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Showing posts from November, 2020

hanuman

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कई लोगों की दिनचर्या हनुमान चालीसा पढ़ने से शुरू होती है। पर क्या आप जानते हैं कि श्री *हनुमान चालीसा* में 40 चौपाइयां हैं, ये उस क्रम में लिखी गई हैं जो एक आम आदमी की जिंदगी का क्रम होता है। माना जाता है तुलसीदास ने चालीसा की रचना मानस से  पूर्व किया था हनुमान को गुरु बनाकर उन्होंने राम को पाने की शुरुआत की। अगर आप सिर्फ हनुमान चालीसा पढ़ रहे हैं तो यह आपको भीतरी शक्ति तो दे रही है लेकिन अगर आप इसके अर्थ में छिपे जिंदगी  के सूत्र समझ लें तो आपको जीवन के हर क्षेत्र में सफलता दिला सकते हैं।  हनुमान चालीसा सनातन परंपरा में लिखी गई पहली चालीसा है शेष सभी चालीसाएं इसके बाद ही लिखी गई।  हनुमान चालीसा की शुरुआत से अंत तक सफलता के कई सूत्र हैं। आइए जानते हैं हनुमान चालीसा से आप अपने जीवन में क्या-क्या बदलाव ला सकते हैं…. *शुरुआत गुरु से…* हनुमान चालीसा की शुरुआत *गुरु* से हुई है… श्रीगुरु चरन सरोज रज,  निज मनु मुकुरु सुधारि। *अर्थ* - अपने गुरु के चरणों की धूल से अपने मन के दर्पण को साफ करता हूं। गुरु का महत्व चालीसा की पहले दोहे की पहली लाइन में लिखा गया है। जीवन में गुरु नहीं है

चांदी का छल्ला

प्लेटिनम या चांदी का छल्ला बदल देगा आपकी जिंदगी, भौतिक सुखों और ऐश्वर्य पाने के लिए करें शुक्र को मजबूत !! कई लोग बहुत मेहनत के बावजूद उस मुकाम तक नहीं पहुंच पाते हैं, जिसके वो हकदार हैं। इसकी वजह उनके परिश्रम में कमी नहीं बल्कि उनकी किस्मत में मौजूद दोष का होना हो सकता है। अपनी इसी रूठी हुई किस्मत को मनाने के लिए चांदी और प्लेटिनम का छल्ला बहुत कारगर साबिति होता है। तो किस दिन और कैसे करें धारण आइए जानते हैं। 1.अंगूठे में चांदी का छल्ला पहनने से कई ग्रह दोष शांत होते हैं। चूंकि चांदी चंद्रमा का प्रतीक है इसलिए इसे पहनने से मन शांत रहता है। इससे व्यक्ति का मन एक काम में लगता है। इससे मस्तिष्क ठंडा रहता है जिसकी वजह से गुस्सा कम होता है। 2.चांदी का छल्ला पहनने से राहु एवं सूर्य के दुष्परिणाम भी खत्म होते हैं। ये उन ग्रहों की नकारात्मकता को मिटाकर सकरात्मक प्रभाव उत्पन्न करता है। इससे व्यक्ति को समाज में मान—सम्मान मिलता है। ऐसे लोग नौकरी में उच्च पद पर कार्य करते हैं। 3.चांदी का छल्ला लड़कियों को अपने बाएं हाथ में जबकि लड़कों को इसे अपने दाएं हाथ में पहनना चाहिए। आप चाहे तो चांदी की जगह प

ग्रह बल

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#नमस्ते(अभिनन्दन) आज हम समझेंगे ग्रहो के बल को अर्थात किन स्थितियों में ग्रहो को एक विशेष बल प्राप्त होता है उसे आज हम इस लेख के माध्यम से जानेंगे चलिए आगे बढ़ते है और समझते है-👇 👉इस लेख में हम ग्रहों के बल की बात करेंगे ग्रहों का बल 6(छ:) प्रकार का होता है  ☘️स्थान बल   ☘️दिग्बल अथवा दिशा बल  ☘️काल बल अथवा समय बल  ☘️नैसर्गिक बल  ☘️चेष्टा बल   ☘️द्रग्बल अथवा द्रष्टि बल  ◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆ 👉स्थान बल  व्यक्ति की कुंडली में यदि- ☘️उच्च राशि में  ☘️मूल त्रिकोण में ☘️स्वग्रही तथा मित्र राशि में  👉स्थित गृह को स्थान बली कहा  माना जाता है | ◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆ 👉दिग्बल अथवा दिशा बल  -बुध तथा गुरु लग्न में -चन्द्र एवं शुक्र चतुर्थ भाव  में  -शनि सप्तम में -मंगल दशम भाव अथवा स्थान में होतो  -दिग्बली अथवा दिशाओं का बली माना जाता है | ◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆ 👉काल बल :  ☘️व्यक्ति का रात्रि में जन्म हो तो चन्द्र, मंगल एवं शनि  ☘️तथा दिन में जन्म हो तो सूर्य, बुध, तथा शुक्र, काल बली माने जाते हैं |  ☘️मतान्तर से बुध को दिन व् रात्रि दोनों में ही #काल_बली माना जाता है |

पूजा से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें

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पूजा से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें ★ एक हाथ से प्रणाम नही करना चाहिए। ★ सोए हुए व्यक्ति का चरण स्पर्श नहीं करना चाहिए।  ★ बड़ों को प्रणाम करते समय उनके दाहिने पैर पर दाहिने हाथ से और उनके बांये पैर को बांये हाथ से छूकर प्रणाम करें।  ★ मन्दिर में किसी व्यक्ति के चरण नहीं छूने (गुरु को छोड़कर ) चाहिए। ★ जप करते समय जीभ या होंठ को नहीं हिलाना चाहिए। इसे मानसिक जप कहते हैं। इसका फल सौगुणा फलदायक होता हैं। ★ जप करते समय माला को कपड़े या गौमुखी से ढककर रखना चाहिए।  ★ जप के बाद आसन के नीचे की भूमि को स्पर्श कर नेत्रों से लगाना चाहिए। ★ दीपक से दीपक को नही जलाना चाहिए। ★ यज्ञ, श्राद्ध आदि में काले तिल का प्रयोग करना चाहिए, सफेद तिल का नहीं।  ★ शनिवार को पीपल पर जल चढ़ाना चाहिए। पीपल की सात परिक्रमा करनी चाहिए। परिक्रमा करना श्रेष्ठ है,  ★ कूमड़ा-मतीरा-नारियल आदि को स्त्रियां नहीं तोड़े या चाकू आदि से नहीं काटें। यह उत्तम नही माना गया हैं।  ★ भोजन प्रसाद को लाघंना नहीं चाहिए। ★  देव प्रतिमा देखकर अवश्य प्रणाम करें। ★  किसी को भी कोई वस्तु या दान-दक्षिणा दाहिने हाथ से देना चाहिए। ★  एकादशी, अमा

पीपल पर जल क्यों चढ़ाते हैं*

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*अद्भुत* *पीपल पर जल क्यों चढ़ाते हैं* श्मशान में जब महर्षि दधीचि के मांसपिंड का दाह संस्कार हो रहा था तो उनकी पत्नी अपने पति का वियोग सहन नहीं कर पायीं और पास में ही स्थित विशाल पीपल वृक्ष के कोटर में 3 वर्ष के बालक को रख स्वयम् भी स्वर्गलोक सिधार गयीं। इस प्रकार महर्षि दधीचि और उनकी पत्नी का बलिदान हो गया किन्तु पीपल के कोटर में रखा बालक भूख प्यास से तड़प तड़प कर चिल्लाने लगा।जब कोई वस्तु नहीं मिली तो कोटर में गिरे पीपल के गोदों(फल) को खाकर बड़ा होने लगा। कालान्तर में पीपल के पत्तों और फलों को खाकर बालक का जीवन येन केन प्रकारेण सुरक्षित रहा।   एक दिन देवर्षि नारद वहाँ से गुजरे। नारद ने पीपल के कोटर में बालक को देखकर उसका परिचय पूंछा- नारद- बालक तुम कौन हो ? बालक- यही तो मैं भी जानना चाहता हूँ । नारद- तुम्हारे जनक कौन हैं ? बालक- यही तो मैं जानना चाहता हूँ ।    तब नारद ने ध्यान धर देखा।नारद ने आश्चर्यचकित हो बताया कि  हे बालक ! तुम महान दानी महर्षि दधीचि के पुत्र हो। तुम्हारे पिता की अस्थियों का वज्र बनाकर ही देवताओं ने असुरों पर विजय पायी थी। नारद ने बताया कि तुम्हारे पिता द

कार्तिक पूर्णिमा

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🌿🍂🌿🍂🌿🍂🌿🍂🌿🍂🌿 30 नवंबर 2020 कार्तिक पूर्णिमा 🌿🍂🌿🍂🌿🍂🌿🍂🌿🍂🌿 कार्तिक पूर्णिमा का पर्व सोमवार (30 नवंबर 2020 को) को अगर भरण और रोहिणी नक्षत्र में स्नान-दान के साथ मनाया जाएगा। सोमवार को सुबह पूर्णिमा तिथि को रोहणी नक्षत्र होने से इस पर्व का महत्व और भी बढ़ गया है। पू्र्णिमा तिथि तो रविवार को दोपहर 12:30 के बाद शुरू हो गई है, लेकिन उदया तिथि सोमवार को होने के करण ग्रहस्थ लोग सोमवार को कार्तिक पूर्णिमा मनाएंगे। घर मे अपने अपने पितरों के नाम पर दीपक रखें। परिवार की आर्थिक तंगी दूर करने के लिए पितरों को खुश करना बेहद जरूरी माना जाता है। देव दीपावली को पितर देवताओं को दीप दान करने से पूर्वज प्रसन्न होते हैं और आशीर्वाद देते हैं। मान्यता है कि कार्तिक पूर्णिमा को दीप जलाने से भगवान विष्णु की खास कृपा मिलती है। इस कारण श्रद्धालु विष्णुजी को ध्यान करते हुए मंदिर, पीपल के पेड़, नदी किनारे, मंदिरों में दीप जलाते है। इस दिन दान करना अत्‍यंत शुभ माना जाता है. किसी ब्राह्मण या निर्धन व्‍यक्ति को भोजन कराएं और यथाशक्ति दान और भेंट देकर विदा करें। शास्त्रों में

चंद्रमा ग्रह को बेहतर करने के उपाय----

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जानें, चंद्रमा ग्रह को बेहतर करने के उपाय---- नवग्रहों में सूर्य के बाद , ज्योतिष में सर्वाधिक महत्वपूर्ण ग्रह है- चन्द्रमा. ज्योतिष में चन्द्रमा के बिना कोई गणना नहीं की जा सकती इसलिए चंद्रमा का ज्योतिष में एक प्रमुख स्थान है. वैज्ञानिक दृष्टिकोण से चन्द्रमा गुरुत्वाकर्षण शक्ति और सारी पृथ्वी के जल तत्त्व को नियंत्रित करता है.   जानें, चंद्रमा ग्रह को बेहतर करने के उपाय नवग्रहों में सूर्य के बाद , ज्योतिष में सर्वाधिक महत्वपूर्ण ग्रह है- चन्द्रमा - ज्योतिष में चन्द्रमा के बिना कोई गणना नहीं की जा सकती इसलिए चंद्रमा का ज्योतिष में एक प्रमुख स्थान है - वैज्ञानिक दृष्टिकोण से चन्द्रमा गुरुत्वाकर्षण शक्ति और सारी पृथ्वी के जल तत्त्व को नियंत्रित करता है - मानव का मन और भावनायें चन्द्रमा का ही क्षेत्र है - अगर चन्द्रमा को नियंत्रित किया जा सके तो निश्चित रूप से मानसिक दशा से अपार मजबूती पायी जा सकती है - चन्द्रमा का सम्बन्ध पेट और ह्रदय के रोग,एसिडिटी,नींद ,आलस्य,मानसिक स्थिति,फूल,सुगंध,चांदी,गन्ना,माता, जलीय यात्रा और शासन प्रशासन से होता है - चन्द्रमा कर्क राशि का स्वामी है औ

सत्संग बड़ा है या तप

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*सत्संग बड़ा है या तप*— एक बार विश्वामित्र जी और वशिष्ठ जी में इस बात‌ पर बहस हो गई, कि सत्संग बड़ा है या तप??? विश्वामित्र जी ने कठोर तपस्या करके ऋध्दी-सिध्दियों को प्राप्त किया था, इसीलिए वे तप को बड़ा बता रहे थे। जबकि वशिष्ठ जी सत्संग को बड़ा बताते थे। वे इस बात का फैसला करवाने ब्रह्मा जी के पास चले गए। उनकी बात सुनकर ब्रह्मा जी ने कहा- मैं सृष्टि की रचना करने में व्यस्त हूं। आप विष्णु जी के पास जाइये। विष्णु जी आपका फैसला अवश्य कर देगें। अब दोनों विष्णु जी के पास चले गए। विष्णु जी ने सोचा- यदि मैं सत्संग को बड़ा बताता हूं तो विश्वामित्र जी नाराज होंगे, और यदि तप को बड़ा बताता हूं तो वशिष्ठ जी के साथ अन्याय होगा। इसीलिए उन्होंने भी यह कहकर उन्हें टाल दिया, कि मैं सृष्टि का पालन करने मैं व्यस्त हूं। आप शंकर जी के पास चले जाइये। अब दोनों शंकर जी के पास पहुंचे। शंकर जी ने उनसे कहा- ये मेरे वश की बात नहीं है। इसका फैसला तो शेषनाग जी कर सकते हैं। अब दोनों शेषनाग जी के पास गए। शेषनाग जी ने उनसे पूछा- कहो ऋषियों! कैसे आना हुआ। वशिष्ठ जी ने बताया- हमारा फैसला कीजिए, कि तप बड़ा है

धर्म की जानकारी

धर्म की जानकारी 1-अष्टाध्यायी               पाणिनी 2-रामायण                    वाल्मीकि 3-महाभारत                  वेदव्यास 4-अर्थशास्त्र                  चाणक्य 5-महाभाष्य                  पतंजलि 6-सत्सहसारिका सूत्र      नागार्जुन 7-बुद्धचरित                  अश्वघोष 8-सौंदरानन्द                 अश्वघोष 9-महाविभाषाशास्त्र        वसुमित्र 10- स्वप्नवासवदत्ता        भास 11-कामसूत्र                  वात्स्यायन 12-कुमारसंभवम्           कालिदास 13-अभिज्ञानशकुंतलम्    कालिदास   14-विक्रमोउर्वशियां        कालिदास 15-मेघदूत                    कालिदास 16-रघुवंशम्                  कालिदास 17-मालविकाग्निमित्रम्   कालिदास 18-नाट्यशास्त्र              भरतमुनि 19-देवीचंद्रगुप्तम          विशाखदत्त 20-मृच्छकटिकम्          शूद्रक 21-सूर्य सिद्धान्त           आर्यभट्ट 22-वृहतसिंता               बरामिहिर 23-पंचतंत्र।                  विष्णु शर्मा 24-कथासरित्सागर        सोमदेव 25-अभिधम्मकोश         वसुबन्धु 26-मुद्राराक्षस               विशाखदत्त 27-रावणवध।              भटिट 28-किरातार्जुनीयम्       भार

पूजा सम्बन्धित नियम

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*पूजा सम्बन्धित नियम…* ◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆■ ◆◆◆◆◆◆■■ 1. सूर्य, गणेश, दुर्गा, शिव और विष्णु, ये पंचदेव कहलाते हैं, इनकी पूजा सभी कार्यों में अनिवार्य रूप से की जानी चाहिए। प्रतिदिन पूजन करते समय इन पंचदेव का ध्यान करना चाहिए। इससे लक्ष्मी कृपा और समृद्धि प्राप्त होती है। 2. शिवजी, गणेशजी और भैरवजी को तुलसी नहीं चढ़ानी चाहिए। 3. मां दुर्गा को दूर्वा (एक प्रकार की घास) नहीं चढ़ानी चाहिए। यह गणेशजी को विशेष रूप से अर्पित की जाती है। 4. सूर्य देव को शंख के जल से अर्घ्य नहीं देना चाहिए। 5. तुलसी का पत्ता बिना स्नान किए नहीं तोड़ना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार यदि कोई व्यक्ति बिना नहाए ही तुलसी के पत्तोंको तोड़ता है तो पूजन में ऐसे पत्ते भगवान द्वारा स्वीकार नहीं किए जाते हैं। 6. शास्त्रों के अनुसार देवी-देवताओं का पूजन दिन में पांच बार करना चाहिए। सुबह 5 से 6 बजे तक ब्रह्म मुहूर्त में पूजन और आरती होनी चाहिए।  इसके बाद प्रात: 9 से 10 बजे तक दूसरी बार का पूजन। दोपहर में तीसरी बार पूजन करना चाहिए। इस पूजन के बाद भगवान को शयन करवाना चाहिए। शाम के समय चार-पांच बजे पुन: पूजन और आरती।  रात को 8

आदित्य ह्रदय स्तोत्र

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।। जय श्री राम ।। #आदित्य ह्रदय स्तोत्र का पाठ नियमित  करने से अप्रत्याशित लाभ मिलता है। आदित्य हृदय स्तोत्र के पाठ से नौकरी में पदोन्नति, धन प्राप्ति, प्रसन्नता, आत्मविश्वास के साथ-साथ समस्त कार्यों में सफलता मिलती है। हर मनोकामना सिद्ध होती है। सरल शब्दों में कहें तो आदित्य ह्रदय स्तोत्र हर क्षेत्र में चमत्कारी सफलता देता है। #आदित्य हृदय स्तोत्र मुख्य रूप से श्री वाल्मीकि रामायण के युद्धकाण्ड का एक सौ पांचवां सर्ग है। भगवान राम को युद्ध में विजय प्राप्त करने के लिए अगस्त्य ऋषि द्वारा इस स्तोत्र का वर्णन किया गया था। #सूर्य की विशेष कृपा के लिए आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ किया जाता है। शास्त्रों में इस पाठ की महिमा का उल्लेख किया गया है। यहां तक कि भगवान श्रीराम ने भी रावण से विजय प्राप्ति के लिए सूर्यदेव की आराधना इसी पाठ के माध्यम से की थी। इसके पाठ से कुंडली में सूर्य से जुड़े सारे दोष भी दूर होते हैं। शरीर में स्फूर्ति और मन में आत्मविश्वास भर जाता है। #सूर्य के समान तेज प्राप्त करने और युद्ध तथा मुकदमों में विजय प्राप्त करने के लिए इसका पाठ अमोघ है। *जीवन के किसी भी ब

कथा

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एक समय की बात है किसी गाँव  में  एक  साधु रहता  था, वह  भगवान का बहुत बड़ा भक्त था और निरंतर एक पेड़ के नीचे  बैठ  कर  तपस्या  किया करता  था |  उसका  भागवान  पर  अटूट   विश्वास   था और गाँव वाले भी उसकी इज्ज़त करते थे| एक बार गाँव  में बहुत भीषण बाढ़  आ  गई |  चारो तरफ पानी ही पानी दिखाई देने लगा, सभी लोग अपनी जान बचाने के लिए ऊँचे स्थानों की तरफ बढ़ने लगे | जब लोगों ने देखा कि साधु महाराज अभी भी पेड़ के नीचे बैठे भगवान का नाम जप  रहे हैं तो उन्हें यह जगह छोड़ने की सलाह दी| पर साधु ने कहा-  ” तुम लोग अपनी  जान बचाओ मुझे तो मेरा भगवान बचाएगा!” धीरे-धीरे पानी  का  स्तर बढ़ता गया , और पानी साधु के कमर तक आ पहुंचा , इतने में वहां से एक नाव  गुजरी| मल्लाह ने कहा- ” हे साधू महाराज आप इस नाव पर सवार हो जाइए मैं आपको सुरक्षित स्थान तक पहुंचा दूंगा |” “नहीं, मुझे तुम्हारी मदद की आवश्यकता नहीं है , मुझे तो मेरा भगवान बचाएगा !! “, साधु ने उत्तर दिया. नाव वाला चुप-चाप वहां से चला गया. कुछ देर बाद बाढ़ और प्रचंड हो गयी , साधु ने पेड़ पर चढ़ना उचित समझा और वहां बैठ कर ईश्वर को याद करने ल

माला_संस्कार_विधि

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#माला_संस्कार_विधि:- एक दिव्य माला को #संस्कारित और अधिक #उपयोगी बनाने की विधि: सर्वप्रथम स्नान आदि से शुद्ध हो कर अपने पूजा गृह में पूर्व या उत्तर की ओर मुंह कर #आसन पर बैठ जाएं। सर्व प्रथम आचमन, पवित्रीकरण आदि करने के बाद #गणेश, #गुरु तथा अपने #इष्ट देव/ देवी का पूजन सम्पन्न कर लें। तत्पश्चात पीपल के 9 पत्तों को भूमि पर अष्टदल कमल की भांती बिछा लें। एक पत्ता मध्य में तथा शेष आठ पत्ते आठ दिशाओं में रखने से #अष्टदल कमल बनेगा, इन पत्तो के ऊपर आप माला को रख दें।  अब गाय का दूध, दही, घी, गोमूत्र, गोबर से बने पंचगव्य से किसी पात्र में माला को प्रक्षालित करें और पंचगव्य से माला को स्नान कराते हुए- ॐ अं आं इं ईं उं ऊं ऋं ऋं लृं लॄं एं ऐं ओं औं अं अः कं खं गं घं ङं चं छं जं झं ञं टं ठं डं ढं णं तं थं दं धं नं पं फं बं भं मं यं रं लं वं शं षं सं हं क्षं    इस समस्त स्वर वयंजन का अनुनासिक उच्चारण करें। माला को निम्न मंत्र बोलते हुए गौदुग्ध से स्नान कराने के बाद जल से स्नान कराएं। ॐ सद्यो जातं प्रद्यामि सद्यो जाताय वै नमो नमः ! भवे भवे नाति भवे भवस्य मां भवोद्भवाय नमः  माला को निम्न

वाराह-अवतार की कथा...

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🌹🌹🌹वाराह-अवतार की कथा...           श्रीशुकदेव जी ने कहा- राजन्! मुनिवर मैत्रेय जी के मुख से यह परम पुण्यमयी कथा सुनकर श्रीविदुर जी ने फिर पूछा; क्योंकि भगवान् की लीला-कथा में इनका अत्यन्त अनुराग हो गया था।           विदुर जी ने कहा- मुने! स्वयम्भू ब्रह्मा जी के प्रिय पुत्र महाराज स्वायम्भु मनु ने अपनी प्रिय पत्नी शतरूपा को पाकर फिर क्या किया? आप साधुशिरोमणि हैं। आप मुझे आदिराज राजर्षि स्वायम्भुव मनु का पवित्र चरित्र सुनाइये। वे श्रीविष्णु भगवान् के शरणापन्न थे, इसलिये उनका चरित्र सुनने में मेरी बहुत श्रद्धा है। जिनके हृदय में श्रीमुकुन्द के चरणारविन्द विराजमान हैं, उन भक्तजनों के गुणों को श्रवण करना ही मनुष्यों के बहुत दिनों तक किये हुए शास्त्राभ्यास के श्रम का मुख्य फल है, ऐसा विद्वानों का श्रेष्ठ मत है।           श्रीशुकदेव जी कहते हैं- राजन्! विदुर जी सहस्रशीर्षा भगवान् श्रीहरि के चरणाश्रित भक्त थे। उन्होंने जब विनयपूर्वक भगवान् की कथा के लिये प्रेरणा की, तब मुनिवर मैत्रेय का रोम-रोम खिल उठा। उन्होंने कहा।           श्रीमैत्रेय जी बोले- जब अपनी भार्या शतरूपा के साथ स्

vaijanti mala

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वैजयंती फूलों का बहुत ही सौभाग्यशाली वृक्ष होता है। इसकी माला पहनने से सौभाग्य में वृद्धि होती है। इस माला को किसी भी सोमवार अथवा शुक्रवार को गंगाजल या शुद्ध ताजे जल से धोकर धारण करना चाहिए।   2. वैजयंती के बीजों की माला से भगवान विष्णु या सूर्यदेव की उपासना करने से ग्रह नक्षत्रों का प्रभाव खत्म हो जाता है। खासकर शनि का दोष समाप्त हो जाता है। इस माला को धारण करने से देवी लक्ष्मी भी प्रसन्न होती है।

क्यो_की_जाती_हैं_परिक्रमा

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🙏          #क्यो_की_जाती_हैं_परिक्रमा,          🙏        #किस_देवी_देवता_की_कितनी_परिक्रमा_करें??             हिन्दु धर्म में देवी देवताओं की पूजा अर्चना के साथ साथ उनकी परिक्रमा का भी बहुत महत्व बताया गया है। अपने दक्षिण भाग की ओर से चलना / गति करना परिक्रमा कहलाता है।            परिक्रमा में व्यक्ति का दाहिना अंग देवता की ओर होता है। हमेशा ध्यान रखें कि परिक्रमा सदैव दाएं हाथ की ओर से ही प्रारंभ करनी चाहिए।            क्योंकि दैवीय शक्ति के आभामंडल की गति दक्षिणावर्ती होती है। बाएं हाथ की ओर से परिक्रमा करने पर दैवीय शक्ति के आभामंडल की गति और हमारे अंदर विद्यमान परमाणुओं में टकराव पैदा होता है, जिससे हमारा तेज नष्ट हो जाता है।            जबकि दाएं हाथ की ओर से परिक्रमा करने पर उस देवी / देवता की कृपा आसानी से प्राप्त होती है। हिन्दू शास्त्रों में देवी-देवताओं की परिक्रमा के नियम! ^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^ " #प्रगतं_दक्षिणमिति_प्रदक्षिणं " के अनुसार अपने दक्षिण भाग की ओर गति करना प्रदक्षिणा कहलाता है। प्रदक्षिणा में व्यक्ति का दहिना अंग देवता

दूसरा भाव धन

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जन्मपत्री में दूसरा भाव धन का कारक होता है। इसके अतिरिक्त पंचम, नवम, चतुर्थ, दशम भाव व एकादश भाव भी लक्ष्मी प्राप्ति के योगों का निर्माण करते है। प्रथम, पंचम, नवम, चतुर्थ, दशम और सप्तम भाव की भूमिका भी धन प्राप्ति में महत्वपूर्ण होती है। दूसरा भाव यानि धन के कारक भाव की भूमिका विशेष होती है। वैसे तो विभिन्न प्रकार के योग जैसे राजयोग, गजकेसरी योग, महापुरूष, चक्रवर्ती योग आदि में मां लक्ष्मी की विशेष कृपा या विपुल धन प्राप्त होने के संकेत देते ही है। लेकिन आधुनिक युग में उच्च पदों पर आसीन होने से ये योग लक्ष्मी प्राप्ति या महाधनी योग किस प्रकार घटित होते है ,ज्योतिष के अनुसार यदि निम्न प्रकार के सम्बन्ध धनेश, नवमेश, लग्नेश, पंचमेश और दशमेश आदि के मध्य बनें तो जातक महाधनी कहा जा सकता है। यदि लग्नेश धन भाव में और धनेश लग्न भाव में स्थित हो तो यह योग विपुल धन योग का निर्माण करता है। इसी प्रकार से लग्नेश की लाभ भाव में स्थिति या लाभेश का धन भाव, लग्न या लग्नेश से किसी भी प्रकार का सबंध जातक को अधिक मात्रा में धन दिलाता है। लेकिन शर्त यह है कि इन भावों यो भावेशों पर नीच या शत्रु ग