मेष लग्न

मेष लग्न

सूर्य : पंचमेश होने से शुभ ग्रह हो जाता है। इसकी दशा में नवीन कार्यों का आरंभ होता है

चंद्र : चतुर्थेश होकर निर्बल हो जाता है। यदि पक्ष बली हो, तो दशा भी श्रेष्ठ होगी अन्यथा इस दशा में भवन की हानि और राजभय की संभावना रहती है। निर्बल चंद्रमा होने पर जनता से विरोध प्राप्त होता है

मंगल : लग्नेश होने से शुभ और अष्टमेश होने से अशुभ होता है। लग्नेश होने के बावजूद मंगल की स्थिति शुभ नहीं कही जा सकती है। यदि मंगल दशम भाव में हो, तो शुभ होता है।

बृहस्पति : मेष लग्न में बृहस्पति की स्थिति कमोवेश मंगल सदृश्य है। नवम जैसे अत्यंत शुभ भाव के स्वामी होने से बृहस्पति की स्वयं के अंतर के अलावा शेष दशा शुभ होती है।

शनि : राज और लाभ का स्वामी होने से शनि की दशा शुभ फल देगी। शनि यदिअस्त, नीचगत, शत्रुक्षेत्री या अष्टमस्थ न हो, तो शुभ फल मिलते हैं। स्थायी और अचल संपत्तियों की प्राप्ति होती है। व्यवसाय में लाभ होता है।

बुध : इस समय रचनात्मक कार्यों में गतिविधियां बढ़ती हैं। बुध की दशा का उत्तरार्ध रोगग्रस्त और ऋणी बनाता है।

शुक्र : द्वितीयेश और सप्तमेश होने से प्रबल मारकेश है। इस दशा में क्लेश, मृत्युभय, स्त्री को कष्ट और रोगों में वृद्धि होती है।

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