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Showing posts from February, 2022

कई प्रकार के शुभ-अशुभ योग

ज्योतिष शास्त्र (Astrology) में कई प्रकार के शुभ-अशुभ योगों के बारे में बताया गया है। इन शुभ-अशुभ योगों में जन्म लेने वाले लोगों का स्वभाव और भविष्य भी अलग-अलग ही होता है। इन योगों के आधार पर उस व्यक्ति के बारे में काफी कुछ जाना जा सकता है। 1. विष्कुम्भ योग (Vishkumbh Yoga) ज्योतिष शास्त्र में विष्कुम्भ योग को अशुभ योग माना गया है, परंतु इस योग में जिस व्यक्ति का जन्म होता है वह बहुत ही भाग्यशाली और उत्तम गुणों वाला होता है। इस योग में जन्में व्यक्ति को आर्थिक तंगी का सामना नहीं करना पड़ता है यानी ये आर्थिक रूप से सम्पन्न होते हैं। इन्हें इस योग के प्रभाव से हर प्रकार का सांसारिक सुख प्राप्त होता है। अपने व्यक्तित्व से ये लोगों को प्रभावित करते हैं जिससे इनकी मित्रता का दायरा काफी बड़ा होता है। ये काफी अक्लमंद और बुद्धिमान होते हैं। ये रूप और गुण से भरे होते हैं। 2. अतिगण्ड योग (Atigand Yoga) ज्योतिष शास्त्र में अतिगण्ड योग अशुभ योगों में गिना जाता है। इस योग में जिनका जन्म होता है उनकी माता को कष्ट और परेशानियों का सामना करना पड़ता है। अतिगण्ड में जब गण्डान्त योग (Gandant Yoga) बनता ह

विष योग

किसी व्यक्ति की जन्म कुंडली के किसी स्थान में शनि और चंद्र साथ में आ जाए तो विष योग बन जाता है। इसका दुष्प्रभाव तब अधिक होता है जब आपस में इन ग्रहों की दशा-अंतर्दशा चल रही हो। विष योग के प्रभाव से व्यक्ति जीवनभर अशक्तता में रहता है। मानसिक रोगों, भ्रम, भय, अनेक प्रकार के रोगों और दुखी दांपत्य जीवन से जूझता रहता है। यह योग कुंडली के जिस भाव में होता है उसके अनुसार अशुभ फल जातक को मिलते हैं।  1.  लग्न स्थान में विष योग बन रहा हो तो ऐसा व्यक्ति शारीरिक तौर पर बेहद अक्षम रहता है। उसे पूरा जीवन तंगहाली में गुजारना पड़ता है। लग्न में शनि-चंद्र होने पर उसका प्रभाव सीधे तौर पर सप्तम भाव पर भी होता है। इससे दांपत्य जीवन दुखपूर्ण हो जाता है। 2.  दूसरे भाव में शनि-चंद्र की युति होने पर व्यक्ति जीवनभर धन के अभाव से जूझता रहता है। 3.  तीसरे भाव में बना विष योग व्यक्ति का पराक्रम कमजोर कर देता है और वह अपने भाई-बहनों से कष्ट पाता है। 4.  चौथे भाव सुख स्थान में शनि-चंद्र की युति होने पर सुखों में कमी आती है और मातृ सुख नहीं मिल पाता है। 5.  पांचवें भाव में यह दुर्योग होने पर संतान सुख नहीं मिलता और व्

महाशिवरात्रि

महाशिवरात्रि 1 मार्च विशेष 〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️ शिवरात्रि शिव और शक्ति के अभिसरण का विशेष पर्व है। हर माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मासिक शिवरात्रि के नाम से जाना जाता है। अमांत पञ्चाङ्ग के अनुसार माघ माह की शिवरात्रि को महाशिवरात्रि कहते हैं। परन्तु पुर्णिमांत पञ्चाङ्ग के अनुसार फाल्गुन माह की मासिक शिवरात्रि को महा शिवरात्रि कहते हैं। दोनों पञ्चाङ्गों में यह चन्द्र मास की नामाकरण प्रथा है जो इसे अलग-अलग करती है। हालाँकि दोनों, पूर्णिमांत और अमांत पञ्चाङ्ग एक ही दिन महा शिवरात्रि के साथ सभी शिवरात्रियों को मानते हैं। पौराणिक कथा के अनुसार एक बार भगवान शिव अत्यंत क्रोधित हो गए। उनके क्रोध की ज्वाला से समस्त संसार जलकर भस्म होने वाला था किन्तु माता पार्वती ने महादेव का क्रोध शांत कर उन्हें प्रसन्न किया इसलिए हर माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को भोलेनाथ ही उपासना की जाती है और इस दिन को मासिक शिवरात्रि कहा जाता है। माना जाता है कि महाशिवरात्रि के बाद अगर प्रत्येक माह शिवरात्रि पर भी मोक्ष प्राप्ति के चार संकल्पों भगवान शिव की पूजा, रुद्रमंत्र का जप, शिवमंदिर में उपवास तथा काशी में देह

ઉમિયા માતાજીના આદિ નામ સતિ"

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"ઉમિયા માતાજીના આદિ નામ સતિ" દક્ષ પ્રજાપતિના યજ્ઞમા સતિમાતાએ પોતાના પતિ મહાદેવને આમંત્રણ ન આપી તેમનુ ભારે અપમાન કર્યુ હોવા છતા તેઓ પિતાના યજ્ઞમા હાજરી આપવા પધાર્યા હતા.જ્યારે તેમનાથી આવા અપમાન સહન ન થવાથી તેમણે યજ્ઞકુડમા ઝંપલાવ્યુ ત્યારે મહાદેવને ખબર પડતા તેઓ સ્વયં પધારી સતિના અર્ધ બળેલ દેહને પોતાના ખભા પર લઈને તાડવ નૃત્ય કરવા લાગ્યા ત્યારે સંપૂર્ણ વિશ્વના પ્રલયથી બચવા માટે ભગવાન વિષ્ણુએ પોતાના સુદર્શન ચક્રથી સતીના શરીરને ઘણા ટુકડામાં કાપી દીધા.  તે ટુકડા જે જગ્યાઓ પર પડ્યા તે જગ્યાઓ શક્તિપીઠ કહેવાય છે. સંપૂર્ણ વિશ્વના પ્રલયથી બચવા માટે ભગવાન વિષ્ણુએ પોતાના સુદર્શન ચક્રથી સતીના શરીરને ઘણા ટુકડામાં કાપી દીધા. તે ટુકડા જે જગ્યાઓ પર પડ્યા તે જગ્યાઓ શક્તિપીઠ કહેવાય છે.    તે ટુકડા જે જગ્યાઓ પર પડ્યા તે જગ્યાઓ શક્તિપીઠ કહેવાય છે. (૧) હિંગુલ કે હિંગલાજ, કરાચી, પાકિસ્તાનથી લગભગ 125 કી મી ઉત્તર-પૂર્વમાં સ્થિત છે આ દેવીનું બ્રહ્મરંધ્ર (માથાનો ઉપરનો ભાગ) પડ્યો. અહીં દેવી કોટ્ટરી નામથી સ્થાપિત છે. (૨) શર્કરરે, કરાચી પાકિસ્તાનથી સુક્કર સ્ટેશનથી નજીક મજ્ઞેજુદ છે આમ તો આને નૈના

શું ભગવાન શંકર ખરેખર ભાંગ અને ગાંજો પીવે છે, જાણો સત્ય

*શું ભગવાન શંકર ખરેખર ભાંગ અને ગાંજો પીવે છે, જાણો સત્ય * ઘણા લોકો માને છે કે ભગવાન શિવ ગાંજો પીતા અને ઘણા લોકોએ ભગવાન શિવની એવી તસવીરો પણ બનાવી છે જેમાં તે ચિલમ પીતા જોવા મળે છે. ખરેખર તે ધિક્કારપાત્ર છે. આવો જાણીએ સમાજમાં પ્રચલિત માન્યતા વિશે. * ભાંગના સમર્થકો: 1. ઘણા લોકો કહે છે કે જ્યારે સમુદ્ર મંથન કરવામાં આવ્યું ત્યારે ભગવાન શિવે તેમાંથી નીકળેલા ઝેરને પીધું હતું અને તેને પોતાના ગળામાં નાખી દીધું હતું. આનાથી તેઓ ખૂબ જ ગરમ થઈ ગયા. તેથી જ તેઓ ભાંગ અને ચિલમ પીવે છે કારણ કે તે બંને ઠંડક વધારે છે. તે શીતક તરીકે કામ કરે છે. તેથી જ તેમને બીલીપત્ર, ધતુરા અને કાચું દૂધ આપવામાં આવે છે જે શીતકનું કામ કરે છે. 2. ઘણા તાંત્રિક લોકો માને છે કે ભાંગ અને ચિલમનું સેવન કરવાથી ધ્યાન સારું રહે છે. તેનાથી મન શાંત રહે છે. આ જ કારણ છે કે ઘણા અઘોરી અને નાગા ચિલમ પીવે છે, જેથી તેઓ વધુ ધ્યાનનો આનંદ માણી શકે. 3. કહેવાય છે કે હલાહલ ઝેરનું સેવન કર્યા બાદ તેનું શરીર વાદળી થવા લાગ્યું હતું. પછી ભગવાન શિવનું શરીર બળવા લાગ્યું, પરંતુ તેમ છતાં શિવ સંપૂર્ણપણે શાંત હતા, પરંતુ દેવતાઓ અને અશ્વિનીકુમારોએ ભગવાન શિવને સેવ

महाशिवरात्रि_पर_इन_10_उपायों_को_आजमाएं !!

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#महाशिवरात्रि_पर_इन_10_उपायों_को_आजमाएं !!  इसी दिन भगवान‌ शिव अर्द्धरात्रि में ब्रह्माजी के अंश से लिंग रूप में प्रकट हुए थे। कई जगहों पर मान्यता है कि इसी दिन भोलेनाथ का गौरा माता से विवाह हुआ था। इस दिन विधि-विधान से भगवान भोलेनाथ का पूजा-अर्चन किया जाए तो सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।    *शिवरात्रि पर घर में पारद के शिवलिंग की स्थापना योग्य ब्राह्मण से सलाह कर स्थापना कर प्रतिदिन पूजन कर सकते हैं। इससे आमदनी बढ़ने के योग बनते हैं। * शिवरात्रि पर गरीबों को भोजन कराएं। इससे घर में कभी अन्न की कमी नहीं होगी और पितरों की आत्मा को शांति मिलेगी। * पानी में काले तिल मिलाकर शिवलिंग का अभिषेक करें व 'ॐ नम: शिवाय' मंत्र का जप करें। इससे मन को शांति मिलेगी। * शिवरात्रि के दिन आटे से 11 शिवलिंग बनाएं व 11 बार इनका जलाभिषेक करें। इस उपाय से संतान प्राप्ति के योग बनते हैं। * शिवलिंग का 101 बार जलाभिषेक करें। साथ ही ॐ हौं जूं सः। ॐ भूर्भुवः स्वः। ॐ त्रयम्बकं यजामहे सुगंधिं पुष्टिवर्धनम्। उर्व्वारुकमिव बन्धानान्मृत्यो मुक्षीय मामृतात्। ॐ स्वः भुवः भूः ॐ। सः जूं हौं ॐ। मंत्र का

ग्रहो की युति

ग्रहों की युति के फल: 🌟सूर्य-गुरु:उत्कृष्ट योग,मान-सम्मान,प्रतिष्ठा,यश दिलाता है।उच्च शिक्षा हेतु दूरस्थ प्रवास योग,बौद्धिक क्षेत्र में असाधारण यश देता है। 🌟सूर्य-शुक्र:कला क्षेत्र में विशेष यश दिलाने वाला योग है।विवाह व प्रेम संबंधों में भी नाटकीय स्थितियाँ निर्मित करता है। 🌟सूर्य-बुध:यह योग व्यक्ति को व्यवहार कुशल बनाता है।व्यापार-व्यवसाय में यश दिलाता है।कर्ज आसानी से मिल जाते हैं। 🌟सूर्य-मंगल:अत्यंत महत्वाकांक्षी बनाने वाला यह योग व्यक्ति को इच्छाशक्ति व साहस देता है।ये व्यक्ति किसी क्षेत्र में अपने आपको श्रेष्ठ सिद्ध करने की योग्यता रखते हैं। 🌟सूर्य-चंद्र-शुक्र सूर्य,चंद्र,शुक्र की युति जन्मपत्रिका में हो तो जातक हीनवीर्य,व्यापारी,सुखी,निसंतान या अल्पसंतान,लोभी एवं साधारण धनी होता है 🌟सूर्य-चंद्र-शनि सूर्य,चंद्र एवं शनि की युति जन्म पत्रिका में हो तो जातक अज्ञानी,धूर्त,वाचाल पाखंडी,अविवेकी, चंचल,अविश्वासी होता है

मित्रो आज सोमवार है, आज हम आपको भगवान शिव के रूद्राभिषेक के बारे में बतायेगे

मित्रो आज सोमवार है, आज हम आपको भगवान शिव के रूद्राभिषेक के बारे में बतायेगें!!!!!!! मित्रों, महादेव को प्रसन्न करने का रामबाण उपाय है रुद्राभिषेक, शास्त्रों के जानकारों की मानें तो सही समय पर रुद्राभिषेक करके आप शिवजी से मनचाहा वरदान पा सकते हैं, क्योंकि शिवजी के रुद्र रूप को बहुत प्रिय है अभिषेक, भोलेनाथ सबसे सरल उपासना से भी प्रसन्न होते हैं, लेकिन रुद्राभिषेक उन्हें सबसे ज्यादा प्रिय है। कहते हैं कि रुद्राभिषेक से शिवजी को प्रसन्न करके आप असंभव को भी संभव करने की शक्ति पा सकते हैं, तो आप भी सही समय पर रुद्राभिषेक करियें और शिवजी की कृपा के भागी बनियें, रुद्र रूप भगवान भोलेनाथ का ही प्रचंड रूप हैं, शिवजी की कृपा से सारे ग्रह बाधाओं और सारी समस्याओं का नाश होता हैं। शिवलिंग पर मंत्रों के साथ विशेष चीजें अर्पित करना ही रुद्राभिषेक कहा जाता है, रुद्राभिषेक में शुक्ल यजुर्वेद के रुद्राष्टाध्यायी के मंत्रों का पाठ करते हैं, सावन में तो रुद्राभिषेक करना ज्यादा शुभ होता है, रुद्राभिषेक करने से मनोकामनायें जल्दी पूरी होती हैं, रुद्राभिषेक कोई भी कष्ट या ग्रहों की पीड़ा दूर करने का सबसे उत्तम

ग्रहो की युति

ग्रहों की युति के फल: 🌟सूर्य-गुरु:उत्कृष्ट योग,मान-सम्मान,प्रतिष्ठा,यश दिलाता है।उच्च शिक्षा हेतु दूरस्थ प्रवास योग,बौद्धिक क्षेत्र में असाधारण यश देता है। 🌟सूर्य-शुक्र:कला क्षेत्र में विशेष यश दिलाने वाला योग है।विवाह व प्रेम संबंधों में भी नाटकीय स्थितियाँ निर्मित करता है। 🌟सूर्य-बुध:यह योग व्यक्ति को व्यवहार कुशल बनाता है।व्यापार-व्यवसाय में यश दिलाता है।कर्ज आसानी से मिल जाते हैं। 🌟सूर्य-मंगल:अत्यंत महत्वाकांक्षी बनाने वाला यह योग व्यक्ति को इच्छाशक्ति व साहस देता है।ये व्यक्ति किसी क्षेत्र में अपने आपको श्रेष्ठ सिद्ध करने की योग्यता रखते हैं। 🌟सूर्य-चंद्र-शुक्र सूर्य,चंद्र,शुक्र की युति जन्मपत्रिका में हो तो जातक हीनवीर्य,व्यापारी,सुखी,निसंतान या अल्पसंतान,लोभी एवं साधारण धनी होता है 🌟सूर्य-चंद्र-शनि सूर्य,चंद्र एवं शनि की युति जन्म पत्रिका में हो तो जातक अज्ञानी,धूर्त,वाचाल पाखंडी,अविवेकी, चंचल,अविश्वासी होता है

11 वा घर और ज्योतिष

11  वा घर और ज्योतिष कुंडली में 11वां घर लाभ मित्र दूर के संबंध और शिक्षा से होने वाले लाभ का व्यवसाय में होने वाले लाभों के बारे में बताता है काल पुरुष कुंडली में ग्यारहवें भाव का स्वामी शनि होता है और पांचवे भाव का स्वामी सूर्य होता है यही वह स्थिति होती है जहां पर सूर्य और शनि एक दूसरे से शत्रुता नहीं करते क्योंकि पांचवे घर से हम शिक्षा देखते हैं और 5 पांचवे घर से हम शिक्षा और 11 वा घर हम लाभ देखते हैं यानी कि हमें जो लाभ मिलना है दोस्त मिलने हैं वह कैसे होंगे हमारा व्यवसाय में तरक्की कैसी होगी यह सब चीजें हमें देखनी होती है जो कि पांचवा घर सूर्य का पक्का घर होता है और तो और इस घर में सूर्य कब अस्त नहीं होता क्योंकि यह घर पिता का कारक घर भी होता है और 11 वा घर उसी पिता के पुत्र शनि का होता है क्योंकि 11 घर में शनि का मित्र अगर राहु, केतु ,शुक्र,  बैठ जाएं किसी भी तरह से तो ऐसे जातकों को बहुत सारे लाभ होते हैं यहां पर मंगल भी बहुत अच्छा प्रभाव रहता है क्योंकि मंगल यहां से अपनी स्थिति को लगातार मजबूत करता रहता है उसका परम मित्र सूर्य उसको देख रहा होता है सूर्य के साथ कहीं ना कहीं संबं

मंत्र जाप में अशुद्ध उच्चारण का प्रभाव

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मंत्र जाप में अशुद्ध उच्चारण का प्रभाव 🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸 कई बार मानव अपने जीवन में आ रहे दुःख ओर संकटो से मुक्ति पाने के लिये किसी विशेष मन्त्र का जाप करता है.. लेकिन मन्त्र का बिल्कुल शुद्ध उच्चारण करना एक आम व्यक्ति के लिये संभव नहीं है । कई लोग कहा करते है.. कि देवता भक्त का भाव देखते है . वो शुद्धि अशुद्धि पर ध्यान नही देते है..  उनका कहना भी सही है, इस संबंध में एक प्रमाण भी है... "" मूर्खो वदति विष्णाय, ज्ञानी वदति विष्णवे । द्वयोरेव संमं पुण्यं, भावग्राही जनार्दनः ।। भावार्थ:-- मूर्ख व्यक्ति "" ऊँ विष्णाय नमः"" बोलेगा... ज्ञानी व्यक्ति "" ऊँ विष्णवे नमः"" बोलेगा.. फिर भी इन दोनों का पुण्य समान है.. क्यों कि भगवान केवल भावों को ग्रहण करने वाले है...  जब कोइ भक्त भगवान को निष्काम भाव से, बिना किसी स्वार्थ के याद करता है.. तब भगवान भक्त कि क्रिया ओर मन्त्र कि शुद्धि अशुद्धि के ऊपर ध्यान नही देते है.. वो केवल भक्त का भाव देखते है... लेकिन जब कोइ व्यक्ति किसी विशेष मनोरथ को पूर्ण करने के लिये किसी मन्त्र का जाप या स्त

VAIJANTI MALA

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VAIJANTI MALA  Vaijanti seeds come from a tall grass and its seeds have a polished finish and a natural hole through the center. Vaijanti are unique white seeds found only in the BRAJ forests around Mathura (the land of Krishna) where the God and Goddess reside in eternal spiritual love. It is Lord Krishna’s favorite mala and thus is said to be the best mala to recite Mantras to please Lord Krishna. Vaijanti Mala is also called rosary of victory. It is made in 108Vaijanti beads. It is used for spiritual power, and attraction. You can wear this Vaijanti mala without consulting astrologer. Benefits of Vaijanti Mala: Vaijayanti Mala Benefits It attracts positive energy and keeps out negative energy. It is believed that by wearing the mala, even enemies will become friends. There will be peace and prosperity. Increase in confidence. Success in life. Brings luck in lottery and gambling. Wearing it is good for those investing in stock markets. For better luck always carry a Vaija

महाशिवरात्रि - लुप्त पुण्य भी होते हैं जागृत

🌹महाशिवरात्रि - लुप्त पुण्य भी होते हैं जागृत 🌹शिवरात्रि का जागरण अपने-आप में बड़ा महत्त्वपूर्ण है। जैसे एकादशी का व्रत नहीं करने से पाप लगता है, ऐसे ही शिवरात्रि का व्रत नहीं करने से पाप लगता है और करने से बड़ा भारी पुण्य होता है, ऐसा शास्त्र कहते हैं। भगवान राम, भगवान, कृष्ण, भगवान वामन, भगवान नरसिंह – इनकी जयंतियाँ और एकादशी व शिवरात्रि – ये सभी व्रत विशेष करने योग्य हैं। इनको करने से आदमी पूर्णता की तरफ बढ़ता है और इन व्रतों को ठुकराने वाला आदमी ठुकराया जाता है, चौरासी लाख योनियों में भटकाया जाता है। 🌹इस पुण्यदायी शिवरात्रि का पूरा फायदा उठायें। शिवरात्रि का व्रत न करने से पाप लगता है लेकिन करने से ऐसी बुद्धि होती है जैसी सतयुग, त्रेता और द्वापर के लोगों की बुद्धि होती थी और वही पुण्यलाभ प्राप्त होता है जो उस काल में मिलता था क्योंकि काल के प्रभाव से जो पुण्य लुप्त हो गये हैं, वे शिवरात्रि के दिन पूर्णतः विद्यमान होते हैं। ब्रह्माजी और वसिष्ठजी ने शिवरात्रि के व्रत की भूरि-भूरि प्रशंसा की है। सौ यज्ञों से भी अधिक पुण्य पंचाक्षर मंत्र से पूजन करने से होता है। और उससे भी अधिक पुण्

सिंह लग्न की कुंडली में चंद्र –

सिंह लग्न की कुंडली में चंद्र –  सिंह लग्न – प्रथम भाव में चंद्र –  यदि लग्न में चंद्र हो तो जातक का स्वास्थ्य खराब रहता है , मन परेशान होता है । दाम्पत्य जीवन के लिए चंद्र अशुभता प्रदान करते हैं । साझेदारी के काम से हानि का योग बनता है । दैनिक आय में कमी आती है ।क्योंकि चन्द्रमा द्वादशेश हो जाते है इस कुंडली मे लेकिन शुभ ग्रह होने के कारण और लग्नेश के मित्र होने के वजह से इनका ज्यादा बुरा प्रभाव नही रहता यदि यह पाप ग्रहों के साथ हो जाए तब समस्याएं बढ़ सकती है।।। सिंह लग्न – द्वितीय भाव में चंद्र –  ऐसे जातक को धन , परिवार कुटुंब का साथ नहीं मिलता है । धन की कमी आती है । वाणी खराब होती है । रुकावटें बानी रहती हैं , घर से दूर रहने का योग बनता है ।यदि चन्द्रमा शुभ ग्रहों के प्रभाव में हुआ तो शुभ फल ही करेगा।।। सिंह लग्न – तृतीय भाव में चंद्र –  जातक को बहुत परश्रम करना पड़ता है , पराक्रम में कमी आ जाती है । परिश्रम के बाद जातक का भाग्य उसका साथ कम ही देता है । छोटी बहन का योग बनता है । जातक धार्मिक कम होता है । पिता से मन मुटाव रहता है । सिंह लग्न – चतुर्थ भाव में चंद्र –  चंद्र की महदशा म

इच्छा - कामनाओं अनुसार पूजन, अनुष्ठान और स्तोत्र पाठ _

इच्छा - कामनाओं अनुसार पूजन, अनुष्ठान और स्तोत्र पाठ  _ १ : बटुक भैरव स्त्रोत्र : इस स्त्रोत्र के पाठ करने मात्र से महामारी राजभय अग्निभय चोरभय उत्पात भयानक स्वप्न के भय में घोर बंधन में इस बटुक भैरव का पाठ अति लाभदाई है | तथा हर प्रकार की सिद्धी हो जाती है | इस प्रयोग का कम से कम १०८ पाठ करना चाहिए | २ : श्री सूक्त प्रयोग : श्री सूक्त प्रयोग एक ऐसा प्रयोग है जिससे लक्ष्मी जी प्रसन्न होकर घर में स्थिर रूप से निवास करती है | इसके ११०० आवृति [ पाठ ] कराने पर विशेष लाभ होता है | ३ : श्री कनकधारा स्तोत्र : यह स्तोत्र आद्य शंकराचार्य जी द्वारा रचित है जिसके पाठ से स्वर्ण वर्षा हुई थी | कनकधारा स्तोत्र के पाठ करवाने से घर ऑफिस व्यापार स्थल में उतरोत्तर वृद्धि होती रहती है कनकधारा में कमला प्रयोग से अत्यधिक लाभ प्राप्त होता है | ४ : श्री अखंड रामचरित मानस पाठ : यह तुलसीदास द्वारा रचित है | इस मानसमें सात कांड जिसका पारायण [पाठ] अनवरत है | इसलिए इसे अखंड पाठ कहते है | यह २० से २५ घंटे में पूर्ण होता है | मानस पाठ से घर मे काफी शांती तथा यश व कीर्ती बढती हे तथा मनुष्य सही नीती से चलता है | ५ :

जन्मकुंडली के ये 10 घातक योग,

जन्मकुंडली के ये 10 घातक योग,  तुरंत करें ये उपाय!!! जन्म कुंडली में 2 या उससे ज्यादा ग्रहों की युति, दृष्टि, भाव आदि के मेल से योग का निर्माण होता है। ग्रहों के योगों को ज्योतिष फलादेश का आधार माना गया है। अशुभ योग के कारण व्यक्ति को जिंदगीभर दु:ख झेलना पड़ता है। आओ जानते हैं कि कौन-कौन से अशुभ योग होते हैं और क्या है उनका निवारण? 1. चांडाल योग * कुंडली के किसी भी भाव में बृहस्पति के साथ राहु या केतु का होना या दृष्टि आदि होना चांडाल योग बनाता है। * इस योग का बुरा असर शिक्षा, धन और चरित्र पर होता है। जातक बड़े-बुजुर्गों का निरादर करता है और उसे पेट एवं श्वास के रोग हो सकते हैं। * इस योग के निवारण हेतु उत्तम चरित्र रखकर पीली वस्तुओं का दान करें। माथे पर केसर, हल्दी या चंदन का तिलक लगाएं। 2. अल्पायु योग * जब जातक की कुंडली में चन्द्र ग्रह पाप ग्रहों से युक्त होकर त्रिक स्थानों में बैठा हो या लग्नेश पर पाप ग्रहों की दृष्टि हो और वह शक्तिहीन हो तो अल्पायु योग का निर्माण होता है। * अल्पायु योग में जातक के जीवन पर हमेशा हमेशा संकट मंडराता रहता है, ऐसे में खानपान और व्यवहार में सावधानी रखनी

राहु ग्रह का 12 भावों में फल ================

राहु ग्रह का 12 भावों में फल  ================ 🚩प्रथम भाव में स्थित राहु का फल  ================== वैदिक ज्योतिष में सभी नौ ग्रहों में राहु को विशेष स्थान प्राप्त है। ज्योतिष शास्त्र में वैसे तो राहु को एक क्रूर ग्रह की संज्ञा दी गई है, पर माना जाता है कि जिस भी जातक पर राहु की कृपा हो जाए वो उसे रंक से राजा बना सकते हैं। आइए जानते हैं कुंडली के प्रथम भाव में राहु के फल। 👉कुंडली का पहला भाव जिसे लग्न भी कहा जाता है यहां पर राहु विराजमान होने पर जातक को मिले जुले परिणामों की प्राप्ति होती है। ऐसे जातक जिनके लग्न में राहु हो वो परोपकारी और धैयर्वान होते हैं। कुंडली के पहले भाव में स्थित राहु जातक के कद को ऊंचा बनाता है। ऐसा व्यक्ति कभी रोगी तो कभी निरोगी बना रहता है। माना जाता है कि जिन भी जातकों की कुंडली के प्रथम भाव में राहु देव विराजमान होते हैं ऐसे जातकों को अपने जीवनकाल में धन की कमी नहीं होती। उन्हें किसी न किसी प्रकार से धन की प्राप्ति होती रहती है। ऐसे लोग समय समय पर दुसरों के धन का प्रयोग अपने लिए करते हैं और उसी धन से अन्य लोगों को भी लाभ पहुंचाते हैं। वैदिक ज्योतिष में माना

ભવનાથ મહાદેવ

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ભવનાથ મહાદેવ આ સ્થાન પર ભગવાન શિવ સ્વયંભૂ પ્રગટ્યા હોવાની માન્યતા છે. ધાર્મિક માહાત્મ્ય: ગિરનારની તળેટીમાં આવેલું છે ભવનાથ મહાદેવનું મંદિર. કહેવાય છે કે આ સ્થાન પર ભગવાન શિવ સ્વયંભૂ પ્રગટ્યા હતા. એક વખત શિવજી કૈલાસમાંથી ગિરનાર ક્ષેત્રમાં આવ્યા અને સ્થળ પસંદ પડતા તપ કરવા બેસી ગયા. તેઓએ આ વાત પાર્વતીને ન કરી. પાર્વતીને કૈલાસમાં શિવજી ન મળ્યા. વર્ષો વીતી જતા પાર્વતીજી અકળાયા. નારદજીને શિવજીને શોધવા મોકલ્યા. ભોળાનાથ ગિરનારમાં હોવાનું માલૂમ પડતા મા પાર્વતી અહીં આવ્યાં અને તપ કર્યું. બાદમાં 33 કોટી દેવતા આવ્યાને તેમણે પણ તપ કર્યું. આખરે શિવજી સ્વયભૂં ભવનાથના રૂપમાં પ્રગટ થયાને પાર્વતીજીનું શિવજી સાથે મિલન થયું. ઐતિહાસિક માહાત્મ્ય: ભવનાથ મંદિરમાં બે શિવલિંગ છે. નાનું શિવલિંગ સ્વયંભૂ છે. જ્યારે મોટા શિવલિંગની સ્થાપના અશ્વત્થામાએ કરેલી છે. દ્રોણાચાર્યના પૂત્ર અશ્વત્થામાએ મહાભારતના યુદ્ધમાં જીત મેળવવા આ જગ્યામાં શિવલિંગની સ્થાપના કરી તપશ્વર્યા કરી હતી.   મહાભારતનું યુદ્ધ થયું તેને 5000 વર્ષ થયા હોવાનું મનાઇ રહ્યું છે. આમ, આ જગ્યા 5000 વર્ષ જૂની હોવાનું માનવામાં આવી રહ્યું છે. એવું કહ

टॉपिक - अकेलापन या एकांतवास के ज्योतिष योग 🍁

टॉपिक - अकेलापन या एकांतवास के ज्योतिष योग 🍁 ✍️ प्रश्न - अकेलापन क्या होता है और ये किन परेशानियों को जन्म दे सकता है  उत्तर - अकेलापन एक ऐसी भावना है जिसमें लोग बहुत तीव्रता से खालीपन और एकान्त का अनुभव करते हैं। और अजीब ख़याल आते है जैसे - आत्महत्या, शादी न करना, किसी भी तरह की ख़ुशी न बनाना और सादगी जीवन को अपनाने को सोचते हैं धीरे धीरे डिप्रेशन में चले जाते हैं अगर हम अपने आप को अकेला महसूस करेंगे तो अकेलापन हम पे हावी होने लगता है और अवसाद टेंशन डिप्रैशन का रूप ले सकता है। कुछ लोगों के जीवन में एक समय ऐसा आता है कि व्यक्ति किसी दोस्त रिश्तेदार पड़ोसी से मिलना नहीं चाहता सोशल सर्कल और सोशल इवेंट से दूरी बनाने लगता है यही स्थति अकेलापन को जन्म देती है । ✴️✴️ इसके विपरीत एकान्त में ही आप उस चीज़ को ढूंढ सकते है जो गुुुण आप के अंंदर हैं आप अपने आप पर निर्भर रहेंगे तो कभी भी आप को अकेलापन महसूस नही होगा ये स्थति आपको आध्यामिक उन्नति , संन्यास और मेडिटेशन की तरफ़ भी ले जा सकती है । 👇👇  🕉️ नोट - आज हम केवल उस योग की बात करेंगे जो अकेलापन समस्या देता है संन्यास योग पर चर्चा भविष्य में