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Showing posts from September, 2025

काली मिर्च से धन प्राप्ति के अचूक उपाय

काली मिर्च से धन प्राप्ति के अचूक उपाय    जीवन में धन अति आवश्यक है। धन न हो तो व्यक्ति के जीवन में खुशियां भी बेमानी लगती है और यदि धन है तो हर दिन एक नई खुशी होती है। अनेक धर्म ग्रंथों में भी धन के महत्व का वर्णन किया गया है।  तंत्र शास्त्र के अंतर्गत कई ऐसे उपाय बताए गए हैं जिन्हें करने से धन की चाह पूरी हो जाती है और जीवन में फिर कभी धन की कमी नहीं होती। ऐसे ही कुछ उपाय नीचे लिखे हैं- उपाय 1- शनिवार के दिन पीपल का एक पत्ता तोड़कर उसे गंगाजल से धोकर उसके ऊपर हल्दी तथा दही के घोल से अपने दाएं हाथ की अनामिका अंगुली से ह्रीं लिखें। इसके बाद इस पत्ते को धूप-दीप दिखाकर अपने बटुए में रखे लें।  प्रत्येक शनिवार को पूजा के साथ वह पत्ता बदलते रहें। यह उपाय करने से आपका बटुआ कभी धन से खाली नहीं होगा। पुराना पत्ता किसी पवित्र स्थान पर ही रखें। 2- काली मिर्च के 5 दाने अपने सिर पर से 7 बार उतारकर 4 दाने चारों दिशाओं में फेंक दें तथा पांचवें दाने को आकाश की ओर उछाल दें। यह टोटका करने से आकस्मिक धन लाभ होगा। 3- अचानक धन प्राप्ति के लिए सोमवार के दिन श्मशान में स्थित महादेव मंदिर ...

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लाल किताब के 25 अचूक टोटके और उपाय लाल किताब की विशेषताएं : ‘लाल किताब’ ज्योतिर्विद्या की एक स्वतन्त्र और मौलिक सिद्धान्तों पर आधारित एक अनोखी पुस्तक है। इसकी कुछ अपनी निजी विशेषताएँ हैं, जो अन्य सैद्धान्तिक अथवा प्रायोगिक फलित ज्योतिष-ग्रन्थों से हटकर हैं। इसकी सबसे बड़ी विशेषता ग्रहों के दुष्प्रभावों से बचने के लिए जातक को ‘टोटकों’ का सहारा लेने का संदेश देना है। ये टोटके इतने सरल हैं कि कोई भी जातक इनका सुविधापूर्वक सहारा लेकर अपना कल्याण कर सकता है। काला कुत्ता पालना, कौओं को खिलाना, क्वाँरी कन्याओं से आशीर्वाद लेना, किसी वृक्ष विशेष को जलार्पण करना, कुछ अन्न या सिक्के पानी में बहाना, चोटी रखना, सिर ढँक कर रखना इत्यादि। ऐसे कुछ टोटकों के नमूने हैं, जिनके अवलम्बन से जातक ग्रहों के अनिष्टकारी प्रभावों से अनायास की बचा जाता है। कीमती ग्रह रत्नों (मूंगा, मोती, पुखराज, नीलम, हीरा आदि। में हजारों रुपयों का खर्च करने के बजाय जातक इन टोटकों के सहारे बिना किसी खर्च के (मुफ्त में) या अत्यल्प खर्च द्वारा ग्रहों के दुष्प्रभावों से अपनी रक्षा कर सकता है। ‘लाल किताब’ में धर्माचरण और सदाचरण के बल...

शुक्र ग्रह का 12 भावों में फल

शुक्र ग्रह का 12 भावों में फल  👉 जिसके लग्न स्थान में शुक्र हो तो उसका अंग-प्रत्यंग सुंदर होता है। श्रेष्ठ रमणियों के साथ विहार करने को लालायित रहता है। ऐसा व्यक्ति दीर्घ आयु वाला, स्वस्थ, सुखी, मृदु एवं मधुभाषी, विद्वान, कामी तथा राज कार्य में दक्ष होता है। 👉 दूसरे स्थान पर शुक्र हो तो जातक प्रियभाषी तथा बुद्धिमान होता है। स्त्री की कुंडली हो तो जातिका सर्वश्रेष्ठ सुंदरी पद प्राप्त करने की अधिकारिणी होती है। जातक मिष्ठान्नभोगी, लोकप्रिय, जौहरी, कवि, दीर्घजीवी, साहसी व भाग्यवान होता है। 👉 तीसरे भाव पर शुक्र हो तो वह स्त्री प्रेमी नहीं होता है। पुत्र लाभ होने पर भी संतुष्ट नहीं होता है। ऐसा व्यक्ति कृपण, आलसी, चित्रकार, विद्वान तथा यात्रा करने का शौकीन होता है। 👉 चतुर्थ भाव पर यदि शुक्र हो तो जातक उच्च पद प्राप्त करता है। इस व्यक्ति के अनेक मित्र होते हैं। घर सभी वस्तुओं से पूर्ण रहता है। ऐसा व्यक्ति दीर्घायु, परोपकारी, आस्तिक, व्यवहारकुशल व दक्ष होता है 👉 पांचवें भाव पर पड़ा हुआ शुक्र शत्रुनाशक होता है। जातक के अल्प परिश्रम से कार्य सफल होते हैं। ऐसा व्यक्ति कवि हृदय, सुखी, भो...

मृगशिरा नक्षत्र: एक विस्तृत जानकारी

🔴मृगशिरा नक्षत्र: एक विस्तृत जानकारी मृगशिरा नक्षत्र, वैदिक ज्योतिष में 27 नक्षत्रों में से पांचवां नक्षत्र है। इसका नाम 'मृग' (हिरण) और 'शिरा' (सिर) से मिलकर बना है, जिसका अर्थ है हिरण का सिर। यह नक्षत्र वृषभ राशि के 23°20' से मिथुन राशि के 6°40' तक फैला हुआ है। 🔴नक्षत्र के मुख्य पहलू  ● देवता: इस नक्षत्र के अधिष्ठाता देवता चंद्रमा हैं, जो मन, भावनाओं और रचनात्मकता के प्रतीक हैं।  ● स्वामी ग्रह: इसका स्वामी ग्रह मंगल है, जो ऊर्जा, साहस और इच्छाशक्ति को दर्शाता है। यह मंगल की ऊर्जा और चंद्रमा की सौम्यता का एक अनूठा संयोजन बनाता है।  ● प्रतीक: इसका प्रतीक हिरण का सिर है, जो खोज, जिज्ञासा, और निरंतर तलाश का प्रतिनिधित्व करता है।  ● लिंग: इस नक्षत्र का लिंग स्त्री है।  ● गण: इसका गण देव है, जो दैवीय और आध्यात्मिक गुणों का संकेत देता है।  ● तत्व: इसका तत्व पृथ्वी है।  ● प्रकृति: इस नक्षत्र की प्रकृति मृदु (कोमल) और तीक्ष्ण (तेज) दोनों है, जिसका अर्थ है कि यह कोमल और रचनात्मक कार्यों के लिए भी उपयुक्त है और कभी-कभी तीक्ष्ण या उग्र कार्यों के लिए भी। 🔴मृग...

सूर्य

🌟 आपके नाम में छुपा है आपका सूर्य और जीवन का रहस्य!) ✨ क्या आपका नाम ‘स, श, ह’ अक्षर से शुरू होता है? ✨ उदाहरण: संजय, शरोज, स्वाति, सुप्रिया, सीमा, सुप्रभा, शीखा, शीला हेमंत, हनुमान, हरीश, हरवीर, हरिप्रसाद, हरिओम 👉 ज्योतिष कहता है कि आपका सूर्य त्रिशांश कुंडली में वृषभ या तुला राशि में स्थित होता है। 💡 सत्य: नाम माता-पिता ने रखा है ऐसा भ्रम है। वास्तव में नाम का पहला अक्षर आत्मा लेकर जन्म लेती है। यह सूत्र केवल आपके पुकार नाम पर आधारित है, जन्म नक्षत्र से इसका कोई सम्बन्ध नहीं। ☀️ सूर्य का महत्व: सूर्य है — आत्मा, यश, मान, सम्मान, समाज, जो कुछ भी श्रेष्ठ है। और उसी ने आपको यह नाम भी दिया है। 🔥 इसका अर्थ: सुख, समृद्धि, वैभव और भोग-विलास में रुचि महंगे और उत्कृष्ट वस्तुओं की ओर आकर्षण जीवन में आनंद और सम्पन्नता की इच्छा 🌿 वृषभ राशि के गुण, स्वभाव और धर्म गुण: स्थिर, भरोसेमंद, धैर्यशील, भोगी स्वभाव: धैर्यवान, सुरक्षा और स्थायित्व प्रिय, धनी बनने की प्रवृत्ति धर्म: मेहनत और संयम से सुख-समृद्धि प्राप्त करना ⚖️ तुला राशि के गुण, स्वभाव और धर्म गुण: संतुलनप्रिय, सौंदर्य और कला में रुचि, ...

लक्ष्मी योग

जन्म कुण्डली मै सबसे शुभ योग महालक्ष्मी योग क्या है ?? लक्ष्मी शब्द से जानकारी मिलती है धन के बारे मे, तो ये योग वैसे सभी के लिए महत्वपूर्ण है लेकिन खासकर उनके लिय ज्यादा महत्वपूर्ण हैं। जो धनवान बनना चाहते है खुद से बहुत ज्यादा धन अर्जित करना चाहते है। ये योग बहुत दुर्लभ है। अधिकतर जन्मकुंडली मे नही मिलता है। जिसकी जन्मकुंडली मे ये योग बनता है। उसके तो "बारे-न्यारे" मतलब उस जातक की लॉटरी निकल गयी और ज्योतिषी को उस जातक के धन से संबंधित भविष्य कथन मे आसानी होती है। ऐसा जातक हमेशा मध्य वर्ग के परिवार मे जन्म लेता है और आसमान को छूने वाली सफलताओं को प्राप्त करता है। इसलिए तो ये योग राजयोग है कहलाता है। आश्चर्यजनक सफलता को प्राप्त करना, जन्मकुंडली मे महालक्ष्मी योग कैसे बनता है - जब मंगल ग्रह और चंद्रमा दोनो ग्रह एक साथ लग्नकुंडली के किसी घर मे एक साथ युति बनाते है तो यह युति महालक्ष्मी योग कहलाती है। लेकिन इसकी कुछ शर्तें होती है अगर ये शर्ते पूरी नही हुई तो योग कैंसल यानी रद्द माना जाएगा। इसका कोई भी सकारात्मक प्रभाव जीवन पर नही देगा। इसलिए तो ये योग दुर्लभ श्रेणी मे आता है। इ...

दान

*नवग्रहों के प्रसन्नार्थ स्तुति व दान* दानेन प्राप्यते स्वर्गः श्रीर्दानेनैव लभ्यते। दानेन शत्रून् जयति व्याधिर्दानेन नश्यति।। अर्थात् दान के द्वारा मनुष्य इस लोक में समस्त प्रकार के सुख भोगकर मृत्यु पश्चात् परलोक में भी शांति तथा सुख की प्राप्ति करता है। दान द्वारा ही शत्रुओं को नाश होता है और दान द्वारा ही समस्त व्याधि-बीमारियां समाप्त होती हैं, दान से ही मनुष्य के समस्त कष्ट दूर होते हैं। सनातन धर्म में दान की विशेष महिमा बताई गई है। जो लोग किसी भी प्रकार का धर्म-कर्म नहीं कर सकते, मंत्र जाप नहीं कर सकते, योग आदि में अक्षम है तथा जिनका मन धर्म में नहीं लगता, उन सभी के लिए दान करना अनिवार्य बताया गया है। दान करने मात्र से ही उनकी समस्त इच्छाओं की पूर्ति होती है। दान में भी अन्नदान व जलदान को विशेष माना गया है। अन्न तथा जल का दान कोई भी कभी भी कर सकता है परन्तु अन्य किसी भी प्रकार का दान सोच-विचार कर ही देना चाहिए। किस व्यक्ति को कब और क्या दान करना चाहिए, इसके लिए उसे किसी विद्वान ज्योतिषी से पूछ लेना चाहिए अन्यथा दान अहितकर भी हो सकता है। ज्योतिष में कुंडली में नवग्रहों की स्थिति के...

केतु के गुण अवगुण

केतु के गुण अवगुण - *ज्योतिष शास्त्र के अनुसार केतु एक छाया ग्रह है जो स्वभाव से पाप ग्रह भी है। केतु के बुरे प्रभाव से व्यक्ति को जीवन में कई बड़े संकटों का सामना करना पड़ता है। हालांकि यही केतु जब शुभ होता है तो व्यक्ति को ऊंचाईयों पर भी ले जाता है। केतु यदि अनुकूल हो जाए तो व्यक्ति आध्यात्म के क्षेत्र में ख्याति प्राप्त करता है। आमतौर पर माना जाता है कि हमारी जन्मकुंडली हमारे पिछले जन्म के कर्मों तथा इस जन्म के भाग्य को बताती है। फिर भी ज्योतिषीय विश्लेषण कर हम अशुभ ग्रहों से होने वाले प्रभाव तथा उनके कारणों को जानकर उनका सहज ही निवारण कर सकते हैं।* *राहू एवं केतु छाया ग्रह माने गए है जिनका स्वयं का कोई अस्तित्व नहीं होता है। इन्हें इनके कार्य करने की वास्तविक शक्ति कुंडली में अन्य ग्रहों के सम्मिलित प्रभाव से मिलती है। ज्योतिष में माना जाता है कि किसी जानवर को परेशान करने पर, किसी धार्मिक स्थल को तोड़ने अथवा किसी रिश्तेदार को सताने, उनका हक छीनने की सजा देना ही केतु का कार्य है। झूठी गवाही व किसी से धोखा करना भी केतु के बुरे प्रभाव को आमंत्रित करता है।* *जब भी व्यक्ति पर केतु का अश...

केतु + शनि युति

🌑 केतु + शनि युति 1. मनोवैज्ञानिक असर व्यक्ति के भीतर गहरी उदासी और निराशा का भाव रह सकता है। अक्सर लोग खुद को पीड़ित मानते हैं और अपने दर्द से बाहर नहीं निकल पाते। कई बार यह संयोजन व्यक्ति को आध्यात्मिक या रहस्यमय मार्ग की ओर ले जाता है। 2. कर्म और भाग्य यह युति बताती है कि व्यक्ति को पिछले जन्मों का कर्मफल इस जन्म में भुगतना पड़ता है। शनि = कर्म का हिसाब केतु = अज्ञात प्रारब्ध (जो कर्म हमने भूल चुके हैं लेकिन जिनका फल आना तय है)। इस कारण व्यक्ति को लगता है कि ज़िन्दगी में सब कुछ पहले से तय है। 3. व्यवहार और स्वभाव नई चीज़ें अपनाने में कठिनाई। पुराने विचारों और परंपराओं से चिपके रहना। कई बार अति-अनुशासन या फिर कर्तव्य की उपेक्षा – दोनों तरह के चरम व्यवहार देखने को मिलते हैं। 4. शुभ प्रभाव यदि शनि बलवान है तो यह युति व्यक्ति को सटीकता, अनुशासन, समयपालन और गहन अध्ययन की क्षमता देती है। व्यक्ति दार्शनिक या आध्यात्मिक रूप से गहरा हो सकता है। जीवन को “जैसा है, वैसा स्वीकार करना” सीख लेता है। 5. अशुभ प्रभाव करियर और जिम्मेदारियों में बाधाएँ। स्वास्थ्य समस्याएँ या मानसिक दबाव। कई बार “सर्प ...

अष्टम भाव से संबंधित फल सूत्र

अष्टम भाव से संबंधित फल सूत्र ++++++++++++++++++ अष्टम यानी आयु भाव, इस नाते यदि अष्टमेश केंद्र भाव में हो तो आयु लंबी होती है। यदि लग्नेश और अष्टमेश अशुभ प्रभाव में अष्टम भाव में हो तो आयु छोटी होती है। यदि दशमेश या शनि अशुभ प्रभाव में हो या अष्टम भाव में हो तो आयु लंबी होती है। यदि छठे भाव का स्वामी ग्रह 12 में, अष्टम का स्वामी ग्रह अष्टम भाव में , बाहरवें भाव का स्वामी ग्रह 12वे भाव में ही हो तो भी आयु लंबी होती है। यदि 6 और 12 भाव का स्वामी लग्न भाव में, 1, 5 और 8 भाव के स्वामी ग्रह अपनी या उच्च राशि के हो तो भी आयु लंबी होती है। यदि 1, 8, 10 भाव के स्वामी ग्रह केंद्र, त्रिकोण या लाभ भाव में हो तो भी आयु लंबी होती है। यदि लग्नेश अशुभ प्रभाव में कमज़ोर हो और अष्टमेश केंद्र में हो तो आयु छोटी होती है। यदि अष्टम भाव में मंगल शनि या मंगल राहू युति हो तो वाहन दुर्घटना का योग बनता है। यदि अष्टम भाव को शुभ ग्रह देखते हो तो जातक को ससुराल से लाभ होता है, शादी के बाद आर्थिक स्थिति बेहतर होती है। यदि अष्टम भाव को अशुभ ग्रह देखते हो तो ससुराल से समस्या आती है, जातक को अनचाहे स्थान परिवर्तन की ...

श्रीसूक्त पाठ विधि🔶🔹🔶🔹🔶🔹🔶

श्रीसूक्त पाठ विधि 🔶🔹🔶🔹🔶🔹🔶 धन की कामना के लिए श्री सूक्त का पाठ अत्यन्त लाभकारी रहता है। (श्रीसूक्त के इस प्रयोग को हृदय अथवा आज्ञा चक्र में करने से सर्वोत्तम लाभ होगा, अन्यथा सामान्य पूजा प्रकरण से ही संपन्न करें .) प्राणायाम आचमन आदि कर आसन पूजन करें :- ॐ अस्य श्री आसन पूजन महामन्त्रस्य कूर्मो देवता मेरूपृष्ठ ऋषि पृथ्वी सुतलं छंद: आसन पूजने विनियोग: । विनियोग हेतु जल भूमि पर गिरा दें । पृथ्वी पर रोली से त्रिकोण का निर्माण कर इस मन्त्र से पंचोपचार पूजन करें – ॐ पृथ्वी त्वया धृता लोका देवी त्वं विष्णुनां धृता त्वां च धारय मां देवी पवित्रां कुरू च आसनं ।ॐ आधारशक्तये नम: । ॐ कूर्मासनायै नम: । ॐ पद्‌मासनायै नम: । ॐ सिद्धासनाय नम: । ॐ साध्य सिद्धसिद्धासनाय नम: । तदुपरांत गुरू गणपति गौरी पित्र व स्थान देवता आदि का स्मरण व पंचोपचार पूजन कर श्री चक्र के सम्मुख पुरुष सूक्त का एक बार पाठ करें । निम्न मन्त्रों से करन्यास करें :- 🔶🔹🔶🔹🔶🔹🔶🔹🔶🔹🔶 1 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं ऐं क ए ई ल ह्रीं अंगुष्ठाभ्याम नमः । 2 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं ह स क ह ल ह्रीं तर्जनीभ्यां स्वाहा । 3 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं सौ...

कुंडली में पर्वत योग

कुंडली में पर्वत योग *_पर्वत योग कैसे बनता है?_* ज्योतिष शास्त्र के अनुसार पर्वत योग तब बनता है जब - * लग्न और चंद्रमा बलवान हों तथा शुभ ग्रहों से प्रभावित हों। * दशम भाव (कर्म), नवम भाव (भाग्य) और लाभ भाव (11वाँ) शुभ स्थिति में हों। * केंद्र (1, 4, 7, 10) और त्रिकोण (1, 5, 9) के स्वामी आपस में मित्रता रखते हुए बलवान स्थिति में हों। * सप्तम और दशम भाव के स्वामी उच्च या स्वगृही होकर शुभ ग्रहों से दृष्ट हों। _इन स्थितियों में जातक की कुंडली में पर्वत योग का निर्माण होता है।_ *_पर्वत योग को कैसे पहचानें?_* कुंडली में पर्वत योग का पता लगाने के लिए इन बिंदुओं पर ध्यान दें -  * लग्नेश और चंद्रमा शुभ ग्रहों के प्रभाव में हों। * नवमेश और दशमेश के बीच शुभ संबंध (युति या दृष्टि) हो। * केंद्र और त्रिकोण भावों में शुभ ग्रहों की स्थिति हो और पापग्रहों का प्रभाव कम हो। *_पर्वत योग का फल और प्रभाव_* जिन जातकों की कुंडली में पर्वत योग होता है, उन्हें जीवन में विशेष उपलब्धियाँ प्राप्त होती हैं - * समाज में मान-सम्मान और प्रतिष्ठा मिलती है। * नेतृत्व क्षमता और उच्च पद प्राप्त होते हैं। * आर्थिक दृष्...

कुल देवी

*किसे कहते है आभामंडल ,औरा, प्रभामंडल, प्राणशक्ति या विद्युत शक्ति*        〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰 औरा का लेटीन भाषा मे अर्थ बनता है "सदैव बहने वाली हवा"। औरा इसी अर्थ के मुताबिक यह सदैव गतिशील भी होती है। विभिन्न देशो मे इसे विभिन्न नामो से जाना जाता है, लेकिन सबसे ज्यादा प्रचलित नाम औरा, प्रभामंडल, या ऊर्जामंडल है। प्राणियों का शरीर दो प्रकार का होता है  1. स्थूल शरीर  2. शूक्ष्म शरीर स्थूल शरीर जन्म के बाद जो शरीर सामने दिखाई देता है, वह स्थूल शरीर होता है, इसी स्थूल शरीर का नाम दिया जाता है, इसी के द्वारा संसारी कार्य किये जाते है, इसी शरीर को संसारी दुखों से गुजरना पडता है और जो भी दुख होते हैं | भौतिक शरीर के अतिरिक्त प्रकाषमय और ऊर्जावान एक शरीर और होता है जिसे सूक्ष्म शरीर अथवा आभामण्डल { औरा }कहते हैं।   हमारे शरीर के चारों तरफ जो ऊर्जा का क्षेत्र है वही सूक्ष्म शरीर है। सूक्ष्म शरीर ने हमारे स्थूल शरीर को घेर रहा है। इसे जीवनी शक्ति या प्राण शक्ति भी कहते हैं इसका कार्य सारे शरीर में एवं सूक्ष्म नाडियों में वायु प्रवाह को नियंत्रित कर...

योग कुण्डली में

*ज्योतिष में विभिन्न प्रकार के योग* पंच महापुरूष योग - पंच महापुरूष योगों का ज्योतिष में बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। ये योग हैं रूचक,भद्र,हंस,मालव्य,शश। जो क्रमशः मंगल,बुध,गुरू,शुक्र व शनि ग्रहों के कारण बनते हैं। १. मंगल ग्रह के कारण रूचक योग - यदि मंगल अपनी स्वराशि या उच्च राशि में होकर केंद्र में स्थित हो तो "रूचक" नामक योग बनता है। इस योग में जन्म लेने वाला व्यक्ति साहसी होता है। वह अपने गुणों के कारण धन, पद व प्रतिष्ठा प्राप्त करता है एवं जग प्रसिध्द होता है। २. बुध ग्रह के कारण "भद्र"  योग - यदि बुध अपनी स्वराशि या उच्च राशि में होकर केंद्र में स्थित हो तो "भद्र" नामक योग बनता है। इस योग में जन्म लेने वाला व्यक्ति कुशाग्र बुध्दि वाला होता है। वह श्रेष्ठ वक्ता, वैभवशाली व उच्चपदाधिकारी होता है। ३. गुरू ग्रह के कारण "हंस" योग - यदि गुरू अपनी स्वराशि या उच्च राशि में होकर केंद्र में स्थित हो तो "हंस" नामक योग बनता है। इस योग में जन्म लेने वाला व्यक्ति बुध्दिमान व आध्यात्मिक होता है एवं विद्वानों द्वारा प्रशंसनीय होता है। ४. शुक्र ग्रह ...

लक्ष्मी मन्त्र

#अष्टलक्ष्मी अष्ट लक्ष्मी रूप एवं स्तोत्र मंत्र माँ लक्ष्मी के 8 रूप माने जाते है।हर रूप विभिन्न कामनाओ को पूर्ण करने वाला है। दिवाली और हर शुक्रवार को माँ लक्ष्मी के इन सभी रूपों की वंदना करने से असीम सम्पदा और धन की प्राप्ति होती है। १) आदि लक्ष्मी या महालक्ष्मी : माँ लक्ष्मी का सबसे पहला अवतार जो ऋषि भृगु की बेटी के रूप में है। मंत्र  सुमनसवन्दित सुन्दरि माधवी चन्द्र सहोदरीहेममये | मुनिगणमंडित मोक्षप्रदायिनी मंजुलभाषिणीवेदनुते || पंकजवासिनी देवसुपुजित सद्रुणवर्षिणी शांतियुते | जय जय हे मधुसुदन कामिनी आदिलक्ष्मी सदापलीमाम || २) धन लक्ष्मी : धन और वैभव से परिपूर्ण करने वाली लक्ष्मी का एक रूप भगवान विष्णु भी एक बारे देवता कुबेर से धन उधार लिया जो समय पर वो चूका नहीं सके , तब धन लक्ष्मी ने ही विष्णु जी को कर्ज मुक्त करवाया था। मंत्र धिमिधिमी धिंधिमी धिंधिमी धिंधिमी दुन्दुभी नाद सुपूर्णमये | घूमघूम घुंघुम घुंघुम घुंघुम शंखनिनाद सुवाद्यनुते || वेदपूराणेतिहास सुपूजित वैदिकमार्ग प्रदर्शयुते | जय जय हे मधुसुदन कामिनी धनलक्ष्मी रूपेण पालय माम ||  ३) धान्य लक्ष्मी : धान्य का मतलब है अ...

कन्या राशि

--------• खाना no 6 या कन्या राशि •-------- इसको Key 🗝️ and Lock 🔒 Mechanism Model से समझा जाना चाहिए...🔐 कन्या राशि को काल पुरुष कुंडली में हम सब लोग छठे स्थान पर देखते हैं... मेरे दृष्टिकोण के मुताबिक यदि कोई दैवज्ञ किसी भाव यानी house के विषय में गहराई से समझेगा तो उसको उस भाव में काल पुरुष के अनुसार पड़ने वाली राशि के जैसे हूबहू स्वभाव का मिलता है यानी पहले हम छठे भाव को समझने का प्रयास करते हैं वैसी ही हमें कन्या राशि की स्थिति समझ में आयेगी... कन्या राशि बुध की मूल त्रिकोण राशि है और छठे भाव में बैठने के कारण इसके अंदर त्रिक स्वभाव है या यूं कह लें कि बाधक स्वभाव है... यह राशि बुध की है और Lock and Key Mechanism में बुध चाभी है जो ताले को खोलती है.. यानी अक्लेकी चाभी यानी जातक का जैसा बुध होगा उसके अंदर समस्या को सुलझाने वाला दिमाग यानी चाभी उतनी ही शानदार होगी... अब प्रश्न उठता है कि ये लॉक कौन सा है या क्या है..? दरअसल, छठा भाव पाताल लोक का कहा गया है पर मेरा मानना है की छठा घर भू लोक से नीचे की ओर जितने भी लोक हैं उन तक जाने का मार्ग है.. और पाताल का कारकत्व केतु के हाथ हैं...

ज्योतिष के आधार पर कौन सा व्यवसाय रहेगा उपयुक्तखास बातें

ज्योतिष के आधार पर कौन सा व्यवसाय रहेगा उपयुक्त खास बातें ज्योतिष के आधार पर कौन सा व्यवसाय रहेगा उपयुक्त किसी भी व्यवसाय के पीछे कोई न कोई ग्रह अवश्य होता है, अगर वह ग्रह अच्छा है तो व्यवसाय भी उन्नति करता है और अगर ग्रह कमजोर हो तो कारोबार बंद होने की कगार पर आ जाता है। कभी-कभी किसी ग्रह के असर से व्यवसाय संबंधित ग्रह गड़बड़ा भी जाता है। ऐसी स्थिति में कारोबार में उतार-चढ़ाव आने लगते हैं। इसलिए किसी भी कारोबार को शुरू करने से पहले ज़रूरी है कि आप कारोबार संबंधित ग्रहों की स्थिति और उसकी दशा के बारे में ज़रूर जान लें। आपका व्यवसाय कितना वृद्धि करेगा , यह इसी पर निर्भर करेगा। वस्त्रों का व्यवसाय यह व्यवसाय बहुत सारे ग्रहों से संबंध रखता है लेकिन मुख्य रूप से यह शुक्र का व्यवसाय है। इस व्यवसाय को बेहतर करने के लिए :- 👉सुबह और शाम शुक्र के मंत्र का जाप करें। 👉स्फटिक की माला गले में धारण करें। 👉हर शुक्रवार को मां लक्ष्मी को सफ़ेद मिठाई का भोग लगाएं। 👉जहां तक हो सके काले रंग के प्रयोग से बचें। खाने-पीने की चीज़ों का व्यवसाय अनाज का व्यवसाय मुख्य रूप से बृहस्पति से जुड़ा है. पके हुए भोजन के...

भाग्योदय के योग

भाग्योदय कब होगा व्यापार बिजनेस कारोबार सरकारी नौकरी या मानसिक रोग या कर्ज से मुक्ति कब मिलेगी जाने....  ज्योतिष के अनुसार, व्यक्ति को जीवन में सफलता मिलेगी या असफलता, धनवान, बनेंगे या निर्धन इसका पता जन्म के समय ही जन्म कुंडली देखकर लगाया जा सकता है।  कुंडली में कुछ ऐसे शुभ योग बनते हैं, जिस कारण व्यक्ति को नौकरी में उन्नति, व्यापार में लाभ आदि होने लगते हैं। जानें आपकी जन्मकुंडली में क्या ये योग बन रहे हैं। व्यापार में सफलता के योग ... 1- यदि कुंडली में सप्तमेश सप्तम भाव में हो या सप्तम भाव पर सप्तमेश की दृष्टि हो तो बिजनेस में सफलता मिलती है। 2- सप्तमेश स्व या उच्च राशि में होकर शुभ भाव (केंद्र-त्रिकोण आदि) में हो तो बिजनेस के अच्छे योग होते हैं। 3- यदि लाभेश लाभ स्थान में ही स्थित हो तो व्यापार में अच्छी सफलता मिलती है। 4- लाभेश की लाभ स्थान पर दृष्टि हो तो व्यापार में सफलता मिलती है 5- यदि लाभेश दशम भाव में और दशमेश लाभ स्थान में हो तो अच्छा व्यापारिक योग होता है। 6- दशमेश का भाग्येश के साथ राशि परिवर्तन भी व्यापार में सफलता देता है। 7- यदि धनेश और लाभेश का योग शुभ स्थान ...