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Showing posts from July, 2022

मंगल जागृत

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मंगल जागृत नाड़ी ग्रंथ के अनुसार मंगल स्वयं से दशम भाव को 27 वे वर्ष में जागृत करता है ।  जैसे मंगल अगर चतुर्थ भाव में बैठे है तो  27 वे वर्ष में लग्न के कारक तत्व जागृत हो जायेंगे। लग्न से हम स्वयं को, किसी पद प्राप्ति या उन्नति को भी देखते है तो सूत्र के अनुसार जब 27वा वर्ष चालू होगा तब कार्यक्षेत्र में उन्नति के योग बनेंगे।  मंगल अगर पंचम भाव में बैठे है तो 27वे वर्ष में धन लाभ की स्तिथि बनेगी और वो कार्यक्षेत्र में उन्नति के कारण आएगी। मंगल अगर 6th भाव में बैठे है तो 27वे वर्ष में जगह बदलकर दूसरी जगह सेटल हो सकते है या मेहनत बहुत ज्यादा करनी पड़े ऐसा भी हो सकता है। मंगल अगर 7th भाव में बैठे तो 27वे वर्ष में नया घर , सुख सुविधा में वृद्धि , विवाह की स्तिथि भी बन सकती है क्योंकि सप्तम भाव चतुर्थ से चतुर्थ भी होता है। मंगल अगर 8th भाव में है तो पूर्व जन्म के पाप या पुण्य का फल मिलना आरंभ हो जायेगा। अगर विवाह हो चुका है तो संतान प्राप्ति की स्तिथि भी बनेगी। सुख सुविधा में वृद्धि के योग भी बनेंगे। मंगल अगर 9th भाव में है तो 27वे वर्ष में दिक्कत का सामना करना पड़ेगा पार्टनरशि

वरद विनायक (दूर्वा) चतुर्थी महात्म्य, विधि एवं कथा

वरद विनायक (दूर्वा) चतुर्थी महात्म्य, विधि एवं कथा प्रत्येक चंद्र माह में दो चतुर्थिया पड़ती हैं। हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार चतुर्थी भगवान गणेश की तिथि है। शुक्ल पक्ष के दौरान अमावस्या या अमावस्या के बाद की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी के रूप में जाना जाता है और कृष्ण पक्ष के दौरान पूर्णिमा या पूर्णिमा के बाद पड़ने वाले चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी के रूप में जाना जाता है। इस वर्ष वरद विनायक दूर्वा चतुर्थी 10 अगस्त सोमवार के दिन पड़ रही है। भगवान श्री गणेश जी को चतुर्थी तिथि का अधिष्ठाता माना जाता है तथा ज्योतिष शात्र के अनुसार इसी दिन भगवान गणेश जी का अवतरण हुआ था इसी कारण चतुर्थी भगवान गणेश जी को अत्यंत प्रिय रही है। विघ्नहर्ता भगवान गणेश समस्त संकटों का हरण करने वाले होते हैं. इनकी पूजा और व्रत करने से सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। वरद विनायक (दूर्वा) श्रीगणेश चतुर्थी का व्रत भारतीय पञ्चाङ्ग के अनुसार श्रावण मास में शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को रखा जाता है. इस दिन दान करने का अधिक महत्व होता है. इस दिन गणेश भगवान को मोदक का भोग लगाया जाता है. भगवान गणेश का स्थान सभी देवी-देवताओं में सर्वोपरि है.

कुंडली

जन्‍मकुंडली में नौवें भाव को पिता, पूर्वज, भाग्‍य और किस्‍मत का कारक माना जाता है।  इस घर में सूर्य और राहू की युति और अन्‍य ग्रहों के साथ रहने पर पितृ दोष उत्‍पन्‍न हो सकता है।  इससे भाग्‍य और शुभता दोनों समाप्‍त हो जाती हैं। कुंडली में पितृ दोष का मतलब है कि उस व्‍यक्‍ति के पितृ उससे प्रसन्‍न नहीं हैं या किसी कारण से असंतुष्‍ट हैं।  परिवार में किसी व्‍यक्‍ति की अकाल मृत्‍यु होने या मृत परिजन की आत्‍मा को सम्‍मान ना देने पर भी यह दोष उत्‍पन्‍न हो सकता है। आमतौर पर पितृ दोष जीवन में दुख और दुर्भाग्‍य का कारण बनता है। इससे धन का नुकसान, परिवार में अनबन, कानूनी केस या संतान पैदा ना कर पाने जैसी दिक्‍कतें आती हैं।  पितृ दोष से पीडित व्‍यक्‍ति को भाग्‍य का लाभ नहीं मिल पाता है और उसे अपने जीवन में बहुत संघर्ष करना पड़ता है। हिंदू शास्‍त्रों के अनुसार मृत पूर्वजों को प्रसन्‍न एवं संतुष्‍ट करने से जीवन में खुशियां आती हैं और शांति बनी रहती है।

हरियाली tej

हरियाली तीज 31 जुलाई विशेष 〰️〰️🌸〰️🌸🌸〰️🌸〰️〰️ सावन का महीना प्रेम और उत्साह का महीना माना जाता है। प्रेम के धागे को मजबूत करने के लिए इस महीने में कई त्योहार मनाये जाते हैं। इन्हीं में से एक त्योहार है- 'हरियाली तीज'। यह त्योहार हर साल श्रावण माह में शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाता है। इस त्योहार के विषय में मान्यता है कि माता पार्वती ने भगवान शिव को पाने के लिए तपस्या की थी। इससे प्रसन्न होकर शिव ने 'हरियाली तीज' के दिन ही पार्वती को पत्नी के रूप में स्वीकार किया था। इस त्योहार के विषय में यह मान्यता भी है कि इससे सुहाग की उम्र लंबी होती है। हरियाली तीज से एक दिन पहले द्वितीया का श्रृंगार दिवस के रूप में मनाया जाता है, जिसे सिंजारा कहते हैं। बहू बेटियों को 9-9 प्रकार के मिष्ठान व पकवान बनाकर खिलाए जाते हैं। सिंघारा वाले दिन किशोरी एवं नव विवाहिता वधुएं इस पर्व को मनाने के लिए अपने हाथों और पावों में कलात्मक ढंग से मेहंदी लगाती हैं। तीज के दिन स्त्रियां सोलह श्रृंगार करती हैं, जिनमें हरी साड़ी और हरी चूड़‍ियों का विशेष महत्‍व है. दिन-भर स्त्रियां तीज के गीत गाती है

धन प्राप्ति से जुड़े गुप्त संकेत

धन प्राप्ति से जुड़े गुप्त संकेत 1- अगर आपके शरीर के दाहिने भाग में या सीधे हाथ में लगातार खुजली हो, तो समझ लेना चाहिए कि आपको धन लाभ होने वाला है। 2- यदि कोई सपने में देखे कि उस पर कानूनी मुकदमा चलाया जा रहा है, जिसमें वह निर्दोष छूट गया है, तो उसे अतुल धन संपदा की प्राप्ति होती है। 3- लेन-देन के समय यदि पैसा आपके हाथ से छूट जाए, तो समझना चाहिए कि धन लाभ होने वाला है। 4- जो व्यक्ति सपने में मोती, मूंगा, हार, मुकुट आदि देखता है, उसके घर में लक्ष्मी स्थाई रूप से निवास करती है। 5- जिसे स्वप्न में कुम्हार घड़ा बनाता हुआ दिखाई देता है, उसे बहुत धन लाभ होता है। 6- दीपावली के दिन यदि कोई किन्नर संज-संवर कर दिखाई दे, तो अवश्य ही धन लाभ होता है। ये धन लाभ अप्रत्याशित रूप से होता है। 7- सोकर उठते ही सुबह-सुबह कोई भिखारी मांगने आ जाए, तो समझना चाहिए कि आपके द्वारा दिया गया पैसा (उधार) बिना मांगे ही मिलने वाला है। इसलिए भिखारी को अपने द्वार से कभी खाली हाथ नहीं लौटाना चाहिए। 8- यदि कोई सपने में स्वयं को कच्छा पहनकर कपड़े में बटन लगाता देखता है, तो उसे धन के साथ मान-सम्मान भी मिलता है। 9- यदि कोई स

राहु केतु

*फलित ज्योतिष और रहस्यमय छायाग्रह राहु- केतु         रहस्यमय छाया ग्रह है राहु और केतु। मगर दोनों का फलित मान्यता ज्योतिष शास्त्र में है। विशेषतः पाराशरी फलित गणना में दोनों को बहुत गुरुत्व देकर स्थानस्थिति को आधार कर शुभाशुभ प्रभावों को परिभाषित किया गया है।।         ज्योतिष शास्त्र में-- (१) राहु :-- कन्या राशि का अन्यतम अधिपति, मिथुन राशि का 20° में उच्च (मतान्तर में वृष), कुम्भ राशि में मूलत्रिकोणस्थ, धनु (मतान्तर में वृश्चिक) राशि में नीच, शुक्र- शनि मित्र, बुध- गुरु सम, रवि- चन्द्र- मंगल शत्रु माना जाता है।।          ऐसे, (२) केतु :-- मीन राशि का अन्यतम अधिपति, वृश्चिक 6° में उच्च ( मतांतर में धनु), सिंह राशि में मूलत्रिकोणस्थ, वृष (मतान्तर में मिथुन) राशि में नीच,  रवि- चंद्र- मंगल मित्र, बुध- गुरु सम, शुक्र- शनि शत्रु माना जाता है।।       (नोट्स :-- इस मतान्तर- तथ्य को अनेक मुर्द्धन्य ज्योतिषी मान्यता नहीं देते हैं।।)        *कुंडली में "सर्प दोष" (तथाकथित कालसर्प दोष) अर्थात पाराशरी "पितृ दोष" विचार राहु- केतु- स्थिति को लेकर किया जाता है।।*        'बृह

पूर्व #जन्म #संबंधित #सिद्धांत व #सूत्र

पूर्व #जन्म #संबंधित #सिद्धांत व #सूत्र  चंद्रमा आठवें भाव में पाप पीड़ित या अशुभ स्थिति में हो तो अरिष्ट दोष करता है (लग्नेश बलवान हो या लग्न शुभ ग्रह से दृष्ट हो तो रक्षा होती है )जातक का जीवन यह स्वास्थ्य सुख शांति या मनोबल या आर्थिक स्थिति प्रभावित रहती है। उसके माता की आयु या स्वास्थ्य की हानि होती है( जिससे जातक को मातृ सुख की कमी हो सकती है जातक के जन्म के समय या गर्भ काल में ही माता को बहुत तकलीफ उठानी पड़ सकती है। जातक जन्म के 6 से 8 वर्ष तक अस्वस्थ रहता है यदि राहु से दृष्ट हो या राहुल लग्न में हो तो मिर्गी आदि के दौर या मनोरोग संभव होते हैं ।फिर भी जातक का अपनी माता के प्रति विशेष लगाव होता है। बड़ी मां से उसके संबंध बिगड़ सकते हैं या उनके कारण उसे कोई क्लेश हो सकता है । बहुत सारी चीजें हैं अष्टम चंद्रमा के बारे में जो लिखना ठीक नहीं है कई लोग बवाल करने लगेंगे लिखने पर।कई का मनोबल टूट जाएगा 🥲 #उपाय रिश्वत कवि ना ले और बुजुर्गों किस राज्य में दूध के पदार्थ दान करें शमशान के कुएं या हेड पंप का पानी लाकर घर में रखें किंतु दूसरे भाव में राहु केतु शनि हो तो एक बोतल आ दूध भरकर ढक

nag pachmi

Nag Panchami Puja Muhurat – 05:43 AM to 08:25 AM Duration – 02 Hours 42 Mins Panchami Tithi Begins – 05:13 AM on Aug 02, 2022 Panchami Tithi Ends – 05:41 AM on Aug 03, 2022 Naga Chaturthi falling on the 4th day during the bright fortnight of auspicious Sravana Maasa followed by Naga Panchami on the next day is celebrated as Naga Devatha festival. Serpent God Aadi Sesha is the presiding Deity for Panchami thithi. It is said to be the day Lord Brahma gave a boon to Serpents that they would get adored by human beings on the Earth.  It was on this day of Naga Panchami, King Janamejaya stopped his Sarpa Yaga and a new lease of life was given to the Serpents.  Among the snakes, Cobra is considered as Serpent God (Naga Devatha) and Nagaaradhana (Snake worship) is one of the accepted sattsampradaya in Hindu religion since yore. There is a separate world for snakes known as _Naaga Loka_ among the nether worlds. Among the serpent Gods, Anantha (Aadi Sesha) and Vasuki are in the forefront. We fin

कुंडली में लग्न दोष निर्माण

कुंडली में लग्न दोष निर्माण यदि किसी कुंडली में लग्न की राशि का स्वामी अस्त हो गया हो और लग्न में बैठे ग्रह भी अस्त हो गए हों तो कुंडली में लग्न दोष का निर्माण होता है। यदि कुंडली में लग्न की राशि का स्वामी छठे, आठवें, बारहवें भाव में चला जाता है तो लग्नेश कमजोर हो जाता है, तो कुंडली में लग्न दोष बन जाता है। यदि कुंडली में लग्नेश के अंश  0,1, 2, या 28, 29, 30 हो और लग्नेश अशुभ ग्रहों से प्रभावित हो तो लग्न दोष का निर्माण होगा। यदि लग्नेश जिस भाव में है उसके आगे और पीछे क्रूर ग्रह हो तो यह लग्न दोष बनाएगा। यदि कुंडली में छठे, आठवें और बाहरवें घर के स्वामी ग्रह का और शनि, मंगल, राहु का लग्नेश के साथ बैठना लग्नदोष बनाता है। इसके अलावा छठे, आठवें और बाहरवें भाव में लग्नेश शनि परेशान तो करते हैं लेकिन बल भी प्रदान करते हैं। लग्न दोष के प्रभाव कुंडली में लग्नदोष बनने से जीवन संघर्षमय बन जाता है।  लग्नेश जिस घर में बैठकर लग्न दोष बनाता है, तो भाव के फल को भी प्रभावित करता है। इसके बनने से मान-सम्मान में कमी, सेहत में खराबी और आर्थिक स्थिति कमजोर हो जाती है। साथ ही कुंडली में लग्नदोष होने पर अ

Story Behind the celebration of Nag Panchami

Story Behind the celebration of Nag Panchami  🌹 🌿 There are many stories and legends related to the celebration of Nag Panchami. As per the “Hindu Puranas” and the Mahabharata, Kashyapa was the grandson of the Lord Brahma (Creator of the whole universe). He married two daughters of Parjapati Dakshna. The names of these daughters were Kadru and Vinata. Kadru gave birth to a Naga race. On the other hand, Vinata gave birth to Aruna. Arun eventually became the charioteer of the sun god, Surya. Vinata also gave birth to Garuda who become the carrier of Vishnu. 🌹 🌿 According to another account, Janmajeya who was the grandson of Arjun and son of Parikshit had organized for a Nag Yagya to take revenge from the snakes and devastate their entire clan. It is so because Parikshit was killed by Takshak Snake. The son of Rishi Jaratkaru, Aastik Muni stopped this Yagya to protect Nagas. The day on which this Yagya was stopped was Shravan Shukla Panchami. This is how Aastik Muni saved Takshak Snak

मंदिर में परिक्रमा लेते समय

*याद रखिये.......कभी भगवान की पीठ को न देखें और न ही प्रणाम या प्रार्थना करें :* *🚩मंदिर में परिक्रमा लेते समय भगवान या देवी की पीठ को प्रणाम करने का चलन बहुत हो गया है!🚩* किसी भी भगवान या देवी देवताओं की पीठ को प्रणाम करने से समस्त पुण्यों का नाश हो जाता है! इसका प्रमाण भागवत कथा में एक प्रसंग में इस प्रकार बताया गया है कि जरासंध के साथ युद्ध के समय एक काल यवन नाम का राक्षस जरासंध की तरफ से युद्ध करने के लिए युद्ध स्थल में श्री कृष्ण भगवान जी से युद्ध करने आ गया! काल यवन भयानक राक्षस के अलावा  सत्कर्म करने वाला भी था।      *श्री कृष्ण भगवान जी इस राक्षस के वध के पहले इसके समस्त सत्कर्मों को नष्ट करना चाहते थे।* सत्कर्म नष्ट होने से सिर्फ इस दुष्ट को दुष्टता के कर्मफल मिलें व उसका वध किया जा सके! इसलिये श्री कृष्ण भगवान जी मैदान छोड़ कर भागने लग गये! भगवान आगे आगे राक्षस काल यवन पीछे - पीछे भाग रहे हैं! *इससे राक्षस काल यवन को भगवान की पीठ दीखती रही और उसके  सभी सत्कर्मों का नाश होता रहा!* भगवान श्रीकृष्ण की इस युक्ति के पीछे यह राज था कि राक्षस काल यवन के अर्जित सत्कर्मों का नाश हो

जय श्री राम

।। जय श्री राम।। *ज्योतिष में शनि ग्रह का महत्व* *वैदिक ज्योतिष में शनि ग्रह का बड़ा महत्व है। हिन्दू ज्योतिष में शनि ग्रह को आयु, दुख, रोग, पीड़ा, विज्ञान, तकनीकी, लोहा, खनिज तेल, कर्मचारी, सेवक, जेल आदि का कारक माना जाता है। यह मकर और कुंभ राशि का स्वामी होता है। तुला राशि शनि की उच्च राशि है जबकि मेष इसकी नीच राशि मानी जाती है। शनि का गोचर एक राशि में ढ़ाई वर्ष तक रहता है। ज्योतिषीय भाषा में इसे शनि ढैय्या कहते हैं। नौ ग्रहों में शनि की गति सबसे मंद है। शनि की दशा साढ़े सात वर्ष की होती है जिसे शनि की साढ़े साती कहा जाता है। समाज में शनि ग्रह को लेकर नकारात्मक धारणा बनी हुई है। लोग इसके नाम से भयभीत होने लगते हैं। परंतु वास्तव में ऐसा नहीं है। ज्योतिष में शनि ग्रह को भले एक क्रूर ग्रह माना जाता है परंतु यह पीड़ित होने पर ही जातकों को नकारात्मक फल देता है। यदि किसी व्यक्ति का शनि उच्च हो तो वह उसे रंक से राज बना सकता है। शनि तीनों लोकों का न्यायाधीश है। अतः यह व्यक्तियों को उनके कर्म के आधार पर फल प्रदान करता है। शनि पुष्य, अनुराधा और उत्तराभाद्रपद नक्षत्र का स्वामी होता है। *ज्योतिष

शनि महादशा का विशेष फल

🌹शनि महादशा का विशेष फल🌹 शनि की महादशा उन्नीस वर्ष की होती है शनि  पापी ग्रह अवश्य है, और न्याय और कर्म के देवता माने गए हैं लेकिन अपने प्रभाव से व्यक्ति को पापात्मा नही बनाता , दरिद्री भले ही बना दे यदि कुण्डली में शनि कारक होकर उच्च राशि मूल त्रिकोण राशि, स्वराशि अथवा मित्र राशि में होकर बलवान अवस्था में केन्द्र अथवा त्रिकोण में स्थित हो तो वह विशेष शुभ फलदायक होता है। जातक को शुभ शनि की दशा में राजकीय एवं सामाजिक सम्मान मिलता है उसके वैभव एवं कीर्ति की बढ़ोत्तरी होती हैं शनि की दशा जातक के भाग्योदय में पूर्णरूपेण सहायक होती है हालांकि जातक के भाग्योदय में पूर्णरूपेण सहायक होती है  यदि शनि कुण्डली में अकारक होकर नीच राशि, शत्रु राशि में तथा पापी ग्रह से युक्त अथवा दृष्ट हो तो जातक इस दशा में असहनीय कष्ट भोगता है जातक के प्रत्येक कार्य मे विघ्न आते है एवं उसके बने बनाये कार्यो का भी नाश हो जाता है समाज में व्यर्थ की अपवाहे फैलाती हैं झूठे अभियोग में फसकर कारागृह में रहना पड़ता है शत्रुपत्र प्रबल हो जाता है. यदि शनि राहु से प्रभावित हो तो जातक सर्पदंश या विषपान से मृत्यु तुल्य कष्ट म

श्रवण नक्षत्र

श्रवण  नक्षत्र में व्यक्ति श्रीमान् , धनवान व विद्वान् होता है । इन लोगों की  वाक् शक्ति अच्छी होती है । ये लोग अपने कार्य क्षेत्र में प्रसिद्ध होते हैं । जीवन में अच्छा धन कमाते हैं । ( बराह )  ये स्वयं भी उदार होते हैं । अर्थात् विनम्र और दूसरों के काम आने वाले होते हैं । इनकी पत्नी  भी उदार व खुले दिल वाली होती हैं । धार्मिक कार्यों में श्रम , समय व धन देते हैं । काव्यात्मक बातें . पौराणिक आख्यान सुनने में इन्हें आनन्द मिलता है । ( नारद )  श्रवण नक्षत्र में उत्पन्न व्यक्तियों में कविता शक्ति भी होती है । साधारणत : ये लोग धनी व विद्वान् होते हैं । इन्हें पौराणिक कथाएं सुनने का शौक भी होता है । साधारणत : ये लोग किसी व्यक्ति से प्रभावित नहीं होते  हैं , लेकिन गुणों को परखकर ये गुणी जनों के भक्त हो जाते हैं । इसीलिए कहीं पर श्रुतिवान् कहा गया है तो कहीं पर शास्त्रानुरक्त बताया गया है । पराशर के मत से ये लोग अपनी जाति बिरादरी में अच्छी उन्नति करते हैं । दान देने में इनकी अभिरुचि देखी गई है तथा ये उदार मन वाले , चतुर ये लोग व कार्यकुशल होते हैं । इनका सामान्य स्वास्थ्य साधारणतया मध्यम रहत

अमावस्या

सावन की हरियाली अमावस्‍या का महत्‍व 〰〰🌼〰〰🌼🌼〰〰🌼〰〰 अमावस्या में श्रावण मास की अमावस्या का अपना अलग ही महत्व है। इसे हरियाली अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है। हरियाली अमावस्या का त्योहार सावन महीने की अमावस्या को मनाया जाता है। यह त्योहर सावन में प्रकृति पर आई बहार की खुशी में मनाया जाता है। हरियाली अमावस पर पीपल के वृक्ष की पूजा एवं फेरे किये जाते है तथा मालपूए का भोग बनाकर चढाये जाने की परम्परा है। हरियाली अमावस्या पर वृक्षारोपण का भी महत्व है। इस वर्ष 28 जुलाई के दिन हरियाली अमावस्या मनाई जाएगी अमावस्या के साथी ही यह पितृकार्येषु (पित्रो के लिए किए जाने वाले जप दान आदि) की अमावस्या के रुप में भी जानी जाती है. कालसर्प योग, ढैय्या तथा साढ़ेसाती सहित शनि संबंधी अनेक बाधाओं से मुक्ति पाने का यह दुर्लभ समय होता है। 28 जुलाई गुरुवार को गुरुपुष्य नक्षत्र, कर्क राशि के चंद्रमा के साथ हरियाली अमावस्या का संयोग दुर्लभ ही होता है। अमृत सिद्धि व सर्वार्थ सिद्धि योग में हरियाली अमावस्या हो, गुरुवार को पुष्य नक्षत्र हो तो यह अमृत व सर्वार्थ सिद्धि योग कहलाता है। नक्षत्र गणना के अनुसार पुष्य नक

दो_विवाह_किनके_होंगे?

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दो_विवाह_किनके_होंगे? आज बात करते है दो(2)विवाह से संबधित।किसी किसी जातक/जातिका की कुंडली मे ऐसे ग्रहयोग वैवाहिक जीवन को लेकर बने होते है कि उनकी 2शादियां होती है आज इसी बारे में समझते है और बात करते है।                                                                                      कुंडली का 7वा भाव और इसका स्वामी विवाह और वैवाहिक जीवन का है तो शुक्र पुरुषों के लिए विवाह और पत्नी सुख ग्रह है तो बृहस्पति लड़कियों/महिलाओं के लिए विवाह और पति सुख ग्रह है।अब 7वे भाव और 7वे भाव स्वामी दोनो पर कम से कम दो पाप ग्रहों शनि राहु केतु मंगल इनमे से दो पाप ग्रहों का प्रभाव होकर यह पीड़ित कर रहे है और शुक्र/बृहस्पति ज्यादा बलवान नही है तब यहाँ पहली शादी नही चलेगी शादी न चलने या शादी खत्म होने का कारण कुछ भी हो सकता है जो भी कारण कुंडली मे बना होगा जैसे, जीवनसाथी से तलाक, जीवनसाथी की मृत्यु या जीवनसाथी के द्वारा छोड़ देना आदि।अब ऐसी स्थिति है लेकिन 7वे भाव स्वामी और 7वा भाव शुभ स्थान में कुंडली के बैठकर किसी भी एक शुभ ग्रह या एक से ज्यादा शुभ ग्रह शुक्र या गुरु या चन्द्र या बुध से सम्ब

आत्महत्या योग

 आत्महत्या योग आत्महत्या करना सबसे बड़ा पाप है, इसकी माफी के लिए कोई भी प्रायश्चित नहीं है, क्योंकि यह जीवन परमपिता परमेश्वर का दिया हुआ है, इसलिए इसे खत्म करने का अधिकार हमें नहीं है, आत्महत्या करने के बाद हमारी योनि युगो- युगो तक कर्मानुसार प्रेत योनि में भटकती है, जिसमें मृत्यु तुल्य कष्ट प्राप्त होते हैं,  लेकिन इसके बावजूद, सब कुछ जानने के बावजूद भी, कई बार ऐसी परिस्थितियां पैदा हो जाती हैं कि, अपना ही जीवन व्यर्थ लगने लगता है और आदमी आत्महत्या करने का निर्णय ले लेता है, इस जीवन को कोई भी खत्म कर नहीं करना चाहता, चाहे वह जानवर हो या इंसान आत्महत्या का कदम बहुत मजबूरी में उठाया जाता है, जब जीने का कोई विकल्प नहीं बचता अत्यंत मजबूरी में यह कदम उठाया जाता है ! आइए जाने, आखिर इसके लिए कौन सी परिस्थितियां और  ग्रह जिम्मेदार हैं !   *जन्मकुंडली में आठवां स्थान मृत्यु का स्थान::->* किसी भी जन्मकुंडली में आठवां स्थान मृत्यु का स्थान कहलाता है। इस भाव में मौजूद विभिन्न् ग्रह स्थितियों को देखकर पता लगाया जा सकता है कि व्यक्ति की मृत्यु किन कारणों से और कैसे होगी। वैदिक ज्योतिष के अनुसार

सबसे रहस्यमय अंक 7

🌐🌐सबसे रहस्यमय अंक 7🌐🌐 तो आइए चर्चा करते हैं मूलांक 7 के बारे में। मूलांक 7 का स्वामी ग्रह केतु है कई विद्वान इसे नेपच्यून (वरुण) ग्रह का अंक तो कुछ इसे चंद्रमा का अंक भी मानते हैं मूलांक 7 वाले व्यक्ति मौलिकता, स्वतंत्र विचार-शक्ति तथा असामान्य व्यक्तित्व के मालिक होते हैं. ये शांत चित्त नहीं बैठ पाते सदैव कुछ न कुछ सोचते रहते हैं, ये सदैव बदलाव और यात्रा के लिए उत्सुक रहते हैं. क्षत्रपति शिवाजी का मूलांक 7 ही था। मूलांक 7 वालों की कल्पनाशक्ति तीव्र होती हैं। इनमें अभिव्यक्ति की अच्छी क्षमता होती हैं. ये स्वतंत्र रूप से और निडरता से साफ साफ बात कहने वाले होते हैं. इनमे प्रबल आत्मविश्वास होता हैं। मूलांक 7 वाले समाज में प्रतिष्ठित हो्ते है लेकिन ये छोटी छोटी बातो पर ही चिड़चिडे हो जाते हैं और चिंता करके राइ का पहाड़ बना देते हैं। इन्हें अपनी इस प्रवृत्ति पर संयम पाना चाहिए यदि इनके शिक्षा की बात की जाय तो कला एवं गुप्त विद्या में इनकी अच्छी रुचि होती है। इनकी शिक्षा का स्तर अच्छा होता है हालांकि इनकी प्राथमिक शिक्षा का स्तर कुछ ढीला रह सकता है लेकिन धीरे-धीरे इनकी शिक्षा का स्तर सुध

दशम भाव और सूर्य

दशम भाव और सूर्य  इशारों को अगर समझो तो राज को राज रहने दो. हमारे आचार्यो ने इशारों ही इशारों मे बहुत कुछ समझाया है. अब समझने वाले समझ गए . जो न समझे. जो न समझे वो खिलाड़ी है. लिखते है दसम का सूर्य हो तो कहने ही kya. केंद्र बल मिल गया. दिग्बल मिल गया. और स्व उच्च का हुआ तो कहने ही kya . सूर्य सोर मंडल का सबसे बड़ा गृह है. सबका केंद्र बिंदु भी है. चर्चा कर चुके है कई बार इस्पे. दसम कर्म. ऋषि पराशर ने भी तो लिखा है दोपहर 12 से एक का जन्म अपने आप मे एक प्रबल राजयोग है. मतलब यही हो गया की सूर्य दसम मे रहेगा और अभिजित मुहूर्त भी रहेगा. सूर्य सब ग्रहों के दोष को दूर करने वाला एक मात्र गृह. लग्न नवं दसम का कारक. लग्न मजबूत हो गया. भाग्य मजबूत हो गया. कर्म मजबूत हो गया. आत्म मजबूत हो गयी. आरोग्य मजबूत हो गया. हड्डिया मजबूत हो गयी. पेट मजबूत हो गया तो और kya चाहिए पार्थ तुमको. आयुर्वेद तो कहता ही है की लगभग सारी बीमारिया पेट से ही उत्पन्न होती है. दसम मे बैठा सूर्य दिग्बल केंद्र बल ले ही रहा है पहले से और राशि बल, वर्ग बल, शुभ युति द्रष्टि हो गयी साथ मे तो और kya चाहिए पार्थ तुम्हे. कर्म भाव को,

चंद्रमा के उपाय

चंद्रमा के उपाय चंद्रमा मन का कारक है और आज के परिवेश में लगभग 90% लोगो का चंद्रमा पीड़ित ही मिलेगा। पाप ग्रहों से दृष्ट,पाप करतारी, शनि के साथ होने पर विष दोष,राहु या केतु के साथ होने पर ग्रहण दोष( हालाकि हमेशा ग्रहण दोष नही होता किंतु पाप प्रभाव होने से मन भ्रमित अवश्य होता है।) अकेला चंद्रमा होने पर केमद्रुम दोष, क्षीण चंद्रमा आदि। चंद्रमा चतुर्थ भाव का कारक भी होता है। अगर चंद्रमा पीड़ित हुआ तो स्वाभाविक है की सुख भी पीड़ित हुआ। अर्थात यदि आपके पास सबकुछ है किंतु मन ही दुखी है तो आप सुख कैसे भोग पाएंगे। किंतु यदि चंद्रमा शुभ ग्रहों से दृष्ट  या युत हो जैसे गुरु या शुक्र तो उसके दोषों में कमी होगी। और ऐसे लोगो के पास धन न भी हो तो तो भी सुखी रह लेते है। कुछ न होते हुए भी सुखी है। अतः सबसे पहले चंद्रमा का सही होना जरूरी है वरना हमारे सुख में कमी आयेगी। ⭐सबसे पहले हमें अपनी दिनचर्या को सही करना चाहिए क्युकी आज के युग में बहुत रात तक जागने के कारण अधिकतर लोगो का चंद्रमा खराब होता जा रहा है। जल्दी सोए और जल्दी उठे। ⭐ सुबह उठकर प्राणायाम और मेडिटेशन करने का प्रयास करे। ⭐ चांदी की ग्लास स

रुद्राभिषेक में शिव निवास का विचार

रुद्राभिषेक में शिव निवास का विचार  〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️ किसी कामना, ग्रहशांति आदि के लिए किए जाने वाले रुद्राभिषेक में शिव निवास का विचार करने पर ही अनुष्ठान सफल होता है और मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। प्रत्येक मास की तिथियों के अनुसार जब शिव निवास गौरी पार्श्व में, कैलाश पर्वत पर, नंदी की सवारी एवं ज्ञान वेला में होता है तो रुद्राभिषेक करने से सुख-समृद्धि, परिवार में आनंद मंगल और अभीष्ट सिद्धि की प्राप्ति होती है। "परन्तु शिव वास श्मशान, सभा अथवा क्रीड़ा में हो तो उन तिथियों में शिवार्चन करने से महा विपत्ति, संतान कष्ट व पीड़ादायक होता है।" रुद्राभिषेक करने की तिथियां- 〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️ कृष्णपक्ष की प्रतिपदा, पंचमी, अष्टमी, एकादशी, द्वादशी, अमावस्या, शुक्लपक्ष की द्वितीया, पंचमी, षष्ठी, नवमी, द्वादशी, त्रयोदशी तिथियों में अभिषेक करने से सुख-समृद्धि संतान प्राप्ति एवं ऐश्वर्य प्राप्त होता है। कालसर्प योग, गृहकलेश, व्यापार में नुकसान, शिक्षा में रुकावट सभी कार्यो की बाधाओं को दूर करने के लिए रुद्राभिषेक आपके अभीष्ट सिद्धि के लिए फलदायक है।  किसी कामना से किए जाने वाले

रावणकृत शिव तांडव स्त्रोत

जय श्रीराम ।।            रावणकृत शिव तांडव स्त्रोत            ================= शिव तांडव स्तोत्र को रावण तांडव स्तोत्र के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि इस स्तोत्र का रचना रावण द्वारा की गई है। इस स्तोत्र में रावण ने 17 श्लोंको से भगवान शिव की स्तुति गाई है। जब एक बार अहंकारवश रावण नें कैलाश को उठाने का प्रयत्न किया तो भगवान शिव ने अपने अंगूठे से पर्वत को दबाकर स्थिर कर दिया। जिससे रावण का हाथ पर्वत के नीचे दब गया। तब पीड़ा में रावण ने भगवान शिव की स्तुति की। रावण द्वारा गाई गई, यही स्तुति शिव तांडव स्तोत्र के नाम से जानी जाती है। भोलेनाथ की स्तुति में 1008 छंदों की रचना कर डाली, जिसे अब शिव तांडव स्तोत्र के नाम से जाना जाता है। रावण की भक्ति से शिव जी अति प्रसन्न हुए और आशीर्वाद देते है। "  शिव तांडव स्तोत्र का पाठ अन्य किसी भी पाठ की तुलना में भगवान शिव को अधिक प्रिय है। यह पाठ करने से भगवान शिव बहुत ही जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं। यह स्तोत्र बहुत चमत्कारिक माना जाता है। तो चलिए जानते हैं शिव तांडव स्तोत्र के फायदे और पाठ करने की विधि... 1-जो मनुष्य शिवतांडव स्तोत्र द्वारा भगवान

जामुन

*जामुन एक ऐसा वृक्ष जिसके अंग अंग में औषधि है।*🍇 🍇अगर जामुन की मोटी लकड़ी का टुकडा पानी की टंकी में रख दे तो टंकी में शैवाल, हरी काई नहीं जमेगी और पानी सड़ेगा भी नहीं।  🍇जामुन की इस खुबी के कारण इसका इस्तेमाल नाव बनाने में बड़ा पैमाने पर होता है। 🍇पहले के जमाने में गांवो में जब कुंए की खुदाई होती तो उसके तलहटी में जामून की लकड़ी का इस्तेमाल किया जाता है जिसे जमोट कहते है।  🍇दिल्ली की निजामुद्दीन बावड़ी का हाल ही में हुए जीर्णोद्धार से ज्ञात हुआ 700 सालों के बाद भी गाद या अन्य अवरोधों की वजह से यहाँ जल के स्तोत्र बंद नहीं हुए हैं।  🍇भारतीय पुरातत्व विभाग के प्रमुख के.एन. श्रीवास्तव के अनुसार इस बावड़ी की अनोखी बात यह है कि आज भी यहाँ लकड़ी की वो तख्ती साबुत है जिसके ऊपर यह बावड़ी बनी थी। श्रीवास्तव जी के अनुसार उत्तर भारत के अधिकतर कुँओं व बावड़ियों की तली में जामुन की लकड़ी का इस्तेमाल आधार के रूप में किया जाता था। 🍇स्वास्थ्य की दृष्टि से विटामिन सी और आयरन से भरपूर जामुन शरीर में न केवल हीमोग्लोबिन की मात्रा को बढ़ाता। पेट दर्द, डायबिटीज, गठिया, पेचिस, पाचन संबंधी कई अन्य समस्याओ

गुरु बुध

गुरु बुध  गुरु तो हमको सबको पता ही है..सबसे शुभ गृह...अब गुरु के साथ बुध आ गया तो वो भी सात्विक गृह बन गया...यानी अब हमारे पास दो दो गुरु हो गए...डबल धमाका..जुड़वाँ..एक के साथ एक फ्री...गुरु ज्ञान है तो बुध बुद्धि..गुरु चिंतन है तो बुध ग्रहण करने की क्षमता..गुरु जिव है तो बुध ज्ञान...बुध के ज्ञान मे गुरु की शुभता मिल गयी तो कहने ही kya...मतलब ये तो तय है की शुभ ही होगा ..लेकिन गुरु बुध को शत्रु मानता है..एक ही राशी मे बैठ गए तो अधि शत्रु बन जायेंगे..मतलब गूर बुध से शत्रुता निभाएगा..लेकिन बुध तो गुरु के रंग मे रंगने की कोशिश करेगा...द्विस्वभाव लग्न हुआ तो लग्न इतना मजबूत और शुभ होगा की पूछो मत. अब देखो दोनो ही लग्न मे दिग्बली होते है..तो इसका मतलब ये तो तय हो गया की दोनो का लग्न या लग्नेश से संबध हुआ तो लग्न को तो मजबूत करेंगे...बुध लग्नेश के साथ बैठेगा तो लग्न को एकदम मजबूत करेगा..क्योंकि बुध तो सामने वाले के रंग मे राम जाता है....गुरु वही शुभत्व का घोतक..मतलब लग्न को एकदम मजबूत करेंगे...ये अगर लग्न मेबैठे के बलि हुए तो लग्न को एकदम मजबूत करेंगे..क्योंकि वह ये दिग्बली भी होंगे... अब अगर

भगवान शिव की पांच बेटियों के जन्म की कथा

भगवान शिव की पांच बेटियों के जन्म की कथा? 〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰 भारत में शिव जी को भगवान के रूप में तथा देवी पार्वती को माँ की रूप में पूजा जाता है। भगवान शिव को देवों के देव भी कहते हैं। इनके अन्य नाम महादेव, भोलेनाथ, नीलकंठ, तथा शंकर आदि हैं। शिव के गले में नाग देवता विराजित हैं। उनके हाथों में डमरू और त्रिशूल रहता है। माँ पार्वती भगवान शिव की पत्नी हैं। माँ पार्वती देवी सती का ही रूप हैं। माँ पार्वती को उमा तथा गौरी आदि नामो से भी जाना जाता है। माँ पार्वती का जन्म हिमनरेश के घर हुआ था जो कि हिमालय का अवतार थे। माँ पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए घोर तप किया था तथा अपने कठोर तप में वह सफल भी हुई। आपने भगवान शिव तथा देवी पार्वती से सम्बंधित कई कथाएं भी सुनी होंगी। परन्तु भगवान शिव की पांच बेटियों की कथा के बारे में केवल कुछ ही लोग जानते हैं। एक दिन भगवान शिव और माँ पार्वती एक सरोवर में जल क्रीड़ा कर रहे थे। उस समय भगवान शिव का वीर्यस्खलन हो गया।  तब महादेव ने वीर्य को एक पत्ते पर रख दिया। उन वीर्य से पांच कन्यायों का जन्म हो गया। परन्तु यह कन्याएं मनुष्य रूप में ना होकर सर

अचूक सटीक उपाय

अचूक सटीक उपाय हर मनुष्य की कुछ मनोकामनाएं होती है। कुछ लोग इन मनोकामनाओं को बता देते हैं तो कुछ नहीं बताते। चाहते सभी हैं कि किसी भी तरह उनकी मनोकामना पूरी हो जाए। लेकिन ऐसा हो नहीं पाता। यदि आप चाहते हैं कि आपकी सोची हर मुराद पूरी हो जाए तो नीचे लिखे प्रयोग करें। इन टोटकों को करने से आपकी हर मनोकामना पूरी हो जाएगी। उपाय – तुलसी के पौधे को प्रतिदिन जल चढ़ाएं तथा गाय के घी का दीपक लगाएं। – रविवार को पुष्य नक्षत्र में श्वेत आक की जड़ लाकर उससे श्रीगणेश की प्रतिमा बनाएं फिर उन्हें खीर का भोग लगाएं। लाल कनेर के फूल तथा चंदन आदि के उनकी पूजा करें। तत्पश्चात गणेशजी के बीज मंत्र (ऊँ गं) के अंत में नम: शब्द जोड़कर 108 बार जप करें। – सुबह गौरी-शंकर रुद्राक्ष शिवजी के मंदिर में चढ़ाएं। – सुबह बेल पत्र (बिल्ब) पर सफेद चंदन की बिंदी लगाकर मनोरथ बोलकर शिवलिंग पर अर्पित करें। – बड़ के पत्ते पर मनोकामना लिखकर बहते जल में प्रवाहित करने से भी मनोरथ पूर्ति होती है। मनोकामना किसी भी भाषा में लिख सकते हैं। – नए सूती लाल कपड़े में जटावाला नारियल बांधकर बहते जल में प्रवाहित करने से भी मनोकामनाएं पूरी हो जा