Posts

Showing posts from March, 2020

story

⚜⚜⚜⚜⚜⚜⚜⚜ *"सेवक बन जाओ"* काशी के एक संत उज्जैन पहुंचे उनकी प्रशंसा सुन उज्जैन के राजा उनका आशीर्वाद लेने आए संत ने आशीर्वाद देते हुए कहा -  'सिपाही बन जाओ ।' यह बात राजा को अच्छी नहीं लगी । दूसरे दिन राज्य के प्रधान पंडित संत के पास पहुंचे । संत ने कहा -'अज्ञानी बन जाओ ।' पंडित नाराज होकर लौट आए इसी तरह जब नगर सेठ आया तो संत ने आशीर्वाद दिया -'सेवक बन जाओ ।' संत के आशीर्वाद की चर्चा राज दरबार में हुई । सभी ने कहा कि यह संत नहीं, कोई धूर्त है । राजा ने संत को पकड़ कर लाने का आदेश दिया संत को पकड़कर दरबार में लाया गया । राजा ने कहा तुमने आशीर्वाद के बहाने सभी लोगों का अपमान किया है, इसलिए तुम्हें दंड दिया जाएगा । यह सुनकर संत हंस पड़े । राजा ने इसका कारण पूछा तो संत ने कहा - इस राज दरबार में क्या सभी मूर्ख हैं ? ऐसे मूर्खों से राज्य को कौन बचाएगा ।' राजा ने कहा' क्या बकते हो ?' संत ने कहा 'जिन कारणों से आप मुझे दंड दे रहे हैं, उन्हें किसी ने समझा ही नहीं । राजा का कर्म है, राज्य की सुरक्षा करना । जनता के सुख दुख की हर वक्त चौकसी करना । सिपाह
||#अस्त_वक्री_नीचभंग_शनि||                                       शनि की यह तीन अवस्थाएं कहने को अशुभ है लेकिन कितनी और क्या यह स्थिति शुभ फल भी दे सकती है या कैसे फल देगी? इसी पर बात करते है।।                                                                  कोई भी ग्रह जब अस्त होता है तब वह सूर्य के कारण ही होता है।शनि का निवास अंधकार में है जब यह अस्त हो जाता है तब पूरी तरह अंधकार जैसी स्थिति पैदा करता है क्योंकि अस्त होकर ग्रह अपनी शुभता, शुभ गुण, शुभ फल देने की शक्ति खो बैठता है, अस्त शनि जीवन मे संघर्ष और मेहनत ही कराता रहेगा, हालांकि यह निर्भर करेगा शनि अस्त होकर सूर्य से कितने अंश दूर है या नजदीक है सूर्य और शनि के अंशो में ज्यादा अंतर है कम से कम 8 या 9अंशो की दूरी है तब अस्त होने पर शनि के उपाय करके इसकी अस्त फल से बचा जा सकता है लेकिन जब यह पूर्ण अस्त हो जैसे सूर्य और शनि के बीच अंशा दूरी 4 से 5-6 हो तब यहाँ ज्यादा दिक्कत आती है जैसे सूर्य 10अंश और शनि 15अंश है तक यहाँ शनि अशुभ फल ही देगा, कोई भी ग्रह या शनि उच्च हो या अपनी राशि का हो, नीच या शत्रु राशि मे अस्त होने पर ज्यादा

प्रेम विवाह

|| #प्रेम_विवाह_हो_पायेगा_या_नही ||                                   प्रेम विवाह के लिए कुंडली का 5वा,7वा भाव और 11वा भाव विशेष रूप से जिम्मेदार होता है।5वा भाव प्रेम का है और 7वा भाव विवाह का इस कारण यह दोनो भाव विशेष महत्वपूर्ण है प्रेम विवाह में ,11वा इस कारण क्योंकि 11वा भाव इच्छा का और 5वे से 7वा भाव और 7वे से 5वा भाव है जो शादी और प्रेम को दर्शाता मतलब प्रेम विवाह इच्छा को विवाह तक पहुचाता है।प्रेम विवाह के लिए 5वा भाव, भावेश, 7वा बबाव भावेश और प्रेम और विवाह कारक लड़के की कुंडली मे शुक्र, लड़की की कुंडली मे गुरु/मंगल यह सब अच्छी और बलवान स्थिति में होना जरूरी होता है क्योंकि यह यह भाव और यही ग्रह प्रेम और विवाह के कारक है।अब बात करते है प्रेम विवाह होने के लिए कैसी स्थिति होनी चाहिए कुछ स्थितियों पर बात करते है,                                                                                                                                        5वे भाव के स्वामी और 7वे भाव के स्वामी दोनो का आपस मे संबंध किसी केंद्र या त्रिकोण भाव प्रेम विवाह कराता है।यह सबसे मजबूत स्थिति प्रेम वि

घरेलू नुस्खे

घरेलू नुस्खें एवं उपाय 🔸🔸🔹🔹🔸🔸 1. चूहों से मुक्ति चूहों को पिपरमिंट की गंध बिल्कुल पसंद नहीं होती. अगर घर में चूहे उत्पात मचा रहे हैं तो रूई के कुछ फाहों को पिपरमिंट में डाल कर उनके होने की संभावित जगह के पास रख दें. इसकी गंध से उनका दम घुटेगा और वे मर जाएंगे. 2. कॉकरोच से राहत काली-मिर्च, प्याज और लहसुन को पीसकर मिला लें और इस पेस्ट में पानी डालकर एक सॉल्यूशन तैयार कर लें. इस सॉल्यूशन को उन जगहों पर छिड़कें, जहां कॉकरोच बहुत ज्यादा हैं. इसकी तेज गंध से वे आपका घर छोड़कर भाग जाएंगे. 3. मक्खी से मुक्ति मक्खियों को दूर रखने के लिए कोशिश करें कि घर साफ और दरवाजे बंद रहें. बावजूद इसके मक्खियां घर में आ जाएं तो कॉटन बॉल को किसी तेज गंध वाले तेल में डुबोकर दरवाजे के पास रख दें. तेल की गंध से मक्खियां दूर रहती हैं और इस उपाय को आजमाएंगे तो वे आपके घर से तुरंत भाग जाएंगी. 4. खटमल मारो प्याज का रस खटमल को मारने की प्राकृतिक औषधि है. इसकी गंध से उनकी सांस बंद हो जाती है और ये तुरंत मर जाते हैं. 5. छिपकली भगाओ अंडे के खाली छिलकों को कुछ ऊंचाई पर रख दें. अंडे की गंध से छिपकली दूर भागती हैं. इ

कृष्ण

ક્રૃષ્ણ ભગવાન વિષેની અલભ્ય માહિતી *નામ :- ચંદ્રવંશપ્રતાપ યદુકુળ ભૂષણ, પૂર્ણપુરુષોત્તમ, દ્વારિકાધીશ મહારાજા શ્રી કૃષ્ણચંદ્રજી વાસુદેવજી યાદવ (પૂર્ણ ક્ષત્રિય)*   #### અને..અત્યારે#### *હિઝ હાઈનેસ મહારાજાધિરાજ 10008 શ્રી,શ્રી,શ્રી, કૃષ્ણચંદ્રસિંહજી વાસુદેવસિંહજી નેક નામદાર મહારાજા ઓફ દ્વારકા.*          *-:જન્મદિવસ:-*  ૨૦/૨૧ -૦૭ ઈ.સ. પૂર્વે ૩૨૨૬ ના રોજ રવી/સોમવાર             *-:જન્મ તિથી:-* વર્ષ સંવત ૩૨૮૫ શ સંવત ૩૧૫૦ શ્રાવણ વદ આઠમ [ જેને જન્માષ્ટમી તરીકે ઉજવીએ છીએ )              *-:નક્ષત્ર સમય:-* રોહિણી નક્ષત્ર રાત્રીના ૧૨ કલાકે મધ્ય રાત્રી             *-:રાશી-લગ્ન:-* વૃષભ લગ્ન અને વૃષભ રાશી             *-:જન્મ સ્થળ:-* રાજા કંસ ની રાજધાની મથુરા માં તાલુકો, જીલ્લો- મથુરા (ઉત્તર પ્રદેશ)             *-:વંશ - કુળ:-* ચંદ્ર વંશ યદુકુળ ક્ષેત્ર - માધુપુર              *-:યુગ મન્વન્તર:-* દ્વાપર યુગ સાતમો વૈવસ્વત મન્વન્તર               *-:વર્ષ:-* દ્વાપર યુગનો ૮,૬૩૮૭૪ વર્ષ ૪ માસ્ અને ૨૨માં દિવસે                *-:માતા:-* દેવકી [ રાજા કંસના સગા કાકા દેવરાજની પુત્રી, જેને કંસે પોતાની બહેન માની હતી     

होली

"प्रकृति पूजक त्यौंहार हैं, होली":- सभी भारतीय त्यौंहारो की तरह होली भी प्रकृति पूजक पर्व हैं! फाल्गुन आते ही फाल्गुनी हवा मौसम परिवर्तन का अहसास करा देती हैं! कंपकंपाती ठंड से राहत,किसानों के खेतों में नई फसल की सौगात, पतझड़ के बाद धरती के चारों ओर हरियाली की नई चद्दर, प्रकृति के हर रूप रंग में हर्षोल्लास, जीवन में नया उल्लास, प्रकृति के रंगों में सरोबार होने का त्यौहार हैं, होली! इस पर्व को भक्ति एवं भावना से जोड़कर,जलते हुए गाय के कंडो से निकलने वाली आक्सीजन प्रदुषित वायु एवं रोगजनित जीवाणुओं का शमन करती है, होली! होली की मंगलकामनाओं के साथ! सादर🙏

सर्प दोष शांति

Image
किसी स्त्री या पुरूष की जन्म कुण्डली में राहु और केतु की विशेष स्थिति से बनने वाले योग को कालसर्प दोष कहते है, यह एक ऐसा योग है जो जातक के पूर्व जन्म के किसी जघन्य अपराध के दंड या श्राप के फलस्वरूप उसकी कुंडली में बनता है । ऐसा व्यक्ति व्यावहारिक रूप से पीड़ित, आर्थिक व शारीरिक रूप से परेशान तो होता ही है, मुख्य रूप से उसे अपनी संतान पक्ष से भी कष्ट होता है, या तो उसे संतान की प्राप्ति ही नहीं होती, या होती है तो वह बहुत ही दुर्बल व अनेक रोगों से ग्रसित होती है । कालसर्प दोष से पीड़ित जातकों को रोजी-रोटी का जुगाड़ भी बड़ी मुश्किल से हो पाता है । धन से भरपूर धनवान घर में पैदा होने के बावजूद भी ऐसे जोतक अभाव ग्रस्त जीवन ही जाते रहते है । कालसर्प दोष निवारण के लिए कुछ सम्पन्न लोग तो बड़े बड़े धार्मिक उपाय अपनी सामर्थ्य अनुसार कर लेते है पर कुछ आर्थिक रूप से असमर्थ लोग ज्यादा पैसा खर्च होने के डर से इसका उपाय नहीं कर पाते और जीवन भर कष्ट सहते रहते है । लेकिन शास्त्रों में कुछ ऐसे सरल उपाय भी बताएं गये है जो बिना धन खर्च किए अपने घर पर ही या किसी भी शिवमंदिर में जाकर स्वयं ही कर सकते है, जि

#वर्गोत्तम_ग्रह_की_महादशा

||#वर्गोत्तम_ग्रह_की_महादशा||                                     किसी भी ग्रह की महादशा का फल कुंडली में उस ग्रह की स्थिति भाव स्वामित्व भाव स्थित स्थिति अन्य ग्रहो से सम्बन्ध आदि पर निर्भर करता है जिस तरह की ग्रह की स्थिति होगी उसी तरह का फल ग्रह अपनी महादशा में देता है।ग्रहो में वर्गोत्तम ग्रह के बारे में अधिकतर जातक तो जानते ही है कि जब कोई ग्रह लग्न कुंडली और नवमांश कुंडली में एक ही राशि में होता है तो ऐसा ग्रह वर्गोत्तम ग्रह होता है।वर्गोत्तम ग्रह लग्नानुसार किसी भी भाव का स्वामी होकर अपने अनुकूल भाव स्वामित्व के अनुसार किसी अनुकूल भाव में वर्गोत्तम होकर बैठा हो तो बहुत ही शुभ फल देता है।वर्गोत्तम ग्रह अपनी जितनी बली राशि जैसे उच्च राशि, मूलत्रिकोण राशि, स्वराशि, मित्रराशि आदि अपनी किसी भी बली राशि में बैठा होगा वह बहुत अच्छे फल देता है वर्गोत्तम ग्रह यदि अशुभ भाव का स्वामी हो तो अशुभ भाव में ही बैठा हो तब अच्छा फल करता है।अशुभ भाव का स्वमज होकर शुभ भाव में बैठने पर अच्छे फल में कमी भी कर सकता है।अनुकूल वर्गोत्तम ग्रह की महादशा जातक के लिए सुख, सौभाग्य, उन्नति, सफलता दिलाने वाली

story

🌹ज्ञान सूत्र🌹 एक युवक ने विवाह के दो साल बाद परदेस जाकर व्यापार करने की इच्छा पिता से कही ।पिता ने स्वीकृति दी तो वह अपनी गर्भवती पत्नी को माँ-बाप के जिम्मे छोड़कर व्यापार करने चला गया ।परदेश में मेहनत से बहुत धन कमाया और वह धनी सेठ बन गया ।सत्रह वर्ष धन कमाने में बीत गए तो सन्तुष्टि हुई और वापस घर लौटने की इच्छा हुई । पत्नी को पत्र लिखकर आने की सूचना दी और जहाज में बैठ गया । उसे जहाज में एक व्यक्ति मिला जो दुखी मन से बैठा था । सेठ ने उसकी उदासी का कारण पूछा तो उसने बताया कि इस देश में ज्ञान की कोई कद्र नही है । मैं यहाँ ज्ञान के सूत्र बेचने आया था पर कोई लेने को तैयार नहीं है । सेठ ने सोचा 'इस देश में मैने बहुत धन कमाया है, और यह मेरी कर्मभूमि है, इसका मान रखना चाहिए !' उसने ज्ञान के सूत्र खरीदने की इच्छा जताई । उस व्यक्ति ने कहा- मेरे हर ज्ञान सूत्र की कीमत 500 स्वर्ण मुद्राएं है । सेठ को सौदा तो महंगा लग रहा था..लेकिन कर्मभूमि का मान रखने के लिए 500 स्वर्ण मुद्राएं दे दी । व्यक्ति ने ज्ञान का पहला सूत्र दिया- कोई भी कार्य करने से पहले दो मिनट रूककर सोच लेना । सेठ ने सूत्र

कहानी

🌹🌿🥀🌻🥀🌿🌹 *एक कुम्हार को मिट्टी खोदते हुए अचानक एक हीरा मिल गया, उसने उसे अपने गधे के गले में बांध दिया* *एक दिन एक बनिए की नजर गधे के गले में बंधे उस हीरे पर पड़ गई, उसने कुम्हार से उसका मूल्य पूछा* *कुम्हार ने कहा- सवा सेर गुड़*   *बनिए ने कुम्हार को सवा सेर गुड़ देकर वह हीरा खरीद लिया* *बनिए ने भी उस हीरे को एक चमकीला पत्थर समझा था, लेकिन अपनी तराजू की शोभा बढ़ाने के लिए उसकी डंडी से बांध दिया* *एक दिन एक जौहरी की नजर बनिए के उस तराजू पर पड़ गई, उसने बनिए से उसका दाम पूछा* *बनिए ने कहा- पांच रुपए* *जौहरी कंजूस व लालची था, हीरे का मूल्य केवल पांच रुपए सुन कर समझ गया कि बनिया इस कीमती हीरे को एक साधारण पत्थर का टुकड़ा समझ रहा है* *वह उससे भाव-ताव करने लगा-पांच नहीं,चार रुपए ले लो* *बनिये ने मना कर दिया क्योंकि उसने चार रुपए का सवा सेर गुड़ देकर खरीदा था* *जौहरी ने सोचा कि इतनी जल्दी भी क्या है ? कल आकर फिर कहूंगा, यदि नहीं मानेगा तो पांच रुपए देकर खरीद लूंगा* *संयोग से दो घंटे बाद एक दूसरा जौहरी कुछ जरूरी सामान खरीदने उसी बनिए की दुकान पर आया* *तराजू पर बंधे हीरे को देखकर वह चौंक

लग्नेश भाग्येश सबन्ध

|||लग्नेश भाग्येश का सम्बन्ध|||                                                 कुंडली के पहले भाव को लग्न और नवें भाव को भाग्य भाव कहते है।लग्न के स्वामी को लग्नेश तो भाग्य भाव के स्वामी को भाग्येश कहते है।जब कुंडली में लग्नेश भाग्येश का सम्बन्ध बन जाने से जातक धर्म आचरण वाला, धार्मिक, सात्विक और भाग्यशाली माना जाता है।लग्न लग्नेश खुद जातक है तो भाग्य भाव और भाग्येश जातक का भाग्य है।जब खुद लग्न मतलब जातक अपने भाग्य मतलब भाग्य भाव से जुड़ जाता है तब ऐसा जातक भाग्यशाली कहा जा सकता है।लग्न भाव और भाग्यभाव का सम्बन्ध तीन प्रकार से कुंडली में बन सकता है प्रथम लग्नेश और भाग्येश की युति होने से, दूसरा लग्नेश भाग्येश का दृष्टि सम्बन्ध बनने से, तीसरा लग्नेश भाग्य भाव में बैठ जाने से और भाग्येश के लग्न में बैठ जाने से कहने का अभिप्राय है लग्नेश और भाग्येश के आपस में स्थान परिवर्तन कर लेने से लग्नेश और भाग्येश का सम्बन्ध बन जाता है।लग्नेश भाग्येश का सम्बन्ध राजयोग भी बनाता है क्योंकि जब भी कुंडली में केंद्र और त्रिकोण के स्वामियों का सम्बन्ध बनता है तब राजयोग बनता है राजयोग सुख-समृद्धि, धन, यश और