चन्द्र देवता
-: श्री नवग्रह परिचय :-
"२. चन्द्र देवता"
अन्य नाम :- सोम, रोहिणीनाथ, अत्रिपुत्र, अनुसूयानंदन, शशि, महेश्वरप्रिय ||
चंद्र संबंध :- चन्द्र ग्रह एवं ब्रह्मा का अवतारण,
निवासस्थान :- चंद्र लोक,
चंद्रमंत्र :- ॐ सोम सोमय नमः,
अस्त्र :- रस्सी और अमृत पात्र,
यंत्र :- चन्द्र यंत्र,
जड़ :- खिरनी,
रत्न :- मोती,
रंग :- सफ़ेद,
जीवनसाथी :- रोहिणी(मुख्य पत्नी), रेवती , कृतिका, मृगशिरा, आद्रा, पुनर्वसु, सुन्निता, पुष्य अश्व्लेशा, मेघा, स्वाति, चित्रा, फाल्गुनी, हस्ता, राधा, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, मुला, अषाढ़, अभिजीत, श्रावण, सर्विष्ठ, सताभिषक, प्रोष्ठपदस, अश्वयुज और भरणी ||
|| माता-पिता ||
महर्षि अत्रि (पिता)
देवी अनुसूया (माता)
भाई-बहन :- दत्तात्रेय, दुर्वासा ||
संतान :- वर्चस , बुध और अभिमन्यु (सुभद्रा और चंद्र के पुत्र) ||
सवारी :- मृग का रथ ||
वैदिक :- चन्द्र देव एक हिन्दू देवता हैं,, जो चन्द्रमा गृह के देवता मने जाते है।
यह रात्रि के समय रौशनी करने, रात्रि, पौधों और वनस्पति से सम्बंधित मने जाते हैं ।। ब्रह्मा का चन्द्र रूप लेने का मूल उद्देश्य था कि रात्रि काल में पाप न हों।। इन्हें नवग्रह और दिक्पाल (दिशाओं के पालक) में से एक माना जाता है। पुराणों के अनुसार इनके पिता का नाम महर्षि "अत्रि" और माता का नाम "देवी अनुसूया" था। चंद्रदेव का विवाह "दक्ष प्रजापति" की दो और "वीरणी" की साठ में से सत्ताईस कन्याओं के साथ हुआ था और इन्हीं कन्याओं को सत्ताईस नक्षत्र भी कहा गया है। इन कन्याओं में चंद्र रोहिणी और रेवती से सर्वाधिक प्रेम करते थे।
-: चंद्रमा का जन्म :-
एक बार त्रिदेवियों को अपने सतीत्व पर अहम् हो गया। उन्हें लगा कि उनके समान पतिव्रता स्त्री इस विश्व में कोई नहीं हैे। एक बार भगवान विष्णु के भक्त देवऋषि नारद वहां आ पहुंचे और उन्होंने त्रिदेवियों को महर्षि अत्रि की पत्नी अनुसूया के सतीत्व के बारे में बताया जिससे उनके अहम को बहुत ठेस पहुंची। उन्होंने त्रिदेवों को अनुसूया के सतीत्व की परीक्षा लेने को कहा। तब त्रिदेव एक ही समय में महर्षि अत्रि के आश्रम में आए। तीनों देवों का एक ही उद्देश्य था अनुसूया का सतीत्व नष्ट करना। तीनों देवों ने साधु का वेश लिया और अनुसूया से भोजन करवाने की मांग की और ये शर्त रखी कि उन्हें नग्न अवस्था में भोजन करवाया जाए। अनुसूया ने महर्षि अत्रि का चरणोदक तीनों देवों पर छिड़क दिया जिससे त्रिदेव छोटे छोटे बालकों के रूप में परिवर्तित हो गए और अनुसूया की गोद में खेलने लगे। जब काफी देर तक त्रिदेव अपने धाम नहीं लौटे तब त्रिदेवियाँ उन्हें खोजती हुई महर्षि अत्रि के आश्रम में आ गयीं और देवी अनुसुया के पास आईं। सरस्वती, लक्ष्मी, पार्वती ने उनसे आग्रह किया कि वे उन्हें उनके पति सौंप दें। अनुसुया और उनके पति ने तीनों देवियों की बात मान ली किन्तु अनुसूया ने कहा "कि त्रिदेवों ने मेरा स्तनपान किया है इसलिए किसी ना किसी रूप में इन्हें मेरे पास रहना होगा अनुसुया की बात मानकर त्रिदेवों ने उनके गर्भ में दत्तात्रेय , दुर्वासा और चंद्रमा रूपी अपने अवतारों को स्थापित कर दिया। समय आने पर अनुसूया के गर्भ से भगवान विष्णु ने दत्तात्रेय , भगवान ब्रह्मा ने चंद्र और भगवान शंकर ने दुर्वासा के रूप में जन्म लिया ।।
-: " चंद्रमा का वैदिक ज्योतिष में महत्त्व " :-
वैदिक ज्योतिष में चंद्रमा को मन का कारक माना जाता है। ज्योतिषियों की मानें तो चंद्रमा के प्रभाव से ही जातक मन विचलित व स्थिर होता है। कहते हैं,, मन यदि नियंत्रण में हो तो सब कुछ आसानी से हो जाता है, परंतु यांदे मन अस्थिर हो तो कार्य पूर्ण होने में परेशानियाँ तो आती ही हैं,, साथ ही कार्य भी कुशला से नहीं होता कुल मिलाकर इसमें गुकसान ही होता है।।
खगोलीय दृष्टि से भी चंद्रमा का काफी महत्त्व है। समुंद्र में ज्वार आने से लेकर ग्रहण लगने तक में चंद्रमा का योगदान होता है। सूर्य के बाद आसमान में सबसे अधिक चमकदार ग्रह चंद्रमा है। चंद्रमा की कक्षीय दूरी पृथ्वी के व्यास का 30 गुना है इसीलिए आसमान में सूर्य और चंद्रमा का आकार हमेशा समान नजर आता है।
वैदिक ज्योतिष में चंद्रमा नौ ग्रहों के क्रम में सूर्य के बाद दूसरा ग्रह है। वैदिक ज्योतिष में यह मन, माता, मानसिक स्थिति, मनोबल, द्रव्य, वस्तुओं, सुख-शांति, धन-संपत्ति, बायीं आँख, छाती आदि का कारक होता है।।
ज्योतिष के मुताबिक चंद्रमा राशियों में कर्क राशि का स्वामी और नक्षत्रों में रोहिणी, हरत और श्रवण नक्षत्र का स्वामी है। सभी ग्रहों में चंद्रमा की गति सबसे तेज़ होती है। चंद्रमा के गोचर की अवधि सबसे कम होती है। यह लगभग सवा दो दिनों में एक राशि से दूसरी राशि में गोचर कर जाता है। वैदिक ज्योतिष शास्त्र में राशिफल को ज्ञात करने के लिए व्यक्ति की चंद्र राशि की ही गणना की जाती है। क्योंकि यह सबसे प्रभावी माना जाता है। चंद्र राशि की गणना ऐसे की जाती है,, कि जातक के जन्म के समय चंद्रमा जिस राशि में स्थित होता है वह जातक की चंद्र राशि कहलाती है। ज्योतिष में चंद्र को स्त्री ग्रह माना गया है।।
शारीरिक बनावट पर चंद्रमा का प्रभाव देखा जाए तो ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जिस जातक की कुंडली के लग्न भाव में चंद्रमा विराजमान होता है. वह जातक सुंदर और आकर्षक होता है। इसके साथ ही वह साएसी व चैर्यवान होता है । उसका स्वभाव शांत होता है। चंद्र के प्रभाव के कारण जातक अपने जीवन में सिद्धांतों को अधिक महत्व देता है।। सिद्धांतवादी होने से वह जातक सामाजिक भी होता हे।| जातक थोड़ा घुमक्कड़ होता है।।
इसके साथ ही जम्न भाव में बैठा चंद्रमा जातक को कल्पनीक तौर पर प्रबल बनाता हैं। इसके साथ ही जातक संवेदनशील और भावुक भी होता है।
ज्योतिष में यदि किसी जातक की कुंडली में चंद्रमा मजबूत हो तो जातक को इसका सकारात्मक फल प्राप्त होता है। प्रबल चंद्रमा के चलते जातक मानसिक रूप से सुखी रहता है। मनमोस्थिति उसकी मजबूत होती हे। वह विचलित नहीं होता है। अपने विचार व फेसलों पर ज़रा भी संदेह नहीं करता है। बात परिवार की करें तो जातका परिवार में अपने माता से अच्छे संबंध रहते हैं और माँ की सेहत भी अच्छी रहती है।।
ज्योतिष की माने तो जिस जातक की कुंडली में चंद्रमा कमजोर होते हैं उन जातकों को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पडता है। जिसमें से
मानसिक तनाव के साथ ही आत्मबल की कमी भी शामिल हैं।। इसके अलावा जातक के माता के साथ संबंध मधुर नहीं रहते हैं। माता का स्वास्थ्य भी प्रभावित होता है । वैवाहिक जीवन में भी शांति नहीं रहती है। जातक भावनाओं, क्रोध व अपनी वाणी पर गियंत्रण नहीं रख पाता है। जिसके कारण जातक को निराशा का सामना करना पड़ता है। जातक की स्मृति शक्ति क्षीण हो जाती है। माता के लिए किसी न किसी प्रकार की समस्या बनी रहती है।
-: चंद्रमा का पौराणिक महत्व :-
चंद्रमा का हिंदू पौराणिक कथाओं में काफी ज़िक्र किया गया है। कथाओं में भी चंद्रमा को मन को नियंत्रित करने वाला व जल का देवता बताया गया है। सनातन धर्म में इन्हें देव की उपाधि प्राप्त है। आपने भगवान शिव के सिर पर चंद्र को देखा होगा। शिव के साथ ही सोमवार का दिन चंद्र देव का भी दिन माना जाता है। हिंदू धर्म शास्त्रों में भगवान शिव शंकर को चंद्रमा का स्वामी माना जाता है। सनातन थर्म ग्रंथ श्रीमद्भगवगत गीता में चंद्र देव को महर्षि अत्रि और अनुसूृईय्या के पुत्र के रूप में उल्लेस्पित किया गया है। पौराणिक शास्त्रों में चंद्रमा को बुध का पिता कहा जाता है और दिशाओं में यह वायव्य दिशा का स्वामी होता है।
ध्यान रखने योग्य बातें :- चंद्र को ज्योतिष में शास्त्र में स्त्री ग्रह मन गया है, इसका रंग सफेद, तत्व जल , देवता वरुण, प्रत्यादी देवी गौरी, धातु चाँदी , रत्न मोती , शारीरिक अंग फेफड़े, स्वाद नमक , भोजन चांवल , मौसम सर्दी , दिशा उत्तर-पश्चिम से जोड़कर देखा जाता है ||
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