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Showing posts from June, 2022

पितृदोष

पितृदोष ज्योतिष में  पितृ दोष दोष है जो सबसे आम है। लेकिन यह कैसे बनता है? हम इससे कैसे छुटकारा पा सकते हैं? कौन से उपाय करने चाहिए? आदि । आइए मुद्दे पर आते हैं। पितृ दोष तब बनता है जब सूर्य और राहु एक साथ आते हैं और वे सभी हानिकारक परिणाम पैदा करते हैं जिससे व्यक्ति को इतनी परेशानी होती है। यह पितृ दोष सूर्य को मरने की स्थिति में बनाता है और सूर्य अस्थिर और असहज हो जाता है, कमजोर सूर्य के पास कितना अच्छा घर और डिग्री आदि है लेकिन राहु यह सब खत्म कर देता है यह राहु की सबसे महत्वपूर्ण गतिविधि है। सूर्य के प्राकृतिक दुश्मन होने के कारण राहु शनि, केतु से मदद लेता है शुक्र सूर्य को पूरी तरह से नुकसान पहुंचाएगा। यह योग सबसे खतरनाक है जब सूर्य 9 वें घर में बैठता है। राहु कर्क और सिंह लग्न में बुरे खलनायक बन जाते हैं, विशेष रूप से इन दो लग्नों में यह पितृ दोष अधिक शक्तिशाली हो जाता है और सूर्य ऊर्जा कम हो जाता है। अन्य लग्न में ऐसा हुआ लेकिन कर्क और सिंह लग्न में यह अधिक खतरनाक हो जाता है। हम कहते हैं कि राहु सूर्य से ऊर्जा लेता है लेकिन यह सूर्य को अकेले ही खत्म कर देता है। इससे भी बदतर जब स

शनि दृष्टि

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शनि सूत्रम् जन्म कुंडली के 12वे भाव में बैठा  शनि  व लग्न और चन्द्र लग्न से वे भाव में शनि का गोचर्  ----------------------------------------------------------------------- जन्म कुंडली का 12वा भाव  5वे भाव से 8 घर दूर है इस लिए ये 12वा भाव संतान का अरिस्ट है  इस लिए संतान के लिए यहाँ बैठा शनि अच्छा नहीं है  यहाँ से शनि जन्म कुंडली के दूसरे भाव पर दृस्टि डालता है  दूसरा भाव - 7वे घर से 8 घर दूर है यानी विवाह का अरिस्ट है इस लिए 12वे भाव में बैठा शनि कुंडली के दूसरे भाव पर अपनी तीसरी दृस्टि डाल कर    वैवाहिक जीवन में व्यथा उत्पन्न् करता है भले ही धन की वज़ह से व्यथा आए 12वे भाव में बैठा हुआ शनि अपनी 7वी दृस्टि से कुंडली के 6 ठे भाव को देखता है अब छठा भाव क्या है? छठा भाव - 11वे भाव से 8 घर दूर है यानी लाभ का अरिस्ट है इस लिए शनि की दृस्टि वहाँ पढ़ने से लाभ में देरी होति है मन चाहे काम बनते नहीं है  और 12वे भाव में बैठा हुआ शनि अपनी 10वी दृस्टि से जन्म कुंडली के 9वे भाव को देखता है  9वा भाव क्या है ?  9वा भाव - जन्म कुंडली के दूसरे भाव से 8 घर दूर है यानी धन और परिवार का अरिस्ट

कुंडली के केंद्र भाव मे ग्रहो का प्रभाव

🌹कुंडली के केंद्र भाव मे ग्रहो का प्रभाव🌹      कुंडली में चार केंद्र स्थान यानी मध्य भाव होते हैं कुंडली में केंद्र स्थान किसी भी व्यक्ति के जीवन पर बहुत अधिक प्रभाव डालता  है. कुंडली में प्रथम, चतुर्थ, सप्तम एवं दशम, भाव को केंद्र भाव माना गया है. पहले भाव को स्वयं के तन का, चौथे भाव को सुख का, सप्तम भाव को वैवाहिक जीवन का और दसवें भाव को कर्मभाव माना गया है यदि इन चारों भाव में कोई शुभ ग्रह हो तो व्यक्ति धनवान होता है वहीं केंद्र में उच्च के पाप ग्रह बैठे हो तो व्यक्ति बहुत धनवान होने पर भी गरीब हो सकता है. 👉🏻बुध के केंद्र में होने से व्यक्ति अध्यापक  👉🏻 गुरु के केंद्र में होने से व्यक्ति ज्ञानी होता है. 👉🏻शुक्र के केंद्र में होने पर धनवान तथा विद्यावान होता है 👉🏻शनि के केंद्र में होने से व्यक्ति बुरे लोगों की सेवा करने वाला होता है. यदि केंद्र में उच्च का सूर्य हो तथा गुरु केंद्र में चौथे भाव में बैठा हो तो व्यक्ति सभी सुख और मान-सम्मान प्राप्त करता है. सूर्य के केंद्र में होने से व्यक्ति राजा का सेवक, चंद्रमा ! केद्र में हो तो व्यापारी, मंगल केंद्र में हो तो व्यक्ति सेना

ग्रह कुण्डली

देहश्चावयवः सुखासुखजरास्ते ज्ञानजन्मस्थले कीर्तिः स्वप्नवलायती नृपनयाख्यायूंषि शान्तिर्वयः । केशाकृत्यभिमानजीवनपरद्यूताङ्कमानत्वचो निद्राज्ञानधनापहारनृतिरस्कारस्वभावारुजः ॥ १ ॥ निम्नलिखित बातें प्रथम भाव लग्न से विचारनी चाहिएँ।  इन  बातों का कारक प्रथम भाव है  सामूहिक रूप से शरीर, शरीर के अवयव पृथक्-पृथक् (लग्नस्थ राशि तथा उसके स्वामी द्वारा), सुख, दुःख, जरावस्था, ज्ञान, जन्म का स्थान, यश, स्वप्न, बल, गौरव, राज्य, नम्रता, आयु, शान्ति, वय, बाल आकृति (Appearance), अभिमान, काम-धन्धा, दूसरों से जुआ, निशान, मान, त्वचा, नींद, दूसरों का धन हर लेना, दूसरों का अपमान करना, स्वभाव, आरोग्य, वैराग्य, कार्य का करण ( Agency), पशु पालन, मर्यादा का सर्वनाश, वर्ण तथा निज अपमान । (१) प्रथम भाव में 'सामूहिक रूप से शरीर आदि का विचार किया जाता है। सामूहिक शरीर से तात्पर्य न केवल समस्त शरीर है, बल्कि शरीर के धातु, चर्म आदि वे पदार्थ जो सामूहिक अथवा व्यापक रूप से शरीर में पाए जाते हैं, हो सकता है। उदाहरणार्थ जब किसी व्यक्ति का सिंह लग्न हो तो उसका स्वामी सूर्य यद्यपि आँख, हृदय, हड्डी सबका प्रतिनिधि है तथा

गुप्त नवरात्रि

आषाढ़ मास की शुक्ल प्रतिपदा से नवमी तिथि तक गुप्त नवरात्रि  का पर्व मनाया जाता है। बहुत कम लोग इस नवरात्रि  के बारे में जानते हैं, इसलिए इसे गुप्त नवरात्रि  कहा जाता है। गुप्त नवरात्रि  में किए गए उपाय जल्दी ही शुभ फल प्रदान कर सकते हैं। धन, नौकरी, स्वास्थ्य, संतान, विवाह, प्रमोशन आदि कई मनोकामनाएं इन 9 दिनों में किए गए उपायों से प्राप्त हो सकते हैं । अगर आपके मन में  कोई मनोकामना है तो आगे बताए गए उपायों से वह पूरी हो सकती है। ये उपाय इस प्रकार हैं-* 💰 *1. धन लाभ के लिए उपाय* *गुप्त नवरात्रि  के दौरान किसी भी दिन स्नान आदि करने के बाद उत्तर दिशा की ओर मुख करके पीले आसन पर बैठ जाएं। अपने सामने तेल के ९ दीपक जला लें। ये दीपक साधनाकाल तक जलते रहना चाहिए। दीपक के सामने लाल चावल (चावल को रंग लें) की एक ढेरी बनाएं फिर उस पर एक श्रीयंत्र रखकर उसका कुम कुम, फूल, धूप, तथा दीप से पूजन करें।* ➡ *उसके बाद एक प्लेट पर स्वस्तिक बनाकर उसे अपने सामने रखकर उसका पूजन करें। श्रीयंत्र को अपने पूजा स्थल पर स्थापित कर लें और शेष सामग्री को नदी में प्रवाहित कर दें। इस प्रयोग से आपको अचानक धन लाभ होने के योग

गुप्त नवरात्रि

               आषाढ गुप्त नवरात्रि                ==============              आषाढ मास में मनाई जाने वाली गुप्त नवरात्रि इस बार प्रतिपदा 30 जून से शुरू होंगी और 8 जुलाई तक रहेगी। इस तरह नवरात्रि का पर्व 09 दिन मनाया जाएगा।  पुराणों की मान्यता के अनुसार गुप्त नवरात्रि में मां दुर्गे की 10 महाविद्याओं की पूजा की जाती है। वर्ष में 4 नवरात्रि आती हैं जिसमें दो प्रत्यक्ष और दो अप्रत्यक्ष। बता दें, अप्रत्यक्ष नवरात्रि को ही गुप्त नवरात्रि कहा जाता है। प्रत्यक्ष तौर पर चैत्र और आश्विन की महीने में मनाई जाती हैं, और अप्रत्यक्ष यानी कि गुप्त आषाढ़ और माघ मास में मनाई जाती हैं।  गुप्त नवरात्रि में साधक गुप्त साधनाएं करने शमशान व गुप्त स्थान पर जाते हैं। नवरात्रों में लोग अपनी आध्यात्मिक और मानसिक शक्तियों में वृद्धि करने के लिये अनेक प्रकार के उपवास, संयम, नियम, भजन, पूजन योग साधना आदि करते हैं। सभी नवरात्रों में माता के सभी 51पीठों पर भक्त विशेष रुप से माता के दर्शनों के लिये एकत्रित होते हैं। माघ एवं आषाढ मास की नवरात्रि को गुप्त नवरात्रि कहते हैं, क्योंकि इसमें गुप्त रूप से शिव व शक्ति की उपा

कुंडली में कमजोर चंद्रमा को बलवान बनाने के लिए क्या उपाय करना चाहिए -

कुंडली में कमजोर चंद्रमा को बलवान बनाने के लिए क्या उपाय करना चाहिए - नियमित तौर पर वट वृक्ष की जड़ में पानी डालें औऱ उसकी पूजा करें। ज्योतिष की सलाह लेकर मोती धारण कर सकते हैं। शरीर पर चांदी धारण करें, हाथ में चांदी का कड़ा,अंगूठी, चांदी की चेन या चांदी की पायल भी पहन सकते हैं। कमजोर चंद्रमा को मजबूत करने के लिए देर रात तक नहीं जागना चाहिए, ऐसे लोगों को जल्दी  सो जाना चाहिए। पूर्णिमा के दिन शिव जी को खीर या रबड़ी का भोग लगाने से भी चंद्र ग्रह मजबूत होता है अगर घर बनवा रहे हैं तो नीव खुदवाते वक्त जरा सा चांदी का टुकड़ा दबा दें।  मां मौसी से संबंध कोमल रखें, उन्हें उपहार दें और रोज उनका आशीर्वाद लें। चारपाई या जिस पलंग पर सोते हैं, उसके चारों पायों पर चांदी की कीले लगाने से भी लाभ होता है। जिनका चंद्रमा कमजोर होता है उन्हें मातृ पक्ष यानी मां, मामा द्वारा चांदी के बर्तन उपहार में मिले तो लाभ होता है। पानी, दूध और चावल जैसी सफेद और शीतल चीजों का दान करना चाहिए। ऐसे लोगों को चावल, दूध और चांदी का बिजनेस नहीं करना चाहिए। सोमवार को नौ बच्चियों को खीर खिलाने से भी चंद्र मजबूत होता है। रात के

गुप्त नवरात्रि

।।हर हर महादेव शम्भो काशी विश्वनाथ वन्दे ।। ➖➖➖➖➖➖➖➖➖ आषाढ गुप्त नवरात्रि विशेष--- 〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰〰️ आषाढ मास में मनाई जाने वाली गुप्त नवरात्रि इस बार प्रतिपदा 30 जून से शुरू होंगी और 8 जुलाई तक रहेगी। इस तरह नवरात्रि का पर्व 09 दिन मनाया जाएगा। पुराणों की मान्यता के अनुसार गुप्त नवरात्रि में मां दुर्गे की 10 महाविद्याओं की पूजा की जाती है। वर्ष में 4 नवरात्रि आती हैं जिसमें दो प्रत्यक्ष और दो अप्रत्यक्ष। बता दें, अप्रत्यक्ष नवरात्रि  को ही गुप्त नवरात्रि कहा जाता है। प्रत्यक्ष तौर पर चैत्र और आश्विन की महीने में मनाई जाती हैं, और अप्रत्यक्ष यानी कि गुप्त आषाढ़ और माघ मास में मनाई जाती हैं।  गुप्त नवरात्रि में साधक गुप्त साधनाएं करने शमशान व गुप्त स्थान पर जाते हैं। नवरात्रों में लोग अपनी आध्यात्मिक और मानसिक शक्तियों में वृद्धि करने के लिये अनेक प्रकार के उपवास, संयम, नियम, भजन, पूजन योग साधना आदि करते हैं। सभी नवरात्रों में माता के सभी 51पीठों पर भक्त विशेष रुप से माता के दर्शनों के लिये एकत्रित होते हैं। माघ एवं आषाढ मास की नवरात्रि को गुप्त नवरात्रि कहते हैं, क्योंकि इसमें गुप्त रूप

गुरुड पुराण के अनुसार

गुरुड पुराण के अनुसार  1:-इस जन्म में गाय की हत्या करने वाला मनुष्य अगले जन्म में मूर्ख और कुबड़ा बनता है. 2:- इस जन्म में गाय को पैर से मारने वाला मनुष्य अगले जन्म में लंगड़ा-लूल्ला पैदा होता है 3:- कन्या की हत्या करने वाला मनुष्य अगले जन्म में कोढी बनता है. 4:- स्त्री की हत्या करने वाला और स्त्री का गर्भपात कराने वाला मनुष्य अगले जन्म में रोगी पैदा होता है. 5:- पराई स्त्री के साथ संबंध बनाने वाला मनुष्य अगले जन्म में नपुसंक पैदा होता है और अपने पति के अलावा अन्य किसी पुरुष से संबंध बनाने वाली स्त्री अगले जन्म में छिपकली चमगादड़ी और दो मुंह वाली सांपनी पैदा होती है. 6:- झूठी गवाही देने वाला मनुष्य अगले जन्म में गूंगा पैदा होता है. 7:- वेद शास्त्रों की निंदा करने वाला मनुष्य अगले जन्म में पांडु रोगी पैदा होता है. 8:- मांस बेचने वाला मनुष्य और मांस खाने वाला मनुष्य अगले जन्म में महारोगी पैदा होते हैं. प्रत्येक पुरुष अथवा महिला को अपने दिमाग से यह बात बिल्कुल निकाल देनी चाहिए, उसकी नैतिक एवं अनैतिक गतिविधियों को कोई देख नहीं रहा,, यदि कोई पुरुष या महिला ऐसा सोचती है तो ऐसा सोचना उसके दिम

शनि

शनि के उपाय १. खाली पेट नाश्ते से पूर्व काली मिर्च चबाकर गुड़ या बताशे से खाएं. २. भोजन करते समय नमक कम होने पर काला नमक तथा मिर्च कम होने पर काली मिर्च का प्रयोग करें. ३. भोजन के उपरांत लोंग खाये. ४. शनिवार व मंगलवार को क्रोध न करें. ५. भोजन करते समय मौन रहें. ६. प्रत्येक शनिवार को सोते समय शरीर व नाखूनों पर तेल मसलें. ७. मॉस, मछली, मद्य तथा नशीली चीजों का सेवन बिलकुल न करें. ८. घर की महिला जातक के साथ सहानुभूति व स्नहे बरते. क्योकि जिस घर में गृहलक्ष्मी रोती है उस घर से शनि की सुख-शांति व समृद्धि रूठ जाती है. महिला जातक के माध्यम से शनि प्रधान व्यक्ति का भाग्य उदय होता है. ९. गुड़ व चनें से बनी वस्तु भोग लगाकर अधिक से अधिक लोगों को बांटना चाहिए. १०. उड़द की दाल के बड़े या उड़द की दाल, चावल की खिचड़ी बाटनी चाहिए. प्रत्येक शनिवार को लोहे की कटोरी में तेल भरकर अपना चेहरा देखकरडकोत को देना चाहिए. डकोत न मिले तो उसमे बत्ती लगाकर उसे शनि मंदिर में जला देना चाहिए. ११. प्रत्येक शनि अमावस्या को अपने वजन का दशांश सरसों के तेल का अभिषेक करना चाहिए. १२. शनि मृत्युंजय स्त्रोत दशरथ कृत शनि स्त्रोत

परिक्रमा

‌   परिक्रमा हिंदू धर्म के साथ-साथ जैन धर्म और बौद्ध धर्म में परिक्रमा का विशेष महत्व बताया गया है। कहते हैं परिक्रमा करने से व्यक्ति के तमाम तरह के पाप दूर होते हैं, और जीवन से समस्याओं का साया भी दूर होने लगता है। यही वजह है कि, मंदिरों में परिक्रमा के साथ-साथ हिंदू धर्म में तो मांगलिक कार्यों में भी परिक्रमा या फेरी लगाने की परंपरा है.आइए जानते हैं परिक्रमा के बारे में--: *✡️अलग-अलग तरह की परिक्रमा और उनका महत्व--:*  *👉देव मंदिर परिक्रमा---:*  इस परिक्रमा का मतलब सीधे तौर पर जगन्नाथपुरी, रामेश्वरम, तिरुवन्नमल, तिरुवनन्तपुरम, शक्तिपीठ और ज्योतिर्लिंग आदि की परिक्रमा से जोड़कर देखा जाता है।  *👉देव मूर्ति परिक्रमा---:*  जब हम मंदिरों में जाकर भगवान शिव, देवी दुर्गा, भगवान गणेश, भगवान विष्णु, भगवान हनुमान, इत्यादि मूर्तियों की परिक्रमा करते हैं तो इन्हें देव मूर्ति परिक्रमा कहा जाता है।  *👉नदी परिक्रमा---:*  तीसरी परिक्रमा नदी परिक्रमा होती है जिसे बेहद ही मुश्किल कहा जाता है। इसमें प्रमुख और पावन नदियों जैसे मां नर्मदा, सिंधु नदी, सरस्वती, गंगा, यमुना, सरयू, शिप्रा, गोदावरी, कृष्णा,

मंगल -राहु की युति

जय श्रीराम ।।                  मंगल -राहु की युति                ============== किसी भी व्यक्ति के जीवन में उसके कुंडली में ग्रहों की स्थिति के अनुसार ही उसका जीवन और उसकी खुद की प्रवृत्ति निर्धारित होती है। अगर किसी भी व्यक्ति के लग्न से 12 वें खाने में अगर राहु की स्थिति बनती  है तो व्यक्ति के लिए उसके जीवनकाल में एक न एक बार जेल जाना पड़ सकता है इसके साथ ही ग्रहों की स्थिति मंगल और राहु की जोड़ी का कुंडली के स्थान से भी निर्धारित होता है और इसका असर पड़ता है।  कुंडली में मंगल-राहु की जोड़ी बहुत कुछ असर डालती है। मंगल और राहु ग्रह की युति व्यक्ति के ऊर्जा स्तर और उसकी आक्रामकता को प्रदर्शित करता है।    मंगल ग्रह की प्रवृत्ति    ============== मंगल ग्रह अग्नि का कारक है और यह गृह ऊर्जा का स्रोत भी माना जाता है। इसलिए जिस भी व्यक्ति का मंगल ग्रह स्ट्रांग रहता है उसके अंदर ऊर्जा का पर्याप्त भण्डार होता है और कभी कभी इसकी स्थिति हिंसक भी हो जाती है इसलिए अगर मंगल कुपित होता है तो तो यह नुकसानदायक भी हो जाता है।     राहु ग्रह की प्रवृत्ति    ============= राहु ग्रह की प्रवृत्ति छाया गृह  माना

बीज मंत्रो से उपचार

बीज मंत्रो से उपचार  🌹 *खं*– हार्ट-टैक कभी नही होता है | हाई बी.पी., लो बी.पी. कभी नही होता | ५० माला जप करें, तो लीवर ठीक हो जाता है | १०० माला जप करें तो शनि देवता के ग्रह का प्रभाव चला जाता है | 🌹 *कां*– पेट सम्बन्धी कोई भी विकार और विशेष रूप से आंतों की सूजन में लाभकारी।   🌹 *गुं*– मलाशय और मूत्र सम्बन्धी रोगों में उपयोगी।  🌹 *शं*– वाणी दोष, स्वप्न दोष, महिलाओं में गर्भाशय सम्बन्धी विकार औेर हर्निया आदि रोगों में उपयोगी । 🌹 *घं* – काम वासना को नियंत्रित करने वाला और मारण-मोहन-उच्चाटन आदि के दुष्प्रभाव के कारण जनित रोग-विकार को शांत करने में सहायक। 🌹 *ढं*– मानसिक शांति देने में सहायक। अप्राकृतिक विपदाओं जैसे मारण, स्तम्भन आदि प्रयोगों से उत्पन्न हुए विकारों में उपयोगी। 🌹 *पं*– फेफड़ों के रोग जैसे टी.बी., अस्थमा, श्वास रोग आदि के लिए गुणकारी।  🌹 *बं*– शूगर, वमन, कफ, विकार, जोडों के दर्द आदि में सहायक।  🌹 *यं*– बच्चों के चंचल मन के एकाग्र करने में अत्यत सहायक।  🌹 *रं* – उदर विकार, शरीर में पित्त जनित रोग, ज्वर आदि में उपयोगी। 🌹 *लं*– महिलाओं के अनियमित मासिक धर्म, उनके अनेक

कुंडली में पित्र दोष

जय श्रीराम ।।                   कुंडली में पित्र दोष                  ============== 1. हर काम में रुकावट आना   ऐसी मान्यता है कि यदि आप जो भी कार्य कर रहे हैं, उसमें रुकावट आ रही है और कोई भी कार्य संपन्न नहीं होता है तो इसे पितरों के नाराज होने या पितृदोष का लक्षण माना जाता है। 2. गृहकलह रहना   घर में थोड़ी-बहुत खटपट तो चलती रहती है लेकिन यदि रोज ही गृहकलह हो रही है तो यह समझा जाता है कि पितृ आपसे नाराज हैं। 3. संतान में बाधा   ऐसी मान्यता है कि पितृ नाराज रहते हैं तो संतान पैदा होने में बाधा आती है। यदि संतान हुई है तो वह आपकी घोर विरोधी रहेगी। आप हमेशा उससे दु:खी रहेंगे। 4. विवाह बाधा   ऐसी मान्यता है कि पितरों के नाराज रहने के कारण घर की किसी संतान का विवाह नहीं होता है और यदि हो भी जाए तो वैवाहिक जीवन अस्थिर रहता है। 5. आकस्मिक नुकसान   ऐसी मान्यता है कि यदि पितृ नाराज हैं तो आप जीवन में किसी आकस्मिक नुकसान या दुर्घटना के शिकार हो जाते हैं। आपका रुपया जेलखाने या दवाखाने में ही बर्बाद हो जाता है। 6- धन हानि  पितृ दोष होने से घर में धन हानि होती हैं और धन के स्थिर व प्रचुर आय के स्

सुगंधित वस्तुओं से ग्रह शांति

*🕉️सुगंधित वस्तुओं से ग्रह शांति🕉️*  *ग्रहों व नक्षत्रों की अनुकूलता प्राप्त करने के लिए उस ग्रह से संबंधित वस्तुओं का उपयोग करना चाहिए एवं ग्रह से संबंधित क्रियाकलाप करने चाहिए।* *यदि आपको लगता है कि कोई ग्रह या नक्षत्र आपकी जिंदगी में परेशानी खड़ी कर रहा है तो आप "सुगंध" से इन ग्रह नक्षत्रों के बुरे प्रभाव को कम कर सकते हैं। तो जानिए कि कैसे सुगंध से ग्रहों की शांति की जा सकती है--:*     *सूर्य ग्रह-----:*  यदि आपकी कुंडली में सूर्य ग्रह बुरे प्रभाव दे रहा है तो आप केसर या गुलाब की सुगंध का उपयोग करें। घर के लिए रूम फ्रेशनर लाएं और शरीर के लिए इस सुगंध का कोई इत्र उपयोग करें, इससे सूर्य ग्रह की अनुकूलता प्राप्त होगी...।    *चंद्र ग्रह----- :*  चंद्रमा मन का कारक ग्रह है अत: इसके लिए चमेली और रातरानी के इत्र का उपयोग कर सकते हैं...।  *मंगल ग्रह----- :*   मंगल ग्रह की परेशान से मुक्त होने के लिए लाल चंदन का इत्र, तेल अथवा सुगंध का उपयोग कर सकते हैं...। *बुध ग्रह-----:*  कुंडली में यदि बुध ग्रह खराब प्रभाव में है तो बुध ग्रह की शांति के लिए चंपा का इत्र तथा तेल का प्रयोग बुध

रवि प्रदोष व्रत

रवि प्रदोष व्रत हमारे शास्त्रों में प्रदोष व्रत की बड़ी महिमा है। रविवार को आने वाला यह प्रदोष व्रत स्वास्थ्य की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण माना गया है। यह व्रत करने वाले की स्वास्थ्य से संबंधित परेशानियां दूर होती हैं अत: स्वास्थ्य में सुधार होकर मनुष्य सुखपूर्वक जीवन-यापन करता है।  आज रवि प्रदोष व्रत की पूजन विधि---:    *पूजन सामग्री----:*  एक जल से भरा हुआ कलश उसमें थोड़ा गंगाजल डालें, एक थाली (आरती के लिए), बेलपत्र, धतूरा, कपूर, सफेद पुष्प, अक्षत व माला, आंकड़े का फूल, मिठाई, सफेद चंदन, धूप, दीप, सफेद वस्त्र, दक्षिणा आदि सामग्री लेकर शिव भगवान की पूजा करें। भगवान शिव के सामने सुबह व शाम शुद्ध देसी गाय के घी का दीपक जलाएं। भगवान को बेलपत्र धतूरा नैवेद्य आदि अर्पित करें, शुद्ध गाय के दूध गंगा जल, जल से अभिषेक करें।   "ॐ नमः शिवाय" का जप करते रहें, उसके बाद धूप,दीप, कपूर से भगवान की आरती करें।    *कैसे करें पूजन----:*  रवि प्रदोष व्रत के दिन व्रतधारी को प्रात:काल नित्य कर्मों से निवृत्त होकर स्नानादि कर शिवजी का पूजन करना चाहिए। प्रदोष वालों को इस पूरे दिन निराहार रहना चाहिए

सूर्य ग्रह

सूर्य ग्रह सूर्य ग्रह ​को कुंडली का प्रधान ग्रह माना जाता है. पृथ्वी के जीवो के लिए सूर्य ग्रह ऊर्जा का बड़ा स्रोत है। अतः सूर्य का सीधा प्रभाव पृथ्वी के सभी जीवो पर पड़ता है।                 जब सूर्य ग्रह कुंडली में मजबूत स्थिति में होता है तो यश- मान,आरोग्य,नौकरी, व्यवसाय, राजनीति क्षेत्र में सफलता प्राप्त होती है, और यदि कुंडली में सूर्य ग्रह कमजोर स्थिति में है तो इन सभी क्षेत्रों में बड़ी परेशानी का सामना करना पड़ता है। सूर्य ग्रह के बुरे प्रभाव से व्यक्ति को अनेक रोगों का सामना भी करना पड़ता है। *☀️सूर्य को मजबूत करने के उपाय-:*  *1.* जिन लोगों को अपना सूर्य ग्रह मजबूत करना है, उनको कम से कम 12 रविवार का व्रत रखना चाहिए. आप रविवार का व्रत पूरे एक साल या 30 रविवार तक भी रख सकते हैं. इससे सूर्य की कृपा प्राप्त होती है और सफलता मिलती है..। *NOT-:* रविवार के व्रत में नमक बिल्कुल नहीं खाना चाहिए। *2.* सूर्य को मजबूत करने के लिए रविवार के दिन स्नान के बाद लाल कपड़ा पहनें और "ऊं ह्रां ह्रीं ह्रौं स: सूर्याय नम:" मंत्र का जाप 3, 5 या 12 माला करें या सूर्य भगवान के द्वादश नाम का

विष योग

जय श्रीराम ।।               कुंडली में विष योग              ============= ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, कुंडली में ग्रहों की स्थिति के आधार पर कई तरह के शुभ-अशुभ योग बनते हैं। शुभ योगों का फल भी शुभ ही होता है और अशुभ योगों के कारण जीवन में कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता हैं । इसे विष योग भी कहते हैं।    मृत्युतुल्य कष्ट देता है विष-योग  =====================   यह योग मृत्यु, भय, दुख, अपमान, रोग, दरिद्रता, दासता, बदनामी, विपत्ति, आलस और कर्ज जैसे अशुभ योग उत्पन्न करता है तथा इस योग से जातक (व्यक्ति) नकारात्मक सोच से घिरने लगता है और उसके बने बनाए कार्य भी काम बिगड़ने लगते हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, जिस व्यक्ति की कुंडली में विष कुंभ योग होता है, उसे कदम-कदम पर समस्याओं का सामना करना पड़ता है। कई मामलों में सफलता मिलते-मिलते रह जाती है।  1. शनि और चंद्रमा की जब युति होती है तब यह योग बनता है। कुंडली में विष योग शनि और चंद्रमा के कारण बनता है। चंद्रमा के लग्न स्थान में एवं चन्द्रमा पर शनि की 3,7 अथवा 10वें घर से दृष्टि होने की स्थिति में इस योग का निर्माण होता है। 2. कर्क राशि

लहसुन के टोटके...

लहसुन के टोटके... लाल किताब के मुताबिक शनिवार के दिन लहसुन की एक कली पर्स में रखने से कभी पैसों की कमी महसूस नहीं होती. साथ ही फिजूलखर्ची पर भी लगाम लगता है. अगर पैसा नहीं टिकता है तो शनिवार के दिन लाल कपड़े में लहसुन की तीन कलियों को बांधकर पर्स या तिजोरी में रख लें... लहसुन के इस टोटके पैसों की किल्लत दूर होती है... लाल रंग के कपड़े में लहसुन की 2 कलियां बांधकर पोटली बना लें... इसके बाद घर के परिसर में जमीन के नीचे दबाकर रख दें...ये टोटका शनिवार की शाम को शनि मंदिर से आकर करें... सुख-शांति के लिए भी लहसुन का टोटका खास है... इसके लिए शनिवार के दिन एक डंडी में लहसुन की सात कलियों को फंसाकर घर के आंगन या छत पर रख दें... ऐसा करने से नजर दोष दूर होता है... साथ ही धन की समस्या का भी समाधान निकलता है... बिजनेस में आ रही आर्थिक परेशानियों के लिए लहसुन का टोटका खास है... शनिवार के दिन दुकान या फैक्ट्री के मुख्य द्वार पर 5 पांच लहसुन की कलियों को किसी लाल कपड़े में बांधकर लटका दें... इस टोटके से व्यापार में आ रही आर्थिक बाधा दूर होती है...  अगर बच्चे बराबर बीमार चल रहे हैं तो सात लहसुन को उसके

पथरी/चिकना रुद्राक्ष माला

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📿 *पथरी/चिकना रुद्राक्ष माला* 📿 🕉️जो रुद्राक्ष पेड़ में पूरी तरह से पके हुए होते हैं उन्हें पथरी रुद्राक्ष कहा जाता है। 🕉️इसकी गुणवत्ता पत्थर जैसी होती हैं,इसलिए इसे पथरी माला तथा चिकना माला भी कहा जाता है। 🕉️पथरी रुद्राक्ष सभी रुद्राक्षो में से सर्वश्रेष्ठ और सबसे उच्चतम गुणवत्ता वाला रुद्राक्ष  है। 🕉️पथरी रुद्राक्ष की माला का वजन अन्य रुद्राक्षो की माला से कई गुना ज्यादा होता है। 🕉️पथरी रुद्राक्ष माला की पहचान यह होती है कि उसके एक-एक दानों में गड्ढों जैसा देखने को मिलता है जैसे कि चंद्रमा की सतह पर देखे जाते हैं। 🕉️पथरी रुद्राक्ष माला की संरचना जटिल होने से एवं फल को पूरी परिपक्वता प्राप्त होने के कारण पथरी रुद्राक्ष अन्य रुद्राक्ष की तुलना में अत्यधिक फलदाई होता है। 🕉️पथरी रुद्राक्ष माला बहुत कम पाई जाती है इसीलिए इनकी कीमत भी बहुत ज्यादा होता है। 🕉️अधिकतर लोग पथरी रुद्राक्ष माला को सोने में मढ़ाकर धारण करते हैं।

कमजोर बृहस्पति को मजबूत करने के लिए गुरुवार को करे ये उपाय:

कमजोर बृहस्पति को मजबूत करने के लिए गुरुवार को करे ये उपाय: 1 पीला रंग भगवान बृहस्पति देव का है. इसलिए गुरु से जुड़ी पीली वस्तुएं जैसे सोना, हल्दी, चने की दाल, आम, केला आदि दान करें. ऐसा करने से बृहस्पतिदेव प्रसन्न होकर शुभ फल प्रदान करते हैं. 2 अगर अपनी कुंडली में बृहस्पति को उस स्थिति में लाना चाहता है तो गुरुवार के दिन व्रत रखने चाहिए. इस दिन पीले वस्त्र पहनें और बिना नमक का पीला भोजन करें. इस दिन मां लक्ष्मी और भगवान सत्यनारायण की पूजा करने से भी लाभ मिलता है. 3 विवाह में अड़चने आ रही हों तो शुक्ल पक्ष के गुरुवार के दिन सोने में जड़ित पुखराज पहनना अच्छा होता है. इसे ज्योतिष की सलाह के बाद पहनें. अगर पुखराज नहीं पहन सकते तो हल्दी की गांठ या केले की जड़ को पीले कपड़े में बांधकर दाहिनी भुजा या गले में लॉकेट बनाकर पहनें.इससे गुरु ग्रह मजबूत होगा और विवाह में आने वाली बाधाएं दूर होंगी. 4 आर्थिक स्थिति को मजबूत करने के लिए गुरुवार को गोमती चक्र, कौड़ी, केसर और हल्दी का टुकड़ा इनमें से कोई एक चीज भी आप अपने पर्स में रख सकते हैं. ये वस्तुएं समृद्धि का कारक मानी गईं है. इससे आपके पास पैसों की क

शनि देव

स्वप्न के माध्यम से शनि देव के संकेत.. _ आप सभी सोते समय सपने जरूर देखते होंगे. कई बार इन सपनो में हम अजीब अजीब चीजे देख लेते हैं. ऐसे में कुछ चीजो का सीधा संबंध आपकी जिंदगी से भी होता हैं. आज हम आपको सपने में दिखने वाले कुछ ऐसे संकेतो के बारे में बताएंगे जिन्हें स्वयं शनिदेव अपने भक्तो को दिखा कर किसी चीज के लिए आगाह कर रहे होते हैं। स्वप्न संकेत.. _ 1. यदि आपको सपने में शनिदेव काले भैंसे पर सवार दिखाई दे तो समझ जाइए आपकी जिंदगी में कोई बहुत बड़ी दुर्घटना होने वाली हैं. इस दुर्घटना को टालने के लिए आपको शनि मंदिर में जाकर तिल का तेल अर्पण करना चाहिए. साथी ही आप शनिवार के दिन शनिदेव के नाम का व्रत भी रखे. इसके विपरीत यदि आपको सपने में सिर्फ काला भैंसा दिखाई देता हैं और शनिदेव दिखाई नहीं देते हैं तो समझ जाइए कि ये दुर्घटना आपके साथ नहीं बल्कि आपके किसी करीबी के साथ होने वाली हैं. ऐसी स्थिति में भी आप यही उपाय अपनाकर अपने करीबियों को क्षमा करने की विनती कर सकते हैं. 2. यदि आप सपने में कौआ को दाना चुगते या कोई और भोजन ग्रहण करते हुए देखते हैं तो समझ जाइए कि आपको जल्द ही आर्थिक तंगी से छुटका

रुद्राक्ष* *रुद्राक्षों का महत्व*

*रुद्राक्ष*      *रुद्राक्षों का महत्व* माना जाता है कि एक बार पृथ्वी पर त्रिपुर नामक एक भयंकर दैत्य उत्पन्न हुआ था । वह बहुत बलशाली और पराक्रमी था । देवताओं के लिये  उसे पराजित करना असंभव था ; तब ब्रह्मा, विष्णु और इन्द्र आदि देवता भगवान शिव की शरण में गए और उनसे रक्षा की प्रार्थना करने लगे । भगवान शिव के पास ‘अघोर’ नाम का एक दिव्य अस्त्र था । वह अस्त्र बहुत विशाल और तेजयुक्त था । उसे सम्पूर्ण देवताओं की आकृति माना जाता है । त्रिपुर का वध करने के उद्देश्य से शिव ने नेत्र बंद करके अघोर अस्त्र का चिंतन किया । अधिक समय तक नेत्र बंद रहने के कारण उनके नेत्रों से जल की कुछ बूंदें निकलकर भूमि पर गिर गईं । उन्हीं बूंदों से महान रुद्राक्ष के वृक्ष उत्पन्न हुए । फिर भगवान शिव की आज्ञा से उन वृक्षों पर जो फल लगे उनकी गुठलियों को रुद्राक्ष कहा गया । वैसे भी देखा जाये तो ‘रुद्र’ का अर्थ शिव और ‘अक्ष’ का आँख अथवा आत्मा है । ये रुद्राक्ष अड़तीस प्रकार के कहे गये हैं । माना जाता है कि जो फल शिव प्रभु ने सुर्य के नेत्रों से उत्त्पन करवाये वे  कत्थई रंग के थे और उन के बारह भिन्न-भिन्न प्रकार माने गये ह