गोचर ग्रहों का फल :-

गोचर ग्रहों का फल :-

गोचर शब्द "गम" धातु से बना है, जिसका अर्थ है "चलने वाला"।"चर" शब्द का अर्थ है "गतिमय होना"। इस प्रकार "गोचर" काअर्थ हुआ-"निरन्तर चलने वाला"।ब्रह्माण में स्थित ग्रह अपनी-अपनी
धुरी पर अपनी गति से निरन्तर भ्रमण
करते रहते हैं। इस भ्रमण के दौरान वे एक राशि से
दूसरी राशि में प्रवेश करते हैं। ग्रहों के इस प्रकार
राशि परिवर्तन करने के उपरांत दूसरी राशि में
उनकी स्थिति को ही "गोचर" कहा जाता
है। प्रत्येक ग्रह का जातक की जन्मराशि से विभिन्न
भावों "गोचर" भावानुसार शुभ-अशुभ फल देता है।

भ्रमण काल:-
सूर्य,शुक्र,बुध का भ्रमण काल १ माह, चंद्र का सवा दो दिन, मंगलका ५७ दिन, गुरू का १ वर्ष,राहु-केतु का डेढ़ वर्ष व शनि का भ्रमणका ढ़ाई वर्ष होता है अर्थात ये ग्रह इतने समय में एक राशि में
रहते हैं तत्पश्चात ये अपनी राशि-परिवर्तन करते
हैं।
विभिन्न ग्रहों का "गोचर" :-
अनुसार फल- १. सूर्य:-सूर्य जन्मकालीन राशि से ३,६,१० और ११ वें भाव मेंशुभ फल देता है। शेष भावों में सूर्य का फल अशुभ देता है।
२. चंद्र:-चंद्र जन्मकालीन राशि से १,३,६,७,१०,व ११ भाव मेंशुभ तथा ४, ८, १२ वें भाव में अशुभ फल देता है।
३. मंगल:-मंगल जन्मकालीन राशि से ३,६,११ भाव में शुभ फल देता है। शेष भावों में अशुभ फल देता है।
४. बुध:-बुध जन्मकालीन राशि से २,४,६,८,१० और ११ वें भावमें शुभ फल देता है। शेष भावों में अशुभ फल देता है।
५. गुरू-गुरू जन्मकालीन राशि से २,५,७,९ और ११ वें भाव में शुभ फल देता है। शेष भावों में अशुभ फल देता है।
६. शुक्र:-शुक्र जन्मकालीन राशि से१,२,३,४,५,८,९,११ और १२वें भाव में शुभ फल देता है। शेष भावों में अशुभ फल देता है।
७. शनि:-शनि जन्मकालीन राशि से ३,६,११ भाव में शुभ फल देताहै। शेष भावों में अशुभ फल देता है।
८. राहु:-राहु जन्मकालीन राशि से ३,६,११ वें भाव में शुभ फलदेता है। शेष भावों में अशुभ फल देता है।
९. केतु:-केतु जन्मकालीन राशि से १,२,३,४,५,७,९ और ११ वेंभाव में शुभ फल देता है। शेष भावों में अशुभ फल देता है।
गोचर ग्रहों का फल –
 गोचर ग्रहोका अध्ययन जातक की चन्द्र राशि से किया जाता है .गोचर ग्रहों का जातक के वर्तमान जीवन में सबसेज्यादा प्रभाव पड़ता है ।
यदि गोचर मे सूर्य जनम राशीसे इन भावो में हो तो इसका फल इस प्रकार होता है :-
प्रथम भाव में – इस भाव में होने पर रक्त में कमी
की सम्भावना होती है . इसके अलावा
गुस्सा आता है पेट में रोग और कब्ज़ की
परेशानी आने लगती है . नेत्र रोग ,
हृदय रोग ,मानसिक अशांति ,थकान और सर्दी
गर्मी से पित का प्रकोप होने लगता है .इसके आलवा
फालतू का घूमना , बेकार का परिश्रम , कार्य में बाधा ,विलम्ब ,भोजनका समय में न मिलना , धन की हानि , सम्मान मेंकमी होने लगती है परिवार से दूरियां बननेलगती है .
द्वितीय भाव में :– इस भाव में सूर्य के आने से धन
की हानि ,उदासी ,सुख में कमी, असफ़लता,धोखा .नेत्र विकार , मित्रो से विरोध , सिरदर्द , व्यापारमें नुकसान होने लगता है .
तृतीय भाव में – इस भाव में सूर्य के फल अच्छे होते
है ।यहाँ जब सूर्य होता है तो सभी प्रकार के लाभ
मिलते है ।धन , पुत्र ,दोस्त और उच्चाधिकारियों से अधिक लाभमिलता है । जमीन का भी फायदा होता है ।आरोग्य और प्रसस्नता मिलती है ।शत्रु हारते हैं ।
समाज में सम्मान प्राप्त होता है ।
चतुर्थ भाव :– इस भाव में सूर्य के होने से ज़मीन
सम्बन्धी , माता से , यात्रा से और पत्नी से
समस्या आती है . रोग , मानसिक अशांति और मानहानिके कष्ट आने लगते हैं ।
पंचम भाव: – इस भाव में भी सूर्य परेशान करता है
।पुत्र को परेशानी , उच्चाधिकारियों से हानि और रोग व शत्रु उभरने लगते है .
6 ठे भाव में: – इस भाव में सूर्य शुभ होता है ।इस भाव में सूर्यके आने पर रोग ,शत्रु ,परेशानियां शोक आदि दूर भाग जाते हैं ।
7 भाव में :– इस भाव में सूर्य यात्रा ,पेट रोग ,
दीनता , वैवाहिक जीवन के कष्ट देता है।स्त्री – पुत्र बीमारी से परेशान हो जाते हैं ।पेट व् सिरदर्द की समस्या आ जाती है ।धन व् मान में कमी आ
जाती है ।
8 भाव में :– इस में सूर्य बवासीर ,
पत्नी से परेशानी , रोग भय , ज्वर , राज
भय , अपच की समस्या पैदा करता है।
9भाव में: – इसमें दीनता ,रोग ,धन हानि , आपति ,
बाधा , झूंठा आरोप , मित्रो व् बन्धुओं से विरोध का सामना करन पड़ता है ।
10 भाव में :– इस भाव में सफलता विजय ,सिद्धि ,पदोन्नति ,मान , गौरव , धन , आरोग्य , अच्छे मित्र की प्राप्ति होती है ।
11 भाव में – इस भाव में विजय , स्थान लाभ , सत्कार , पूजा ,वैभव ,रोगनाश ,पदोन्नति , वैभव पितृ लाभ . घर में मांगलिक कार्यसंपन्न होते हैं .
12 भाव में – इस भाव में सूर्य शुभ होता है।सदाचारी बनता है , सफलता दिलाता है। अच्छे कार्यो के
लिए , लेकिन पेट , नेत्र रोग , और मित्र भी शत्रु बन
जाते हैं ।
चन्द्र की गोचर भाव के फल
1 भाव में :– जब चन्द्र प्रथम भाव में होता है तो जातक कोसुख , समागम , आनंद व् निरोगता का लाभ होता है । उत्तम भोजन,शयन सुख , शुभ वस्त्र की प्राप्ति होती है
2 भाव :– इस भाव में जातक के सम्मान और धन
में बाधा आती है ।मानसिक तनाव ,परिवार से अनबन ,नेत्र विकार , भोजन में गड़बड़ी हो जाती
है ।विद्या की हानि , पाप कर्मी और हर
काम में असफलता मिलने लगती है ।
3भाव में :– इस भाव में चन्द्र शुभ होता है .धन
, परिवार ,वस्त्र , निरोग , विजय की प्राप्ति
शत्रुजीत मन खुश रहता है , बंधु लाभ , भाग्य वृद्धि
,और हर तरह की सफलता मिलती है ।
4 भाव में – इस भाव में शंका , अविश्वास , चंचल मन , भोजन और नींद में बाधा आती है
।स्त्री सुख में कमी , जनता से अपयश
मिलता है , छाती में विकार , जल से भय होता है।
5 भाव में: – इस भाव में दीनता , रोग ,यात्रा में हानि ,
अशांत , जलोदर , कामुकता की अधिकता और मंत्रणा शक्ति में न्यूनता आ जाती है ।
6 भाव में :– इस भाव में धन व् सुख लाभ मिलता है ।शत्रु पर जीत मिलती है ।निरोय्गता ,यश आनंद ,
महिला से लाभ मिलता है ।
7 भाव में :– इस भाव में वाहन की प्राप्ति
होती है. सम्मान , सत्कार ,धन , अच्छा भोजन ,
आराम काम सुख , छोटी लाभ प्रद यात्रायें , व्यापर में
लाभ और यश मिलता है ।
8 भाव में :– इस भाव में जातक को भय , खांसी ,
अपच . छाती में रोग , स्वांस रोग , विवाद ,मानसिक
कलह , धन नाश और आकस्मिक परेशानी
आती है।
9 भाव में :– बंधन , मन की चंचलता , पेट रोग ,पुत्र
से मतभेद , व्यापार हानि , भाग्य में अवरोध , राज्य से हानि होती है ।
10 भाव में :– इस में सफलता मिलती है। हर काम
आसानी से होता है । धन , सम्मान , उच्चाधिकारियों सेलाभ मिलता है ।घर का सुख मिलता है ।पद लाभ मिलता है।आज्ञा देने का सामर्थ्य आ जाता है।
11 भाव में :– इस भाव में धन लाभ , धन संग्रह , मित्र समागम , प्रसन्नता , व्यापार लाभ , पुत्र से लाभ ,
स्त्री सुख , तरल पदार्थ और स्त्री से लाभ मिलता है।
12भाव में – इस भाव में धन हानि ,अपघात ,
शारीरिक हानियां होती है।
मंगल ग्रह का प्रभाव गोचर में इस प्रकार से होता है।
1 भाव:-में जब मंगल आता है ।तो रोग्दायक हो कर बवासीर,रक्त विकार ,ज्वर , घाव , अग्नि से डर , ज़हर और अस्त्र से हानि देता है।
2भाव में:-–यहाँ पर मंगल से पित ,अग्नि ,चोर से
खतरा ,राज्य से हानि , कठोर वाणी के कारण हानि ,
कलह और शत्रु से परेशानियाँ आती है ।
3 भाव: – इस भाव में मंगल के आ जाने से चोरो और किशोरों के माध्यम से धन की प्राप्ति होती
है शत्रु डर जाते हैं । तर्क शक्ति प्रबल होती है।
धन , वस्त्र , धातु की प्राप्ति होती है ।प्रमुख पद मिलता है ।
4 भाव में: – यहं पर पेट के रोग ,ज्वर , रक्त विकार , शत्रु पनपते हैं ।धन व् वस्तु की कमी होने
लगती है ।गलत संगती से हानि होनेलगती है ।भूमि विवाद , माँ को कष्ट , मन में भय ,हिंसा के कारण हानि होने लगती है ।
5 भाव – यहाँ पर मंगल के कारण शत्रु भय , रोग , क्रोध ,पुत्र शोक , शत्रु शोक , पाप कर्म होने लगते हैं . पल पल स्वास्थ्य गिरता रहता है ।
6 भाव – यहाँ पर मंगल शुभ होता है ।शत्रु हार जाते हैं ।डर भाग जाता हैं।  शांति मिलती है। धन – धातु के लाभ से लोग जलते रह जाते हैं ।
7 भाव – इस भाव में स्त्री से कलह , रोग ,पेट
के रोग , नेत्र विकार होने लगते हैं ।
8 भाव में – यहाँ पर धन व् सम्मान में कमी और
रक्तश्राव की संभावना होती है ।
9 भाव – यहाँ पर धन व् धातु हानि , पीड़ा ,
दुर्बलता , धातु क्षय , धीमी क्रियाशीलता हो जाती हैं।
10 भाव – यहाँ पर मिलाजुला फल मिलता हैं,
11 भाव – यहाँ मंगल शुभ होकर धन प्राप्ति ,प्रमुख पद दिलाता हैं.
12 भाव – इस भाव में धन हानि , स्त्री से कलह
नेत्र वेदना होती है ।
बुध का गोचर में प्रभाव –
1 भाव में – इस भाव में चुगलखोरी अपशब्द ,
कठोर वाणी की आदत के कारण हानि
होती है ।कलह बेकार की यात्रायें . और
अहितकारी वचन से हानियाँ होती हैं ।
2 भाव में – यहाँ पर बुध अपमान
दिलाने के बावजूद धन भी दिलाता है ।
3 भाव – यहाँ पर शत्रु और राज्य भय दिलाता है
। ये दुह्कर्म की ओर ले जाता है ।यहाँ मित्र
की प्राप्ति भी करवाता है ।
4 भाव् – यहाँ पर बुध शुभ होकर धन दिलवाता है ।अपने स्वजनों की वृद्धि होती है ।
5 भाव – इस भाव में मन बैचैन रहता है . पुत्र व्
स्त्री से कलह होती है ।
6 भाव – यहाँ पर बुध अच्छा फल देता हैं. सौभाग्य का उदय होता है ।शत्रु पराजित होते हैं ।जातक उन्नतशील होने लगता है । हर काम में जीत होने लगते हैं।
7 भाव – यहं पर स्त्री से कलह होने
लगती हैं ।
अष्टम भाव – यहाँ पर बुध पुत्र व् धन लाभ देता है .प्रसन्नता भी देता है ।
9 – यहाँ पर बुध हर काम में बाधा डालता हैं ।
10 भाव – यहाँ पर बुध लाभ प्रद हैं।शत्रुनाशक ,धन दायक,स्त्री व् शयन सुख देता है ।
11 भाव में – यहाँ भी बुध लाभ देता हैं . धन ,
पुत्र , सुख , मित्र ,वाहन , मृदु वाणी प्रदान करता है।
12 भाव- यहाँ पर रोग ,पराजय और अपमान देता है।
गुरु का गोचर प्रभाव- 1 भाव में:-इस भाव में धन नाश ,पदावनति , वृद्धि का नाश , विवाद ,स्थान
परिवर्तन दिलाता हैं ।2 भाव में – यहाँ पर धन व्
विलासता भरा जीवन दिलाता है ।
3 भाव में – यहाँ पर काम में बाधा और स्थान
परिवर्तन करता है ।
4 भाव में – यहाँ पर कलह , चिंता पीड़ा दिलाता
है ।
5 भाव – यहाँ पर गुरु शुभ होता है .पुत्र , वहां ,पशु सुख ,घर ,स्त्री , सुंदर वस्त्र आभूषण , की
प्राप्ति करवाता हैं ।
6 भाव में – यहाँ पर दुःख और पत्नी से अनबन
होती है।
7 भाव – सैय्या , रति सुख , धन , सुरुचि भोजन , उपहार ,वहां .,वाणी , उत्तम वृद्धि करता हैं ।
8 भाव – यहाँ बंधन ,व्याधि , पीड़ा , ताप ,शोक ,
यात्रा कष्ट , मृत्युतुल्य परशानियाँ देता है ।
9भाव में – कुशलता ,प्रमुख पद , पुत्र की
सफलता , धन व् भूमि लाभ , स्त्री की
प्राप्ति होती हैं।
10 भाव में- स्थान परिवर्तन में हानि , रोग ,धन हानि
एकादश भाव – यहाँ सुभ होता हैं . धन ,आरोग्य और अच्छास्थान दिलवाता है ।
12भाव में – यहाँ पर मार्ग भ्रम पैदा करता है .
मंगल ग्रह का प्रभाव गोचर में इस प्रकार से होता है।1भाव:- में जब मंगल आता है .तो रोग्दायक हो कर बवासीर,रक्त विकार ,ज्वर , घाव , अग्नि से डर , ज़हर और अस्त्र से हानि देता है।
2 भाव में –यहाँ पर मंगल से पित ,अग्नि ,चोर से
खतरा ,राज्य से हानि , कठोर वाणी के कारण हानि ,
कलह और शत्रु से परेशानियाँ आती है ।
3 भाव – इस भाव में मंगल के आ जाने से चोरो और
किशोरों के माध्यम से धन की प्राप्ति होती
है शत्रु डर जाते हैं ।तर्क शक्ति प्रबल होती है।
धन , वस्त्र , धातु की प्राप्ति होती है ।प्रमुख पद मिलता है ।
4 भाव में – यहं पर पेट के रोग ,ज्वर , रक्त विकार , शत्रु पनपते हैं ।धन व् वस्तु की कमी होने
लगती है ।गलत संगती से हानि होने
लगती है ।भूमि विवाद , माँ को कष्ट , मन में भय ,
हिंसा के कारण हानि होने लगती है ।
5 भाव – यहाँ पर मंगल के कारण शत्रु भय , रोग , क्रोध ,पुत्र शोक , शत्रु शोक , पाप कर्म होने लगते हैं . पल पल स्वास्थ्य गिरता रहता है ।
6 भाव – यहाँ पर मंगल शुभ होता है . शत्रु हार जाते हैं ।डर भाग जाता हैं । शांति मिलती है. धन – धातु के लाभ से लोग जलते रह जाते हैं ।
7 भाव – इस भाव में स्त्री से कलह , रोग ,पेट
के रोग , नेत्र विकार होने लगते हैं ।
8 भाव में – यहाँ पर धन व् सम्मान में कमी और
रक्तश्राव की संभावना होती है ।
9 भाव – यहाँ पर धन व् धातु हानि , पीड़ा ,
दुर्बलता , धातु क्षय , धीमी क्रियाशीलता हो जाती हैं।
10 भाव – यहाँ पर मिलाजुला फल मिलता हैं,
11भाव – यहाँ मंगल शुभ होकर धन प्राप्ति ,प्रमुख पद दिलाता हैं।
12 भाव – इस भाव में धन हानि , स्त्री से कलह
नेत्र वेदना होती है ।
बुध का गोचर में प्रभाव –
1 भाव में – इस भाव में चुगलखोरी अपशब्द ,
कठोर वाणी की आदत के कारण हानि
होती है ।कलह बेकार की यात्रायें और
अहितकारी वचन से हानियाँ होती हैं ।
2 भाव में – यहाँ पर बुध अपमान
दिलाने के बावजूद धन भी दिलाता है ।
3 भाव – यहाँ पर शत्रु और राज्य भय दिलाता है
। ये दुह्कर्म की ओर ले जाता है .यहाँ मित्र
की प्राप्ति भी करवाता है ।
4 भाव् – यहाँ पर बुध शुभ होकर धन दिलवाता है ।अपने स्वजनों की वृद्धि होती है ।
5 भाव – इस भाव में मन बैचैन रहता है . पुत्र व्
स्त्री से कलह होती है ।
6भाव – यहाँ पर बुध अच्छा फल देता हैं. सौभाग्य का उदय होता है । शत्रु पराजित होते हैं । जातक उन्नतशील होने लगता है ।हर काम में जीत होने लगते हैं
7 भाव – यहं पर स्त्री से कलह होने
लगती हैं ।
8 भाव – यहाँ पर बुध पुत्र व् धन लाभ देता है .प्रसन्नता भी देता है ।
9– यहाँ पर बुध हर काम में बाधा डालता हैं ।
10 भाव – यहाँ पर बुध लाभ प्रद हैं। शत्रुनाशक ,धन दायक,स्त्री व् शयन सुख देता है ।
11भाव में – यहाँ भी बुध लाभ देता हैं . धन ,
पुत्र , सुख , मित्र ,वाहन , मृदु वाणी प्रदान करता है।
12भाव- यहाँ पर रोग ,पराजय और अपमान देता है।
गुरु का गोचर प्रभाव- 1 भाव में:-इस भाव में धन नाश ,पदावनति , वृद्धि का नाश , विवाद ,स्थान
परिवर्तन दिलाता हैं ।2 भाव में – यहाँ पर धन व्
विलासता भरा जीवन दिलाता है ।
3भाव में – यहाँ पर काम में बाधा और स्थान
परिवर्तन करता है ।
4 भाव में – यहाँ पर कलह , चिंता पीड़ा दिलाता
है ।
5भाव – यहाँ पर गुरु शुभ होता है .पुत्र , वहां ,पशु सुख ,घर ,स्त्री , सुंदर वस्त्र आभूषण , की
प्राप्ति करवाता हैं ।
6 भाव में – यहाँ पर दुःख और पत्नी से अनबन
होती है।
7 भाव – सैय्या , रति सुख , धन , सुरुचि भोजन , उपहार ,वहां .,वाणी , उत्तम वृद्धि करता हैं ।
8भाव – यहाँ बंधन ,व्याधि , पीड़ा , ताप ,शोक ,
यात्रा कष्ट , मृत्युतुल्य परशानियाँ देता है ।
9 भाव में – कुशलता ,प्रमुख पद , पुत्र की
सफलता , धन व् भूमि लाभ , स्त्री की
प्राप्ति होती है।
10भाव में- स्थान परिवर्तन में हानि , रोग ,धन हानि
11 भाव – यहाँ शुभ होता हैं । धन ,आरोग्य और अच्छा स्थान दिलवाता है ।
12 भाव में – यहाँ पर मार्ग भ्रम पैदा करता है ।
गोचर शुक्र का प्रथम भाव में प्रभाव –जब शुक्र यहाँ पर आता है तब सुख ,आनंद ,वस्त्र , फूलो से प्यार , विलासी जीवन ,सुंदर स्थानों का भ्रमण ,सुगन्धित पदार्थ पसंद आते है ।वैवाहिक जीवन के लाभ प्राप्त होते हैं ।
2 भाव में – यहाँ पर शुक्र संतान ,
धन , धान्य , राज्य से लाभ , स्त्री के प्रति आकर्षण
और परिवार के प्रति हितकारी काम करवाता हैं।
3 भाव – इस जगह प्रभुता ,धन ,समागम ,सम्मान
,समृधि ,शास्त्र , वस्त्र का लाभ दिलवाता हैं .यहाँ पर नए स्थान की प्राप्ति और शत्रु का नास करवाता हैं .
4 भाव –इस भाव में मित्र लाभ और शक्ति की
प्राप्ति करवाता हैं ।
5भाव – इस भाव में गुरु से लाभ ,संतुष्ट जीवन ,
मित्र –पुत्र –धन की प्राप्ति करवाता है । इस भाव में
शुक्र होने से भाई का लाभ भी मिलता है।
6 भाव –इस भाव में शुक्र रोग , ज्वर ,और असम्मान दिलवाता है।
7 भाव – इसमें सम्बन्धियों को नास्ता करवाता हैं .
अष्टम भाव – इस भाव में शुक्र भवन , परिवार सुख ,
स्त्री की प्राप्ति करवाता है ।
9 भाव- इसमें धर्म ,स्त्री ,धन की
प्राप्ति होती हैं ।आभूषण व् वस्त्र की
प्राप्ति भी होती है ।
10 भाव – इसमें अपमान और कलह मिलती है.
11 भाव – इसमें मित्र ,धन ,अन्न ,प्रशाधन
सामग्री मिलती है ।
12 भाव – इसमें धन के मार्ग बनते हिया परन्तु वस्त्र लाभ स्थायी नहीं होता हैं ।
शनि की गोचर दशा
1 भाव – इस भाव में अग्नि और विष का डर होता है। बंधुओ से विवाद , वियोग , परदेश गमन , उदासी
,शरीर को हानि , धन हानि ,पुत्र को हानि , फालतू
घोमना आदि परेशानी आती है ।
2भाव – इस भाव में धन का नाश और रूप का
सुख नाश की ओर जाता हैं ।
3 भाव – इस भाव में शनि शुभ होता है ।धन
,परवर ,नौकर ,वहां ,पशु ,भवन ,सुख ,ऐश्वर्य की
प्राप्ति होती है ।सभी शत्रु हार मान जाते
हैं ।
4भाव –इस भाव में मित्र ,धन ,पुत्र ,स्त्री से
वियोग करवाता हैं ।मन में गलत विचार बनने लगते हैं ।जो हानि देते हैं ।
5 भाव – इस भाव में शनि कलह करवाता है जिसके कारण स्त्री और पुत्र से हानि होती हैं ।
6भाव – ये शनि का लाभकारी स्थान हैं। शत्रु व् रोग
पराजित होते हैं ।सांसारिक सुख मिलता है ।
7 भाव – कई यात्रायें करनी होती हैं। स्त्री – पुत्र से विमुक्त होना पड़ता हैं ।
8 भाव – इसमें कलह व् दूरियां पनपती हैं।
9 भाव – यहाँ पर शनि बैर , बंधन ,हानि और हृदय रोग देता हैं ।
10 भाव – इस भाव में कार्य की प्राप्ति , रोज़गार ,
अर्थ हानि , विद्या व् यश में कमी आती हैं।
11 भाव – इसमें परस्त्री व् परधन
की प्राप्ति होई हैं ।
11 भाव – इसमें शोक व् शारीरिक
परेशानी आती हैं ।शनि की २,१,१२ भावो के गोचर को साढ़ेसाती और ४ ,८ भावो के गोचर को ढैया होती हैं।🙏🙏🙏

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