शनि दृष्टि
शनि सूत्रम्
जन्म कुंडली के 12वे भाव में बैठा शनि
व लग्न और चन्द्र लग्न से वे भाव में शनि का गोचर्
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जन्म कुंडली का 12वा भाव
5वे भाव से 8 घर दूर है इस लिए ये 12वा भाव संतान का अरिस्ट है
इस लिए संतान के लिए यहाँ बैठा शनि अच्छा नहीं है
यहाँ से शनि जन्म कुंडली के दूसरे भाव पर दृस्टि डालता है
दूसरा भाव - 7वे घर से 8 घर दूर है यानी विवाह का अरिस्ट है
इस लिए 12वे भाव में बैठा शनि कुंडली के दूसरे भाव पर अपनी तीसरी दृस्टि डाल कर वैवाहिक जीवन में व्यथा उत्पन्न् करता है भले ही धन की वज़ह से व्यथा आए
12वे भाव में बैठा हुआ शनि अपनी 7वी दृस्टि से कुंडली के 6 ठे भाव को देखता है
अब छठा भाव क्या है?
छठा भाव - 11वे भाव से 8 घर दूर है यानी लाभ का अरिस्ट है इस लिए शनि की दृस्टि वहाँ पढ़ने से लाभ में देरी होति है मन चाहे काम बनते नहीं है
और 12वे भाव में बैठा हुआ शनि अपनी 10वी दृस्टि से जन्म कुंडली के 9वे भाव को देखता है
9वा भाव क्या है ?
9वा भाव - जन्म कुंडली के दूसरे भाव से 8 घर दूर है
यानी धन और परिवार का अरिस्ट है
धन से जुड़ी चिंताए ,धन की हानि और पारिवारिक कलेश क्लेश होते हैं
इसी तरह गोचर का शनि जन्म कुंडली के 12वे भाव में या फिर चन्द्र कुंडली के 12वे भाव में ये ही सब समस्याए पैदा करता है
चन्द्र कुंडली से 12वे भाव में शनि का गोचर शुरू होने से शनि ग्रह की साढ़े साती शुरू होती हैं
जन्म कुंडली में 12वे भाव में शनि हो तो अंत समय में मृत्यु कस्ट के साथ होती हैं व्यक्ति अस्पताल में दम तोड़ सकता है
शनि ग्रह जन्म कुंडली में लग्न में या 7वे भाव में वक्री होकर बैठा हो तो शादी में देरी होति है
जन्म कुंडली के चौथे स्थान् में वक्री शनि होने पर यदि व्यक्ति पैत्रक स्थान छोड़ दे तो भी दुर्भाग्य से मुक्ति नहीं मिलती
5वे भाव में बैठे शनि को बिल्क़ुल भी ठीक नहीं कहा गया है
व्यक्ति को जीवन भर कोई ना कोई बीमारी लगी रहती हैं, बीमारी रहने से कामेच्छा मरी हुई रहती हैं
संतान कोई ना कोई दुःख जीवन के किसी ना किसी पड़ाव पर जरूर देती है
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