उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र के चारों चरण में शनि, राहु और केतु का फल कथन :-
उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र के चारों चरण में शनि, राहु और केतु का फल कथन :-
शनि
शनि पर सूर्य की दृष्टि हो तो जातक सीधे मुंह बात नहीं करता और अपने पिता का शत्रु रहता है। यही कारण है कि उसे पैतृक संपत्ति प्राप्त नहीं होती। चंद्र की दृष्टि हो तो छोटी बहन विधवा होती है। उसका दायित्व जातक पर आता है। मंगल की दृष्टि हो तो सहोदर जीवित नहीं रहते। बुध की दृष्टि हो तो वह उच्च शिक्षा प्राप्त करता
है, वैवाहिक जीवन असंतुलित रहता है। बृहस्पति की दृष्टि होने पर शासन से लाभान्वित होता है। सभी से मान-सम्मान प्राप्त होता है। शुक्र की दृष्टि हो तो दो विवाह होते हैं। स्वर्ण-रजत के व्यापार से धन प्राप्ति होती है।
★ प्रथम चरण में शनि हो तो जातक को मां का सुख प्राप्त नहीं होता। शनि के साथ राहु या केतु हो एवं उस पर मंगल की दृष्टि हो तो जातक की आयु के सातवें वर्ष में मां की मृत्यु होती है। जातक के एक ही भाई रहता है, वह भी परदेश में रहता है, उससे ज़ातक को आर्थिक लाभ मिलता है।
★ द्वितीय चरण में शनि हो तो ऐसी महिला जातक सुंदर होती है। असमय केश पक जाते हैं और मुखमंडल में भी परिवर्तन आता है।
★ तृतीय चरण में जन्मी महिला का पति सदैव रोगी रहता है। ऐसा जातक रहस्यमयी शास्त्रों, तंत्र-मंत्र इत्यादि में रुचि रखता है।
★ चतुर्थ चरण में शनि हो तो जातक संततिहीन, निर्धन, महामूर्ख होता है। भंडारगृह का रक्षक या असमाजिक तत्त्वों का अगुवा रहता है।
राहु
★ प्रथम चरण में राहु हो तो जातक के कंठ पर काला तिल या काला व्रण पाया जाता है। जातक दरिद्री एवं कपटी रहता है। दूसरों का धन एवं संपत्ति हड़पने की प्रवृत्ति उसमें रहती है। भयानक दुर्घटना होती है।
★ द्वितीय चरण में राहु हो तो जातक महत्त्वाकांक्षी होता है। अपना कार्य योजनाबद्ध ढंग से करता है। उसे अवैध माध्यम से अधिक धन प्राप्त होता है। वैवाहिक जीवन दुखी रहता है।
★ तृतीय चरण में राहु हो तो जातक का विवाह अधिक विलंब से होता है। व्यापार में बड़ी क्षति उठानी पड़ती है। युवावस्था में अतिकामुकता के कारण गुप्त रोगों का भय रहता है।
★ चतुर्थ चरण में राहु हो तो जातक कपटी एवं दरिद्री रहता है। अपने मामा या चाचा के लिए घातक सिद्ध होता है। दुर्घटना के कारण अपंग बनता है।
केतु
★ प्रथम चरण में केतु हो तो जातक शारीरिक दृष्टि से स्वस्थ, धनवान एवं वैवाहिक जीवन में सुखी रहता है। उसके एक ही कन्या संतति होती है। वह दमा एवं उदर रोग से पीड़ित रहता है।
★ द्वितीय चरण में केतु हो तो जातक में प्रतिशोध की भावना होती है। अपनी पत्नी के माध्यम से धनार्जन करता है। उसे पत्नी का साथ लंबे समय तक नहीं मिलता।
★ तृतीय चरण में केतु हो तो जातक मध्यम शिक्षित एवं मंत्र-तंत्र में रुचि रखता है। तुच्छ कार्य करके अपनी आजीविका चलाता है। लेकिन केतु के साथ अन्य ग्रह हो तो जातक अपना व्यापार करता है और उसमें भारी हानि उठानी पड़ती है।
★ चौथे चरण में केतु के उपरोक्तानुसार मिश्रित फल प्राप्त होते हैं।
Comments
Post a Comment