kavita
कविता ...(मस्त फ़क़ीर ) चला दीवाना फ़क़ीर बनकर दुनिया की अन्तराओ से , न जाने कहाँ - कहाँ नही भटका दुनिया की इस चकाचौंध में। जन्म लिया तब सोंचा था कि हरि नाम के दूजा न कोई किसीसे नाता है , ..पड़ा इस दुनियादारी में ..की हर छोड़कर जऱ पर नियत लगी है। जवानी में जब हरि से प्रेम का सोंचा था ..लेकिन..दीवाना ने खोजी एक दीवानी है, ...जब कोई मिला इस दीवाने को गुरुवंश का कोई गुरु है तब समझ आया कि दीवानगी हरि प्रेम में लगानी है। चला दीवाना फ़क़ीर बनकर दुनिया की अन्तराओ से , हरि प्रेम का दीवाना बनकर भटकी दुनिया जानी है ।