शुक्र के प्रत्येक भाव पर दृष्टि
शुक्र के प्रत्येक भाव पर दृष्टि
प्रथम भाव पर:- लग्न भाव को शुक्र यद पूर्ण दृष्टि से देखता है तो जातक सुन्दर, शौकीन स्वभाव का, अवैध सम्बन्धो में विश्वास करने वाला, सजा- सजा साफ स्वच्छ रहने वाला, भाग्यशाली के साथ चतुर व बातूनी भी होता है।
द्वितीय भाव पर:- धन भाव पर शुक्र की दृष्टि से जातक अपनी वाणी से सबकोवश में करने वाला, आर्थिक रूप से सक्षम व पारिवारिक सुख भोगने वाला, नित्य नये मार्ग से धनार्जन करने में अग्रणी, अपनी वाणी से सबको मोहित करने में प्रवीण, परिश्रमी तथा भोग विलास में लीन रहने वाला होता है
तृतीय भाव पर:- इस भाव पर शुक्र की दृष्टि जातक को शासन करने में अर्थात आज के समयानुसार अपने अधीन लोगों को सन्तुष्ट करने में कुशल, शीघ्रपतनन अल्पवीर्य रोगी, अधिक भाई -बहिन वाला होता है। ऐसे जातक का 26 वर्ष के बाद ही भाग्योदय होता है। मेरे अनुभव के अनुसार ऐसा जातक सब कुछ होते हुए भी कम ही सुख भोगता है। वह किसी न किसी कारण से भौतिक सुख-सुविधा को अधिक पसन्द नहीं करता है।
चतुर्थ भाव पर:- इस भाव पर शुक्र की दृष्टि से जातक को समस्त प्रकार का सुख प्राप्त होता है जिसमे यदि इस भाव का स्वामी भी बलवान हो तो जातक को उच्च वाहन का सुख प्राप्त होता है। ऐसा जातक अपनी माता से अधिक प्रेम करता है तथा राज्य व समाज में भी सम्मान प्राप्त करता है। उसको विपरीत लिंग वर्ग अधिक पसन्द करता है। ऐसे जातक को अधिक शुभ फल तब प्राप्त होते हैं जब वह अपनी राशि में हो।
पंचम भाव पर:- इस भाव पर शुक्र की दृष्टि से जातक के प्रथम संतान कन्या सन्तति के रूप में होती है जो बहुत ही सुन्दर होती है। जातक विद्वान, रत्न व श्वेत वस्तुओं से आर्थिक लाभ प्राप्त करने वाला व स्थिर लक्ष्मीवान होता है। मेरे अनुभव में जातक किसी नशे का शौकीन अवश्य ही होता है तथा उसे नियमित रूप से आर्थिक लाभ होता रहता है।
षष्ठम भाव पर:- इस घर शुक्र की दृष्टि से जातक अंत्यधिक धनवान,भोग-विलास में लीन रहने वाला, समस्त प्रकार के भौतिक सुख भोगने वाला तथा अवैध सम्बन्धों में लिप्त होता है। ऐसा जातक अपने शत्रुओं के लिये काल होता है। अवैध सम्बन्धों के कारण वह शीघ्रपतन व गुप्तरोग से पीड़ित रहता है। बुध व गुरु के भी पीड़ित होने पर कुष्ठ रोग होता है। उसे अपने जीवनसाथी से केवल समाज को दिखाने के लिये ही प्रेम होता है।
सप्तम भाव पर:- इस भाव को जब शुक्र देखता है तो जातक अत्यधिक व्याभिचारी, काम-वासना से पीडित. 25 वर्ष की आयु से स्वतंत्र रहने वाला तथा सुन्दर जीवन साथी वाला होता है। मेरे अनुभव में ऐसा जातक बहुत ही चालाक होता है। वहअपनी बातों के माध्यम से सामने वाले की हमदर्दी प्राप्त कर उससे अवैध सम्बन्धबनाता है।
अष्टम भाव पर:- इस भाव पर शुक्र की दष्टि से जातक सदैव किसी बात से दुःखी रहने वाला तथा अत्यधिक कामी होता है। इसी अवगुण के कारण वह किसी से भी शारीरिक सम्बन्ध बनाता है, फिर गुप्त रोग से पीड़ित होता है। वह वात व कफ रोग से भी कष्ट उठाता है। ऐसा जातक साधु-सन्तो की सेवा करता है। केतु के योग होने पर स्वयं भी साधु बन सकता है क्योंकि साधारणतः वह परिवार से तो अलग ही रहता है।
नवम भाव पर:- इस भाव पर शुक्र की दृष्टि के प्रभाव से जातक भाग्यशालीतथा धर्म में रुचि रखने वाला, समाज अथवा गाँव का मुखिया, कुल का नाम करने वाला, शत्रु पर विजय प्राप्त करने वाला होता है। मेरे अनुभव में शुक्र यदि किसी भी पाप प्रभाव में नहीं है तो जातक सीमा में रहकर समस्त प्रकार के भोग करता है। अपने परिवार के लिये भी भौतिक सुख-सुविधा जुटाता है। विलक्षण प्रतिभा का धनी होने के साथ यश व कीर्ति भी प्राप्त करता है।
दशम भाव पर:- कर्म भाव पर शुक्र की दृष्टि से जातक राज्य से लाभ के साथसम्मान भी प्राप्त करता है। धनवान, भाग्यशाली, अधिकतर प्रवास पर रहने वाला तथा अनेक भूमि-भवन का स्वामी होता है। मेरे अनुभव में ऐसा जातक अपने पिता से कहीं आगे निकलता है। वह समाज में इतना नाम करता है कि उसका नाम उदाहरण के लिये प्रयोग होने लगता है। वह उच्च स्तर का वाहन सुख भोगता है।
एकादश भाव पर:- आय भाव को शुक्र यदि पूर्ण दृष्टि से देखे तो जातक अपने जीवन में बहुत धन कमाता है। उसकी आय के साधन भी अनेक होते हैं। वह कवि के रूप में भी यश प्राप्त करता है साथ ही वह कन्या सन्तति से विशेष प्रेम करने वालाहोता है परन्तु अवैध सम्बन्धों में अधिक विश्वास करता है।
द्वादश भाव पर :- इस भाव पर शुक्र की दृष्टि से जातक अत्यधिक खर्चीले स्वभाव का होता है। उसके पास समस्त प्रकार के भौतिक सुख की सामग्री उपलब्ध रहती है। शत्रुओं से दुःखी होता है। ऐसा जातक अल्पवीर्य के साथ वीर्य रोगी भी होताहै। अवैध सम्बन्धों में विशेष रुचि होती है । वह स्वयं विपरीत लिंग का विरोध सहनेवाला होता है। ऐसा जातक अधिकतर अपने धन का व्यय विवाह तथा गुप्त सम्बन्धो में अधिक करता है
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