कुंडली का विश्लेसण
कुंडली का विश्लेसण
प्रस्तुत कुंडली मे ब्यापार का कारक और लाभ/धन स्थान के स्वामी बुध लग्न में है सिंह राशि मे और भाव चलित में शनि दिग्बली हो कर अपने स्थान में है और बुध की दृष्टि है
■7th भाव व्यापार का भाव होता है और दिग्बली हो कर बैठे है और ब्यापार के कारक बुध की दृष्टि है। बुध यहां आत्मकारक भी है।। जिसके कारण जातक ब्यापार का चुनाव करता है।
■बुध यहाँ सूर्य से अलग है जिसके कारण जातक ब्यापार ही चुना जब सूर्य से बुध अलग होता है ऐसे लोग ब्यापार जरूर करते है क्यों कि ये किसी के अंदर में काम करना पसंद नही करते है इनका कुछ न कुछ ब्यापार जरुर होता है
■मंगल यहाँ योगकारक हो कर लाभ स्थान पर चंद्रमा के साथ लक्ष्मी योग बना रहा है।
■दशमांश कुंडली(D10)में भी बुध कर्म स्थान पर और शनि लाभ स्थान पर है जातक लोहे के कबाड़ को गला कर रॉड बनाता है।। जिसमे उसने लाभ कमा रहे है क्यों कि शनि की महादशा भी सुरु है।
■कारकांश कुंडली मे बुध आत्मकारक है और सप्तम ब्यापार के भाव मे बैठ कर लग्न को देख रहा है।।
धन की स्थिति
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1)भाव चलित में धनेश (2nd)और लाभेश(11th) के स्वामी स्वयं बुध है । जो लग्न में है।। और 5th स्वामी गुरु की दृष्टि है और 9th लार्ड मंगल की दृष्टि धन भाव पर है अतः(2,5,9,11)का सम्बन है जो धन योग अच्छा बना रहा है।
■लाभ स्थान पर चंद मंगल का योग लक्ष्मी योग बना रहा है।
■होरा कुंडली मे (D2) सूर्य के होरा में सूर्य गुरु शुक्र बैठे है जो धन का अच्छा स्रोत बना रहा है।।
■इंदु लग्न में लाभेश शनि स्वयं लग्न में है और धन के कारक गुरु स्वग्रही हो कर धन भाव को देख रहा है। धन लाभ कहा से होगा साफ साफ शनि लग्न में है जो शनि से कार्यो से धन लाभ देगा।
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