धरती_का_रस

#धरती_का_रस  
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#एक #राजा था। एक बार वह सैर करने के लिए अपने शहर से बाहर गया। 
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लौटते समय देर हो गई तो वह किसान के खेत में विश्राम करने के लिए ठहर गया। 
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किसान की बूढ़ी मां खेत में मौजूद थी। 
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राजा को प्यास लगी तो उसने बुढ़िया से कहा... बुढ़ियामाई, प्यास लगी है, थोड़ा सा पानी दे।
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बुढ़िया ने सोचा, एक पथिक अपने घर आया है, चिलचिलाती धूप का समय है, इसे सादा पानी क्या पिलाऊंगी ! 
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यह सोचकर उसने अपने खेत में से एक गन्ना तोड़ लिया और उसे निचोड़ कर एक गिलास रस निकाल कर राजा के हाथ में दे दिया। 
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राजा गन्ने का वह मीठा और शीतल रस पीकर तृप्त हो गया। 
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उसने बुढ़िया से पूछा, माई ! राजा तुमसे इस खेत का लगान क्या लेता है ?
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बुढ़िया बोली.... इस देश का राजा बड़ा दयालु है। बहुत थोड़ा लगान लेता है। 
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मेरे पास बीस बीघा खेत है। उसका साल में एक रुपया लेता है।
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राजा के मन में लोभ आया। उसने सोचा बीघा के खेत का लगान एक रुपया ही क्यों हो ! 
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उसने मन में तय किया कि शहर पहुंच कर इस बारे में मंत्री से सलाह करके गन्ने के खेतों का लगान बढ़ाना चाहिए। 
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यह विचार करते-करते उसकी आंख लग गई।
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कुछ देर बाद वह उठा तो उसने बुढ़िया माई से फिर गन्ने का रस मांगा। 
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बुढ़िया ने फिर गन्ना तोड़ा और उसे निचोड़ा लेकिन इस बार बहुम कम रस निकला।
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मुश्किल से चौथाई गिलास भरा होगा। बुढ़िया ने दूसरा गन्ना तोड़ा। इस तरह चार-पांच गन्नों को निचोड़ा, तब जाकर गिलास भरा।
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राजा यह दृश्य देख रहा था। उसने बूढ़ी मां से कहा...बुढ़िया माई, पहली बार तो एक गन्ने से ही पूरा गिलास भर गया था, 
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इस बार वही गिलास भरने के लिए चार- पांच गन्ने तोड़ने पड़े, इसका क्या कारण है ?
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किसान की मां बोली.... यह बात तो मेरी समझ में भी नहीं आई। 
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धरती का रस तो तब सूखा करता है जब राजा की नीयत में फर्क तथा उसके मन में लोभ आ जाता है। 
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बैठे-बैठे इतनी ही देर में ऐसा कैसे हो गया ! 
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फिर हमारे राजा तो प्रजा की भलाई करने वाले, न्यायी और धरम बुद्धि वाले हैं। 
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उनके राज्य में धरती का रस कैसे सूख सकता है !
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बुढ़िया का इतना कहना था कि राजा को चेत हो गया कि .....
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राजा का धर्म प्रजा का पोषण करना है, शोषण करना नहीं और उसने तत्काल लगान न बढ़ाने का निर्णय कर लिया।

जय जय सियाराम

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