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Showing posts from January, 2022

ऋषि मुनि

🚩ऋषि, मुनि, साधु और संन्यासी में  अंतर :-🚩 भारत में प्राचीन काल से ही ऋषि मुनियों का बहुत महत्त्व रहा है। ऋषि मुनि समाज के पथ प्रदर्शक माने जाते थे और वे अपने ज्ञान और साधना से हमेशा ही लोगों और समाज का कल्याण करते आये हैं। आज भी वनों में या किसी तीर्थ स्थल पर हमें कई साधु देखने को मिल जाते हैं। धर्म कर्म में हमेशा लीन रहने वाले इस समाज के लोगों को ऋषि, मुनि, साधु और संन्यासी आदि नामों से पुकारते हैं। ये हमेशा तपस्या, साधना, मनन के द्वारा अपने ज्ञान को परिमार्जित करते हैं। ये प्रायः भौतिक सुखों का त्याग करते हैं हालाँकि कुछ ऋषियों ने गृहस्थ जीवन भी बिताया है। आईये आज के इस पोस्ट में देखते हैं ऋषि, मुनि, साधु और संन्यासी में कौन होते हैं और इनमे क्या अंतर है ? ऋषि कौन होते हैं भारत हमेशा से ही ऋषियों का देश रहा है। हमारे समाज में ऋषि परंपरा का विशेष महत्त्व रहा है। आज भी हमारे समाज और परिवार किसी न किसी ऋषि के वंशज माने जाते हैं।  ऋषि वैदिक परंपरा से लिया गया शब्द है जिसे श्रुति ग्रंथों को दर्शन करने वाले लोगों के लिए प्रयोग किया गया है। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है वैसे व्यक्ति जो

केतु मंगल एवं शनि के नकारात्मक प्रभाव को दूर करने का उपाय एव मुहूर्त

केतु मंगल एवं शनि के नकारात्मक प्रभाव को दूर करने का उपाय एव मुहूर्त दिनांक 11 फरवरी 2022 माघ मास शुक्ल पक्ष दसमी तिथि शुकवासरे दोपहर दो बजे पूर्व 1.जिसकी जन्मपत्रिका में मंगल,शनि, एवं केतु नकारात्मक हो और वर्तमान में कर्ज एव कार्यवरोध की स्थिति उत्पन्न हो रही हो 2. जिनके पारिवारिक रिश्तों में धन संपत्ति के कारण मनमुटाव हो या न्यायालय से बाधित हो 3.वित्तिय लेनदेन समय पर न हो रहा हो या कर्ज लम्बे समय से हो 4.जिनके कार्य मे विलम्ब हो रहा हो या बार बार कार्य टाले जा रहे हो या एकदम से अवरुद्ध हो 5. जिनके उपाय सिद्ध नही हो रहे हो,कार्य या व्यवहार से मन अशांत हो सन्तान पक्ष से चिंता हो उपरोक्त के भिन्न भी जिनके शनि मंगल केतु जनित कोई भी पीड़ा हो,त्रिक भवन में बैठे हो या महादशा चल रही हो उपाय ऊपर सबसे पहले मुहूर्त लिखा हुआ है उपरोक्त मुहूर्त के दिन एक स्वेत ध्वज जो  त्रित्री वर्ग से पिरामिड के आकार हो जिसका वजन ढाई सेर से अधिक न हो मंदिर में या किसी सघन हरे वृक्ष पर ध्वज रोपित करने से मंगल शनि एव केतु  जनित अनिष्ट निवारण का अचूक उपाय है कृपया अपनी निजी पण्डित जी अपनी कुंडली दिखवाकर फिर आवश्यक

दैनिक जीवन की समस्या में छाया दान का उपाय

दैनिक जीवन की समस्या में छाया दान का उपाय 〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️ अक्सर ऐसा होता है कि व्यक्ति का बिता हुआ काल अर्थात भुत काल अगर दर्दनाक रहा हो या निम्नतर रहा हो तो वह व्यक्ति के आने वाले भविष्य को भी ख़राब करता है और भविष्य बिगाड़ देता है। यदि आपका बीता हुआ कल आपका आज भी बिगाड़ रहा हो और बीता हुआ कल यदि ठीक न हो तो निश्चित तोर पर यह आपके आनेवाले कल को भी बिगाड़ देगा। इससे बचने के लिए छाया दान करना चाहिये। जीवन में जब तरह तरह कि समस्या आपका भुतकाल बन गया हो तो छाया दान से मुक्ति मिलता है और आराम मिलता है।  नीचे हम सामाजिक एवं पारिवारिक जीवन की विभिन्न समस्या अनुसार छाया दान के विषय मे बता रहे है। 1 . बीते हुए समय में पति पत्नी में भयंकर अनबन चल रही हो  〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️ अगर बीते समय में पति पत्नी के सम्बन्ध मधुर न रहा हो और उसके चलते आज वर्त्तमान समय में भी वो परछाई कि तरह आप का पीछा कर रहा हो तो ऐसे समय में आप छाया दान करे और छाया दान आप बृहस्पत्ति वार के दिन कांसे कि कटोरी में घी भर कर पति पत्नी अपना मुख देख कर कटोरी समेत मंदिर में दान दे आये इससे आप कि खटास भरे भु

कुंडली के योग

कुंडली के वे योग, जो बर्बाद कर देते हैं जीवन, देखें कहीं आपकी कुंडली में तो नहीं जन्मकुंडली में होते हैं शुभ और अशुभ दोनों तरह के योग... 3. षड्यंत्र योग लग्न भाव का स्वामी (लग्नेश) अगर अष्टम भाव में बिना किसी शुभ ग्रह के हो तो कुंडली में षड्यंत्र योग का निर्माण होता है। जिस व्यक्ति की कुंडली में यह योग होता है उसकी धन-संपत्ति नष्ट होने की आशंका रहती है। यह योग अत्यंत खराब माना जाता है। जिस स्त्री-पुरुष की कुंडली में यह योग हो वह अपने किसी करीबी के षड्यंत्र का शिकार होता है। धोखे से उसका धन-संपत्ति छीनी जा सकती है। इस योग के चलते कोई विपरीत लिंगी जातक भी इन्हें भारी मुसीबत में डाल सकता है। दुष्परिणाम से बचने के उपाय : इस दोष की निवृत्ति के लिए शिव परिवार का पूजन करें। सोमवार को शिवलिंग पर सफेद आंकड़े का पुष्प और सात बिल्व पत्र चढ़ाएं। शिवजी को दूध से बनी मिठाई का भोग लगाएं। 4. भाव नाश योग :  जन्मकुंडली में जब किसी भाव का स्वामी त्रिक स्थान यानी छठे, आठवें और 12वें भाव में बैठा हो तो उस भाव के सारे प्रभाव नष्ट हो जाते हैं। उदाहरण के लिए यदि धन स्थान की राशि मेष है और इसका स्वामी मंगल छठे

द्वितीय भाव के कारकत्व

जय श्री बालाजी द्वितीय भाव के कारकत्व दूसरा भाव वाणी का है ये तो हमने अच्छे से रट्टा मार रकह जिसलिये बताने की जरूरत ही नही है। जैसी राशी, जैसा ग्रह उस प्रकार की वाणी। शुभ ग्रह तो शुभ मीठी वाणी। पाप ग्रह तो पापी वाणी। कटु वाणी। धन का है ये भी सबको पता है। लेकिन धन कौनसा। संचय किया हुआ धन। सेविंग का। एकादश का घर है तो वही हो गया। दुसरो का या अपना पालन पोषण। लग्न से पैदा हुए तो हमारा पालन पोषण भी तो जरूरी है। पालन पोषण होगा परिवार में मतलब परिवार का भाव भी हो गया। अब चूंकि ये पालन पोषण चाहे अपना हो या दूसरे का। पालन पोषण यही से देखेंगे। पीड़ित हुआ तो न तो अपना पालन पोषण ढंग से होगा न हम किस ओर का ढंग से कर पाएंगे। नाखून का भाव यही है। इसके पीछे का क्या लॉजिक है समझ नजी आया। लेकिन सामुद्रिक शास्त्र में आप पाएंगे कि जातंक के नाखून से बहुत कुछ फलित बताया गायक है तो अब समझ जाओ की द्वितीय भाव का महात्म्य। खाने पीने का भाव है तो वो सर्व विदित है तो खाने का, खुजाने का, बत्ती बुझाने का ओर सो जाने का। ज्यास्ति टेंशन नही लेने का। सच ओर झूठ का भाव है। अब आया ऊंट पहाड़ के नीचे ये पीड़ित हुआ तो पक्का झूठ

फ़िरोज़ा*

*फ़िरोज़ा*   *- एक चमत्कारी पत्थर -*  बॉलीवुड के सुपरस्टार सलमान खान (Salman Khan) की कलाई पर आप सभी ने ब्रेसलेट तो जरूर देखा होगा। ये ब्रेसलेट केवल उनका स्टाइल स्टेटमेंट ही नहीं है बल्कि उनका लकी चार्म भी माना जाता है। क्योंकि इस ब्रेसलेट में उन्होंने फिरोजा रत्न धारण किया हुआ है। ज्योतिष में इस रत्न को बेहद ही प्रभावशाली माना जाता है। बहुत ही कम लोग इस रत्न को धारण कर पाते हैं। ये बृहस्पति ग्रह का रत्न है जिसे धारण करने से जीवन में सुख-समृद्धि आती है।  *जानिए रत्न ज्योतिष अनुसार इस रत्न का क्या है महत्व।*   *इन लोगों को अवश्य पहनना चाहिए “फिरोजा रत्न”*  ● फिरोजा एक प्राकृतिक रत्न / पत्थर है। इस रत्न के अनेक नाम हैं - संस्कृत में पेरोजक, पैरोज, व्योमाभ, नीलकंठक, फारसी में फिरोजा तथा अंग्रेजी में टर्कोइज (Turquoise) कहते हैं। नीले आकाशीय रंग सा फिरोजा रत्न शुक्र ग्रह का उपरत्न माना जाता है। यह नीला और हरा मिश्रित रंग का होता है | शास्त्रों में इसकी उत्पत्ति दैत्यराज बली के शरीर की नसों से बतलायी गयी है। फिरोजा फारस (नौशपुर नामक स्थान) से आता है. भारत में फ़िरोज़ा अधिकतर ईरान एवं अमेरिका ,त

कुंडली मे महाराज शनि देव के 12 भावों मे अलग अलग फल

कुंडली मे महाराज शनि देव के 12 भावों मे अलग अलग फल अगर शनि देव स्वराशिस्थ है तो किसी भी भाव मे समस्याओं को नही लाते हैं परंतु अन्य किसी राशि मे है तो अलग अलग फल होते हैं ।जैसे मित्र राशि मे है तो अच्छे फलो को बढ़ोतरी ,शत्रु राशि मे है तो बुरे फलो मे बढ़ोतरी।फलित ज्योतिषी पंडित संस्कार त्रिपाठी ब्रह्मर्षि द्वारा दिये हुए अलग अलग सिद्धान्त - 1-प्रथम भाव मे शनि है तो जातक का शरीर बड़ा ,जातक अत्यंत पराक्रमी ,छोटे भाई के साथ संबंध खराब,दाम्पत्य जीवन मे थोड़ी परेशानी, या विवाह मे विलंब और हर कार्य मे विलंब। 2-दूसरे भाव मे शनि हो तो माँ को स्वास्थ्य संबंधी समस्या, पैतृक संपत्ति मिलना,बार बार एक्सीडेंट ,या तो तांत्रिक या तंत्र मे पैसा बर्बाद करने वाला आय मे नित्य उतार चढ़ाव लेकिन आय मे बढ़ोतरी। 3-तीसरे भाव मे शनि जातक पराक्रमी अधिकांशतः भाई बहन नही होते हैं, सुरूवाती पढ़ाई मे बहुत दिक्कत भाग्योदय 36 वर्ष के बाद और जातक पैसे की बर्बादी बहुत करता है। 4-चतुर्थ भाव में शनि हो तो माँ का स्वास्थ्य खराब ,लेकिन जातक शत्रुहंता ,जातक के शरीर मे फोड़ा फुंसी ,जातक शराब, कोयला,,लोहा के कार्य मे कमाई कार्य मे विलंब

🌼श्री गजेन्द्र मोक्ष महात्म्य एवं स्तोत्र🌼

🌼श्री गजेन्द्र मोक्ष महात्म्य एवं स्तोत्र🌼 〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️ क्षीरसागर में स्थित त्रिकूट पर्वत पर लोहे, चांदी और सोने की तीन विशाल चोटियां थीं। उनके बीच विशाल जंगल में गजेंद्र हाथी अपनी असंख्य पत्नियों के साथ रहता था। एक बार गजेंद्र अपनी पत्नियों के साथ प्यास बुझाने के लिए एक तालाब पर पहुंचा। प्यास बुझाने के बाद गजेंद्र की जल-क्रीड़ा करने की इच्छा हुई। वह पत्नियों के साथ तालाब में क्रीडा करने लगा। दुर्भाग्यवश उसी समय एक अत्यंत विशालकाय ग्राह(मगरमच्छ) वहां पहुंचा। उसने गजेंद्र के दाएं पैर को अपने दाढ़ों में जकड़कर तालाब के भीतर खींचना शुरू किया।। गजेंद्र पीड़ा से चिंघाड़ने लगा। उसकी पत्नियां तालाब के किनारे अपने पति के दुख पर आंसू बहाने लगी। गजेंद्र अपने पूरे बल के साथ ग्राह से युद्ध कर रहा थ परंतु वह ग्राह की पकड़ से मुक्त नहीं हो पा रहा था। गजेंद्र अपने दाँतों से मगरमच्छ पर वार करता तो ग्राह उसके शरीर को अपने नाखूनों से खरोंच लेता और खून की धारा निकल आती। ग्राह और हाथी के बीच बहुत समय तक युद्ध हुआ। पानी के अंदर ग्राह की शक्ति ज़्यादा होती है। ग्राह गजेंद्र का खून चूसकर बलवान होता

6th भाव के कारकत्व

6th भाव के कारकत्व ■■■■■■■■■■ ■6th भाव से विजनेश या कॉम्प्टीशन में सफलता मिले गा  या नही ये बताता है ■6th भाव मजबूत स्थिति में है तो सफलता दिलाता है ■6th भाव कंमजोर स्थिति में हो तो विमारी देता है।  ■6th भाव दशम भाव से नववा भाव होता है जो कर्म भाव का त्रिकोण भाव होता है , जो कर्म का भाग्य भाव होता है।। ■6th भाव का कारकत्व आँख भी है , और आँखों से भी आहार लिया जाता है। 6th भाव कंमजोर हो तो दीर्धकालीन नेत्र रोग देता है। ■6th भाव बड़े बड़े राजयोग देता है। ■6th में क्रूर चन्द ,क्रूर ग्रह,व शनि , मङ्गल, ग्रह अच्छे फल देते है।■कर्म स्थान का विचार करने के लिए कर्म स्थान से (10H,2H,6H)अर्थात (त्रिकोण भाव 1,5,9)के बल को देखे,,  ■6H से जातक के छमता, संघर्ष और सफलता का विचार किया जाता है।। 6th भाव पर अशुभ ग्रहों का होना कॉम्पटीशन में सफलता होता है, और इन्ही स्थानो से ही नीच भंग और विपरीत राजयोग का भी निर्माण होता है।। ■6th और 11 th का exchange भौतिक रूप से बहुत अच्छा फल देते है। ■6th का मंगल (उच्च का ) बहुत अच्छा फल देते है। ■6th में स्वग्रही अच्छा फल देता है। ■6th में सूर्य अच्छा फल देता है। ■6th म

चंद्रमा की सुन्दरता व राजा दक्ष प्रजापति का चंद्रमा को श्राप

चंद्रमा की सुन्दरता व राजा दक्ष प्रजापति का चंद्रमा को श्राप 〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️ चंद्रमा की सुंदरता पर राजा दक्ष की सत्ताइस पुत्रियां मोहित हो गईं. वे सभी चंद्रमा से विवाह करना चाहती थी  दक्ष ने समझाया सगी बहनों का एक ही पति होने से दांपत्य जीवन में बाधा आएगी लेकिन चंद्रमा के प्रेम में पागल दक्ष पुत्रियां जिद पर अड़ी रहीं.         अश्विनी सबसे बड़ी थी. उसने कहा कि पिताजी हम आपस में मेलजोल से मित्रवत रहेंगे. आपको शिकायत नहीं मिलेगी. दक्ष ने सत्ताईस कन्याओं का विवाह चंद्रमा से कर दिया.         विवाह से चंद्रमा और उनकी पत्नियां दोनों बहुत प्रसन्न थे लेकिन ये खुशी ज्यादा दिनों तक नहीं रही. जल्द ही चंद्रमा सत्ताइस बहनों में से एक रोहिणी पर ज्यादा मोहित हो गए और अन्य पत्नियों की उपेक्षा करने लगे.         यह बात दक्ष को पता चली और उन्होंने चंद्रमा को समझाया. कुछ दिनों तक तो चंद्रमा ठीक रहे लेकिन जल्द ही वापस रोहिणी पर उनकी आसक्ति पहले से भी ज्यादा तेज हो  गई.         अन्य पुत्रियों के विलाप से दुखी दक्ष ने फिर चंद्रमा से बात की लेकिन उन्होंने इसे अपना निजी मामला बताकर दक्ष का अ

चौरासी लाख योनियों के चक्र का शास्त्रों में वर्णन

चौरासी लाख योनियों के  चक्र का शास्त्रों में वर्णन🙏             🙏 ३० लाख बार वृक्ष योनि में जन्म होता है । इस योनि में सर्वाधिक कष्ट होता है । धूप ताप,आँधी, वर्षा आदि में बहुत शाखा तक टूट जाती हैं । शीतकाल में पतझड में सारे पत्ता पत्ता तक झड़ जाता है। लोग कुल्हाड़ी से काटते हैं । उसके बाद जलचर प्राणियों के रूप में ९ लाख बार जन्म होता है ।  हाथ और पैरों से रहित देह और मस्तक। सड़ा गला मांस  ही खाने को मिलता है । एक दूसरे का मास खाकर जीवन  रक्षा करते हैं । उसके बाद कृमि योनि में १० लाख बार जन्म होता है ।    और फिर ११ लाख बार पक्षी योनि में जन्म होता है।  वृक्ष ही आश्रय स्थान होते हैं । जोंक, कीड़-मकोड़े, सड़ा गला जो कुछ भी मिल जाय, वही खाकर उदरपूर्ति करना। स्वयं भूखे रह कर संतान को खिलाते हैं और जब संतान उडना सीख जाती है  तब पीछे मुडकर भी नहीं देखती । काक और शकुनि का जन्म दीर्घायु होता है । उसके बाद २० लाख बार पशु योनि,वहाँ भी अनेक प्रकार के कष्ट मिलते हैं । अपने से बडे हिंसक और बलवान् पशु सदा ही पीडा पहुँचाते रहते हैं । भय के कारण पर्वत कन्दराओं में छुपकर रहना।  एक दूसरे को मारकर खा जा

इन 5 कामों में देर करना अच्छी बात है

इन 5 कामों में देर करना अच्छी बात है कबीरदास का एक बहुत ही प्रसिद्ध दोहा है- काल करे सो आज कर, आज करै सो अब। यानी जो काम कल करना है, उसे आज ही कर लेना चाहिए और जो काम आज करना है, उसे अभी कर लेना चाहिए। इसका सीधा सा अर्थ ये है कि किसी भी काम को करने में देर नहीं करना चाहिए। ये बात सभी कामों के लिए सही नहीं है। स्त्री और पुरुष, दोनों के लिए कुछ काम ऐसे भी हैं, जिनमें देर करना अच्छी बात है। महाभारत के एक श्लोक में बताया है कि हमें किन कामों को टालने की कोशिश करनी चाहिए… रागे दर्पे च माने च द्रोहे पापे च कर्मणि। अप्रिये चैव कर्तव्ये चिरकारी प्रशस्यते।। ये श्लोक महाभारत के शांति पर्व में दिया गया है। इसमें 5 काम ऐसे बताए गए हैं, जिनमें देर करने पर हम कई परेशानियों से बच सकते हैं। 1 पहला काम है राग👉 इन पांच कामों में पहला काम है राग यानी अत्यधिक मोह, अत्यधिक जोश, अत्यधिक वासना। राग एक बुराई है। इससे बचना चाहिए। जब भी मन में राग भाव जागे तो कुछ समय के लिए शांत हो जाना चाहिए। अधिक जोश में किया गया काम बिगड़ भी सकता है। वासना को काबू न किया जाए तो इसके भयंकर परिणाम हो सकते हैं। किसी के प्रति म

धूप बत्ती के प्रकार लाभ और निर्माण विधि (पुनः प्रेषित)

धूप बत्ती के प्रकार लाभ और निर्माण विधि (पुनः प्रेषित) 〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️ हिन्दू धर्म में धूप देने और दीपक जलाने का बहुत अधिक महत्त्व है। सामान्य तौर पर धूप दो तरह से ही दी जाती है। पहला गुग्गुल-कर्पूर से और दूसरा गुड़-घी मिलाकर जलते कंडे पर उसे रखा जाता है।  वर्तमान परिस्थितियों में समय की कमी एवं प्रचार की अधिकता के कारण आमतौर पर हम बाजार से लाई गई धूप ही प्रयोग करते है जिनमे भी हमे विभिन्न प्रकार की सुगंघ वाली धूप मिल जाती है लेकिन इनके निर्माण में अधिकांशतः कैमिकल और गाड़ियों का बचा हुआ काला तेल प्रयोग किया जाता है। गुड़ और घी से दी गई धूप का ख़ास महत्त्व है। इसके लिए सर्वप्रथम एक कंडा जलाया जाता है। फिर कुछ देर बाद जब उसके अंगारे ही रह जाएँ, तब गुड़ और घी बराबर मात्रा में लेकर उक्त अंगारे पर रख दिया जाता है और उसके आस-पास अँगुली से जल अर्पण किया जाता है। अँगुली से देवताओं को और अँगूठे से अर्पण करने से वह धूप पितरों को लगती है। जब देवताओं के लिए धूप दान करें, तब ब्रह्मा, विष्णु और महेश का ध्यान करना चाहिए और जब पितरों के लिए अर्पण करें, तब अर्यमा सहित अपने पितरों का ध्यान

मंदिर पहाड़ों पर

ऊंचे पहाड़ों पर ही क्यों बने है अधिकतर सिद्ध मंदिर, एक वैज्ञानिक रहस्य?  〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️ क्या अपने सोचा है की हिन्दू धर्म में अधिकतर बड़े सिद्ध धर्मस्थल ऊँचे पहाडो पर ही क्यों बने हुए है ? आखिर क्या है इसका रहस्य, आखिर क्यों सभी बड़े सिद्ध मंदिर, धर्म स्थल और सिद्ध स्थान ऊँचे पहाडो पर है, और क्यों इन्हें साधारण मानवो से दूर रखने का प्रयास किया गया? आखिर यह स्थल मैदानी इलाको में भी तो हो ही सकते थे ? जब ज्ञानपंती टीम ने पहाड़ो पर ही अधिकतर सिद्ध मंदिर और शक्ति पीठ होने की पड़ताल की तो इसमें कई रहस्यमयी बातें सामने आई, जिससे एक एक कर इन रहस्यों की परते खुलती चली गयी | इसी विषय के कई जानकारों से इस बारे में जो बाते सामने आई है वह वास्तव में चौकाने वाली है, आइये जानते है क्या कहा है सिद्धो ने इस बारे में। 1. वास्तव में यह मंदिर नहीं अपितु साधना स्थल है। चौक गए ना ? सिद्दो के अनुसार यह कोई आम स्थल नहीं है जहाँ किसी मूर्ति की आराधना होती है अपितु यह ऐसे विशेष स्थल है जहाँ उस देवी/देवता की विशेष ऊर्जा अधिक मात्रा में प्रवाहित होती है, जिस कारण साधना में जल्दी सफलता मिलती है और

मांगलिक कितना अमंगल ★

★  मांगलिक कितना अमंगल ★ =======================       मंगलीक दोष के भयंकर प्रचार को देखते हुए सामान्य व्यक्ति तो यह कल्पना भी नहीं कर सकता कि मंगलीक दोष हमारे आर्ष ग्रन्थों में इस रूप में वर्णित नहीं है । पता नहीं , किस शुभ व दीर्घायु प्रद मुहूर्त में किसी ने इसे नाम दिया कि यह मिटाए नहीं मिटता ।          सभी ज्योतिष ग्रन्थों में सिरमौर ' पाराशर होराशास्त्र " माना जाता है । एक श्लोक मिलता है जो वर्तमान प्रचलित सम्बद्ध श्लोक से अर्थानुसार साम्य रखता है । श्लोक इस प्रकार है  लग्ने व्यये सुखे वापि सप्तमे वाष्टमे कुजे ।  शुभदृग्योगहीने च पतिं हन्ति न संशयः ।।  वर्तमान प्रचलित श्लोक इस प्रकार है  लग्ने व्यये च पाताले जामित्रे चाष्टमे कुजे ।  कन्याभर्तृविनाशाय भर्ता पत्नी विनाशकृत् ।।   तो आशय यह है कि वर -  ★कन्या की कुण्डली में 1 , 12 , 4 , 7 , 8 भावों में मंगल हो तो परस्पर दोषाधायक होता है ।  आप देख रहे हैं कि पाराशर श्लोक में जहां उक्त स्थानों में स्थित मंगल को दोषकारक माना गया है । जब वह शुभग्रहों से युत या दृष्ट न हो , वहीं बाद वाले श्लोक से यह महत्त्वपूर्ण बात बिल्कुल गायब ह

There are 27 nakshatra counted in the Jyothisha.

There are 27 nakshatra counted in the Jyothisha.  It starts from Kritika and ends with Bharani,  in the Vedas. In Jyothisha, it starts from Aswini and ends with Revathi.  In marital compatibility, the following pairs must be avoided. They are, Aswini----Jyestta. Bharani----Anuradha Kritika---- Visaakha. Rohini----Swathi. Mrigaseersham---Chithira----Dhanishtta. Ardra-----Sravana Punarvasu----Uthra Ashada Pushya----Poorva Ashada Aslesha-----Moola Makha-----Revathi Poorva Phalguni-----Uthara Bhadrapada Uthara Phalguni----Poorva  Bhadrapada Hastha----- Shatabishak. To elaborate, if the bride's nakshatra is, say, Pushya, the groom's nakshatra should not be Poora Ashaada and vice versa too. This is discernible from the above set.  This is called " Vedha". It harms marital harmony, health and financial status. The prosperity of the progeny may also be affected in some cases.  However, there are several exception to this Vedha rule.  If the Vedha is found before matching chec

चंद्र बारह भाव

चंद्रमा का कुण्डली के बारह भाव में शुभाशुभ होने का क्या है फल चन्द्रमा का प्रभाव जन्मकुंडली के विभिन्न भाव में भिन्न भिन्न रूप में पड़ता है। वैदिक ज्योतिष शास्त्र में चंद्रमा का विशेष महत्त्व है। चंद्रमा को वैदिक ज्योतिष में मंत्री पद प्राप्त है एवं चन्द्रमा को मन का कारक कहा जाता है |  जिस प्रकार मन के बिना हम कोई भी कार्य नहीं कर सकते उसी तरह से चन्द्रमा के बिना ज्योतिष शास्त्र अधूरा है। ज्योतिष शास्त्र में जिस प्रकार सूर्य राजा है उसी प्रकार चंद्रमा मंत्री है। चंद्रमा हमारे मन और भावना का प्रतीक है। चन्द्रमा का अपना घर कर्क राशि है तथा वृष राशि में चन्द्रमा उच्च का होता है। चन्द्रमा का स्वभाव बहुत ही संवेदनशील है। इस ग्रह की प्रकृति ठंडी है। ज्योतिष में चन्द्रमा निम्न विषयों का कारक होता है मन,जल, गर्भाधान, शिशु अवस्था, व्यवहार, उत्तर पश्चिम दिशा, माता, दूध, और मानसिक शांति, विदेश यात्रा इत्यादि का कारक है। चंद्रमा जन्मकुंडली में स्थित बारह भावो में किस प्रकार का फल देता है। वैसे यह फल सामान्य फल ही होगा क्योकि ग्रह का फल अन्य ग्रह के दृष्टि या साथ होने पर बदल देते हैं जब चंद्रमा किस