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Showing posts from February, 2023

home toxins

HOME TOXINS ARE:  1. Items you won't use anymore.  2. Clothes you don't like or haven't used in a while.  3. Bad things.  4. Broken Things.  5. Old cards and notes.  6. Dead or diseased plants.  7. Old Receipts, Newspapers and Magazines.  8. Old underwear, and clothes with holes.  9. Damaged shoes.  10. Things of all kinds that call to the past.  COLLECTION:  a.  In the basement and on the roof, the accumulations are overloading  b.  At the entrance, they restrict the flow of life.  c.  On the floor, they pull us down.  d. Above us, they are headaches.  e. In bed, they pollute sleep.  f. Scattered around the house, overload of emotions.  WITH DISAPPEARANCE:  1. Health improves.  2. Creativity grows.  3. Relationships get better.  4. There is greater reasoning ability.  5. Mood improves.  HELPFUL QUESTIONS:  - Why am I saving them?  - Is it about me today?  - How will it feel when I release it?  Separate and categorize:  1. To contribute.  2. To garbage.  3. To sell.  CLEANI

श्रीरामचरितमानस के चमत्कार*

.           *श्रीरामचरितमानस के चमत्कार* *1. जिस घर में 1 माह में मात्र पूर्णिमा को प्रति माह रामायण का पाठ होता है उस घर में अकाल मृत्यु नहीं होती है।* *2. जिस घर में श्री रामचरितमानस रखी होती है वहां कभी भूत, पिशाच, प्रेतों का वास नहीं होता है।* *3. जिस घर में रामायण के पास शाम के समय दीपक जलाया जाता है उस घर में अन्न की कमी कभी नहीं होती है।* *4. जिस घर में श्री रामचरितमानस के पास सुबह शाम दीपक प्रतिदिन जलाया जाता है उस घर में आरोग्य बढ़ता है। बीमारियां कम होती हैं।* *5. जिस घर में यदि श्री रामचरितमानस की शाम के समय दीपक जलाकर श्री रामचरितमानस की आरती प्रतिदिन होती है उस घर पर श्रीराम जी की कृपा सदैव रहती है और घर में शांति का वातावरण रहता है। प्रभु की कृपा रहती है।* *6. जिस घर में प्रति सप्ताह रामायण का पाठ होता है उस घर पर श्रीराम जी व माता सीता जी की कृपा सदैव रहती है। उस घर में बच्चों की वृद्धि होती है।* *7. जिस घर में प्रतिदिन रामायण का पाठ होता है। उस घर पर भगवान शिव, श्रीराम जी, सीता जी, श्री हनुमानजी, शनिदेव, नव ग्रह, 33 कोटि देवी देवताओं की सदैव कृपा रहती है।* *8. उस घर से द

चंद्र

जय श्री बालाजी  चंद्रमा और शुक्र  चन्द्रमा वही ग्रहों के बल का बीज. अपने आप मे एक लग्न. अपना मन. अपनी माता. सदेव चलायमान. चंचल चित्त मन. चन्द्रकला नाडी और कालिदास के अनुसार अपना शारीर. अपना गोचर. अपना निषेक लग्न. अपना रोमांस. और शुक्राचार्य जी के तो kya कहने. संजीवनी विद्या के ज्ञाता. राक्षस गुरु. महा ज्ञानी. ज्योतिष के कारक. अपने डॉक्टर साहब. अपने नेता. अपने अभी नेता. अपनी लेम्बोर्गिनी. अपनी बीवी. अपनी गर्ल frd. अपना भोग. अपना वीर्य. अपना ऐश्वर्या. अपना ऐशो आराम.  चन्द्रमा स्त्री गृह की श्रेणी मे आता है शुक्र भी. चन्द्रमा माता, शुक्र स्त्री. मतलब सास बहु. दोनो ही सुन्दरता के कारक है. डॉन ओ ही तरल के कारक है. दोनो ही परिवार मे खुश रहते है. विश्वास न हो तो देख लो द्वितीय भाव परिवार का जो शुक्र का घर है और वह चन्द्रमा उच्च का हो जाता है. भाई माता अपने परिवार मे ही तो खुश रहती है. उसके के लालन पालन मे लगी रहती है जिन्दगी भर. उधर चतुर्थ मे दोनो दिग्बली. भाई दोनो स्त्री है. दोनो अपने घर मेक हुस. परिवार के व्रद्धी स्थान मे खुश. चतुर्थ आपके द्वितीय यानी परिवार का वृद्धि स्थान ही तो है. दक्षिण

मौली

मौली (कलावा) बांधने के फायदे और महत्व - मौली बांधना वैदिक परंपरा का हिस्सा है। यज्ञ के दौरान इसे बांधे जाने की परंपरा तो पहले से ही रही है, लेकिन इसको संकल्प सूत्र के साथ ही रक्षा-सूत्र के रूप में तब से बांधा जाने लगा, जबसे असुरों के दानवीर राजा बलि की अमरता के लिए भगवान वामन ने उनकी कलाई पर रक्षा-सूत्र बांधा था। इसे रक्षाबंधन का भी प्रतीक माना जाता है, ‍जबकि देवी लक्ष्मी ने राजा बलि के हाथों में अपने पति की रक्षा के लिए यह बंधन बांधा था। मौली को हर हिन्दू बांधता है। इसे मूलत: रक्षा सूत्र कहते हैं। मौली का अर्थ  〰️〰️〰️〰️ मौली' का शाब्दिक अर्थ है 'सबसे ऊपर'। मौली का तात्पर्य सिर से भी है। मौली को कलाई में बांधने के कारण इसे कलावा भी कहते हैं। इसका वैदिक नाम उप मणिबंध भी है। मौली के भी प्रकार हैं। शंकर भगवान के सिर पर चन्द्रमा विराजमान है इसीलिए उन्हें चंद्रमौली भी कहा जाता है। कैसी होती है मौली?  〰️〰️〰️〰️〰️〰️ मौली कच्चे धागे (सूत) से बनाई जाती है जिसमें मूलत: 3 रंग के धागे होते हैं- लाल, पीला और हरा, लेकिन कभी-कभी यह 5 धागों की भी बनती है जिसमें नीला और सफेद भी होता है। 3 और

नीच भंग राजयोग

#नीचभंग राजयोग --🕉️ आज बात करते है नीचभंग राजयोग की बहुत से लोग नीचभंग राजयोग को लेकर प्रायः बहुत खुश होते है (खुश होना भी चाहिए) 🕉️  लेकिन नीचभंग राजयोग का मतलब ये नही कि वह ग्रह अपने नीच के फल नही देगा बिल्कुल देगा 100% देगा अर्थात राजयोग के नाम से ही अर्थ स्पष्ट होता है #नीचभंग {नीच -पहले ग्रह नीच के फल देगा #भंग फिर उचच जैसे फल देगा }  जितना ग्रह नीचे गिरायेगा उससे कई गुना वही ग्रह ऊपर भी ले जाएगा..।  अब यदि जन्म कुंडली में ग्रह अपनी नीच राशि में बैठा हो तो निम्न स्थितयों में ग्रह नीच भंग राजयोग का सृजन करके महान फलदायी बन जाता हैं:🕉️ (1) जन्म कुंडली की जिस राशि में ग्रह नीच का होकर बैठा हो उस राशि का स्वामी उसे देख रहा हो या फिर जिस राशि में ग्रह नीच होकर बैठा हो उस राशि का स्वामी स्वग्रही होकर युति संबंध बना रहा हो तो नीच भंग राजयोग का सृजन होता है।🕉️ (2) अगर कोई ग्रह लग्न कुंडली में #नीचराशि में हो & नवमांश कुंडली में अपनी उच्च राशि में बैठा हो तो ऐसी स्थिति में उसका नीच भंग होकर वह राजयोग कारक हो जाता है।🕉️ (3)  जिस राशि में ग्रह नीच होकर बैठा हो उस राशि का स्वामी अपनी

पितृ दोष :

पितृ दोष : • जन्म कुंडली के त्रिकोण भावों में से किसी एक भाव पर पितृ कारक ग्रह सूर्य की राहु अथवा शनि के साथ युति हो तो जातक को पितृ दोष होता है। • राहु और शनि कुंडली के किसी भाव में विराजमान हो तो पितृ दोष होता है। • लग्न तथा चन्द्र कुंडली में नवां भाव या नवमेश अगर राहु या केतु से ग्रसित हो तो। • जन्म कुंडली में लग्नेश यदि त्रिक भाव (6,8 या 12) में स्थित हो तथा राहु लग्न भाव में हो तब भी पितृदोष होता है। • अष्टमेश का लग्नेश, पंचमेश अथवा नवमेश के साथ स्थान परिवर्तन योग भी पितृ दोष का निर्माण करता है। • दशम भाव को भी पिता का घर माना गया है अतः दशमेश छठे, आठवें या बारहवें भाव में हो इसका राहु से दृष्टि या योग आदि का संबंध हो तो भी पितृदोष होता है। • यदि आठवें या बारहवें भाव में गुरु-राहु का योग और पंचम भाव में सूर्य-शनि या मंगल आदि कू्र ग्रहों की स्थिति हो तो पितृ दोष के कारण संतान कष्ट या संतान सुख में कमी रहती है। • अगर कुंडली में पितृ कारक ग्रह सूर्य अथवा रक्त कारक ग्रह मंगल इन दोनों में से कोई भी नवम भाव में नीच का होकर बैठा हो और उस पर राहु/केतु की दृष्टि हो तो पितृ दोष का निर्माण ह

काली गुंजा

• काली गुंजा की माला के चमत्कारी फायदे ?   • काली गूंजा को घर में रखने से भूत प्रेत, टोना टोटका, किया कराया आदि से बचाव होता है धन से जुड़ी हुई समस्या भी हमेशा के लिए समाप्त हो जाति है  • अगर आप किसी का वशीकरण करना चाहते है तो आप काली गूंजा की माला को धारण करें इससे जो कोई भी आपके सामने आएगा वह आपका वशीभूत हो जाएगा । • काली गूंजा की माला को गले में पहनने से राहु, केतू, और शनि के बुरे प्रभाव से रक्षा होती है। • काली गूंजा की माला को सर के नीचे रखकर सोने से बुरे सपने आना बंद हो जाते है और अगर नींद नही आ रही है या रात में बार बार आंख खुल जाति है तो ऐसे में आपकी सभी समस्या जल्द ही खत्म हो जाति है। • काली गूंजा को लाल कपड़े में बांधकर दक्षिण पूर्व कोने में टांग दे ऐसा करने से धन से जुड़ी हुई समस्या जल्द ही खत्म होने लगती है। काली गूंजा को अगर अन्न के भंडार में रख दीया जाए तो कभी अन्न की कमी नही रहती है.

धन उपाय

तिजोरी और पर्स में रखें ये 1 चीज़, किस्मत चमकते देर नहीं लगेगी, जिंदगी में भर जाएगी खुशियां ......  धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान विष्णु को हल्दी अत्यंत प्रिय है. यदि आपको किसी तरह की आर्थिक परेशानी है और आप इससे छुटकारा पाना चाहते हैं तो गुरुवार के दिन हल्दी से जुड़े उपाय अपना कर लाभ प्राप्त कर सकते हैं. सनातन धर्म में हल्दी को बेहद शुभ और पवित्र माना जाता है. 1. रुका धन मिलेगा वापस ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, यदि आपका धन लम्बे समय से कहीं रुका है और आप चाहते हैं कि वो आपको वापस मिल जाए तो आप कुछ चावल के दानें लें और उसे हल्दी से रंग लें. अब इन चावल को आप अपने पर्स और तिजोरी में रखें. इस उपाय से आपका रुका धन वापस आ सकता है. 2. सफलता के लिए कई बार ऐसा होता है कि हम लाख प्रयास करें, हमें वो सफलता नहीं प्राप्त होती, जिसकी हमने कामना की है. इसके लिए हल्दी से जुड़ा उपाय आपके लिए लाभकारी हो सकता है. इसके लिए आपको हल्दी की 11 या 21 गांठों की माला बनानी है. अब उस माला को भगवान गणेश को अर्पित करें. इस उपाय से आपको गणपति बप्पा का आशीर्वाद प्राप्त होगा और आपको सफलता प्राप्त होगी. 3. रुकने लग

भकूट दोष-*

*भकूट दोष-*  ******** विवाह के लिए अष्टकूट गुण मिलान भकूट को 7 अंक प्राप्त है। भकूट दोष बनता कैसे हैं? भकूट दोष का निर्णय वर वधू की जन्म कुंडलियों में चंद्रमा की किसी राशि में उपस्थिति के कारण बन रहे संबंध के चलते किया जाता है। यदि वर-वधू की कुंडलियों में चंद्रमा परस्पर 6-8, 9-5 या 12-2 राशियों में स्थित हों तो भकूट मिलान के 0 अंक होते है। इसके परिणाम क्या होते है ? शास्त्रानुसार 6-8 होने पर पति या पत्नी मे से एक कि अकाल मृत्यु , 9-5 होने पर संतानोत्पत्ति मे बाधा ,तथा 2-12 होने पर जीवन मे दरिद्रता देखनी पडती है। इसका परिहार कैसे होता है? यदि वर-वधू दोनों की जन्म कुंडलियों में चन्द्र राशियों का स्वामी एक ही ग्रह हो तो भकूट दोष खत्म हो जाता है। जैसे कि मेष-वृश्चिक तथा वृष-तुला राशियों के एक दूसरे से छठे-आठवें स्थान पर होने के पश्चात भी भकूट दोष नहीं बनता क्योंकि मेष-वृश्चिक दोनों राशियों के स्वामी मंगल हैं तथा वृष-तुला दोनों राशियों के स्वामी शुक्र हैं। इसी प्रकार मकर-कुंभ राशियों के एक दूसरे से 12-2 स्थानों पर होने के पश्चात भी भकूट दोष नहीं बनता क्योंकि इन दोनों राशियों के स्वामी शनि ह

गणपति एकाक्षरी मंत्र

गणपति एकाक्षरी मंत्र गणपति का एक अक्षर वाला मंत्र जो बहुत बहुत चमत्कारिक है मंत्र विधान निशुल्क दिया जाएगा मैसेज करें ।   बहुत बहुत ही लाभदायक और शीघ्र फलदायक है।  भगवान् गणेश की पूर्ण कृपा प्राप्त करनेवाला यह अद्भुत एवं अत्यंत फलदायक मंत्र है। यह मंत्र स्वयं ब्रह्माजी ने व्यासजी को दिया था और व्यास मुनि ने इसका अनुष्ठान किया था | गणेशपुराण के उपासनाखण्ड में तो यहाँ तक कहा है। सप्तकोटि महामन्त्रा गणेशस्यागमे स्थिताः | तद्रहस्यं शिवोवेद किञ्चित किंचिदहंमुने || षड़क्षरैकाक्षरयोः श्रेष्ठत्वं तेषु विद्यते । ययोः स्मरणमात्रेण सर्वसिद्धिः करे भवेत् || अर्थात  ब्रह्माजी कहते है गणेशजी के अनंत मंत्र है । उसमे भी जो सर्वसिद्धिदायक और शीघ्रफलदायक मंत्र है वो सुने | आगम में गणेशजी के 7 करोड़ मंत्र बताये हुए है  और उनके रहस्य सिर्फ भगवान् शिव जानते और कुछ कुछ में जानता हु | उन मंत्रो में षड़क्षर ( छ अक्षरोंवाला मंत्र ) तथा एकाक्षर मंत्र ( एक अक्षर वाला मंत्र ) सर्वश्रेष्ठ है । इन दोनों मंत्र के स्मरणमात्र से ही साधक को सभी सिद्धिया हस्तगत हो जाती है । यहाँ में आज गणपति एकाक्षर मंत्र साधना का वर्णन

मिथुन लग्न

मिथुन लग्न सूर्य : पराक्रमेश सूर्य की महादशा तभी लाभदायक सिद्ध होती है, जबकि सूर्य वर्गोत्तमी, उच्चस्थ या स्वग्रही हो। चंद्रमा : मारक होने से सर्वदा अपकारक है। मंगल : षष्ट और एकादश का स्वामी है। मंगल की अंतरदशाएं हमेशा संकटकारी होती हैं। बृहस्पति : सप्तम और दशम का स्वामी होकर बृहस्पति केंद्राधिपति होने का दोषीहै। मिथुन लग्न में बृहस्पति की दशा जीवन में स्थान परिवर्तित करवाती है। प्रायः अशुभ फल देती है। शनि : शनि अष्टम और दशम का स्वामी होकर अत्यंत विषम परिस्थितियों का निर्माण करता है। महर्षि पराशर ने लिखा है कि जब कोई ग्रह अष्टमेश और नवमेश संयुक्त रूप से हो, तो राजयोग को नष्ट करता है। शनि की दशा का निर्णय इसकी स्थिति के अनुसार करना चाहिए। बुध : मिथुन लग्न में बुध लग्नेश और चतुर्थेश होकर कारक बन गया है। बुध की महादशा में शारीरिक सुख, संपदा और वैभव की प्राप्ति होती है। शुक्र : मिथुन लग्न में शुक्र की दशा सर्वश्रेष्ठ और सही अर्थों में जीवन का स्वर्णकाल होता है। यद्यपि शुक्र पंचमेश के साथ द्वादशेश जैसे अशुभ भाव का भी स्वामी है, लेकिन शास्त्रों में लिखा है कि शुक्र द्वादशेश होने के दोष से मु

ज्येष्ठा

18 - ज्येष्ठा  ( ANTARES ) स्त्री  संज्ञक  स्वामी – बुध  अंग – जाँघ देवता –  इंद्र वृक्ष – रीठा अक्षर – नो , या , यी , यू यह गण्डमूल नक्षत्र है । मूलशान्ति से इसका अवगुण दूर होता है । इन लोगों को क्रोध अधिक आता है । प्राय : ये लोग महत्त्वाकांक्षी होते हैं । इन्हें खर्च करने व अपनी आय को बढ़ा - चढ़ाकर बताने में बड़ा सुख मिलता है । इन लोगों में काम वासना भी अधिक होती है । ये लोग प्रायः संघर्ष करके स्थापित होते हैं । झूठ बोलना इनकी आदत होती है तथा रुपये पैसे के मामलों में ये आँख मूंदकर विश्वास के योग्य नहीं होते हैं ।  ( नारद ) धार्मिक विचारधारा भी ये लोग रखते हैं । प्राय : अपनी स्थिति से सन्तुष्ट रहते हैं । लेकिन इस नक्षत्र का चन्द्रमा यदि 1  या 5 भाव में हो तो ये कभी सन्तुष्ट नहीं होते हैं । ( वराह )  इन लोगों में बड़प्पन का भाव अधिक रहता है । यदि पक्षबली चन्द्रमा  हो और शुभ युक्त दृष्ट हो तो अपनी बिरादरी व मित्र वर्ग में ये लोग अच्छी प्रशंसा प्राप्त करते हैं । ( पराशर )  अच्छा लेखक , अभिमानी , विलासी , भाइयों से हानि उठाने वाला , बोलने में तेज , अस्वस्थ , आलसी स्वभाव , पशु - पालक , मित

शनि

#शनि की तीन दृष्टियों 3,7,10 में से तीसरी दृष्टि को सबसे शक्तिशाली और खतरनाक माना गया है। किसी व्यक्ति की जन्मकुंडली में शनि की तीसरी दृष्टि जिस भी घर पर होती है, जातक को उस घर से संबंधित परिणाम प्राप्त करने में कड़ा संघर्ष और मेहनत करना पड़ती है। ऐसे जातक को अपनी 32 वर्ष की आयु तक तो तीसरी दृष्टि वाले घर से संबंधित फल पाने के लिए एड़ी-चोटी तक का जोर लगाना पड़ता है। 32 की आयु के बाद से संघर्ष कुछ कम जरूर होता है, लेकिन मेहनत फिर भी जबर्दस्त करना पड़ती है। #शनि की विशोत्तरी दशा 19 वर्ष की होती है। अत: कुंडली में शनि अशुभ स्थिति में होने पर उसकी दशा में जातक को लंबे समय तक कष्ट भोगना पड़ता है। शनि सबसे धीमी गति से गोचर करने वाला ग्रह है। वह एक राशि के गोचर में लगभग 2½ वर्ष का समय लेता है। चन्द्रमा से द्वादश चन्द्रमा पर और चन्द्रमा से अगले भाव में शनि का गोचर साढ़े-साती कहलाता है। वृष, तुला, मकर और कुम्भ लग्न वालों के अतिरिक्त अन्य लग्नों में प्राय: यह समय कष्टकारी होता है। शनि शक्तिशाली ग्रह होने से अपनी युति अथवा दृष्टि द्वारा दूसरे ग्रहों के फलादेश में न्यूनता लाता है। सप्तम दृष्टि के अतिरि

राहु -केतु द्वारा निर्मित शुभाशुभ योग-*

*जन्मपत्रिका में राहु -केतु द्वारा निर्मित शुभाशुभ योग-* 〰🌼〰🌼〰🌼〰🌼〰🌼〰🌼〰🌼〰 1 अष्ट लक्ष्मी योग👉  जन्मांग में राहु छठे स्थान में और वृहस्पति केंद्र में हो तो अष्ट लक्ष्मी योग बनता हैं। इस योग के कारण जातक धनवान होता हैं और उसका जीवन सुख शांति के साथ व्यतीत होता हैं। 2 मोक्ष योग👉  जन्मांग में बृहस्पति और केतु का युति दृष्टि सम्बन्ध हो तो मोक्ष योग होता हैं। यदि केतु गुरु की राशी और वृहस्पति उच्च राशी कर्क में हो तो मोक्ष की सम्भावना बढ़ जाती हैं। 3 परिभाषा योग👉  तीसरे छठे, दसवे या ग्यारहवे भाव में राहु शुभ होकर स्थित हो तो परिभाषा योग का निर्माण करता हैं। ऐसा राहु जातक को कई प्रकार की परेशानियों से बचा लेता हैं। इनमे स्थित राहु दूसरे ग्रहों के अशुभ प्रभाव को भी कम करता हैं। 4👉 अरिष्ट भंग योग👉  मेष ,वृष या कर्क लग्न में राहु नवम, दशम या एकादश भाव में स्थित हो तो अरिष्ट भंग योग बनता हैं जो अपने नाम के अनुसार ही कई प्रकार के अरिष्टो का नाश करता हैं।  5 लग्न कारक योग👉 यदि लग्नेश अपनी उच्च राशी या स्वराशी में हो और राहु लग्नेश की राशी में स्थित हो तो लग्न कारक योग बनता हैं। यह योग भ

गोचर

गोचर क्या है इसको कैसे देखा जाता है इनके नियम क्या है इसका हमारे जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है बताती हूं 🙏🙏🙏🙏 गोचर फल के सात महत्‍वपूर्ण नियम जब हमें भाव का प्रभाव देखना है तो हमेशा लग्‍न से गोचर देखें। जैसे अगर आपकी सिंह लग्‍न और कन्‍या राशि हो और शनि तुला में हो तो तीसरे भाव का फल ज्‍यादा मिलेगा क्‍योंकि शनि लग्‍न से तीसरे भाव में है। अगर यह देखना है कि शुभ फल मिलेगा कि अशुभ तो चंद्र से देखें। सामान्‍य तौर पर पाप ग्रह और चंद्र खुद जन्‍म चंद्र से उपाच्‍य भावों में सबसे बढिया फल देते हैं।  सूर्य, मंगल, गुरु और शनि का चंद्र से 12 वें भाव पर, आठवें भाव पर और पहले भाव पर गोचर विशेषकर अशुभ होता है। चंद्र से 12वें, पहले और दूसरे भाव में शनि के गोचर को साढे साती कहा जाता है। ग्रह न सिर्फ उन भावों का फल देते हैं जहां वे लग्‍न से बैठे होते हैं बल्कि उन भावों का भी फल देते हैं जिन जिन भावों को वे देखते हैं। अगर कोई ग्रह उस राशि में गोचर करे जिसमें वह जन्‍म कुण्‍डली में हो तो अपने फल को बढा देता है। दशा गोचर से ज्‍यादा महत्‍वपूर्ण होती है। अगर किसी फल के बारे में दशा न बताए तो सिर्फ गोचर से फ

द्वितीय भाव में स्थित सूर्य का फल

द्वितीय भाव में स्थित सूर्य का फल द्वितीय भाव में स्थित सूर्य का फल   आपकी कुण्डली के दूसरे भाव में स्थित सूर्य आपको समृद्धशाली बना सकता है लेकिन यह तभी होगा जब आप ईश्वर पर विश्वास रखते हों। अन्यथा इस भाव में स्थित सूर्य धन संचय में परेशानियां उत्पन्न करता है। इस भाव में स्थित सूर्य आपको कई कामों में दक्षता देगा। आप उम्र के साथ-साथ आत्मनिर्भर होते जाएंगे। यदि आपका रुझान चित्रकला की ओर होगा तो आप इस कला में महारत हाशिल कर सकते हैं। सूर्य की यह स्थिति स्वयं के अच्छे वाहन होने का संकेत कर रही है। आप सरकार से या सरकारी कामों से धन प्राप्त कर सकते हैं। तांबा, सोना या अन्य धातुओं के व्यापार के माध्यम से भी आप धन कमा सकते हैं। लेकिन यहां स्थित सूर्य आपको चेहरे या मुंह के रोग हो सकते हैं। आपको चीजों को समझने और अपनी भावनाओं को सही ढंग से औरों के सामने रखने में परेशानी हो सकती है। पारिवारिक संबंधों को लेकर भी मन में असंतोष रह सकता है। आपके ननिहाल के लोग, विशेषकर मामा लोग समृद्ध होंगे। यह स्थिति आपके बेटी के ससुराल पक्ष की खुशहाली की भी संकेतक है। यदि आपने अपने खान-पान का उचित ध्यान नहीं रखा हो

सूर्य 6 th bhav

छ्टें भाव में स्थित सूर्य का फल छ्टें भाव में स्थित सूर्य का फल   यहां स्थित सूर्य आपको पराक्रमी बनाएगा और आप अपने शत्रुओं को परास्त करने में समर्थ होंगे। यह स्थित आपके स्वभाव को कुछ हद तक कठोर भी बना सकती है। स्त्रियों के प्रति आपकी आशक्ति अपेक्षाकृत अधिक हो सकती है, फिर भी आप वीर्यवान और तेजस्वी होंगे। सामान्य तौर पर आपका स्वाथ्य अच्छा ही रहेगा। लेकिन कम से कम दो बार आपको बडे उतार चढाव का सामना करना पडेगा। आप पूरी तरह से भाग्यशाली तभी सिद्ध हो पाएंगे जब आप अपनी सामर्थ्य के अनुसार दूसरों को आशीर्वाद और शुभकामनाएं देते रहेंगे। आप अपनी न्यायप्रियता के कारण भी समाज में सम्मान पाएंगे। आपको अपने व्यापार या नौकरी से हमेशा लाभ मिलता रहेगा लेकिन पुत्र के जन्म के बाद कार्यक्षेत्र में बदलाव ठीक नहीं रहेगा। सूर्य के यह स्थिति आपके मामा या ननिहाल पक्ष के लिए ठीक नहीं है। ननिहाल पक्ष के लोगों को कष्ट मिल सकता है। आपके दादा या दादी भी आपके जन्म के पश्चात बीमार रह सकते हैं। यह स्थिति आपको भी उच्च रक्तचाप की बीमारी दे सकती है। यहां स्थित सूर्य के कारण आपको सूर्य की रोशनी के कारण आखों की तकलीफें या अन

मेष लग्न

मेष लग्न सूर्य : पंचमेश होने से शुभ ग्रह हो जाता है। इसकी दशा में नवीन कार्यों का आरंभ होता है चंद्र : चतुर्थेश होकर निर्बल हो जाता है। यदि पक्ष बली हो, तो दशा भी श्रेष्ठ होगी अन्यथा इस दशा में भवन की हानि और राजभय की संभावना रहती है। निर्बल चंद्रमा होने पर जनता से विरोध प्राप्त होता है मंगल : लग्नेश होने से शुभ और अष्टमेश होने से अशुभ होता है। लग्नेश होने के बावजूद मंगल की स्थिति शुभ नहीं कही जा सकती है। यदि मंगल दशम भाव में हो, तो शुभ होता है। बृहस्पति : मेष लग्न में बृहस्पति की स्थिति कमोवेश मंगल सदृश्य है। नवम जैसे अत्यंत शुभ भाव के स्वामी होने से बृहस्पति की स्वयं के अंतर के अलावा शेष दशा शुभ होती है। शनि : राज और लाभ का स्वामी होने से शनि की दशा शुभ फल देगी। शनि यदिअस्त, नीचगत, शत्रुक्षेत्री या अष्टमस्थ न हो, तो शुभ फल मिलते हैं। स्थायी और अचल संपत्तियों की प्राप्ति होती है। व्यवसाय में लाभ होता है। बुध : इस समय रचनात्मक कार्यों में गतिविधियां बढ़ती हैं। बुध की दशा का उत्तरार्ध रोगग्रस्त और ऋणी बनाता है। शुक्र : द्वितीयेश और सप्तमेश होने से प्रबल मारकेश है। इस दशा में क्लेश, मृत्

राहु

राहू के लिय लाल किताब उपाय का सिद्धांत  मित्रों लाल किताब में राहू से सम्बन्धित कष्ट से मुक्ति पाने के लिय केतु का उपाय करने के लिय कहा गया है क्योंकि इसके संकट को केतु ही काट सकता है \ जैसे की जाल राहू का होता है लेकिन चूहा जो की केतु का होता है उसे आसानी से काट देता है इसिलिय यदि राहू के कारण खराबी हो रही हो तो केतु का उपाय करे जैसे की दो रंग का पथर पहने, गणेश जी की पूजा करे , किसी अपाहिज को कुछ खट्टे फल खाने को दें \  लेकिन यदि कुंडली में केतु भी खराब फल देने वाला सिद्ध हो रहा हो तो फिर बुद्ध की सहायता ले यानी बुद्ध की उपाय करे जैसे की माँ दुर्गा की पूजा करे , छोटी कन्याओं का आशीर्वाद लें , घर में बुद्ध कायम करे यानी की तुलसी का पोधा घर में लगाये | यदि बुद्ध भी कुंडली में सही नही है तो फिर मंगल का उपाय करे | अपनी समस्याओं से छुटकारा पाने के लिय अपने भाई की सहायता लें , हनुमान जी की पूजा करे , सौंफ का ज्यादा से ज्यादा प्रयोग करे \ यदि मंगल भी सही फल देने की सिथ्ती में नही है तो फिर  गुरु का उपाय करे , अपने गुरु की शरण में जाए किसी वृद्ध पुरोहित का आशीर्वाद लें , माथे पर केसर का तिलक

शनि की साढ़े साती एवं गोचर फल विचार :-

👉 शनि की साढ़े साती एवं गोचर फल विचार :-             -------------------------------------  1. मेष राशि वालों के लिए - एकादश शनि शुभ है। परिवारिक उत्तरदायित्व की वृद्धि होगी। धर्म अध्यात्म में रुचि, सहोदर भाई बहन से लाभप्रद एवं मदद कारी प्रीति बढ़ेगी। विविध सुख साधनों की वृद्धि परिवार में आदर्श सम्मान बढ़ेगा। वाद विवाद मुकदमा परीक्षा प्रतियोगिता वगैरह से सफलता मिलने का योग है। मान मर्यादा की वृद्धि होगी। 2. वृष राशि वालों के लिए :- दशम शनि शुभ है। भाग्य कर्म प्रारब्ध का उत्तम सहयोग मिलेगा। आर्थिक आवागमन से आत्म संतोष बढ़ेगा। भौतिक सुख सुविधाओं के वृद्धि होगी। उच्चाधिकारियों से मित्रता बढ़ेगी, भ्रमण सुख मिलेगा। लंबी यात्राएं होगी। 3. मिथुन राशि वालों के लिए :- नवम शनि पूज्य है। व्यापार में उतार-चढ़ाव की स्थिति बनी रहेगी। शारीरिक निर्बलता परिश्रम कठिन संघर्ष से कार्य सिद्धि होगी। स्त्री संतान परिवारजनों के प्रति उदासीनता रहेगी। दैनिक समस्याओं का सामना करना होगा। धन आगमन जटिल सिद्ध होगा, अध्ययन में सामान्य सफलता बच्चों के पढ़ाई पर ध्यान देना आवश्यक है। 4. कर्क राशि वालों के लिए :- अष्टम

शिव रात्रि

🌅श्री सनातन हिंदू पंचांग-17.02.2023 🌅          🌞दैनिक पंचांग एवं राशिफल🌞                                            🕉️शुभ शुक्रवार✴️✴️शुभ प्रभात् 🕉️             74-30✴️मध्यमान✴️75-30               (केतकी चित्रापक्षीय गणितानुसारेण निर्मितम्)  ___________________________________ _____________आज विशेष_____________   महाशिवरात्रि पर 30 साल बाद शुभ संयोग      जानें चार पहर की पूजा का शुभ मुहूर्त ___________________________________ __________दैनिक पंचांग विवरण_________          ✴️🌅✴️✴️🌞✴️✴️🌅✴️                                                                                     आज दिनांक.....................  17.02.2023 कलियुग संवत्.............................. 5124 विक्रम संवत................................  2079 शक संवत................................... 1944 संवत्सर.................................श्री नलनाम् अयन..................................... उत्तरायण  गोल...........................................दक्षिण  ऋतु...........................................शिशिर  मास............

ग्रह

1. लग्नेश की अष्टम स्थान में स्थिति अथवा अष्टमेष की लग्न में स्थिति। 2. पंचमेश की अष्टम में स्थिति या अष्टमेश की पंचम में स्थिति। 3. नवमेश की अष्टम में स्थिति या अष्टमेश की नवम में स्थिति। 4. तृतीयेश, यतुर्थेश या दशमेश की उपरोक्त स्थितियां। तृतीयेश व अष्टमेश का संबंध होने पर छोटे भाई बहनों, चतुर्थ के संबंध से माता, एकादश के संबंध से बड़े भाई, दशमेश के संबंध से पिता के कारण पितृ दोष की उत्पत्ति होती है। 5. सूर्य मंगल व शनि पांचवे भाव में स्थित हो या गुरु-राहु बारहवें भाव में स्थित हो। 6. राहु केतु की पंचम, नवम अथवा दशम भाव में स्थिति या इनसे संबंधित होना। 7. राहु या केतु की सूर्य से युति या दृष्टि संबंध (पिता के परिवार की ओर से दोष)। 8. राहु या केतु का चन्द्रमा के साथ युति या दृष्टि द्वारा संबंध (माता की ओर से दोष)। चंद्र राहु पुत्र की आयु के लिए हानिकारक। 9. राहु या केतु की बृहस्पति के साथ युति अथवा दृष्टि संबंध (दादा अथवा गुरु की ओर से दोष)। 10. मंगल के साथ राहु या केतु की युति या दृष्टि संबंध (भाई की ओर से दोष)। 11. वृश्चिक लग्न या वृश्चिक राशि में जन्म भी एक कारण होता है, क्योंकि वह

जानकी जन्मोत्सव विशेष〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️

जानकी जन्मोत्सव विशेष 〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️ सीता अष्टमी फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को कहते हैं। धर्म ग्रंथों के अनुसार इसी दिन सीता का प्राकट्य हुआ था। कुछ मत के अनुसार वैशाख शुक्ल नवमी को भी माता सीता के प्रकाट्य दिवस के रूप मे मनाया जाता है। इस पर्व को "जानकी अष्टमी" भी कहते हैं। शास्त्रों के अनुसार फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन पुष्य नक्षत्र में जब महाराजा जनक संतान प्राप्ति की कामना से यज्ञ की भूमि तैयार करने के लिए हल से भूमि जोत रहे थे, उसी समय पृथ्वी से एक बालिका का प्राकट्य हुआ। जोती हुई भूमि को तथा हल की नोक को भी 'सीता' कहा जाता है, इसलिए बालिका का नाम 'सीता' रखा गया। इस दिन वैष्णव संप्रदाय के भक्त माता सीता के निमित्त व्रत रखते हैं और पूजन करते हैं। मान्यता है कि जो भी इस दिन व्रत रखता व श्रीराम सहित सीता का विधि-विधान से पूजन करता है, उसे पृथ्वी दान का फल, सोलह महान दानों का फल तथा सभी तीर्थों के दर्शन का फल अपने आप मिल जाता है। अत: इस दिन व्रत करने का विशेष महत्त्व है। सीता जन्म कथा सीता के विषय में रामायण और अन्य ग्रंथों में जो उ

नक्षत्र के अनुसार स्वाभव

नक्षत्र के अनुसार स्वाभव ज्योतिष शास्त्र में 27 नक्षत्रों का विवरण दिया गया है। नक्षत्र और राशि के अनुसार, मनुष्य का स्वभाव, गुण-धर्म, जीवन शैली जन्म नक्षत्र से जुड़ी हुई होती है। ये सत्य है कि जिस नक्षत्र में मनुष्य जन्म लेता है वह नक्षत्र उसके स्वभाव और आने वाले जीवन पर अपना  प्रभाव अवश्य डालता है। ये सभी नक्षत्र जितने महत्वपूर्ण हैं उतने ही व्यक्तिगत जीवन पर भी प्रभाव डालते हैं। भारतीय वैदिक ज्योतिष की गणनाओं में महत्वपूर्ण माने जाने वाले 27 नक्षत्रों का विवरण दिया गया है। 1- अश्विनी नक्षत्र  ज्योतिष शास्त्र में सबसे प्रमुख और सबसे प्रथम अश्विनी नक्षत्र को माना गया है। अश्विनी नक्षत्र में जन्मे जातक सामान्यतः सुन्दर, चतुर, सौभाग्यशाली एवं स्वतंत्र विचारों वाले और आधुनिक सोच के लिए मित्रों में प्रसिद्ध होते हैं। इस नक्षत्र में जन्मा व्यक्ति बहुत ऊर्जावान होने के साथ-साथ सदा सक्रिय रहता है। इनकी महत्वाकांक्षाएं इन्हें संतुष्ट नहीं होने देतीं। ये लोग सभी से बहुत प्रेम करने वाले, हस्तक्षेप न पसंद करने वाले, रहस्यमयी प्रवृत्ति के होते हैं। ये लोग अच्छे जीवनसाथी और एक आदर्श मित्र साबित हो