रावण नें कैलाश को उठाने का प्रयत्न किया तो भगवान शिव ने अपने अंगूठे से पर्वत को दबाकर स्थिर कर दिया। जिससे रावण का हाथ पर्वत के नीचे दब गया। तब पीड़ा में रावण ने भगवान शिव की स्तुति की। रावण द्वारा गाई गई, यही स्तुति शिव तांडव स्तोत्र के नाम से जानी जाती है।

भोलेनाथ की स्तुति में 1008 छंदों की रचना कर डाली, जिसे अब शिव तांडव स्तोत्र के नाम से जाना जाता है। रावण की भक्ति से शिव जी अति प्रसन्न हुए और आशीर्वाद देते है। "

 शिव तांडव स्तोत्र का पाठ अन्य किसी भी पाठ की तुलना में भगवान शिव को अधिक प्रिय है। यह पाठ करने से भगवान शिव बहुत ही जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं। यह स्तोत्र बहुत चमत्कारिक माना जाता है। तो चलिए जानते हैं शिव तांडव स्तोत्र के फायदे और पाठ करने की विधि...

1-जो मनुष्य शिवतांडव स्तोत्र द्वारा भगवान शिव की स्तुति करता है, उससे भगवान शिव प्रसन्न होते हैं। नियमित रूप से शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करने से कभी भी धन-सम्पति की कमी नहीं होती है।

2-शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करने से साधक को साथ ही उत्कृष्ट व्यक्तित्व की प्राप्ति होती है। 
यह पाठ करने से व्यक्ति का चेहरा तेजमय होता है, आत्मबल मजबूत होता है। 
 
3-शिवतांडव स्तोत्र का पाठ करने से मन की कामना पूर्ण हो जाती है। 
माना जाता है कि प्रतिदिन शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करने से वाणी की सिद्धि भी प्राप्त की जा सकती है। 

4-भगवान शिव नृत्य, चित्रकला, लेखन, योग, ध्यान, समाधी आदि सिद्धियों को प्रदान करने वाले हैं, इसलिए शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करने से इन सभी विषयों में सफलता प्राप्त होती है। 

5-शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करने से शनि दोष को कुप्रभावों से भी छुटकारा मिलता है। 

6-जिन लोगों की कुण्डली में सर्प योग, कालसर्प योग या पितृ दोष लगा हुआ हो। उन्हें भी शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। 
शिव तांडव स्तोत्र की विधि-

1-शिव तांडव स्तोत्र का पाठ प्रातः काल या प्रदोष काल करना चाहिए। 
सबसे पहले स्नानादि करने के पश्चात स्वच्छ वस्त्र धारण करें।

 शिव जी को प्रणाम करें और धूप, दीप और नैवेद्य से उनका पूजन करें।
रावण ने पीड़ा के कारण इस स्तोत्र को बहुत तेज स्वर में गाया था। इसलिए गाकर शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करें। 

यह पाठ बहुत ऊर्जावान और शक्तिशाली माना गया है। परंतु यह पाठ करते समय किसी के प्रति अपने मन में किसी प्रकार की दुर्भावना न रखे ।

जटाटवीगलज्जल प्रवाहपावितस्थले
गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजंगतुंगमालिकाम्‌।
डमड्डमड्डमड्डमनिनादवड्डमर्वयं
चकार चंडतांडवं तनोतु नः शिवः शिवम ॥1॥

जटा कटा हसंभ्रम भ्रमन्निलिंपनिर्झरी ।
विलोलवी चिवल्लरी विराजमानमूर्धनि ।
धगद्धगद्ध गज्ज्वलल्ललाट पट्टपावके
किशोरचंद्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं ममं ॥2॥

धरा धरेंद्र नंदिनी विलास बंधुवंधुर-
स्फुरदृगंत संतति प्रमोद मानमानसे ।
कृपाकटा क्षधारणी निरुद्धदुर्धरापदि
कवचिद्विगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि ॥3॥

जटा भुजं गपिंगल स्फुरत्फणामणिप्रभा-
कदंबकुंकुम द्रवप्रलिप्त दिग्वधूमुखे ।
मदांध सिंधु रस्फुरत्वगुत्तरीयमेदुरे
मनो विनोदद्भुतं बिंभर्तु भूतभर्तरि ॥4॥

सहस्र लोचन प्रभृत्य शेषलेखशेखर-
प्रसून धूलिधोरणी विधूसरांघ्रिपीठभूः ।
भुजंगराज मालया निबद्धजाटजूटकः
श्रिये चिराय जायतां चकोर बंधुशेखरः ॥5॥

ललाट चत्वरज्वलद्धनंजयस्फुरिगभा-
निपीतपंचसायकं निमन्निलिंपनायम्‌ ।
सुधा मयुख लेखया विराजमानशेखरं
महा कपालि संपदे शिरोजयालमस्तू नः ॥6॥

कराल भाल पट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वल-
द्धनंजया धरीकृतप्रचंडपंचसायके ।
धराधरेंद्र नंदिनी कुचाग्रचित्रपत्रक-
प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने मतिर्मम ॥7॥

नवीन मेघ मंडली निरुद्धदुर्धरस्फुर-
त्कुहु निशीथिनीतमः प्रबंधबंधुकंधरः ।
निलिम्पनिर्झरि धरस्तनोतु कृत्ति सिंधुरः
कलानिधानबंधुरः श्रियं जगंद्धुरंधरः ॥8॥

प्रफुल्ल नील पंकज प्रपंचकालिमच्छटा-
विडंबि कंठकंध रारुचि प्रबंधकंधरम्‌
स्मरच्छिदं पुरच्छिंद भवच्छिदं मखच्छिदं
गजच्छिदांधकच्छिदं तमंतकच्छिदं भजे ॥9॥

अगर्वसर्वमंगला कलाकदम्बमंजरी-
रसप्रवाह माधुरी विजृंभणा मधुव्रतम्‌ ।
स्मरांतकं पुरातकं भावंतकं मखांतकं
गजांतकांधकांतकं तमंतकांतकं भजे ॥10॥

जयत्वदभ्रविभ्रम भ्रमद्भुजंगमस्फुर-
द्धगद्धगद्वि निर्गमत्कराल भाल हव्यवाट्-
धिमिद्धिमिद्धिमि नन्मृदंगतुंगमंगल-
ध्वनिक्रमप्रवर्तित प्रचण्ड ताण्डवः शिवः ॥11॥

दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजंग मौक्तिकमस्रजो-
र्गरिष्ठरत्नलोष्टयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः ।
तृणारविंदचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः
समं प्रवर्तयन्मनः कदा सदाशिवं भजे ॥12॥

दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजंग मौक्तिकमस्रजो-
र्गरिष्ठरत्नलोष्टयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः ।
तृणारविंदचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः
समं प्रवर्तयन्मनः कदा सदाशिवं भजे ॥12॥

कदा निलिंपनिर्झरी निकुजकोटरे वसन्‌
विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरःस्थमंजलिं वहन्‌।
विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः
शिवेति मंत्रमुच्चरन्‌कदा सुखी भवाम्यहम्‌॥13॥

निलिम्प नाथनागरी कदम्ब मौलमल्लिका-
निगुम्फनिर्भक्षरन्म धूष्णिकामनोहरः ।
तनोतु नो मनोमुदं विनोदिनींमहनिशं
परिश्रय परं पदं तदंगजत्विषां चयः ॥14॥

प्रचण्ड वाडवानल प्रभाशुभप्रचारणी
महाष्टसिद्धिकामिनी जनावहूत जल्पना ।
विमुक्त वाम लोचनो विवाहकालिकध्वनिः
शिवेति मन्त्रभूषगो जगज्जयाय जायताम्‌ ॥15॥

इमं हि नित्यमेव मुक्तमुक्तमोत्तम स्तवं
पठन्स्मरन्‌ ब्रुवन्नरो विशुद्धमेति संततम्‌।
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नांयथा गतिं
विमोहनं हि देहना तु शंकरस्य चिंतनम ॥16॥

पूजाऽवसानसमये दशवक्रत्रगीतं
यः शम्भूपूजनमिदं पठति प्रदोषे ।
तस्य स्थिरां रथगजेंद्रतुरंगयुक्तां
लक्ष्मी सदैव सुमुखीं प्रददाति शम्भुः ॥17॥

॥ इति शिव ताण्डव स्तोत्रं संपूर्णम्‌॥

         

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