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Showing posts from October, 2019

भीष्म पितामह–सम्पूर्ण कथा–पूर्वजन्म से मृत्यु तक

महाभारत के सबसे चर्चित पात्र,भीष्म पितामह–सम्पूर्ण  कथा–पूर्वजन्म से मृत्यु तक! #विट्ठलदासव्यास महाभारत एक ऐसा ग्रंथ है जिसमें कई नायक हैं। उनमें से एक नायक भीष्म पितामह भी हैं। सभी लोग जानते हैं कि भीष्म पितामह ने महाभारत की लड़ाई में कौरवों की ओर से युद्ध किया था, लेकिन बहुत से लोग उनके जीवन से जुड़ी बड़ी घटनाओं के बारे में नहीं जानते जैसे- भीष्म पितामह पूर्व जन्म में कौन थे, किसके श्राप के कारण उन्हें मनुष्य योनि में जन्म लेना पड़ा। उनके गुरु कौन थे और उन्हें क्यों अपने ही गुरु से युद्ध करना पड़ा? आज हम आप सब को इस लेख में भीष्म पितामह के पूर्वजन्म से लेकर उनकी इच्छा मृत्यु तक की सम्पूर्ण कथा बताएँगे। महाभारत के आदि पर्व के अनुसार एक बार पृथु आदि वसु अपनी पत्नियों के साथ मेरु पर्वत पर भ्रमण कर रहे थे। वहां वसिष्ठ ऋषि का आश्रम भी था। एक वसु पत्नी की दृष्टि ऋषि वसिष्ठ के आश्रम में बंधी नंदिनी नामक गाय पर पड़ गई। उसने उसे अपने पति द्यौ नामक वसु को दिखाया तथा कहा कि वह यह गाय अपनी सखियों के लिए चाहती है। पत्नी की बात मानकर द्यौ ने अपने भाइयों के साथ उस गाय का हरण कर लिया। जब महर्षि वसिष

तुलसी कोन थी

🌺🌺🌺🌺​*तुलसी कौन थी?*🌺🌺🌺🌺 तुलसी(पौधा) पूर्व जन्म मे एक लड़की थी जिस का नाम वृंदा था, राक्षस कुल में उसका जन्म हुआ था बचपन से ही भगवान विष्णु की भक्त थी.बड़े ही प्रेम से भगवान की सेवा, पूजा किया करती थी.जब वह बड़ी हुई तो उनका विवाह राक्षस कुल में दानव राज जलंधर से हो गया। जलंधर समुद्र से उत्पन्न हुआ था. वृंदा बड़ी ही पतिव्रता स्त्री थी सदा अपने पति की सेवा किया करती थी. एक बार देवताओ और दानवों में युद्ध हुआ जब जलंधर युद्ध पर जाने लगे तो वृंदा ने कहा – स्वामी आप युद्ध पर जा रहे है आप जब तक युद्ध में रहेगे में पूजा में बैठ कर आपकी जीत के लिये अनुष्ठान करुगी,और जब तक आप वापस नहीं आ जाते, मैं अपना संकल्प नही छोडूगी। जलंधर तो युद्ध में चले गये,और वृंदा व्रत का संकल्प लेकर पूजा में बैठ गयी, उनके व्रत के प्रभाव से देवता भी जलंधर को ना जीत सके, सारे देवता जब हारने लगे तो विष्णु जी के पास गये। सबने भगवान से प्रार्थना की तो भगवान कहने लगे कि – वृंदा मेरी परम भक्त है में उसके साथ छल नहीं कर सकता । फिर देवता बोले – भगवान दूसरा कोई उपाय भी तो नहीं है अब आप ही हमारी मदद कर सकते है। भगवान ने जल

पंचम भाव

पंचम भाव *जन्म कुंडली में पंचम भाव मुख्य रूप से संतान और ज्ञान का भाव होता है। ऋषि पाराशर के अनुसार इसे सीखने के भाव के तौर पर भी देखा जाता है। यह भाव किसी भी बात को ग्रहण करने की मानसिक क्षमता को दर्शाता है कि, कैसे आप आसानी से किसी विषय के बारे में जान सकते हैं। पंचम भाव गुणात्मक संभावनाओं को भी प्रकट करता है। कुंडली में पंचम भाव को निम्न प्रकार से व्यक्त किया जा सकता है।* *सम्राट की निशानी, कर, बुद्धि, बच्चे, पुत्र, पेट, वैदिक ज्ञान, पारंपरिक कानून, पूर्व में किये गये पुण्य कर्म* *कुंडली में पंचम भाव से क्या देखा जाता है *बुद्धिमता, लगाव, आत्मन बच्चे, प्रसिद्धि, संचित कर्म पद का बोध पंचम भाव से लगाया जाता है। *ज्योतिष विद्या से संबंधित पुस्तकों में पंचम भाव- *प्रश्नज्ञान में भट्टोत्पल कहते हैं कि मंत्रों का उच्चारण या धार्मिक भजन, आध्यात्मिक गतिविधियां, बुद्धिमता और साहित्यिक रचनाएँ पंचम भाव से प्रभावित होती हैं।* *पंचम भाव प्रथम संतान की उत्पत्ति, खुशियां, समाज और सामाजिक झुकाव का प्रतिनिधित्व करता है। यह भाव स्वाद और प्रशंसा, कलात्मक गुण, नाट्य रुपांतरण, मनोरंजन, हॉल और पार्टी,  र

संतान प्राप्ति के लिए

संतति योग दोष उपाय  निवारण  विश्लेषण भाग  1: संसार में कोई भी ऐसा दंपति नहीं होगा, जो संतान सुख नहीं चाहता हो। चाहे वह गरीब हो या अमीर। सभी के लिए संतान सुख होना सुखदायी ही रहता है। संतान चाहे खूबसूरत हो या बदसूरत, लेकिन माता-पिता को बस संतान चाहिए। फिर चाहे वह संतान माता-पिता के लिए सहारा बने या न बने। अकबर बादशाह ने भी काफी मन्नतें मानकर सलीम को माँगा था।  किसी-किसी की संतान होती है और फिर गुजर जाती है। ऐसा क्यों होता है? ये सब ग्रहों की वजह से होता है। यहाँ पर हम इन्हीं सब बातों की जानकारी देंगे, जिससे आप भी जान सकें कि संतान होगी या नहीं।  पंचम स्थान संतान का होता है। वही विद्या का भी माना जाता है। पंचम स्थान कारक गुरु और पंचम स्थान से पंचम स्थान (नवम स्थान) पुत्र सुख का स्थान होता है। पंचम स्थान गुरु का हो तो हानिकारक होता है, यानी पुत्र में बाधा आती है।  सिंह लग्न में पंचम गुरु वृश्चिक लग्न में मीन का गुरु स्वग्रही हो तो संतान प्राप्ति में बाधा आती है, परन्तु गुरु की पंचम दृष्टि हो या पंचम भाव पर पूर्ण दृष्टि हो तो संतान सुख उत्तम मिलता है।  पंचम स्थान का स्वामी भाग्य स्थान में ह

कुंडली मे प्रेम विवाह के योग

#कुंडली_में_प्रेम_विवाह_योग 1️⃣ ज्योतिष शास्त्र में कुंडली में विवाह का सप्तम स्थान बताया जाता है , सप्तमेश का सम्बंध पंचमेश से हो जाये तो व्यक्ति के प्रेम विवाह करने के योग बनते है। 2️⃣पंचमेश तथा सप्तमेश एक दूसरे से त्रिकोण या केंद्र स्थान में स्थित हो तो जातक प्रेम विवाह करता है। 3️⃣पंचम भाव के स्वामी सूर्य के साथ उसी भाव में चंद्रमा या मंगल बैठे हों तो प्रेम-विवाह हो सकता है। 4️⃣शुक्र या चन्द्रमा लग्न से पंचम या नवम हों तो प्रेम विवाह कराते हैं। 5️⃣ जब सप्तम या सप्तमेष का सम्बंध तीसरे, पांचवे,  नौवें, ग्यारहवें और बारहवें भाव के मालिक के साथ बनता हैं, ऐसी कुंडली वाले जातक का प्रेम विवाह होता है। 6️⃣सप्तमेश यदि पंचम स्थान के मालिक के साथ तीसरे, पांचवे, सातवे, ग्यारहवें और बारहवें भाव में मंगल या चन्द्रमा स्थित हो तो जातक प्रेम विवाह अवश्य करता है। 7️⃣पंचमेश और सप्तमेष एक साथ यदि तीसरे, पांचवे, सातवे, ग्यारहवें और बारहवें भाव में से किसी भाव में स्थित हो तो निश्चित रूप से जातक प्रेम विवाह करता है।  8 यदि पंचमेश एकादश यानी ग्यारहवें स्थान में स्थित हो तथा सप्तमेश बारहवें, तिसरे या पांच

कहानी

*"स्त्री" क्यों पूजनीय है ?* *==============* *एक बार सत्यभामाजी ने श्रीकृष्ण से पूछा, "मैं आप को कैसी लगती हूँ  ?* *" श्रीकृष्ण ने कहा, "तुम मुझे नमक जैसी लगती हो ।"* *सत्यभामाजी इस तुलना को सुन कर क्रुद्ध हो गयी, तुलना भी की तो किस से । आपको इस संपूर्ण विश्व में मेरी तुलना करने के लिए और कोई पदार्थ नहीं मिला।* *श्रीकृष्ण ने उस वक़्त तो किसी तरह सत्यभामाजी को मना लिया और उनका गुस्सा शांत कर दिया ।* *कुछ दिन पश्चात श्रीकृष्ण ने अपने महल में एक भोज का आयोजन किया छप्पन भोग की व्यवस्था हुई।* *सर्वप्रथम सत्यभामाजी से भोजन प्रारम्भ करने का आग्रह किया श्रीकृष्ण ने ।* *सत्यभामाजी ने पहला कौर मुँह में डाला मगर यह क्या - सब्जी में नमक ही नहीं था । कौर को मुँह से निकाल दिया ।* *फिर दूसरा कौर मावा-मिश्री का मुँह में डाला और फिर उसे चबाते-चबाते बुरा सा मुँह बनाया और फिर पानी की सहायता से किसी तरह मुँह से उतारा ।* *अब तीसरा कौर फिर कचौरी का मुँह में डाला और फिर.. आक्..थू !* *तब तक सत्यभामाजी का पारा सातवें आसमान पर पहुँच चुका था । जोर से चीखीं.. किसने बनाई है यह रसोई ?*

ભાઈ બીજ

*પ્રભાતનું પુષ્પ* વ્હાલાં મિત્રો..     શુભ સવાર.. આજે કારતક સુદ બીજ, ભાઈબીજ. સૌ મિત્રોને ભાઈબીજની શુભેચ્છાઓ..           આજનો દિવસ યમદ્વિતીયા તરીકે પણ ઓળખાય છે. પુરાણકથા મુજબ ભગવાન શ્રી સૂર્યનારાયણ અને તેમના પત્ની છાયાની પુત્રી યમુનાએ તેના ભાઈ યમરાજને આજના દિવસે પોતાના ઘરે જમવા નોતર્યાં હતાં ને ભાઈનો સસ્નેહ આદર સત્કાર કર્યો હતો. યમરાજે ખુશ થઈને તેની બહેનને વચન આપ્યું હતું કે આજના દિવસે કોઈ ભાઈનું અપમૃત્યુ નહિ થાય. આ પરંપરા મુજબ આજના દિવસે બહેન પોતાના ઘરે (સાસરે) તેના વ્હાલા ભાઈ - ભાભી અને તેમનાં બાળકોને જમવા આવવાનું ભાવભીનું નોતરું આપે છે અને ભાઈ યથાશક્તિ પોતાની બહેનને ભેટ સ્વરૂપે કઈક આપીને પોતાનો સ્નેહ દર્શાવે છે. આમ, આ તહેવાર રક્ષાબંધનની જેમ જ ભાઈ અને બહેનની સ્નેહગાંઠ મજબૂત કરી તેમનો પરસ્પર પ્રેમભાવ વધારવામાં નિમિત્ત બને છે.         કેટલી સુંદર છે સમાજ વ્યવસ્થા! અને એમાંય શિરમોર આપણી ભારતીય / હિંદુ સંસ્કૃતિ..માતા - પિતા, ભાઈ - બહેન અને પતિ - પત્ની .. દરેક સંબંધ નિઃસ્વાર્થ.. બસ થોડી સમજણનું પાણી સીંચો, સ્નેહનું ખાતર આપો ને દરેક સંબંધનો છોડ ખુશીઓના પુષ્પોથી લચી પડે. એમાંય ભાઈ બહેનનો સંબ

વાર્તા

અચાનક.....મેં બાઇક  ને બ્રેક મારી... મારા થી બુમ પડાઈ ગઈ....ઓ ...દાદા રસ્તા વચ્ચે.. મરવા નીકળ્યા છો..?   આવી રીતે રોડ ક્રોસ થાય ? અચાનક બ્રેક ના મોટા અવાજ માત્ર થી દાદા નીચે  પડી ગયા.. હું નીચે ઉતર્યો....દાદા નો હાથ પકડ્યો....દાદા નો હાથ ગરમ.. ગળે ને માથે હાથ મુક્યો...એ પણ એકદમ ગરમ.. દાદા તાવ થી ધ્રુજતા હતા...મને મારા બોલવા ઉપર પસ્તાવો..થયો... મેં દાદા નો હાથ પકડી કાર માં બેસાડ્યા....દાદા આટલો તાવ હોવા છતાં..રસ્તા વચ્ચે એકલા કેમ નીકળો છો.... અત્યારે જ મારી સાથે દવાખાને ચાલો..અને તમારા પરિવાર ના કોઈ સભ્ય નો નંબર આપો..હું..તેને દવાખાને..બોલાવી લઉં... દાદા..ભીની આંખે મારી સામે જોતા રહ્યા.... મેં કીધું..દાદા..એકલા રહો છો ? હા.એટલું જ બોલ્યા... પરિવાર મા કોઈ...? કોઈ નથી ?...પત્ની હતી પણ વર્ષ પહેલાં આકાશ સામે હાથ કરી બોલ્યા... હું..અમારા ફેમિલી  ડૉક્ટર પાસે લઈ ગયો... ડૉક્ટર મારી સાથે દાદા ને જોઈ બોલ્યા... પંડ્યા દાદા.. આરામ કરવાનું કીધુ..હતું...ફરીથી એકલા બહાર નીકળ્યા..? મેં ડૉક્ટર સામે જોઈ કીધુ....તમે ઓળખો છો.દાદા ને ? હા.. સારી રીતે...હું તેમનો પણ ફેમિલી ડૉક્ટર છું. આતો અમારા પંડ્યાદાદા..છ
जानिए क्यों मनाई जाती है दीपावली?????? सभी मित्रों को आपके अपनों को, धनवन्तरी-त्रयोदशी, यम-दीपदान, दीपोत्सव, गोवर्धन तथा भातृद्वितीया, पञ्चपर्वोंं की बहुत-बहुत अग्रिम हार्दिक शुभकामनाएँ।  इस प्रकाश उत्सव के पीछे हैं कई कथायें हैं, आज हम आपको छह ऐसे कारण बताने जा रहे हैं जिसकी वजह से इस रौशनी से नहाये त्यौहार को आप और हम मनाते हैं।  भारत देश में त्यौहारों का काफी महत्व है, खासकर हिंदू धर्म में कई तरह के  त्यौहार मनाये जाते हैं। लेकिन दीपावली की रौनक ही अलग होती है। रोशनी से डूबे शहर और गांव बेहद आकर्षित लगते हैं। दिवाली आती है तो अपने साथ कई सारे त्यौहारों की सौगात लेकर आती है, पहले दशहरा, फिर धनतेरस, छोटी दिवाली, बड़ी दिवाली, गोवर्धन पूजा और भाईदूज जैसे कई त्यौहार आते हैं। सिर्फ भारत में ही नहीं विदेशों में भी दिवाली का त्यौहार धूम-धाम से मनाया जाता है। क्या आप जानते हैं दीपावली क्यों मनाई जाती है, इसके पीछे कई कारण हैं। कुछ तो आपने बचपन से सुने होंगे कुछ हम आपकी जनरल नॉलेज में इजाफा करने वाले हैं। हम आपको छह ऐसे कारण बताने जा रहे हैं जिसकी वजह से इस रौशनी से नहाये त्यौहार को आप और हम
सभी मित्रो को दीपावली के पावन पर्व की अग्रिम  हार्दिक शुभकामनाएं!!!!! दीपावली, भारत में हिन्दुओं द्वारा मनाया जाने वाला सबसे बड़ा त्योहार है। दीपों का खास पर्व होने के कारण इसे दीपावली या दिवाली नाम दिया गया। दीपावली का मतलब होता है, दीपों की अवली यानि पंक्ति। इस प्रकार दीपों की पंक्तियों से सुसज्ज‍ित इस त्योहार को दीपावली कहा जाता है। कार्तिक माह की अमावस्या को मनाया जाने वाला यह महापर्व, अंधेरी रात को असंख्य दीपों की रौशनी से प्रकाशमय कर देता है।   दीप जलाने की प्रथा के पीछे अलग-अलग कारण या कहानियां हैं। हिंदू मान्यताओं में राम भक्तों के अनुसार कार्तिक अमावस्या को भगवान श्री रामचंद्रजी चौदह वर्ष का वनवास काटकर तथा असुरी वृत्तियों के प्रतीक रावणादि का संहार करके अयोध्या लौटे थे।    तब अयोध्यावासियों ने राम के राज्यारोहण पर दीपमालाएं जलाकर महोत्सव मनाया था। इसीलिए दीपावली हिंदुओं के प्रमुख त्योहारों में से एक है। कृष्ण भक्तिधारा के लोगों का मत है कि इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने अत्याचारी राजा नरकासुर का वध किया था। इस नृशंस राक्षस के वध से जनता में अपार हर्ष फैल गया और प्रसन्नता से भरे ल
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राहु का प्रभाव राहु की गणना सूर्य और चन्द्र के आधार पर की जाती है. अगर सूर्य प्राण है तो चन्द्रमा मन है, राहु इसी मन और प्राण का रहस्य है. राहु का सहयोगी केतु मुक्ति और मोक्ष का द्वार खोल सकता है. यह जीवन के तमाम ज्ञात अज्ञात रहस्यों को खोल सकता है अतः इसे रहस्यमयी ग्रह भी कहते हैं. पूर्वजन्म से किस तरह के कर्म और संस्कार आप लेकर आये हैं और जीवन पर उसका क्या प्रभाव होगा, यह बात कुंडली मैं राहु के अध्ययन से जानी जा सकती है. राहु का पूर्वजन्म और वर्तमान जन्म का सम्बन्ध समझकर ही आप अज्ञात बाधाओं से मुक्ति पा सकते हैं. राहु के अलग-अलग भाव के प्रभाव क्या हैं? - अगर राहु कुंडली के प्रथम भाव में हो तो व्यक्ति पारिवारिक जीवन की समस्याओं का सामनाकरना पड़ता है, क्योंकि उसने अपने पारिवरिक जीवन की कीमत नहीं समझी है. - अगर राहु कुंडली के द्वितीय भाव में हो तो व्यक्ति भयग्रस्त होता है,क्योंकि उसने पहले अपनी शक्तियों का दुरूपयोग किया है. - अगर राहु तृतीय भाव में हो तो व्यक्ति दुस्साहसी होता है , और इसी कारण से कभी कभी भीषण दुर्घटनाओं का शिकार भी होता है. - अगर राहु चतुर्थ भाव में हो तो व्यक्ति को कभी

छोटी कहानी

एक बकरी के पीछे शिकारी कुत्ते दौड़े। बकरी जान बचाकर अंगूरों की झाड़ी में घुस गयी*। कुत्ते आगे निकल गए। बकरी ने निश्चिंतापूर्वक अँगूर की बेले खानी शुरु कर दी और जमीन से *लेकर अपनी गर्दन पहुचे उतनी दूरी तक के सारे पत्ते खा लिए। पत्ते झाड़ी में नहीं रहे। छिपने का सहारा समाप्त् हो जाने पर कुत्तो ने उसे देख लिया और मार डाला* !! सहारा देने वाले को जो नष्ट करता है , उसकी ऐसी ही दुर्गति होती है। मनुष्य भी आज सहारा देने वालीं जीवनदायिनी नदियां, पेड़ पौधो, जानवर, गाय, पर्वतो आदि को नुकसान पंहुचा रहा है और इन सभी का परिणाम भी अनेक आपदाओ के रूप में भोग रहा है*। *प्राकृतिक सम्पदा बचाओ* *अपना कल सुरक्षित करो*       

कुंडली में धन स्थान

कुंडली में धन का स्थान दूसरा घर व ग्यारवाँ घर माना जाता है। अगर किसी व्यक्ति की कुंडली में इन दोनों घरों के अन्दर मंगल और सूर्य एक साथ विराजमान हों तो वह व्यक्ति एक सफल व्यवसायी बनता है। इस योग वाले व्यक्ति के पास धन प्रचुर मात्रा में रहता है। अगर कुंडली में दसमं स्थान पर ब्रहस्पति और मंगल एक साथ बैठे हों या चन्द्रमा व मंगल एक साथ बैठे हों तो यह गज केसरी और लक्ष्मी नारायण योग बनाते हैं। इन दोनों योगों वालों जातकों के पास धन, बहुत हल्के व कम प्रयास से भी आ जाता है। इन जातकों की आय अधिक होती है और व्यय कम होता है। इन योग से प्रभावित व्यक्ति पर माँ लक्ष्मी की कृपा दृष्टि सदैव बनी रहती है। अगर किसी जातक का सिंह लग्न में दसमं स्थान पर सूर्य और बुध हों तो यह एक बुधादित्य योग बन जाता है। शास्त्रों के अनुसार यह योग व्यक्ति को धनवान बना देता है। जन्म कुंडली में दसमं स्थान में सूर्य और बुध एक साथ युक्त हो तो यह योग बनता है। ऐसे योग वाला व्यक्ति अतिबुद्धिमान एवं चतुर होता है। इस प्रकार के जातक बहुत ही कम समय में चर्चित हो जाते हैं। इनको मान-सम्मान भी बहुत जल्दी प्राप्त हो जाता है। मीन लग्न में दस

ग्रहों की युति-प्रतियुति के क्या फल हो सकते है ?

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ग्रहों की युति-प्रतियुति के क्या फल हो सकते है ? : जानिए ग्रह की युति : ग्रहों की युति-प्रतियुति के क्या फल हो सकत आइए देखें, विभिन्न ग्रहों की युति-प्रतियुति के क्या फल हो सकते हैं…. सूर्य-गुरु :  उत्कृष्ट योग, मान-सम्मान, प्रतिष्ठा, यश दिलाता है। उच्च शिक्षा हेतु दूरस्थ प्रवास योग तथा बौद्धिक क्षेत्र में असाधारण यश देता है। सूर्य-शुक्र :  कला क्षेत्र में विशेष यश दिलाने वाला योग होता है। विवाह व प्रेम संबंधों में भी नाटकीय स्थितियाँ निर्मित करता है। सूर्य-बुध :  यह योग व्यक्ति को व्यवहार कुशल बनाता है। व्यापार-व्यवसाय में यश दिलाता है। कर्ज आसानी से मिल जाते हैं। सूर्य-मंगल :  अत्यंत महत्वाकांक्षी बनाने वाला यह योग व्यक्ति को उत्कट इच्छाशक्ति व साहस देता है। ये व्यक्ति किसी भी क्षेत्र में अपने आपको श्रेष्ठ सिद्ध करने की योग्यता रखते हैं। सूर्य-शनि :  अत्यंत अशुभ योग, जीवन के हर क्षेत्र में देर से सफलता मिलती है। पिता-पुत्र में वैमनस्य, भाग्य का साथ न देना इस युति के परिणाम हैं। सूर्य-चंद्र :  चंद्र यदि शुभ योग में हो तो यह यु‍ति मान-सम्मान व प्रतिष्ठा की दृष्टि से श्रेष्ठ होती है, मग