सत्संग स्टोरी
" सत्संग से लाभ ही लाभ है । " व्यापार में तो लाभ और हानि दोनों होते हैं , पर सत्संग में लाभ ही लाभ होता है , नुकसान होता ही नहीं । जैसे माँ की गोद में पड़ा हुआ बालक अपने आप बड़ा होता है , बड़ा होने के लिए उसको उद्योग नहीं करना पड़ता । ऐसे ही सत्संग में लगे रहने से मनुष्य का अपने आप विकास होता है । सत्संग से विवेक जाग्रत होता है । गुरसिख जितने अंश में सतगुरु की बातो को महत्व देता है , उतने ही अंश में उसके काम - क्रोध आदि विकार नष्ट हो जाते हैं । सत्संग का असली भाव है संतों का संग। संतों का संग करने से इंसान के जीवन में गुण आने शुरू हो जाते है। संतों का संग करने से इंसान में इंसानियत, प्यार, निर्माता व सहनशीलता आती है। ऐसे ही एक घटना है जो हमें सिखाता हैं नदी किनारे एक लम्बा पेड़ था,आंधी में वो नदी के ऊपर गिर गया जिससे दोनों सिरे दोनों किनारों को छूने लगे,लोगो ने उससे पुल का काम लेना शुरु कर दिया, एक दिन दो आदमी दोनों ओर से एक साथ पुल पार करने के लिये चढ़ा,बीच में इतना जगह नही था कि दोनो पार हो सके,दोनों एक दुसरे को पिछे हटने के लिये कहने लगे पर कोई पीछे नही हटा, दोनों ने लड़