हरियाली teej

.                            "हरियाली तीज"

          सुहागिन महिलाओं के लिए हरियाली तीज का यह पर्व विशेष महत्व रखता है। हरियाली तीज के दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र की कामना करने के लिए भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करती हैं। इस दिन महिलाएं श्रृंगार करती हैं और हाथों में मेहँदी लगाती हैं। ये वो समय होता है जब सावन में प्रकृति ने हरियाली की चादर ओढ़ी हुई होती है। यही वजह है कि इस त्यौहार को हरियाली तीज कहते हैं। सुहागिन महिलाओं के लिए ये व्रत बेहद महत्वपूर्ण माना गया है।
          हरियाली तीज का ये खूबसूरत त्यौहार श्रावण मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। ये पर्व मुख्यतः उत्तर भारत में मनाये जाने का चलन है। उत्तर प्रदेश में इस दिन को कजली तीज के रूप में मनाया जाता है। प्रकृति के इस मनोरम क्षण का आनंद लेने के लिए महिलाएं झूले झूलती हैं, लोक गीत गाकर उत्सव मनाती हैं। हरियाली तीज के अवसर पर देशभर में कई जगह मेले लगते हैं और माता पार्वती की सवारी धूमधाम से निकाली जाती है। सौंदर्य और प्रेम का यह उत्सव भगवान शिव और माता पार्वती के पुनर्मिलन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है।

                       हरियाली तीज पूजा विधि 

          शिव पुराण के अनुसार हरियाली तीज के दिन भगवान शिव और माता पार्वती का पुनर्मिलन हुआ था इसलिए सुहागन स्त्रियों के लिए इस व्रत की बड़ी महिमा है। इस दिन महिलाएं महादेव और माता पार्वती की पूजा-अर्चना करती हैं। 

1. इस दिन साफ-सफाई कर घर को तोरण-मंडप से सजायें। एक चौकी पर मिट्टी में गंगाजल मिलाकर शिवलिंग, भगवान गणेश, माता पार्वती और उनकी सखियों की प्रतिमा बनायें।
2. मिट्टी की प्रतिमा बनाने के बाद देवताओं का आह्वान करते हुए षोडशोपचार पूजन करें।
3. हरियाली तीज व्रत का पूजन रात भर चलता है। इस दौरान महिलाएं जागरण और कीर्तन भी करती हैं।
          हरियाली तीज पर हर महिला को तीन बुराइयों को छोड़ने का संकल्प लेना चाहिए। ये तीन बातें इस प्रकार है...
          1. पति से छल-कपट
          2. झूठ व दुर्व्यवहार करना
          3. परनिंदा (दूसरो की बुराई करने से बचना)

                       हरियाली तीज परंपरा 

          हरियाली तीज के इस त्यौहार से जुड़ी कई खूबसूरत परंपरा भी होती है। मान्यता के अनुसार शादी के बाद पड़ने वाली हरियाली तीज का बहुत महत्व बताया गया है। इस दौरान नवविवाहित लड़कियों को ससुराल से मायके बुला लिया जाता है। 

01. हरियाली तीज से एक दिन पहले नवविवाहित लड़की के ससुराल की तरफ से कपड़े, गहने, साज-श्रृंगार का सामान, मेहँदी, और फल मिठाई लड़की के मायके भेजी जाती है। 
02. कहा जाता है कि इस दिन हाथों में मेहँदी लगाने का बहुत महत्व होता है। 
03. हरियाली तीज के दिन महिलाएं दुल्हन की तरह सजती हैं। हाथों में मेहँदी और पैरों में आलता इनकी खूबसूरती को कई गुना बढ़ा देता है। मेहँदी और आलता सुहागिन महिलाओं की निशानी होती है। 
04. पूजा इत्यादि के बाद इस दिन सुहागिनें अपनी सास के पैर छूकर उन्हें सुहागी देती हैं। अगर किसी भी सूरत में सास नहीं होती हैं तो सुहागी घर की किसी भी अन्य सम्मानित महिला को दी जाती है। 
05. महिलाएं इस दिन साज-श्रृंगार कर के माँ पार्वती की पूजा करती हैं। 
06. इस दिन एक और खूबसूरत परंपरा का पालन किया जाता है जिसमें बागों में झूले लगाए जाते हैं और महिलाएं इस पर झूलती और लोक गीत पर नाचती-गाती हैं।

                    हरियाली तीज का पौराणिक महत्व

          हिंदू धर्म में हर व्रत, पर्व और त्यौहार का पौराणिक महत्व होता है। और उससे जुड़ी कोई रोचक कहानी व कथा होती है। हरियाली तीज उत्सव को भी भगवान शिव और माता पार्वती के पुनर्मिलन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार माता पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए कठोर तप किया था। इस कड़ी तपस्या और 108वें जन्म के बाद माता पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त किया। कहा जाता है कि श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया को ही भगवान शंकर ने माता पार्वती को पत्नी के रूप में स्वीकार किया । तभी से ऐसी मान्यता है कि, भगवान शिव और माता पार्वती ने इस दिन को सुहागन स्त्रियों के लिए सौभाग्य का दिन होने का वरदान दिया। इसलिए हरियाली तीज पर भगवान शिव और माता पार्वती का पूजन और व्रत करने से विवाहित स्त्री सौभाग्यवती रहती है और घर-परिवार में सुख-समृद्धि आती है।
                     
                       "ॐ नमः शिवाय"

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