राहूकालसर्पदोष*
*राहूकालसर्पदोष* जब जन्म कुंडली में सारे ग्रह राहु और केतु के बीच अवस्थित रहते हैं तो उससे ज्योतिष विद्या मर्मज्ञ व्यक्ति यह फलादेश आसानी से निकाल लेते हैं कि संबंधित जातक पर आने वाली उक्त प्रकार की परेशानियाँ राहूकालसर्प योग की वजह से हो रही हैं। परंतु याद रहे, कालसर्प योग वाले सभी जातकों पर इस योग का समान प्रभाव नहीं पड़ता। किस भाव में कौन सी राशि अवस्थित है और उसमें कौन-कौन ग्रह कहाँ बैठे हैं और उनका बलाबल कितना है - इन सब बातों का भी संबंधित जातक पर भरपूर असर पड़ता है। इसलिए मात्र कालसर्प योग सुनकर भयभीत हो जाने की जरूरत नहीं बल्कि उसका ज्योतिषीय विश्लेषण करवाकर उसके प्रभावों की विस्तृत जानकारी हासिल कर लेना ही बुद्धिमत्ता कही जायेगी। जब असली कारण ज्योतिषीय विश्लेषण से स्पष्ट हो जाये तो तत्काल उसका उपाय करना चाहिए। नीचे कुछ ज्योतिषीय स्थितियां दी गय़ीं हैं जिनमें कालसर्प योग बड़ी तीव्रता से संबंधित जातक को परेशान किया करता है। *राहूकालसर्पदोषके प्रकार* राहूकाल सर्प दोष के 12 मुख्य प्रकार बताएं हैं:- 1. अनंत, 2. कुलिक, 3. वासुकि, 4. शंखपाल, 5. पद्म, 6. महापद्म, 7. तक्षक, 8. कर्को