गोवर्धन पूजा

गोवर्धन पूजा आज
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दीपावली के अगले दिन गोवर्धन पूजा का विशेष महत्व है। इस दिन भगवान गोवर्धन व गाय-बछड़े की उपासना की जाती है। इसे अन्नकूट के नाम से भी जाना जाता है। गोवर्धन पूजा का संबंध भगवान कृष्ण से जुड़ा है।

गोवर्धन पूजा कब है ? 
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गोवर्धन पूजा दिवाली के अगले दिन होती है लेकिन इस साल प्रतिपदा तिथि शाम 4 बजे से शुरू हो रही है उदयातिथि के अनुसार गोवर्धन पूजा का त्योहार 26 अक्टूबर 2022 को मनाया जाएगा।

गोवर्धन पूजा का मुहूर्त 
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हिंदू पंचांग के अनुसार कार्तिक माह के शुक्ल की प्रतिपदा तिथि 25 अक्टूबर 2022 को शाम 4 बजकर 18 मिनट से शुरू होगी और प्रतिपदा तिथि का समापन अगले दिन 26 अक्टूबर 2022 को दोपहर 02 बजकर 42 मिनट पर होगा।

गोवर्धन पूजा मुहूर्त - सुबह 06.33 - सुबह 08.48 (26 अक्टूबर 2022)

अवधि – 2 घंटे 15 मिनट

गोवर्धन पूजा का महत्व 
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धार्मिक मान्यातओं के अनुसार  इस दिन भगवान कृष्ण ने ब्रज वासियों को इंद्र के प्रकोप से बचाने के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी कनिष्ठ उंगली पर उठा लिया था। इंद्र के प्रताप से ब्रज में चारों ओर पानी-पानी हो गया था। ऐसे में सभी ब्रजवासी, पशु भगवान कृष्ण के कहने पर गोवर्धन पर्वत की शरण में गए थे  गोवर्धनाथ ने 7 दिन तक इनकी रक्षा की। इसके बाद इंद्रदेव का घमंड चूर-चूर हो गया था, तभी से इस दिन गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत धारी श्री कृष्ण, गाय, बछड़े, की आकृति बनाकर पंचोपचार से पूजन किया जाता है। साथ ही गौ माता की भी उपासना की जाती है।

गोवर्धन पूजा की विधि
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गोवर्धन पूजा के दिन घरों में गोवर्धन पर्वत का पूजन किया जाता है। इस दिन गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत बनाया जाता है और उसके आस-पास गाय, बछड़े आदि की आकृति बनाई जाती है  इस दिन पशुओं का भी पूजन करने का विधान है। गोवर्धन पूजा के दिन गोवर्धन पर्वत की आकृति बनाकर उनका पूजन किया जाता है और फिर उनकी सात बार परिक्रमा होती है। परिक्रमा के दौरान हाथ में खील व जौ लेकर उन्हें थोड़ा-थोड़ा गिराते हैं। इसके बाद धूप-दीप जलाएं जाते हैं और भगवान कृष्ण का ध्यान कर उनका आशीर्वाद लिया जाता है।

गोवर्धन पूजा की कथा
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हिंदू धर्म में दीपावली के दूसरे दिन गोवर्धन पूजा की जाती है। इस पर्व में प्रकृति के साथ मनुष्य का सीधा संबंध दिखाई देता है। इस पर्व से जुड़ी एक लोककथा है। एक समय की बात है श्रीकृष्ण अपने मित्र ग्वालों के साथ पशु चराते हुए गोवर्धन पर्वत जा पहुंचे। वहां उन्होंने देखा कि बहुत से व्यक्ति एक उत्सव मना रहे थे। श्रीकृष्ण ने इसका कारण जानना चाहा तो वहाँ उपस्थित गोपियों ने उन्हें कहा कि आज यहाँ मेघ व देवों के स्वामी इंद्रदेव की पूजा होगी और फिर इंद्रदेव प्रसन्न होकर वर्षा करेंगे, फलस्वरूप खेतों में अन्न उत्पन्न होगा और ब्रजवासियों का भरण-पोषण होगा। यह सुन श्रीकृष्ण सबसे बोले कि इंद्र से अधिक शक्तिशाली तो गोवर्धन पर्वत है जिनके कारण यहाँ वर्षा होती है और सबको इंद्र से भी बलशाली गोवर्धन का पूजन करना चाहिए।
श्रीकृष्ण की बात से सहमत होकर सभी गोवर्धन की पूजा करने लगे। जब यह बात इंद्रदेव को पता चली तो उन्होंने क्रोधित होकर मेघों को आज्ञा दी कि वे गोकुल में जाकर मूसलाधार बारिश करें। भयावह बारिश से भयभीत होकर सभी गोपियां-ग्वाले श्रीकृष्ण के पास गए। यह जान श्रीकृष्ण ने सबको गोवर्धन-पर्वत की शरण में चलने के लिए कहा। सभी गोपियां-ग्वाले अपने पशुओं समेत गोवर्धन की तराई में आ गए। तत्पश्चात श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी कनिष्ठा पर उठाकर छाते-सा तान दिया। 

इन्द्रदेव के मेघ सात दिन तक निरंतर बरसते रहें किन्तु श्री कृष्ण के सुदर्शन चक्र के प्रभाव से ब्रजवासियों पर जल की एक बूंद भी नहीं पड़ी। यह अद्भुत चमत्कार देखकर इन्द्रदेव असमंजस में पड़ गए। तब ब्रह्मा जी ने उन्होंने बताया कि श्रीकृष्ण भगवान विष्णु के अवतार है। सत्य जान इंद्रदेव श्रीकृष्ण से क्षमायाचना करने लगे। श्रीकृष्ण के इन्द्रदेव को अहंकार को चूर-चूर कर दिया था अतः उन्होंने इन्द्रदेव को क्षमा किया और सातवें दिन गोवर्धन पर्वत को भूमि तल पर रखा और ब्रजवासियों से कहा कि अब वे हर वर्ष गोवर्धन पूजा कर अन्नकूट का पर्व मनाए। तभी से यह पर्व प्रचलित है और आज भी पूर्ण श्रद्धा भक्ति से मनाया जाता है।

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