श्रेष्ठ जीवन के छ: सूत्र
. * श्रेष्ठ जीवन के छ: सूत्र *
* पहला सूत्र : ध्यान
ब्रम्ह मुहूर्त का समय सुबह तीन बजकर चालीस मिनट से लेकर साढ़े चार बजे तक का होता है, प्रत्येक व्यक्ति को स्वास्थ्य की दृष्टि से सूर्योदय से पहले उठ ही जाना चाहिए, मै यह नहीं कहता कि आप साढ़े तीन बजे उठ जाएं या पांच बजे उठ जाएं, आपकी इच्छा है, जब भी चाहें उठकर सबसे पहले बिस्तर पर बैठकर ध्यान में उतरने की शुरुआत करें, कोई अन्य कार्य न करें, प्रतिदिन एक ही समय पर उठें, यानी यदि आज आप 6 बजकर 10 मिनट पर उठे हैं तो इस समय का अलार्म लगा लें, ध्यान का जरा सा स्वाद भी आपको शीघ्र उठने पर मजबूर कर देगा,
ब्रम्ह मुहूर्त के बड़े गहरे अर्थ हैं, किन्तु मै एक लाइन में कहूं कि उस समय अस्तित्व या ब्रह्मांडीय या दैवीय ऊर्जा प्रत्येक प्राणी मेे प्रवेश करती है
सुखासन मेे अर्थात पालथी लगाकर बैठ जाएं, रीढ़ को सीधा रखें, तनकर न बैठें, शरीर को ढीला छोड़ दें, दोनों कान में मोबाइल का खराब पड़ा हुआ ईयर प्लग लगा लें ताकि बाहर की आवाजें कम सुनाई पड़े, इससे भी अच्छा कोई तरीका है तो वह करें
शरीर में कोई हलचल न करें, शांत बैठें, किसी भी तरह का कोई विचार न करें, कुछ सोचें नहीं, कोई कल्पना न करें, कुछ याद न करें
यही स्थिति आपको ध्यान में ले जाएगी, किन्तु यह स्थिति प्राप्त करना चांद पर जाने से ज्यादा कठिन है, शांत बैठने पर विचार ज्यादा आएंगे, मन कुछ कल्पना करने में व्यस्त हो जाएगा, कोई दृष्य देखने की कोशिश करेंगे, कुछ याद आ जाएगा
आपको मै एक जादू की छड़ी देता हूं, आप बीच बीच में यह ध्यान दें कि कहीं मै कुछ सोच तो नहीं रहा हूं ! और बस सारे विचार विलीन हो जाएंगे
इस वाक्य पर फिर ध्यान दें, " कहीं मै कुछ सोच तो नहीं रहा हूं "
कुछ दिनों की बात है, आपको इसका अभ्यास हो जाएगा और फिर आप थोड़ी थोड़ी देर में यह ध्यान देते रहेंगे, अभ्यास थोड़ा और पुराना पड़ने पर ध्यान स्वयं ही चेक कर लेता है कि कहीं कुछ चल तो नहीं रहा है, अर्थात आपको यह सोचना नहीं पड़ेगा, आप अलग हो जाएंगे
गर्भवती स्त्री काम मेे कितनी भी व्यस्त हो, बातों में कितनी भी व्यस्त हो, थोड़ी थोड़ी देर में उसका ध्यान पेट पर चला ही जाता है, उसे ध्यान देना नहीं पड़ता है, यह सोचना नहीं पड़ता है
तो जैसे ही आपका ध्यान इस बात पर जाएगा कि कुछ चल तो नहीं रहा है, सारे विचार विदा हो जाएंगे, आपको केवल ध्यान देना है, या दूसरे शब्दों में कहूं कि आपको केवल देखना है
विचारो को हटाना या भगाना नहीं है, संघर्ष नहीं करना है, तनाव बिल्कुल भी न लें, केवल दृष्टा बने, आपके देखने मात्र से विचार तिरोहित हो जाएंगे, विचार आते भी हैं तो आने दें,केवल उन्हें देखें, लेकिन उन विचारों में आप मशगूल न हो जाएं, उन्हें साथ न दें अर्थात आप स्वयं विचार न करने लगें, कोई कल्पना न करने लगें
इन बहुत सारे शब्दों को आप किनारे हटा दीजिए, केवल बीच बीच मेे ध्यान दीजिए, ऐसा करने पर यानी आपके ध्यान देते ही विचार गायब हो जाएंगे
शांत बने रहें, निर्विचार बने रहें,
एक क्षण ऐसा भी आएगा जब अचानक सबकुछ शून्य हो जाएगा, कानों में पड़ती हल्की आवाजें भी बंद हो जाएंगी, आपका शरीर और मन सुन्न हो जाएगा
यही ध्यान का प्रारंभिक चरण है, ऐसा केवल दो, तीन सेकंड के लिए होगा
शुरुआत में आप 10 मिनट के लिए बैठें, हो सकता है कि 2 सेकंड की यह स्थिति प्राप्त करने में आपको चार पांच दिन लग जाएं, इसके बाद ऐसी स्थिति 10 मिनट के ध्यान में दो या तीन बार आ सकती है
अब आप ध्यान का समय 20 मिनट कर दीजिए, धीरे धीरे यह दो सेकंड, पांच सेकंड में तब्दील होगा, फिर दस सेकंड होगा, 20 मिनट में कई बार होने लगेगा
लेकिन इन सेकंड्स को बढ़ाने का कोई प्रयास आप न करें, आपने कुछ किया की सब चौपट हो जाएगा, आपको बस शांत व निर्विचार बने रहना है, बीच बीच में यह ध्यान देना है कि कहीं कोई विचार तो नहीं चल रहा है
बस, इसके अलावा आप कुछ नहीं कर सकते हैं, बाहर से आती किसी भी प्रकार की आवाज़ों के प्रति संवेदनशील न बने, उन पर ध्यान न दें, बिल्कुल तटस्थ बने रहें जैसे आपने कुछ सुना ही नहीं, इसके लिए जरूरी है कि शुरुआत में ऐसा समय चुनें जब बाहर या घर के लोगों की आवाजें कम हों
कोई भी आवाज सुनने की कोई कोशिश न करें, मन के तल पर कोई दृश्य की कल्पना न करें, सुनी सुनाई बातों, जैसे तेज प्रकाश या प्रकाश बिंदु दिखाई पड़ेगा, या नाद सुनाई पड़ेगा, ऐसी कोई इच्छा न रखें, कोई कल्पना न करें,
प्रत्येक व्यक्ति का अनुभव अलग हो सकता है, प्रत्येक व्यक्ति का सत्य अलग हो सकता है, इसलिए मै अपना अनुभव नहीं लिख रहा हूं, जिस रास्ते पर चला हूं केवल वह रास्ता दिखा रहा हूं, इसलिए जो मेरी धारणाएं थीं, जो गलतफहमियां थीं, जो अज्ञानता थी वह सब मै लिख आया हूं
आपका उद्येश्य केवल शून्य हो जाना है, फिर जो होगा वह आपका अपना सत्य अपना अनुभव होगा, इसलिए किसी भी धारणा से मुक्त हो जाना जरूरी है
बीच बीच में 5 या 10 सेकंड्स के लिए जो ध्यान लगता है, वह धीरे धीरे दो मिनट में भी पहुंचेगा, इसके बाद आपको मेरे इन शब्दों की ज़रूरत नहीं पड़ेगी, किसी के भी शब्दों कि जरूरत नहीं पड़ेगी, शर्त यह है कि आप संकल्प ले लें कि भोजन मिले या न मिले ध्यान करना है, फिर आप दिन मेे कई बार ध्यान कर सकते हैं
जब यह ध्यान 30 सेकंड तक पहुंचेगा तब आपको ऐसा महसूस होगा कि आप बेहोश हो रहे हैं, तो आपको डरना नहीं है, अपने आपको इस डर से जकड़ न लें, संभालने में न लग जाएं, अपने आप को ढीला छोड़ दें, जो होना है हो जाने दें, वास्तव में आप बेहोश नहीं हो रहे हैं, गिर नहीं रहे हैं
आप ध्यान की गहरी अवस्था में जा रहे हैं, ऐसा भी लगेगा की आप किसी गहरी अंधेरी खाई में गिर रहे हैं, तब आप अपने को बचाने की कोशिश न करें, डरें नहीं, आपको कुछ नहीं होगा, संभलने की कोशिश न करें, गिर जाने दो, जो होता है हो जाने दो, यही ध्यान की गहरी अवस्था है, यदि यहां तक पहुंच गए तो फिर अब मुझे कुछ नहीं कहना है
जो लोग बैठकर नहीं कर सकते वे लेटकर करें, तकिया न लगाएं, और यह ध्यान रहे कि झपकी या नींद न आए, इसे लोग योग निद्रा भी कहते हैं किन्तु आप शब्दों मेे न उलझें
दो दो मिनट का ध्यान यदि आपको लगने लगा तो फिर आपके स्वभाव मेे, आपके विचारों में, आपकी कार्यशैली मेे, आपकेेे शरीर में परिवर्तन आना शुरू हो जाएगा, शरीर में परिवर्तन का अर्थ है, शरीर में कुछ हल्कापन, ताजकी, फुर्ती
एक दिन ऐसा भी आएगा जब लगातार दस मिनट तक आप नहीं होंगे, अर्थात ध्यान होगा, आप नहीं होंगे
फिर गूंगे का गुड़ हो जाएगा, क्योंकि उस आनंद को बताने के लिए आपको शब्द नहीं मिलेंगे
धीरे धीरे आपको यह समझ में आने लगेगा कि मै कौन हूं, जीवन का वास्तविक अर्थ आपके सामने प्रकट होने लगेगा, जीवन का मायावी भ्रम जाल टूटने लगेगा और आप सत्य मेे स्थिर होने लगेंगे
अब तक जो कुछ भी मैंने लिखा, अपना अनुभव लिखा, यह बहुत जरा सा है, क्योंकि मै न तो योगी हूं, न संत हूं और न ही ज्ञानी, इसके आगे मुझे नहीं मालूम, हालांकि मै 15 वर्षों से ध्यान करता आ रहा हूं, मुझे जितना भी मिला वह मैंने लिख दिया है
इसके आगे क्या है, आपकी तरह मैंने भी सुना है और अब तक की छोटी सी यात्रा से भी लगता है कि आगे फिर बुद्धत्व है, अह्म ब्रमहास्मी है
यह एक ऐसी अवस्था है जहां पहुंचकर मनुष्य के कोटि कोटि जन्मों के अच्छे और बुरे कर्म भस्म हो जाते हैं, और जब कर्म ही शेष नहीं रहेंगे तो आगामी जीवन भी नहीं होगा, अर्थात बूंद सागर बन जाएगी या सागर मेे विलीन हो जाएगी
मात्र सुबह शाम ध्यान कर लेने से आप कहीं दूर तक पहुंचेंगे नहीं, यदि साक्षी भाव का अभ्यास न होगा
इसलिए मेरी सलाह है कि आप ओशो की पुस्तकें खरीदें और पढ़ें, कोई भी पुस्तक पढ़ने के कुछ दिनों या महीनों बाद फिर उसी पुस्तक को पढ़ें, जितनी बार पढ़ेंगे, कुछ नए अर्थ मिलेंगे
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