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Showing posts from September, 2022

दृष्टि

🌺 #बुध #के #घर #में #सूर्य पर #ग्रहों की #दृष्टि  आज बात करते हैं सूर्य जब #बुध की राशि मिथुन और कन्या में होता है तब उस सूर्य को ग्रहों की दृष्टि से क्या प्रभाव होता है। #चंद्र #की #दृष्टि👉 बुध की राशि में बैठे सूर्य को जब चंद्रमा अपनी सत्तम दृष्टि से देखता है तो ऐसा जातक मित्र और शत्रुओं से परी पीड़ित रहता है प्रदेश में जाने वाला रहता है और सदा उदास होता है #मंगल #की #दृष्टि👉 सूर्य जब बुध के घर में रहता है और मंगल उसके लिए अपनी चतुर्थ अष्टम य सप्तम किसी भी दृष्टि से देखता है तो ऐसा जातक शत्रुओं से भयभीत कलह आदि से युक्त अत्यंत दीन संग्राम में हारने वाला अत्यंत लज्जित और अलसी प्रवृत्ति का होता है #बुध #की #दृष्टि👉 सूर्य और और बुध जैसा कि सभी लोग जानते हैं इन दोनों की युति काफी शुभ होती है इनसे सबसे प्रचलित बुधादित्य योग बनता है। अब बात करते हैं बुध की दृष्टि के तो कभी भी सूर्य को बुध नहीं देखता ना बुध के लिए सूर्य देखता है क्योंकि इनकी दृष्टि केवल सप्तम होती हैं, और यह हमेशा किसी भी कुंडली में आमने सामने नहीं होते हमेशा आसपास होते हैं इसलिए बुध पर यह प्रभाव लागू नहीं होता। #गुरु #

अष्टम भाव और ज्योतिष

अष्टम भाव और ज्योतिष जिंदगी में हमेशा ये होता है कोई नई अतरंगी चीज आती है फिर सबको वही चीज चाहिये होती है और लोग बिना कुछ सोचे-समझे-जाने उसके पीछे भागना शुरू कर देते हैं, जिसकी वजह से कई बार लूट-धोखे आदि का शिकार भी हो जाते हैं और कई बार वास्तविक मूल्य से कई गुना अधिक दाम पर उस चीज को प्राप्त करते हैं। इस बीच यही देखने में आया है कि कई सारे लेखों में पढ़ने को मिला कि आठवां भाव जागृत कीजिए सब ठीक हो जाएगा, ज्योतिषियों से लेकर नए सीखने वालों तक सभी चाहते थे कि उनका अष्टम भाव जागृत हो जाये फिर वो त्रिकालदर्शी बन जायेंगे उन्हें सारी चिंताओं से मुक्ति मिल जायेगी, मुझे लगता है इसमें कुछ चीजें समझने वाली हूं जिन्हें ज्योतिष में रुचि रखने वाले हर व्यक्ति को समझना चाहिए, आठवां भाव यात्रा, आयु, पराविद्याओं एवं शोध आदि का होता है, मान लीजिए आपने कोशिश की और आपका आठवां भाव जागृत हो गया और आप त्रिकालदर्शी बन गए जिसके परिणाम स्वरूप आपको आस-पास ग्रह चलते हुए दिखने लगें, आपको होने वाली अच्छी-बुरी घटनाओं के पूर्वाभास होने लगे तो क्या कमजोर लग्न के साथ कमजोर चन्द्रमा (मन) के साथ आप उसे संभाल पायेंगे ? क

उचित रत्नों का चुनाव और सफलता

उचित रत्नों का चुनाव और सफलता 💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐 कर्कलग्न में जन्मा एक व्यक्ति मेरे पास आया । उसकी जन्मकुण्डली में चन्द्रमा 11 th स्थान में पड़ा था एवं मंगल पनचं स्थान में पड़ा था । गुरु आठवें स्थान में था । जातक को कोई भी प्रयत्न करने पर उसका फल नहीं मिल रहा था । धन की बड़ी भारी समस्या थी । नौकरी नहीं मिल रही थी । आर्थिक स्थिति विकट थी । जातक मानसिक रूप से भी बहुत परेशान था । स्वतन्त्र रूप से कई रत्न पहनने पर कर्कलग्न कोई काम नहीं कर रहा था । 👍मानसिक परेशानी कम करने के लिए मोती पहनाना बहुत जरूरी था । किसी ने पुखराज उसे पहना रखा था पर उसे पहनने के बाद तो जातक और अधिक परेशानियों में उलझता जा रहा था । ऐसा स्वभाविक भी था क्योंकि कर्क लग्न वालों के लिए गुरु 6th Lord होता है । षष्ठेश होने से उसका रत्न पहनना लाभकारी हो ही नहीं सकता ।मैंने पुखराज रत्न को निकालने को कहा / 👌फिर मैंने इस व्यक्ति को लग्नेश चन्द्र का रत्न मोती ' एवं कर्कलग्न वाले परमयोग कारक ग्रह मंगल का मूंगा संयुक्त रूप में ' बीसा यन्त्र ' में जड़वा कर गले में धारण कराया ।  क्योंकि इन ग्रह स्थितियों में लग्नेश एव

चन्द्र शनि

ॐ गं गणपतये नमः 🙇🙇 चन्द्र शनि का सम्बंध जानिए कैसे जीवन को उथल पुथल करता है।। *** जब भी चन्द्र शनि के सम्पर्क में आता है तो जातक वहमी शक्की मिजाज हो जाता है।। रातों की नींद छीन लेता है शनि और चन्द्र देव का आपसी सम्बन्ध ।। चन्द्र जोकि सौम्यता का प्रतीक है ।। चन्द्र ही तो हमारा मन है ।। चन्द्र ही माता है जिन बच्चों की माँ बचपन मे ही छोड़कर चली जाए समझ जाएं उनका चन्द्र पीड़ित है।। चन्द्र मंगल की वृश्चिक राशि मे नीचत्व महसूस करते हैं।। जब चन्द्र मंगल शनि के सम्पर्क में किसी भी प्रकार से आये तब जातक कितनी कड़वी बात बोलता है दूसरे के मनोस्थिति को जाने बिना की उसकी बातों का उसपर कितना गहरा प्रभाव होगा सोचता तक नही उसे सिर्फ अपनी बात ही बड़ी रखनी है वो ही एक सत्यवादी होता है बाकी सब झूठे।। शनि देव के चित्र को ध्यान पूर्वक देखिए धुंए के छल्ले बने हुए हैं ।। धुंआ क्या है राहु जब चन्द्र शनि के प्रभाव में आता है तो जातक भृम की स्तिथि में होता है।।जब पूर्ण शनि के प्रभाव में चन्द्र देव आते हैं तो भंयकर मन को प्रताड़ित करते हैं।। जीवन की हर खुसी और दुख का उपभोग हमारे मन पर निर्भर करता है।। जब मन दुखी हो

मंगल शुक्र

मंगल शुक्र मंगल आपकी वीर्य शक्ति है...आपका ओज है...आपका साहस है....आपकी प्रजनन क्षमता है...शुक्र आपका रस है..आपका वीर्य है...आपका आकर्षण है...आपका भोग है...आपकी सुन्दरता है... मंगल से आप पैदा होते हो यानी लग्न यानी मेष राशी......शादी के बाद आपका परिवार पनपता है तो दुसरे भाव का निर्माण होता है...यानी वृषभ राशी... और आपके ठीक सामने तुला राशि है जो स्त्री का रूप लिए आको आकर्षित करती रहती है...उसके ठीक बाजू मे वृश्चिक राशी होती है जो फिर मंगल की राशी है गुप्त या जननांगो की राशी है....मतलब देह बना के आपने उसका उपयोग सामने भोग और परिवार बढ़ने मे किया...यही तो क्रिया चलती रहती है जीवन और मृत्यु की.... मंगल रज है स्त्री का और शुक्र वीर्य है पुरुष का इन दोनो के मिलन से आपके लग्न का निर्माण होता है...या निषेक लग्न का निर्माण होता है..मतलब मंगल और शुक्र आपकी उत्पत्ति का कारण है... अब देखिये विपरीत भाव का आकर्षण फिर यहाँ काम आ गया..मंगल की कमजोरी शुक्र और शुक्र की कमजोरी मंगल...दोनो आमने सामने...दोनो प्रतिद्वंदी....और दोनो का एक दुसरे के बिने काम न सरे..ये मंगल पुरुष मे उर्जा पैदा करता है और स

वात दोष

*आयुर्वेद में प्राकृतिक चिकित्सा का महत्व* *परिचय- आयुर्वेद के अनुसार किसी भी तरह के रोग होने के 3 कारण होते हैं-* *1. वात:- शरीर में गैस बनना।* *2. पित्त:- शरीर की गर्मी बढ़ना ।* *3. कफ:- शरीर में बलगम बनना।* *नोट:- किसी भी रोग के होने का कारण एक भी हो सकता है और दो भी हो सकता है या दोनों का मिश्रण भी हो सकता है या तीनों दोषों के कारण भी रोग हो सकता है।*   *1. वात होने का कारण* गलत भोजन, बेसन, मैदा, बारीक आटा तथा अधिक दालों का सेवन करने से शरीर में वात दोष उत्पन्न हो जाता है। दूषित भोजन, अधिक मांस का सेवन तथा बर्फ का सेवन करने के कारण वात दोष उत्पन्न हो जाता है। आलसी जीवन, सूर्यस्नान, तथा व्यायाम की कमी के कारण पाचन क्रिया कमजोर हो जाती है जिसके कारण वात दोष उत्पन्न हो जाता है। इन सभी कारणों से पेट में कब्ज (गंदी वायु) बनने लगती है और यही वायु शरीर में जहां भी रुकती है, फंसती है या टकराती है, वहां दर्द होता है। यही दर्द वात दोष कहलाता है। *2. पित्त होने का कारण* पित्त दोष होने का कारण मूल रुप से गलत आहार है जैसे- चीनी, नमक तथा मिर्चमसाले का अधिक सेवन करना। नशीली चीजों तथा दवाईयों का अ

जेल यात्रा

#जेल_यात्रा योग, निवारण उपाय - ज्योतिष कारण, उपाय किसी भी कुंडली में सितारों की स्थिति ये भी बता देती है कि जेल यात्रा के योग है या नहीं ? जी हाँ, कुंडली में सूर्य, शनि, मंगल और राहु-केतु जैसे पाप ग्रह बता देते हैं कि आपकी कुंडली में जेल जाने के योग है या नहीं। अगर किसी की कुंडली के छठें आठवें या बारहवें भाव में पाप ग्रह होते है तो ऐसे लोगों को जीवन में एक न एक बार जेल यात्रा करनी पड़ती है। कुंडली के छठे आठवें और बारहवें भाव से जेल जाने के योग बनते हैं।  कब बनते हैं जेल जाने के योग? - कुंडली के बारहवें भाव से भी कारावास का विचार किया जाता है। कुंडली के इस घर में वृश्चिक या धनु राशी का राहु हो तो उसके अशुभ प्रभाव के कारण व्यक्ति को किसी बड़े अपराध के कारण जेल जाना पड़ता है। - कुंडली के बारहवें घर में वृश्चिक राशी होने के साथ अगर राहु और शनि होते है तो कोर्ट कचहरी के मामलों में हारने के बाद जेल जाना पड़ता है। - कर्क राशी स्तिथ मंगल कुंडली के छठे घर में होने से जेल यात्रा के योग बनाता है। - अगर कुंडली में मंगल और शनि एक दूसरे को देख रहें हो तो लड़ाई झगड़े के कारण व्यक्ति को जेल जाना पड़ेग

पिछले जन्म में हम क्या थे अथवा क्या कर्म किये???

पिछले जन्म में हम क्या थे अथवा क्या कर्म किये??? ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जब भी कोई जातक पैदा होता है तो वह अपनी भुक्त और भोग्य दशाओं के साथ पिछले जन्म के भी कुछ सूत्र लेकर आता है। ऐसा कोई भी जातक नहीं होता है, जो अपनी भुक्त दशा और भोग्य दशा के शून्य में पैदा हुआ हो। ज्योतिष धारणा के अनुसार मनुष्य के वर्तमान जीवन में जो कुछ भी अच्छा या बुरा अनायास घट रहा है, उसे पिछले जन्म का प्रारब्ध या भोग्य अंश माना जाता है। पिछले जन्म के अच्छे कर्म इस जन्म में सुख दे रहे हैं या पिछले जन्म के पाप इस जन्म में उदय हो रहे हैं, यह खुद का जीवन देखकर जाना जा सकता है। हो सकता है इस जन्म में हम जो भी अच्छा या बुरा कर रहे हैं, उसका खामियाजा या फल अगले जन्म में भोगेंगे या पाप के घड़े को तब तक संभाले रहेंगे, जब तक कि वह फूटता नहीं है। हो सकता है इस जन्म में किए गए अच्छे या बुरे कर्म अगले जन्म तक हमारा पीछा करें। कुछ ज्योतिषीय सूत्र है जिससे हम अनुमान लगा सकते है पिछले जन्म में हम क्या थे अथवा क्या कर्म किये... 1. ज्योतिष के अनुसार जातक के लग्न में उच्च या स्वराशि का बुध या चंद्र स्थिति हो तो यह उसके पूर्व जन्म

वैदिक ज्योतिष में ज्योतिषीय गणना और सेक्स

💐💐💐💐💐💐💐💐💐 वैदिक ज्योतिष में ज्योतिषीय गणना और सेक्स 🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺 किसी जातक की कुंडली में sax के योग यदि हैं, तो उस योग को बनाने वाले ग्रह जातक को सामान्य से अधिक कामुक sexy होने का संकेत देते हैं – 1. किसी भी जातक की लग्न कुंडली में मंगल+शुक्र की युति काम वासना Sax को उग्र कर देती है, जन्म के ग्रह जन्मजात प्रवृति की ओर इशारा करते हैं, और वह जातक इस के प्रभाव से आजीवन प्रभावित-संचालित होता है। किसी व्यक्ति में इस भावना का प्रतिशत कम हो सकता है, और किसी में ज्यादा हो सकता है। ज्योतिष के विश्लेषण के अनुसार यह पता लगाया जा सकता है की जातक में काम भावना saxy किस मात्रा में विद्यमान है। लग्न / लग्नेश : 1. यदि लग्न और बारहवें भाव के स्वामी एक हो कर केंद्र /त्रिकोण में बैठ जाएँ या एक दूसरे से केंद्रवर्ती हो या आपस में स्थान परिवर्तन कर रहे हों तो पर्वत योग का निर्माण होता है । इस योग के चलते जहां व्यक्ति भाग्यशाली , विद्या -प्रिय ,कर्म शील , दानी , यशस्वी , घर जमीन का अधिपति होता है, वहीं अत्यंत कामी और कभी कभी पर स्त्री गमन call Gerl करने वाला भी होता है । 2. यदि लग्नेश सप्तम स

शुक्र

शुक्र यदि इन नक्षत्र हो【अश्वनि,कृतिका,पुष्य,स्वाति रेवती 】 ■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■ ★शुक्र लक्ष्मी वैभव का कारक ग्रह है, जो अपार सम्पत्ति, शुख और लक्सरी लाइफ देता है। शुक्र इसी प्रकार अश्विनी , कृतिका , पुष्य , स्वाति या रेवती में शुक्र की अच्छी स्थिति होने पर भी जातक पर बहुत कृपा होती है और जातक राजा की तरह जीवन व्यतीत करता है .   ★ कृत्तिकारेवतीस्वतीपुष्प्यस्थिति भृगोः सुत:।      करोति भूभुजां नाथमश्विन्याम पिथिति ॥  148  सारावली :   Example  1】मुकेश अंबानी का शुक्र 7°23' अश्विनी में सातवें घर में है।   2】दादा साहेब फाल्के, शुरुआती फिल्म निर्माताओं में से एक।  उनके नाम पर एक प्रतिष्ठित सिने पुरस्कार रखा गया है।  उनकी कुण्डली में शुक्र 00°25' अश्विनी में नौवें भाव में है।  उन्होंने अपनी शुक्र दशा के दौरान अपने क्षेत्र में नई ऊंचाइयों को छुआ।   3】राजकुमारी डायना का शुक्र 00°57' कृतिका में 7वें भाव में था।  शाही परिवार में शादी की। 4】 राहुल गांधी का शुक्र दूसरे भाव में पुष्य में 9°13' है।   5】अनिल अंबानी - शुक्र पुष्य में 04°20'' सातवें भाव में।   6】जे जयललिता,

new moon

✨New Moon in Virgo {Stellium} ✨In Uttara Phalguni Nakshatra We’re going to witness a powerful New Moon in Virgo at 9’47’’ degrees of Uttara Phalguni Nakshatra. This is a “Stellium New Moon”, which means there is a cluster of planets sitting in the same sign, coincidently, all of them are in Uttara Phalguni Nakshatra. ✨*Disclaimer This article is based on personal observation and research. The actual result will vary depending on your chart and the dynamic of other planets. Do not jump to conclusions, judge wisely. ✨The overall energy of the New Moon in Virgo As we all know, Mercury at the moment is retrograding in the sign of Virgo, and Venus is also in the Virgo sign for the next 1 month. We will witness a strong Virgo energy in the next few 2 weeks. Uttara Phaguni is a nakshatra of “Get things done”, in a sense, it’s the most practical nakshatra in the star constellation denotes service, commitments, and taking care of other's vial rules and regulations. Aryaman, the deity of Utt

नोकरी

*ज्योतिष के अनुसार आपके लिए क्या और कौन सा नौकरी और व्यवसाय, व्यापार सही होगा ?  जन्मांग चक्र का दशम भाव कर्म भाव कहा जाता है। इसके स्वामी को दशमेश या कर्मेश कहा गया है। दशम भाव से व्यक्ति का विचार किया जाता है। अर्थात् व्यक्ति सरकारी नौकरी करेगा अथवा प्राइवेट, या व्यापार करेगा तो कौन सा, उसे किस क्षेत्र में अधिक सफलता मिलेगी। आज अधिकांश लोग अपनी आजीविका से संतुष्ट नहीं हैं, उनका कार्यक्षेत्र या कर्म का प्रकार उनके मन के अनुकूल नहीं है। अब प्रश्न उठता है कि ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मनोनुकूल कार्य कौन सा हो सकता है, उसका निर्धारण कैसे हो? मन का स्वामी चंद्र जिस राशि में हो उस राशि से स्वामी ग्रह की प्रकृति के आधार पर या चंद्र से उसके युति अथवा दृष्टि संबंध के आधार पर यदि कोई व्यक्ति अपनी आजीविका (व्यापार नौकरी) का चयन करता है अथवा कार्यरत है तो वह कैरियर उसके मन पसंद का होगा।   जन्मकुंडली में कोई ग्रह जब लग्नेश, पंचमेश या नवमेश होकर दशम भाव में स्थित हो, या दशमेश होकर किसी भी त्रिकोण (1, 5, 9 भावों) में, या अपने ही स्थान में स्थित हो तो व्यक्ति की आजीविका के पर्याप्त साधन होते हैं। वह

दशम भाव

जय श्री बालाजी दसम भाव और ग्रह दसम भाव कर्म भाव के रूप में मुख्यतया जाना जाता है। कर्म जो हम करने के लिए पैदा हुए है। कर्म जिनके किये बिना हम एक क्षण भी नही रह सकते। दसम भाव जिसका सीधा प्रभाव लग्न पे होगा। दसम भाव जो बताएगा कि आप किस तरह के कर्मो के लिए पैदा हुए हो। दसम भाव को 4 ग्रह दिए गए है। बुध, गुरु, सूर्य, शनि। सूर्य तो आत्मविश्वास और मान सम्मान का कारक वैसे ही है। बुध जो वाणी और धन और ग्रहण करने की क्षमता है जो बताएगा कि आप अपने कर्म क्षेत्र में कितने दक्ष हो। गुरु तो समझदारी ओर सोचने की क्षमता है उसके बिना आप कर्म कैसे करोगे। शनि तो कर्म है ही। गंभीरता है ही। तो इस तरह इन चारों ग्रहों को दसम का कारकत्व दे दिया गया। दसम में सूर्य मंगल दिग्बली होते है। दोनो ही बड़ा शुभ फल देते है। मंगल कुलदीपक योग बनाता है। सूर्य तो मान सम्मान राज्य कृपा दिलाने की पूरी कोशिश करता है।   दसम भाव मे राहु बड़ा गजब फल देता है। मिथुन कन्या का तो सुपर डुपर।  तो इस तरह दसम भाव बाहत सारे ग्रहों का प्रभाव दर्शाता है। केंद्र में सबसे बलि होता है। शायद इसलिए इसकी इतनी महत्ता गाई गयी है। यही दसम भलव मृत्यु का व

मंगल दोष

★  मांगलिक कितना अमंगल ★ =======================       मंगलीक दोष के भयंकर प्रचार को देखते हुए सामान्य व्यक्ति तो यह कल्पना भी नहीं कर सकता कि मंगलीक दोष हमारे आर्ष ग्रन्थों में इस रूप में वर्णित नहीं है । पता नहीं , किस शुभ व दीर्घायु प्रद मुहूर्त में किसी ने इसे नाम दिया कि यह मिटाए नहीं मिटता ।          सभी ज्योतिष ग्रन्थों में सिरमौर ' पाराशर होराशास्त्र " माना जाता है । एक श्लोक मिलता है जो वर्तमान प्रचलित सम्बद्ध श्लोक से अर्थानुसार साम्य रखता है । श्लोक इस प्रकार है  लग्ने व्यये सुखे वापि सप्तमे वाष्टमे कुजे ।  शुभदृग्योगहीने च पतिं हन्ति न संशयः ।।  वर्तमान प्रचलित श्लोक इस प्रकार है  लग्ने व्यये च पाताले जामित्रे चाष्टमे कुजे ।  कन्याभर्तृविनाशाय भर्ता पत्नी विनाशकृत् ।।   तो आशय यह है कि वर -  ★कन्या की कुण्डली में 1 , 12 , 4 , 7 , 8 भावों में मंगल हो तो परस्पर दोषाधायक होता है ।  आप देख रहे हैं कि पाराशर श्लोक में जहां उक्त स्थानों में स्थित मंगल को दोषकारक माना गया है । जब वह शुभग्रहों से युत या दृष्ट न हो , वहीं बाद वाले श्लोक से यह महत्त्वपूर्ण बात बिल्कुल गायब ह

शनि

अपनी आदतों से जानें शनिदेव की कितनी कृपा है आप पर जानें शनिदेव की कितनी कृपा है आप पर आपकी आदतें और शनिदेव की कृपा सूर्य के पुत्र शनि उन ग्रहों में से हैं जिनकी क्रूर दृष्टि किसी को बर्बाद कर सकती है, लेकिन उनकी अच्छी दृष्टि अगर किसी पर एक बार पड़ जाए तो उसके सारे काम बन जाते हैं और उसके घर कभी दरिद्रता नहीं आती। सूर्य के पुत्र हैं शनि शनिदेव सूर्य से काफी दूरी पर हैं और यही कारण है कि शनि प्रकाशहीन हैं। भगवान शनि के प्रकाशहीन होने की वजह से कई लोग उन्हें निर्दयी, क्रोधी, भावहीन और उत्साहहीन भी मान लेते हैं लेकिन वो ये नहीं जानते कि शनि अगर किसी से प्रसन्न होते हैं तो उसे वैभव और धन से भर देते हैं। शनि की नाराजगी मतलब आफत शास्त्रों के मुताबिक शनि का अप्रसन्न होने का अर्थ है मुसीबतों का मार्ग खुलना, लेकिन कैसे जानें कि शनि आपसे प्रसन्न हैं या अप्रसन्न? आपको जानकर हैरानी होगी कि रोजाना जीवन में आपकी कुछ आदतों से पता चलता है कि शनि भगवान आप पर प्रसन्न हैं। किससे होंगे शनिदेव प्रसन्न ? जी हैं, ये कुछ ऐसी आदतें हैं जो इस बात का इशारा करती हैं कि शनि की कृपा आप पर अभी है और उनकी कृपा से आप आ

moon

💖Moon Effect On Relationship 💖A glimpse on compatibility/Synastry Relationship compatibility is one of the most complex topic in astrology, as it’s a combination of two charts and energies merged together to create something new in life. Today, we’re going to tap into one of the easiest techniques in compatibility/Synastry. Before you read… Please be mindful that Compatibility/Synastry is a vast topic and many aspects should be taken into consideration before jumping to a conclusion. One bad aspect does not mean the relationship will fall, either one great aspect means the connection will work out. Therefore, judge wisely. Please consult a professional astrologer for Kundli matching. Always remember that we meet certain people due to the karmic contract we have with them. In most cases, compatibility could be not useful and helpful. Follow your heart and believe that God will bring to people that align with your soul path. 💖Understanding Moon in Relationship Moon signifies emotion,

नोकरी

🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀 ज्योतिष में इन पांच कारणों से आती है नौकरी-बिजनेस में बाधा,आप कर सकते हैं ये उपाय 🍃🍃🍃🍃🍃🍃🍃🍃🍃 व्यक्ति की कुंडली का 10वां भाग करियर का खाना होता है। जो करियर का नेतृत्व करता है। कुछ लोगों को नौकरी मिलने में बाधा होती है तो कुछ को नौकरी मिलने के बाद कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। कई बार ऐसा कुंडली में मौजूद ग्रहों की गलत दशाओं के कारण होता है। कुंडली देखकर पता किया जा सकता जा सकता है लोगों को नौकरी में परेशानियां क्यों आती है। इससे बचने के लिए ज्योतिषी उपाय किये जा सकते हैं। वहीं कुछ लोगों को कारोबार में परेशानी का सामना करना पड़ता है। आइए जानते हैं किन वजहों से आती है नौकरी और कारोबार में बाधा- ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक व्यक्ति की कुंडली का 10वां भाग करियर का खाना होता है। जो करियर का नेतृत्व करता है। व्यक्ति कैसा करियर चुनेगा, उसे करियर में सफलता मिलेगा या नहीं यह कुंडली के 10वें भाव पर निर्भर करता है। वहीं नौकरी कैसे चलेगी इसके लिए कुंडली का 6वां भाव जिम्मेदार होता है। इससे जॉब में चल रही हर हलचल का पता लगाया जाता है। जिन लोगों की कुंडली के 10व

राहु 12वें भाव में

राहु  12वें भाव में कुण्डली में राहु-केतु परस्पर 6 राशि और 180 अंश की दूरी पर दृष्टिगोचर होते हैं जो सामान्यतः आमने-सामने की राशियों में स्थित प्रतीत होते हैं। कुण्डली में राहु यदि कन्या राशि में है तो राहु अपनी स्वराशि का माना जाता है।   कुण्डली में राहु यदि वृष राशि मे स्थित है तब यह राहु की उच्च स्थिति होगी। मतान्तर से राहु को मिथुन राशि में भी उच्च का माना जाता है। कुण्डली में राहु वृश्चिक राशि में स्थित है तब वह अपनी नीच राशि में कहलाएगा। मतान्तर से राहु को धनु राशि में नीच का माना जाता है। लेकिन यहां राहु के बारहवें घर में होने या मंदा होने पर क्या सावधानी रखें, जानिए। कैसा होगा जातक : 'गप्पबाज या शेखचिल्ली' जैसा बुध का असर वैसा ही राहु का असर। मंगल यदि साथ बन रहा है तो शुभ होगा। ससुराल की हालत अच्छी होगी। बारहवां घर बृहस्पति से संबंधित होता है इसलिए यह शयन सुख का घर है लेकिन यदि यहां स्थित राहु अशुभ है तो मानसिक परेशानियां और अनिद्रा देगा। यदि राहु शत्रु ग्रहों के साथ हो तो आप कितनी भी मेहनत कर लें आपके खर्चे आपकी आमदनी से अधिक ही रहेंगे। किसी भी नए काम की शुरुआत

सूर्य केतु

सूर्य केतु की युति और केतु की अनिष्ट दशा से बचाव हेतु कुछ आसान उपाय  ************************************************ सूर्य केतु की युति होने पर सूर्य ग्रहण के समय तिल,नींबू,पका केला बहते पानी जैसे नदी नहर में बहायें। बारहवे भाव के केतु के लिये बारह पीले रंग की पताकायें यानी पीले रंग का झंडा बारह बार धर्म स्थान पर लगाना यदि केतु रोग कारक हो तो रोग ग्रस्त जातक स्वयं अपने हाथों से कम से कम 7 बुधवार भिक्षुकों भिखारीयों को हलुआ वितरण करे तो लाभ होगा। केतु की शांति के लिए नवरात्रि में छिन्न्मस्तादेवी का 9 दिनी अनुष्ठान कराएं। केतु महादशा उपाय अगर आप केतु की महादशा से पीड़ित हैं तो ऊपर बताये गए उपायों में से जो आप सहजता से कर सकें वो करें। भगवान् गणेश का एक लॉकेट अपने गले में इस तरह धारण करें की वो हमेशा आपके ह्रदय के पास रहे। प्रतिदिन गणेश जी पूजा करनी चाहिए और हो सके तो गणपति जी को लड्डू का भोग लगाना चाहिए. 9 साल से छोटी कन्याओं को भोजन करवाकर दक्षिणा सहित विदा करना चाहिए. ऊपर बताये गए उपायों के अलावा महादशा-अन्तर्दशा के कुछ और उपाय निम्न प्रकार करें। ध्यान रहे इनके साथ केतु के सामान्य उपा

सूर्य

ॐ भास्कराय नमो नमः शास्त्र में सूर्य को नवग्रहों का राजा कहा गया है। जिस प्रकार सूर्य के प्रकाश के अभाव में धरती पर अंधकार छा जाता है, ठीक उसी प्रकार किसी मनुष्य की जन्मकुंडली में सूर्य कमजोर हो तो व्यक्ति के जीवन में अंधकार छा जाता है। यानी वह व्यक्ति सफलताओं, मान-सम्मान, पद-प्रतिष्ठा से वंचित रहता है। सूर्य कमजोर हो तो व्यक्ति कई तरह के शारीरिक रोगों से ग्रसित रहता है। हृदय और नेत्र संबंधी रोगों से जीवनभर परेशान रहता है। ज्योतिष में कमजोर सूर्य को मजबूत बनाने के कई उपाय बताए गए हैं उनमें से सबसे प्रबल उपाय है सूर्य यंत्र की पूजा। सूर्य यंत्र की स्थापना करके आप जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलता हासिल कर सकते हैं। इसकी पूजा से आपकी सफलता की सीढ़ी साथ नहीं छोड़ेगी। कब करें सूर्य यंत्र की स्थापना रविवार भगवान सूर्यदेव का दिन है। सूर्य यंत्र की स्थापना भी रविवार के दिन की जाती है। इसके लिए किसी भी रविवार के दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान करके स्वच्छ श्वेत वस्त्र धारण करें। अपने पूजा स्थान में सफाई करके, पोछा लगाकर शुद्ध श्वेत आसन बिछाकर पूर्व दिशा की ओर मुंह करके बैठ जाएं। इसके बाद पहले

कुंडली

🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥 ज्योतिष में ऐसा लोगों की किस्मत अचानक पलटती है 💥💥💥💥💥💥💥💥💥 1- अचानक किस्मत बदलने वाले योग कहते हैं समय से पहले और भाग्य से ज्यादा किसी को कुछ नहीं मिलता। अगर आपकी किस्मत में कुछ नहीं है तो उसे पाने के आप कितने भी जतन करें लेकिन नहीं मिलेगा। किस्मत के ये हाल कुंडली में दर्ज होते हैं जिन्हें समझकर आप अपने भाग्य की दशा भी आसानी से समझ सकते हैं। कई कुंडली में अचानक किस्मत बदलने वाले योग होते हैं, जो आपकी सोच से कहीं बढ़कर अचानक लाभ देते हैं। 2 अचानक किस्मत बदलने वाले योग कई बार आपने देखा होगा कि अचानक कोई एकदम नॉर्मल लाइफ से हाई-फाई लाइफ में पहुंच जाता है, तो कोई सफलता की ऊंचाइयों से एकदम नीचे पहुंच जाता है। यह सब आपकी कुंडली की दशाओं का ही चमत्कार होता है। 3 अचानक किस्मत बदलने वाले योग अचानक किस्मत बदलने वाले जिन योगों की चर्चा आगे हम यहां कर रहे हैं वो कई प्रकार से कार्य करते हैं, हो सकता है वो आपको अचानक लॉटरी लगाकर धनवान बना दे, या किसी के प्रभाव से अचानक समाज में प्रतिष्ठा दिला दे।  इन्हें मुख्य रूप से तीन भागों में बांट सकते हैं – सामाजिक, आर्थिक और शारीरिक।

guru

👌गुरु के आगे और पीछे के ग्रह भी अपना अपना असर देते है💞💞💞💞💞 🙏गुरु के आगे और पीछे के ग्रह भी अपना अपना असर देते है गुरु के पीछे के ग्रह गुरु को बल देते है और आगे के ग्रहों को गुरु बल देता है,जैसी सहायता गुरु को पीछे से मिलती है वैसी ही सहायता गुरु आगे के ग्रहो को देना शुरु कर देता है,यही हाल गोचर से भी देखा जाता है,गुरु के पीछे अगर मंगल और गुरु के आगे बुध है तो गुरु मंगल से पराक्रम लेकर बुध को देना शुरु कर देगा,अगर मंगल धर्म मय है तो बुध को धर्म की परिभाषा देना शुरु कर देगा और और अगर मंगल बद है तो गाली की भाषा देना शुरु कर देगा,गुरु के पीछे शनि है तो जातक को घर में नही रहने देगा और गुरु के आगे शनि है तो गुरु घर बाहर निकलने में ही डरेगा। गुरु के आगे शनि जातक को जीवन जीने के लिये पहाड सा लगेगा और गुरु के पीछे शनि वाला जातक जीवन को समझ ही नही पायेगा कि जीवन कब शुरु हुआ और कब खत्म होने के लिये आगया। गुरु के आगे चन्द्रमा होता है तो जातक को माता के साथ पब्लिक भी साथ देती है,और गुरु के पीछे चन्द्रमा होता है तो जातक को माता और पब्लिक ही आगे बढने के लिये कहती है तथा वह अपने कामो के कारण मा

कुंडली में सूर्य शनि की युति

कुंडली में सूर्य शनि की युति सूर्य-शनि युति प्रतियुति जीवन को पूर्णत: संघर्षमय बनाते हैं। विशेषत: जब यह युति लग्न, पंचम, नवम या दशम में हो व दोनों (सूर्य-शनि) में से कोई ग्रह इन भावों का कारक भी हो तो यह योग जीवन में विलंब लाता है। बेहद मेहनत के बाद, समय बीत जाने पर सफलता आती है।   सूर्य और शनि पिता-पुत्र होने पर भी परस्पर शत्रुता रखते हैं। वैसे भी प्रकृति का विचार करें तो ज्ञान और अंधकार साथ मिलने पर शुभ प्रभाव अनुभूत नहीं होते। सूर्य-शनि युति प्रतियुति जीवन को पूर्णत: संघर्षमय बनाते हैं। विशेषत: जब यह युति लग्न, पंचम, नवम या दशम में हो व दोनों (सूर्य-शनि) में से कोई ग्रह इन भावों का कारक भी हो तो यह योग जीवन में विलंब लाता है। बेहद मेहनत के बाद, समय बीत जाने पर सफलता आती है। पिता-पुत्र में मतभेद हमेशा बना रहता है और दूर रहने के भी योग बनते हैं। सतत संघर्ष से ये व्यक्ति निराश हो जाते हैं, डिप्रेशन में भी जा सकते हैं। यदि शनि उच्च का हो व कारक हो तो 36वें वर्ष के बाद, अपनी दशा-महादशा में सफलता जरूर देता है। यह युति होने पर व्यक्ति को सतत परिश्रम के लिए तैयार रहना चाहिए, पिता से मतभेद ट

ग्रह पीड़ा निवारण और जड़ें

ग्रह पीड़ा निवारण और जड़ें जब आप किसी ग्रह की पीड़ा निवारण के लिए उपासना नहीं कर सकते,रत्न पहनना आपकी सामर्थ्य में नहीं हैं,उपरत्न भी क्रय नहीं कर सकते हैं और यन्त्र बना नहीं सकते हैं तो ऐसे में निराशा आप पर हावी होने लगती है आपको कोई उपाय नहीं सूझता हैं| ऐसे में आप कुछ विशिष्ट वनस्पतियों की जड़ों (मूल) को धारण करके ग्रह की पीड़ा शांत कर सकते हैं| आपको तो यह पता होना चाहिए कि कौन से ग्रह के लिए किस वनस्पति की मूल (जड़) प्रभावशाली रहेगी|    यह जान लें कि यह जड़े उतना ही प्रभाव दर्शाती हैं जितना कि एक रत्न|               कौन से ग्रह के लिए कौन सी जड़ पहनें अब बताते हैं कि किस ग्रह के लिए किस जड़ को प्रयोग में लाते हैं|     ग्रह              जड़       सूर्य           बेल   चन्द्र           खिरनी   मंगल           अनंत मूल   बुध           विधारा   गुरु           हरिद्रा,भारंगी या केले की मूल   शुक्र           सरपोंखा (सिंह पुच्छ)या अरण्ड मूल   शनि           बिच्छु(हत्था जोड़ी)   राहु           श्वेत चन्दन मूल   केतु           अश्वगंधा की जड़    जड़ी प्राप्त करने की रीति  जिस दिन जड़ी लानी हो,उससे पूर्व द

भरणी

2- भरणी ( MUSCA ) 🔹स्वामी – शुक्र 🔹देवता – यम 🔹वृक्ष - केला , आंवला 🔹अक्षर – ली , लू , ले , लो ऐसे व्यक्ति दृढ़ निश्चयी ,  वचन के पक्के ,  काम को धून  से पूरा करने वाले  , स्वस्थ , सदाचारी , सुखी होते हैं  । जिस काम का बीड़ा उठा ले उसे पूरा करके ही चैन  लेते हैं  । काम को शीघ्र  समयबद्ध पद्धति से पूरा करना इनका गुण होता है  ( वराह ) कम खाने वाले होते हैं  । इनका शरीर स्वस्थ होता है  । साथ ही यह लोग प्रेम करने में बड़े प्रबल विदग्ध  लोगों के समान आचरण करने वाले और आकर्षक व्यक्तित्व के धनी होते हैं ( नारद ) इनका स्वभाव कुछ ऐसा होता है कि यह अपने व्यवहार से कुछ बदनाम भी होते हैं और मनोविनोद के कामों में इनका मन अधिक रमता है ।  इनकी प्राकृतिक में शीघ्र सफलता पाने की लालसा रहती है  । यह लोग प्रायः पानी से डरते हैं  । सुरा सुंदरी के प्रयोग से भी इन्हें परहेज नहीं होता है  । भरनी नक्षत्र पर कुप्रभाव हो तो जातक झूठ बोलने वाला ,  सध्य पर दृष्टि रखने वाला  , साधनों की पवित्रता पर कम ध्यान देने वाला ,  कई पुत्रों का पिता व दूसरों के धन निकलवाने में माहिर होते हैं  । व्यवहार से यह शत्रु भी अधि

शुक्र यदि इन नक्षत्र हो【अश्वनि,कृतिका,पुष्य,स्वाति रेवती 】

शुक्र यदि इन नक्षत्र हो【अश्वनि,कृतिका,पुष्य,स्वाति रेवती 】 ■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■ ★शुक्र लक्ष्मी वैभव का कारक ग्रह है, जो अपार सम्पत्ति, शुख और लक्सरी लाइफ देता है। शुक्र इसी प्रकार अश्विनी , कृतिका , पुष्य , स्वाति या रेवती में शुक्र की अच्छी स्थिति होने पर भी जातक पर बहुत कृपा होती है और जातक राजा की तरह जीवन व्यतीत करता है .   ★ कृत्तिकारेवतीस्वतीपुष्प्यस्थिति भृगोः सुत:।      करोति भूभुजां नाथमश्विन्याम पिथिति ॥  148  सारावली :   Example  1】मुकेश अंबानी का शुक्र 7°23' अश्विनी में सातवें घर में है।   2】दादा साहेब फाल्के, शुरुआती फिल्म निर्माताओं में से एक।  उनके नाम पर एक प्रतिष्ठित सिने पुरस्कार रखा गया है।  उनकी कुण्डली में शुक्र 00°25' अश्विनी में नौवें भाव में है।  उन्होंने अपनी शुक्र दशा के दौरान अपने क्षेत्र में नई ऊंचाइयों को छुआ।   3】राजकुमारी डायना का शुक्र 00°57' कृतिका में 7वें भाव में था।  शाही परिवार में शादी की। 4】 राहुल गांधी का शुक्र दूसरे भाव में पुष्य में 9°13' है।   5】अनिल अंबानी - शुक्र पुष्य में 04°20'' सातवें भाव में।   6】जे जयललिता,

Effect of planet Ketu on human life-

Effect of planet Ketu on human life-  1. The planet Ketu has no fixed zodiac sign.  In such a situation, the zodiac in which Ketu transits gives results accordingly.  Therefore, the first house of Ketu or the fruit in the Ascendant is affected by the zodiac sign located there.  Due to its effect, the person likes to be alone, but if there is a Scorpio in the ascendant house, then the person gets to see its positive results.  2. If Ketu is in the third, fifth, sixth, ninth and twelfth house in the horoscope of a person, then the person gets good results to a great extent.  3. If Ketu makes a conjunction with the planet Jupiter, then Raja Yoga is formed by its effect in the person's horoscope.  4. If Ketu is strong in the horoscope of the native, then it makes the person's legs strong.  The native does not have any disease related to the feet.  The combination of Ketu with auspicious Mars gives courage to the native.  5. Due to the debilitated Ketu in the horoscope, the person ha

इंदू लग्न और होरा कुण्डली से धन की स्थिति

इंदू लग्न और होरा कुण्डली से धन की स्थिति 1】लग्न कुंडली  धनेश सूर्य,लग्न में नवमेश गुरु,लाभेष शुक्र ये सभी भाव(2,5,11th)लग्न में है जो अच्छा धन योग का संकेत दे रहा है, लग्नेश स्वयं भाग्य स्थान पर और भागेष गुरु लग्न में लग्न और भाग्य का परिवर्तन योग बन रहा है। 👍धन के स्रोत★ 2nd भाव जो धन भाव होता है वहाँ के स्वमी लग्न में  मित्र के साथ बैठे है। शनि अष्टमेश हो कर धन भाव मे शनि सेवक है ,मेहनत का कारक है। अष्ठम भाव विमारी का भाव के स्वामी धन भाव मे ,राहु विष ,राशयनिक, सर्जन, आदि का कारक है, वही कर्म के स्वामी मंगल 12th में है  भाव मे गया है केतु की दृष्टि भी 12th पर है। 12 भाव हॉस्पिटल से रिलेटेड से संकेत दे रहा है। जातक एक सर्जन चिकित्सक है।  शुक चतीर्थ भाव के स्वामी है शनि+शुक की राशि मे जातक कैस्टमेटिक सर्जन है। शुक्र सुंदरता का कारक है, 4th भाव शिक्षा के स्थान है।  ★गुरु उच्च का हो कर लग्न में है, पंचम भाव और नवम भाव पर दृष्टि डाल रहा है, जातक उच्च शिक्षा लेता है चंद्र गुरु 9th में जो अच्छा योग बन रहा है, 9th भाव उच्च शिक्षा देता है चंद्र 9th में चंद्रमा ख़ुद नर्सिग का कारक है,।। और नव

काले घोड़े की नाल

शनिदेव को लोहे से बनी धातु की चीजें बहुत प्रिय होती है। शनि की दशा या साढ़े साती होने पर भी इसका प्रयोग किया जाता है। जिस किसी की कुंडली में शनि की महादशा और अन्तर्दशा चल रही हो उसे तमाम तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है।  ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, धातुओं और ग्रहों का आपस में बहुत गहरा संबंध होता है। यदि ग्रह विपरीत हो, तो व्यक्ति के जीवन पर नकारात्मक असर होता है। ग्रह संबंधी धातु धारण करने से यह शांत हो जाते हैं। काले घोड़े की नाल का आकार अंग्रेजी के U अक्षर के जैसा होता है। यह मजबूत लोहे की बनी होती है। इसका प्रमुख कार्य घोड़े के पैर को सुरक्षा प्रदान करना है। साथ ही कहा जाता है कि जिस तरह घोड़े की नाल घोड़े के पैर की सुरक्षा करती है  उसी तरह यह घर की भी सुरक्षा करती है। यही कारण है कि लोग इसे अपने मुख्य द्वार पर लगाते हैं। और इसके लगाने से घर में किसी प्रकार की नाकारात्मक उर्जा प्रवेश नहीं कर पाती है।  जिस प्रकार छोटे बच्चों को बुरी नजर से बचाने के लिए उनके मां-बाप, दादा-दादी उन्हें काला टिक्का लगाते हैं, ठीक उसी तरह मकान, दुकान, प्रॉपर्टी और व्यापार आदि को लोगों की बुरी नजर स

ग्रहो की दृष्टि

ग्रहों की दृष्टि  सभी ग्रह अपने से सातवें स्थान को पूर्ण दृष्टि से देखते हैं। गुरु की पाँचवीं व नौवीं दृष्टि भी होती है। शनि तृतीय व दसवें स्थान को भी देखता है। मंगल चौथे व आठवें स्थान को देखता है। राहु-केतु भी क्रमश: पाँचवें और नौवें स्थान को पूर्ण दृष्टि से देखते हैं ।  फलादेश के सामान्य नियम  1. कुंडली में त्रिकोण के (5-9) के स्वामी सदा शुभ फल देते हैं ।  2. केंद्र के स्वामी (1-4-7-10) यदि शुभ ग्रह हों तो शुभ फल नहीं देते, अशुभ ग्रह शुभ हो जाते हैं ।  3. 3-6-11 भावों के स्वामी पाप ग्रह हों तो वृद्धि करेगा, शुभ ग्रह हो तो नुकसान करेगा।  4. 6-8-12 भावों के स्वामी जहाँ भी होंगे, उन स्थानों की हानि करेंगे ।  5. छठे स्थान का गुरु, आठवाँ शनि व दसवाँ मंगल बहुत शुभ होता है ।  6. केंद्र में शनि (विशेषकर सप्तम में) अशुभ होता है। अन्य भावों में शुभ फल देता है ।  7. दूसरे, पाँचवें व सातवें स्थान में अकेला गुरु हानि करता है ।  8. ग्यारहवें स्थान में सभी ग्रह शुभ होते हैं। केतु विशेष फलदायक होता है ।  9. जिस ग्रह पर शुभ ग्रहों की दृष्टि होती है, वह शुभ फल देने लगता है ।  विशेष : लग्न की स्थिति के